एक बार जब रहमान का संगीत का सफ़र शुरू हुआ तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा प्रस्तुत है उनके सगीत की बानगी 4 वर्ष की छोटी सी उम्र से संगीत साधना में लीन इस संगीत साधक का संगीतमयी सफर अब उस पड़ाव पर है जहां से आगे सिर्फ आस्कर है। लेकिन यह धारणा आम लोगों की है। रहमान के दृष्टिकोण से देखे तो वह अभी भी संगीत की कोई नई शैली या विद्या सीखने का मन बना रहे होंगे। आज रहमान जिस मुकाम पर हैं उस स्थान पर उनकी जगह कोई और भारतीय संगीतकार या कलाकार होता, तो अपना पीआर बढ़ाने के लिए न जाने कौन-कौन से हथकंडे अपनाता लेकिन रहमान आज भी उतने ही सहज हैं जितने पहले थे। आज रहमान उस मुकाम पर हैं जहां उनके विपरीत बोलने वाले लोगों को बाद में खुद ही सफाई भी देनी पड़ती है। जैसा कि बॉलीवुड के शहंशाह बिग बी को करना पड़ा। उन्हें अपने वह शब्द वापस लेने पड़े, जिनमें उन्होंने स्लमडॉग मिलेनियर को भारत की गंदगी दर्शाने वाली फिल्म करार दिया था। आज अपनी ही बातों से पलट, बिग बी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि उन्होंने अपने ब्लॉग पर सिर्फ एक बहस छेड़ी थी और जो भी विचार थे वह लोगों की प्रतिक्रिया थी। इस बात पर रहमान ने न तो पहले कुछ बोला था न बाद में कुछ बोले। यह रहमान के संगीत की शक्ति और जादू है कि बिग बी को भी अपने शब्दों पर पछतावा है और वह उस पर सफाई देते फिर रहे हैं। कोई कुछ भी कहे, रहमान हमेशा शांत रहते हैं। एक मुस्कुराहट हमेशा उनके चेहरे पर दिखायी पड़ती है और एक चीज जो हमेशा उनके साथ होती है वह है उनका संगीत। रहमान ऐसी शख्सियत हैं जो संगीत सृजन ही नहीं करते, उसी में सांस भी लेते हैं। उसी के साथ सोते-खाते और हंसते-गाते हैं। शायद यही कारण है कि संगीत के अलावा उन्हें न तो कोई भाषा समझ आती है और न ही विचार। चिकने घड़े की भांति वह अपने ऊपर कुछ ठहरने ही नहीं देते। जिस मुकाम पर आज रहमान हैं वहां आकर किसी में भी अहम का भाव आना स्वाभाविक है पर रहमान आज भी वैसे ही हैं जैसे अपने शुरुआती दौर में थे। वह आज भी नतमस्तक है, संगीत के सामने। जिंगल गानों से फिल्मों तक इलिया राजा के ग्रुप में पियानो वादक के रूप में अपने संगीत सपक्र का आगाज करने वाले रहमान ने अपनी पहली फिल्म रोजा में संगीत देने से पहले बहुत से जिंगल और एड फिल्मों के लिए संगीत बनाया और पुरस्कार भी जीते लेकिन यह सब उनके रास्ते का एक पड़ाव ही थे। इसे किस्मत कहें, रहमान की मेहनत या 1988 में किया गया उनके धर्म परिवर्तन का प्रभाव कि 1992 में मणिरत्नम ने अपनी फिल्म रोजा के लिए रहमान पर भरोसा जताया। मणि का यह भरोसा न तो इत्तेफाक था और न ही अकस्मात ही मन में उपजा विचार। वह तो मणि की अनुभवी नजरों का कमाल था जिसने रहमान नामक हीरे को पहचान लिया था। मणि को यह समझते देर नहीं लगी कि वह रहमान ही हैं जो उनकी तमिल फिल्म में दक्षिण की गर्मी के साथ कश्मीर की ठंडक भी समेट सकते हैं। रहमान भी मणि की सोच पर खरे उतरे और यह करिश्मा कर दिखाया। यह रहमान के संगीत का जादू था कि जब रोजा हिंदी में बनी, तो उनके तमिल फिल्म के लिए बनाये संगीत पर ही हिंदी के बोल दिल है छोटा-सा और ये खुली वादियां, सजे। इन गानों ने भाषा की वह दीवार ढहा दी जो अब तक अभेद्य थी। 25 साल की उम्र का एक कुंवारा युवा अगर रुकमणी-रुकमणी शादी के बाद क्या-क्या हुआ गाने को धुन दे, तो किसी के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ ही जाती है और सवाल भी। कई मौकों पर रहमान को इस सवाल पर शर्माते देखा गया और उनकी यही अदा व सादगी लोगों को भा गयी। रोजा से शुरू होकर गोल्डन ग्लोब अवार्ड तक पहुंचने वाले रहमान को कभी किसी ने भी ज्यादा बोलते नहीं सुना। सिर्फ सुना है तो उनका संगीत, जो लोगों के सिर चढक़र बोलता है। क्लासिकल, फोक, जाज, रेज और जितनी भी संगीत की स्टाइल है, रहमान का सब पर समानाधिकार है। रहमान-रत्नम यानी फील गुड 1992 से लेकर अब तक रहमान और मणिरत्नम ने कई पिक्ल्मों की सौगत दी हैं। रोजा, तिरुदा-तिरुदा, बाम्बे, इरुवर, दिल से, सखी, साथिया, युवा आदि फिल्में उनकी गहरी सोच और समझदारी का परिणाम हैं। कॉलीवुड से हॉलीवुड 2002 में एन्ड्रिव लाएड वेबर की फिल्म बाम्बे ड्रीम के जरिए रहमान ने हॉलीवुड में अपनी पहली दस्तक दी। कुछ एलबम और एक चाइनीज फिल्म में संगीत देने वाले रहमान ने शेखर कपूर की एलिजाबेथ और एलिजाबेथ-2 के लिए भी संगीत दिया लेकिन हॉलीवुड में उनकी दस्तक अब जाकर लोगों को सुनाई पडी है वह भी अपनी पूरी झंकार के साथ। गोल्डन ग्लोब और आस्कर जीतकर भारतीयों को गौरवान्वित किया है। गरीबों के मसीहा रहमान ने गरीबी को नजदीक से देखा है अत: वह उन तकलीफों से भी वाकिफ हैं जो पैसे के अभाव में झेलनी पड़ती हैं। रहमान आज जरूरत मंदों की हर संभव मदद करते हैं। 2004 से वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल एंबेसडर हैं, जिसमें वह स्टाप टीबी पार्टनरशिप के तहत जुड़े हैं। इसके जरिए विश्व में लोगों को टीबी से बचने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाता है और इसके इलाज के लिए दवाइयां उपलब्ध कराई जाती हैं। भारत में बच्चों के पुर्नवास और शिक्षा-दीक्षा के लिए भी रहमान समय-समय पर चैरिटी करते रहते हैं। भारत में 2004 में आयी सुनामी से पीडि़त लोगों के पुनर्वास के लिए रहमान ने इंडियन ओशन नामक एलबम बनाया और इसकी सारी कमायी पीडि़तों के नाम कर दी। इसके अलावा संगीत के क्षेत्र में भी रहमान उस हर जरूरतमंद और गरीब की मदद करने का प्रयास करते हैं, जो संगीत सीखना चाहते हैं लेकिन पैसों के अभाव में नहीं सीख पाता।
Saturday, March 27, 2010
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