भारत की कुल आबादी का लगभग आधी जनसंख्या महिलाओं का है। देश में जिस तरह से विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ी है, उससे आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, वातावरण के प्रति संवेदनशीलता पहले के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ी है। इसके साथ लोगों की जीवन स्तर, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की समझ ज्यादा हुई है। शिक्षा का स्तर पहले के मुकाबले अधिक ऊंचा हुआ। लेकिन अभी तक महिलाओं की जितनी भागीदारी होनी चाहिए, वह अभी तक नहीं हुई है। यदि चारों तरफ नजर दौड़ाई जाए तो किसी भी क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रतिशत पुरूषों के बराबर शायद ही देखने को मिलता है। चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक का क्षेत्र हो। चाहे सरकारी, सार्वजनिक, निजी या संयुक्त संगठन हो। मीडिया हो मनोरंजन। आज भी महिलाओं को नीतिगत फैसला करने का अधिकार नहीं मिला है। इन सबके बीच कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, किरण बेदी, इंदिरा नूई, किरण मजूमदार और सोनिया गांधी आदि नाम अपवाद स्वरूप हैं। लेकिन जनसंख्या के हिसाब से ऐसी कितनी महिलाएं देश में हैं। जिनके पास इनके बराबर अधिकार मिला है। संविधान ने महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार प्रदान किया है। समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार भी मिला हुआ है। समानता का अधिकार बिना लिंग भेद किए सबकों समान अवसर देने की वकालत करती है। देश में महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत 2001 की जनगणना के अनुसार 54.16 फीसदी है। जिनमें से अधिकांश महिलाएं घरेलू कार्यो में फंस जाती है। जिससे इनकी प्रतिभाएं दब जाती है। इनकों पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते है। जिससे इनको देश के विकास में भागीदार बनने का अवसर नहीं मिलता है। बात राजनीति की किया जाए तो देश के लगभग सभी राजनीतिक दल इनको संसद और विधान मंडलों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात करते है। लेकिन बात जब इसे संसद से पारित करने की आती है तो कोई न कोई दल इसमें अडंगा लगाकर इसे संसद से पास नहीं होने देते है। इससे भी हास्यास्पद स्थिति तब आती है जब चुनाव के समय भी महिलाओं को टिकट के बंटवारे में भेदभाव करते है। अधिकत्तर महिलाओं को अपेक्षाकृत कमजोर मानी जाने वाली सीटें देकर अपने आंकड़ा को केवल भरने का काम करते है। एक अनुमान के अनुसार अगर श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पहले की अपेक्षा और अधिक की जाए तो अगले पांच सालों में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 35 अरब डाॅलर की बढ़ोत्तरी हो सकती है। महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जाए तो भारत वर्ष 2015 तक पांच प्रतिशत और वर्ष 2025 तक 12 फीसदी और अमीर हो सकता है। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी पहले की तुलना में अभी कुछ सुधरी है। वर्ष 2000 में देश के रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 26 फीसदी थी जो बढ़कर 2005 में 31 प्रतिशत हो गई। यदि इनकी भागीदारी का ग्रामीण और शहरी क्षेत्र बांटे तो ग्रामीण क्षेत्र में इनकी भागीदारी बढ़ी है। वर्ष 2000 से 2005 के दौरान शहरी क्षेत्र में 20 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 34 प्रतिशत रोजगार में भागीदारी होती है। सांख्यिकी तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी इससे संबंधित कुछ और रोचक तथ्य सामने आएं है। संगठन ने अपने सर्वेक्षण में महिलाओं से बातचीत के बाद इस बात को उजागर किया कि अधिकांश घरेलू महिलाओं ने घर में ही रोजगार के पक्षधर हैं। संगठन के अनुसार भारत में 37.9 प्रतिशत महिलाएं घरेलू काम में लगी हैं। जबकि 0.4 प्रतिशत पुरूष इसमें लगे हुए हैं। राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन द्वारा देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कराए गए सर्वेक्षण के बाद महिलाओं से संबंधित आंकड़ें और तथ्य सामने आएं हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक 77 प्रतिशत और 66 प्रतिशत शहरी महिलाओं ने कहा कि हमें अधिक अवसर नहीं मिलते हैं। इसके लिए हमें आसान शर्तें और रियायत ब्याज दरों पर पूंजी की आवश्यकता है। महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में अवसर पाने के लिए प्रशिक्षण की जरूरतों को भी बताया। सर्वेक्षण में कहा गया कि वर्ष 2004-05 के दौरान 15 वर्ष से अधिक आयु की 40 प्रतिशत ग्रामीण तथा 50 प्रतिशत शहरी महिलाएं घरेलू काम में लगी थी। इनमें से 37 फीसदी ग्रामीण और 18 प्रतिशत शहरी महिलाएं उत्पादक कार्यों में लगी हुई थी। सर्वेक्षण के दौरान 72 प्रतिशत ग्रामीण और 68 प्रतिशत महिलाओं ने पार्ट टाइम कार्य करने की इच्छा व्यक्त की। यूचर ग्रुप और युचर कैपिटल द्वारा ‘‘भारत के विकास, आय और उपयोग पर कामकाजी महिलाओं का असर‘‘ सर्वेक्षण से कोई रोचक तथ्य सामने आए है। सर्वेक्षण कुल दो हजार महिलाओं को लिया गया था। जिनमें आधी कामकाज और आधी घरेलू महिलाएं थी। सर्वेक्षण के परिणाम से खुलासा हुआ कि यदि आय में वृद्धि होती है तो उसका कुछ भाग बचत और निवेश में जाता है। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी पहले की तुलना में अभी कुछ सुधरी है। वर्ष 2000 में देश के रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 26 फीसदी थी जो बढ़कर 2005 में 31 प्रतिशत हो गई। यदि इनकी भागीदारी का ग्रामीण और शहरी क्षेत्र बांटे तो ग्रामीण क्षेत्र में इनकी भागीदारी बढ़ी है। वर्ष 2000 से 2005 के दौरान शहरी क्षेत्र में 20 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 34 प्रतिशत रोजगार में भागीदारी होती है। वित्तीय सेवाओं, घरेलू मद, शैक्षिक सेवाओं, फुटकर माल, ईंधन, यातायात और मनोरंजन आदि क्षेत्रों को कामकाजी महिलाओं को सीधा लाभ मिलता है।
Monday, December 21, 2009
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