Tuesday, December 29, 2009

बढ़ती जनसंख्या और शादी में देरी

विश्व जनसंख्या दिवस के दिन जनसंख्या को बढऩे से रोकने के गुलाम नबी आजाद के नायाब तरीके ने एक नई बहस को जन्म दिया है। साथ ही यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया है कि आखिर भारतीयों की बढ़ती जनसंख्या को रोका कैसे जाए? पहले भारत जनसंख्या के मामले में चीन से काफी पीछे था पर अब उसके आगे बढऩे को आमादा है। कुछ लोगों की राय है कि भारत में बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए चीन जैसे कड़े नियम बनाने होंगे, पर क्या भारत का कोई भी राजनीतिक दल या मंत्री चीन जैसा कड़ा रुख अपनाने की हिमाकत कर सकता है? बच्चे दो ही अच्छे, छोटा परिवार सुखी परिवार, हम दो हमारे दो, यह कुछ ऐसे स्लोगन हैं जो भारतीयों को परिवार नियोजन के लिए अभिप्रेरित करते हैं। अब इनमें शादी में देर भली, लेट मैरिज, हैप्पी लाइफ जैसे स्लोगन भी सुनने के लिए तैयार हो जाइये क्योंकि अगर केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद की चली तो वह भारतीयों का परिवार, छोटा करने के लिए लोगों को देर से शादी करने को प्ररित करेंगे। पिछले दिनों एक प्रेस कांप्रेक्स में केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री ने भारतीयों को देर से शादी करने की सलाह दे डाली। साथ ही यह भी कहा जो भारतीय देर से शादी करते हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए। आजाद ने यह सारी बातें भारत की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिहाज से कहा था। उनका मानना है कि लेट शादी होगी तो लोग बच्चे भी कम पैदा करेंगे। इस बात को लेकर आजाद की मंशा भले ही अच्छी हो पर उनके इस बयान ने उनको विवादों में घसीट लिया। अधिकांश लोगों का मत है कि आजाद ने बिना सोचे समझे अपनी राय जाहिर कर दी है। समाजशात्रियों की माने तो भारत की समाजिक संरचना में विवाह का अभिप्राय सिर्फ सेक्स ही नहीं है। भारतीयों के लिए विवाह एक संस्कार है और वे विवाह वंश वृद्धि करने के लिए करते हैं। ऐसे में अगर देर से विवाह होता है तो बच्चों की पैदाइश में समस्या हो सकती है। यही मत चिकित्सा विशेषज्ञों का भी है। उनके अनुसार 30 से ज्यादा उम्र होने पर स्त्रियों की प्रजजन क्षमता घट जाती है और बच्चे को जन्म देने में समस्या हो सकती है। ऐसे में देर से शादी करने वाले दंपत्ति को संतान उत्पन्न करने में समस्या होगी। इसके अलावा भी एक पक्ष है जिसपर आजाद ने गौर नहीं किया। तमाम शोधों से यह बात सामने आयी है कि आजकल के बच्चे समय से पहले बड़े हो रहे हैं। उनके ज्ञान का स्तर हर मामले में पहले की अपेक्षा बढ़ा है। इसमें सेक्स ज्ञान और उसके प्रति जागरुकता भी शामिल है। वैसे भी आजकल शादी पहले की अपेक्षा देर से हो रही है। अब अगर शादी और भी विलंब से हुई तो युवाओं की असामाजिक क्रियाकलापों में लीन होने की संभावना बढ़ जाएगी। बाबा रामदेव की माने तो संस्कृति का पतन जितना अब तक हो चुका है, देर से शादी होने पर इसमें और ज्यादा गिरावट आएगी। इसका कारण वह जिज्ञासा होगी जो युवाओं में उम्र के साथ पैदा होगी और इसी का जवाब पाने के लिए उन्हें मजबूरन गलत राह चुननी पड़ेगी। अपने भाषण में आजाद ने एक और बात कही, जिसपर लोगों को ऐतराज है। आजाद ने कहा कि गांवों में बिजली और टीवी ने जनसंख्या वृद्धि की दर को कम किया है। लोग देर रात तक टीवी देखते हैं और फिर इतने थक जाते हैं कि सेक्स का विचार भी उनके मन में नहीं आता। इसपर बाबा रामदेव का मत है कि आजकल लोग आलसी हो गए हैं। पहले जिस समय का उपयोग ग्रामीण खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए करते थे, आज वही समय वह टीवी देखकर बर्बाद कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि आज वे अपनी हर छोटी बड़ी जरूरत के लिए शहरों पर निर्भर हो रहे हैं। खैर आजाद के इस कथन ने भले ही उनको विवादों के घेरे में ले लिया है पर उनके भाषण ने भारत की उस समस्या पर सोचने को मजबूर कर दिया है जिसे सभी ने लगभग भुुला दिया है। भारत की विस्फोटक होती जनसंख्या नि:संदेह आज भारत की सबसे बड़ी समस्या होना चाहिए। आज कोई भी इसका जिक्र नहीं करता पर आजाद के भाषण ने इस समस्या पर फिर से लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। भले ही बढती जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है पर साथ ही यह भारत की एक बड़ी ताकत भी है। इतिहास गवाह है जब भी देश पर कोई भी खतरा, फिर चाहे वह मानवीय हो या प्राकृतिक, मंडराता है, सारा भारत एक हो, उस खतरे से जूझने को तैयार खड़ा दिखता है। पर सिर्फ एक इस कारण से बढ़ती जनसंख्या पर लगाम न लगाना गलत होगा। लगातार बढ़ती जनसंख्या से भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ा है। मंदी के इस दौर में आस्टेऊलिया, अमेरिका और मध्य पूर्व एशिया के प्रवासी भारतीय, नौकरी छूटने के कारण बड़ी संख्या में स्वदेश लौट रहे हैं। ऐसे में भारत के संसाधनों पर नि:संदेह दबाव बढेगा। स्वास्थ्य मंर्ती का अपनी बात कहने का तरीका भले ही गलत हो पर उनकी सोच गलत नहीं थी। भारत की जनसंख्या इन दिनों विस्फोटक रूप से बढ़ रही है और अगर अभी इसपर लगाम नहीं लगाया गया तो हम सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश चीन को भी पीछे छोड देंगे। संयुत्तक् राष्ट्र संघ का अनुमान है कि भारत में जनसंख्या वृद्धिदर अगर इसी तेजी से बढती रही तो 2101 तक भारत की आबादी 2 अरब होगी। भारत की सरकार ने भी अपनी तरफ से सब प्रयोग कर डाले हैं पर वह जनसंख्या विस्फोट को रोक पाने में कामयाब नहीं हो सकी। आज पश्चिम के देश इस बढती जनसंख्या को आतंकवाद से भी ज्यादा विस्फोटक और खतरनाक मानते हैं। इसलिए अब सिर्फ भाषण, सलाह या बहसबाजी से काम नहीं चलेगा। इससे बेहतर है कोई कडा रुख इख्तियार करना ताकि देश में जनसंख्या विस्फोट होने से रोका जा सके। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगला विश्व युद्ध खाने और पानी के लिए लडा जाएगा, जो विध्वंसकारी होगा। चीन की नीति 1979 में चीन की जनसंख्या दर 2.8 थी और केरल की 3 और आज चीन की जनसंख्या दर 1.7 है और केरल में आज भी दर उतनी ही है। कहना गलत न होगा कि यह सिर्फ केरल ही नहीं पूरे भारत का हाल है। एक समय था जब चींन की आबादी काफी तेजी से बढ रही थी। वहां की सरकार इसपर लगाम लगाने में नाकाम थी। फिर चीन की सरकार ने लोगों पर बल का इस्तेमाल किया और एक बच्चा पैदा करने की नीति को को बलपूर्वक लागू किया और उसी नतीजा है कि आज जनसंख्या उनके काबू में है। चीन में एक बच्चा होने के बाद सरकार बलपूर्वक लोगों की नसबंदी कर देती है और जो लोग दूसरा बच्चा पैदा करने का गुनाह करते हैं, उन्हें कडी से कडी सजा मिलती है। इसी का नतीजा है कि आज वहां की आबादी सरकार के काबू में है। कैसे करें काबू भारत की बढती जनसंख्या का कारण भारत की दोषपूर्ण स्वास्थ्य नीतियां रही हैं। विशेषज्ञों की माने तो आजादी के बाद, भारत के लोगों को गरीब भारत की परिसंपत्ति कहा गया था। यानी यहां की जनसंख्या को भारत संपत्ति माना गया। यही मानना ही दोषपूर्ण साबित हुआ और जब तक हम संभले काफी देर हो चुका थी। भारतीयों को यह समझने में ही सालों लग गए कि बच्चे भगवान की नहीं, उनकी अपनी देन हैं। भारत में जनसंख्या पर काबू पाने का प्रयास 1960 से शुरू किया गया था पर अब तक इसपर काबू नहीं पाया जा सका है। करोडों रुपए इसके कैम्पेनिंग में खर्च हो रहे हैं, पर नतीजा आज भी शून्य ही है। इससे तो