नीतीश सरकार सूबे में विकास की बात करती है। आए दिन विदेशी प्रतिनिध मंडलों से मीटिंग करके निवेश की बात करती है, उद्योग लगाने की बात करती है, लेकिन गरमी शुरू होते ही बिजली ने भी गच्चा देना शुरू कर दिया है। बिजली की कमी को चलते उद्योग-धंधे कौन लगाएगा और चलेंगे कैसे, यह बड़ा सवाल है बिहार से बाहर रहने वाले लोगों की नजर में राज्य में विकास की बयार बह रही है, मगर बिहार में रहने वाले लोगों को जब झुलसती गरमी में बिजली नहीं मिलने का अंदेशा है तो उनके लिए विकास की बात बेमानी हो जाती है। खुद प्रदेश सरकार भी मानती है कि प्रदेश में बिजली की किल्लत है। अलबत्ता आने वाले वर्षों में इस कमी को पूरा करने का आश्वासन जरूर दिया जाता है। आज का सच यही है कि बिहार में बिजली संकट अपने चरम पर है। प्रदेश सरकार का सीधे तौर पर आरोप है कि केेंद्र सरकार से बिजली खरीदने के लिए हुए करार का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है। यही वजह है कि यह संकट कायम है। दूसरी ओर, राज्य के विपक्षी दलों के लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी के कारण ही बिजली-पानी को लेकर समस्या उत्पन्न हो गई है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो केेंद्र सेक्टर से राज्य को हर हाल में 1695 मेगावॉट बिजली मिलनी चाहिए। अगर बिजली संयंत्रों में कोई खराबी भी आ जाए, तो भी इसकी भरपाई करनी होती है, लेकिन इस करार का लगातार उल्लंघन होता रहा है। एक अधिकारी का कहना है कि राज्य में ठंड के दिनों में 2,100 से 2,400 मेगावॉट तथा गर्मी के दिनों में 2,500 से 3,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होती है, लेकिन पिछले कुछ समय से केेंद्रीय सेक्टर के तापीय एवं पनबिजली घरों से 700 से 900 मेगावॉट बिजली ही मिल पा रही है। राज्य के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव भी मानते हैं कि बिजली के मामले में राज्य पूरी तरह केेंद्र पर निर्भर है और केेंद्र सरकार है कि मदद ही नहीं कर रही है। श्री प्रसाद के अनुसार राज्य सरकार ने अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अब बाजार से बिजली खरीदने का फैसला किया है। राज्य में तापघर लगाने की भी पहल की जा रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां विपक्षी दलों ने बिजली समस्या को प्रमुख मुद्दा बनाया था, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगले कुछ वर्षों में बिजली संकट के समाधान का वादा किया था। बहरहाल, गर्मी की दस्तक के साथ ही बिजली संकट और बढऩे का अंदेशा है। बिजली संकट को लेकर राज्य के कई इलाकों में लोग सडक़ पर उतरने लगे हैं। बिजली को लेकर पूरे प्रदेश में कोहराम मचा हुआ है। राज्य की राजधानी पटना सहित भोजपुर, नवादा, मुंगेर, दरभंगा और भागलपुर जिलों में बिजली को लेकर लोग सडक़ों पर उतरने लगे हैं, जबकि वहीं राज्य विद्युत बोर्ड ने चरणबद्ध तरीके से सभी इलाकों में बिजली आपूर्ति करने का दावा किया है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष पीके राय के अनुसार, राज्य के सभी इलाकों में चरणबद्ध तरीके से बिजली आपूर्ति करने का निर्देश दे दिया गया है। इसके लिए अधिकारी निगरानी भी कर रही हैं। विद्युत विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो शुरू से ही बिजली के मामले में राज्य पिछड़ा रहा है। वर्ष 2009-10 में राज्य में बिजली की अधिकतम मांग 2,500 मेगावॉट थी तो अधिकतम आपूर्ति 1,508 मेगावॉट थी। वर्ष 2008-09 में अधिकतम मांग 1,900 मेगावॉट थी तो आपूर्ति सिर्फ 1,348 मेगावॉट थी। इसी तरह 2007-08में राज्य के लिए 1,800 मेगावॉट की बिजली आवश्यक थी तो आपूर्ति 1,244 मेगावॉट ही थी। अनुमान है कि वर्ष 2012-13 तक राज्य को 4,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होगी। राज्य विद्युत बोर्ड के प्रवक्ता हरेराम पांडेय कहते हैं कि पिछले एक महीने से केेंद्रीय सेक्टर से विद्युत आपूर्ति में कोई सुधार नहीं हो रहा है। इस कारण राज्य में विद्युत संकट उत्पन्न हो गया है। दूसरी ओर कहलगांव और कांटी तापघरों में बिजली उत्पादन पूरी तरह ठप है। कोयला और पानी की समस्या तथा तकनीकी कारणों से ताप और पनबिजली घरों की करीब आधा दर्जन इकाइयों में उत्पादन नहीं हो रहा है। बरौनी तापीय विद्युत केेंद्र से सिर्फ 50 मेगावॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि केन्द्र सेक्टर से 800 मेगावॉट बिजली मिल रही है, जिसमें से 350 मेगावॉट बिजली अनिवार्य सेवा के तहत है। वर्तमान में पूरा बिहार बिजली संकट से जूझ रहा है। प्रतिदिन किसी न किसी क्षेत्र में बिजली की मांग को लेकर लोग सडक़ पर उतर रहे हैं। इस मामले में सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। पिछले विधानसभा सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्षी सदस्यों द्वारा सदन में हंगामे के बाद ऊर्जा मंत्री ने स्पष्ट किया था कि बिजली संकट के जल्द समाधान का कोई उपाय फिलहाल सरकार के पास नहीं है।
Wednesday, August 31, 2011
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