यही माना जा सकता है कि यह साफ तौरपर सरकारी योजनाओं की विफलता है। अब रहा सवाल चीन की तरह कडा रुख अपनाने का तो वह भारत में संभव ही नहीं है। चीन की तरह भारतीयों पर बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके नतीजे काफी विस्फोटक हो सकते हैं। संजय गांधी ने 1977 में कुछ इसी तरह का प्रयोग किया था। उन्होंने भारत की बढती आबादी पर रोक लगाने के लिए जबरदस्ता लोगों की नसबंदी करवा दी थी। इसका नतीजा उन्हें और इंदिरा गांधी को चुनाव में हार के रूप में भुगतना पडा। अब ऐसे में कोई भी राजनीतिक पार्टी भारतीयों की इस कमजोर नस को दबा कर अपना राजनीतिक करियर खराब नहीं करना चाहती। महत्वपूर्ण आकडे कम उम्र में शादी होने बच्चे ज्यादा होने की संभावना 40 प्रतिशत बढ जाती है। झारखंड, राजस्थान और बिहार में 70 प्रतिशत लडकियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में ही हो जाती है। भारत में पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम 1952 से शुरू हुआ था पर अब तक 2.1 का टीीएफआर का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। फिलहाल भारत का टीएफआर 2.7 है औैर ग्रामीण क्षेर्तों में 3 है। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के अनुसार 2010 तक प्रति महिला 2 बच्चे का लक्ष्य है पर आज भी 53 प्रतिशत महिलाएं चाहती हैं उनके कम से कम तीन बच्चे हों। अगर मौजूदा जन्मदर यही रही तो विश्व स्वास्थ्य संगङ्गन के अनुसार 2101 तक भारत की जनसंख्या दे अरब होगी। 2030 तक भारत चीन को पछाड़ देगा। आजाद से असहमति आजाद की देर से शादी करने के मशवरे पर न सिर्फ समाजशास्र्ती असहमत हैं बल्कि चिकित्सा विशेषज्ञों का भी इसपर कडा ऐतराज है। आजाद का यह कहना सही है कि शादी जितनी देर से होगी बच्चे होने की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी। लेकिन साथ ही महिलाओं की प्रसूति और प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होगी। इसके अलावा देर से होने वाले बच्चों में जीन संबंधि विसंगतियां अधिक पाई जाती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एक रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि लेट मैरिज से जन्म लेने वाले बच्चों में जीन संबंधि होती है। कैसे हो काबू भले आजाद ने बिजली और टीवी को जनसंख्या वृद्धि दर कम करने की बात को मजाक में कहा हो और इसपर कई लोग असहमत होंगे पर बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो उनकी बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखते हैं। इमरजेंसी के 32 साल बाद फिर से बढती जनसंख्या के गडे मुर्दे को आजाद एक बार फिर से उखाडने का साहस किया है। वैसे तो भारत में जनसंख्या पर काबू पाने का प्रयास 1952 से शुरू किया गया था पर अब तक इसपर काबू नहीं पाया जा सका है। करोडों रुपए इसके कैम्पेनिंग में खर्च हो रहे हैं, पर नतीजा आज भी शून्य ही है। इससे तो यही माना जा सकता है कि यह साफ तौरपर सरकारी योजनाओं की विफलता है। अब रहा सवाल चीन की तरह कडा रुख अपनाने का तो वह भारत में संभव ही नहीं है। चीन की तरह भारतीयों पर बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके नतीजे काफी विस्फोटक हो सकते हैं। संजय गांधी ने 1977 में कुछ इसी तरह का प्रयोग किया था। उन्होंने भारत की बढती आबादी पर रोक लगाने के लिए जबरदस्ता लोगों की नसबंदी करवा दी थी। इसका नतीजा उन्हें और इंदिरा गांधी को चुनाव में हार के रूप में भुगतना पडा। अब ऐसे में कोई भी राजनीतिक पार्टी भारतीयों की इस कमजोर नस को दबा कर अपना राजनीतिक करियर खराब नहीं करना चाहती।

2 Comments:

deepti said...

yeh aur bhi acha hai

deepti said...

yeh aur bhi acha hai

नीलम