Monday, January 30, 2012

राजनीतिक पहचान की जद्दोजहद में अमित जोगी

राहुल गांधी की तर्ज पर कभी किसी सरकारी योजना का विरोध जताकर तो कभी अपने उपर हमला करने वालों को माफ करने को लेकर अमित जोगी इन दिनों चर्चा में बने हुए हैं। चर्चाओं को यूं विस्तार देने के पीछे की उनके मंशा छत्तीसगढ़ में अपने लिए वह राजनीतिक जमीन तलाश करना है जो उनपर लगे आरोपों के चलते उनसे छिन सी गई है। उनके इस काम में उनके मददगार है छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और उनके पिता अजित जोगी।


राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहां चीजे हमेशा एक जैसी नही रहती हैं। उतार चढ़ाव आते जाते रहते है पर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के राजनीतिक जीवन में 2003 के बाद जो उतार आया वह अब तक जारी है। एक समय था जब मध्य प्रदेश से अलग हुए आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के नाम का डंका बड़े जोर शोर के साथ बजा करता था। साथ ही उनकी गिनती दस जनपद के खासमखास लोगो में होती थी जहां पर उनका सिक्का बड़ी बेबाकी से चला करता था। यही नही अविभाजित मध्य प्रदेश में रायपुर में अपनी प्रशासनिक दक्षता का जोगी ने लोहा भी मनवाया था। इसी के चलते पार्टी आलाकमान ने जोगी को छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रुपी कांटो का ताज सौंपा। आलाकमान जोगी पर इस कदर भरोसा करता है कि 2003 के आम चुनाव से पहले उनके इकलौते बेटे अमित जोगी का नाम राकपा के महासचिव रामअवतार जग्गी मर्डर केस में आने के बाद भी छत्तीसगढ़ में 2003 के आम चुनाव में पार्टी ने जोगी को ही आगे किया परन्तु उसके हाथ से सत्ता फिसल गई और साथ ही पीछे छूट गया वह रूतबा भी जिसके बलबूते पर जोगी की साख टिकी थी। 2003 के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा के जीतने वाले नेताओं को खरीदने और फिर से सत्ता में काबिज होने का सपना देखने वाले जोगी को इस मामले में पकड़े जाने पर कांग्रेस आलाकमान की नाराजगी भी झेलनी पड़ी। पर वह बात आयी गई हो गई। इस बात से इंकार नहींकिया जा सकता है कि आज भी छत्तीसगढ़ में जोगी से ज्यादा शक्तिशाली कांग्रेसी नेता कोई दूसरा नहींहै। यही कारण है कि पार्टी आलाकमान आज भी जोगी को ही प्रदेश में आगे करती रही है और हर बार वहां होने वाले चुनाव में जोगी का ही सिक्का चलता है। इन सबके बावजूद आज भी लोग जोगी के उत्तराधिकारी के रूप में अमित जोगी को नहींदेखते हैं जो अमित के राजनीतिक भविष्य के लिए गहन चिंता का विषय है। शायद इसीलिए अब छोटे जोगी पिता की मदद से समय रहते अपनी राजनीतिक जमीन तलाश लेना चागते हैं।
जब 2003 के चुनावों ने करवट बदली और जोगी के हाथ से सत्ता फिसल गई ठीक इसी समय अमित के सितारे भी गर्दिश में चले गए। एक समय अजित जोगी के उत्तराधिकारी के तौर देखे जाने वाले अमित का नाम राकपा के महासचिव रामअवतार जग्गी की हत्या की साजिश रचने और दिलीप सिंह जूदेव घूस प्रकरण के कारण उनकी खासी किरकिरी हुई। माना जाता है कि जूदेव प्रकरण को हवा देने में अमित जोगी की खासी अहम् भूमिका है। इतना ही नहींइसके बाद मर्डर के सिलसिले में अमित जोगी को जेल की हवा भी खानी पड़ी। 2004 में अजित जोगी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए जिसके चलते आज तक वह व्हील चेयर में है परन्तु लचर स्वास्थ्य के बाद भी अभी जोगी का राजनीति से मोह नही छूट है।
जोगी का एक दौर था और उस दौर में वह आदिवासियों के बीच खासे लोकप्रिय थे, पर आज आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में चावल वाले बाबा जी यानी डा.रमन सिंह  के मुकाबले जोगी की पूछ परख लगभग मृत्त प्राय है। यही कारण है कि पिछले चुनाव में जोगी ने राज्य के कोने कोने में पार्टी के लिए वोट मांगे थे पर जनता ने उनके नेतृत्व को नकार दिया। यह घटना ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह जोगी अपने राज्य के आदिवासियों के बीच ठुकराए जा रहे है, जबकि जोगी खुद को आदिवासियों का बड़ा हिमायती बताया करते थे। 2008 के चुनावो में आदिवासी बाहुल्य इलाको में कांग्रेस को केवल 11 सीट मिल सकी। इसके बाद से लगातार राज्य में कांग्रेस का ग्राफ घटता जा रहा है। एक समय ऐसा भी आया जब खुद अजित जोगी की राजनीति पर संकट पैदा हो गया है। उनको करीब से जाने वाले कहते है वर्तमान दौर में उनकी राजनीति के दिन ढलने लगे थे और अपने राज्य में ही जोगी अपने विरोधियो से पार नही पा रहे थे। पहले जोगी ने 15 वी लोक सभा के चुनावो में अपनी पत्नी डॉक्टर रेनू जोगी को लोक सभा का चुनाव लड़ाया लेकिन वहां पर भी जोगी को मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद भी राजनीति के प्रति उनका मोह कम नही हुआ। राज्य सभा के जरिये केंद्र वाली सियासत करने में रूचि दिखाई लेकिन असफलता ही हाथ लगी। जोगी की इन सारी नाकामयाबियों में उनके विरोधियों का बड़ा हाथ रहा जिनमेंंबहुत से विरोधी ऐसे भी थे जो कांग्रेसी हैं पर जोगी के विरोधी भी हैं। इसी के चलते अब कई लोग और कांग्रेस के जानकार यह मानने लगे है अगर समय रहते राज्य में जोगी का विकल्प नही खोजा गया तो राज्य में रमन सिंह तीसरी बार अपनी सरकार बना लेंगे। जोगी को भी अब लगने लगा है कि व्हील चेयर पर वह अपने और पार्टी के नाम पर वोट नहींमांग सकते हैं। शायद तभी वो राज्य में वंशवाद को बढ़ाने में लगे है और इसीलिए अब वह अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के लिए अमित को तैयार कर रहे हैं। भारतीय राजनीति में वंशवाद से कोई अछूता नही है। फिर जोगी तो उस पार्टी की उपज है जहां सबसे ज्यादा वंशवाद की अमर बेल फैली है। इसकी परछाई जोगी पर स्वाभाविक तौर पर पडऩी ही थी।
अब जोगी यह बात भली भांति जान गए है मौजूदा समय में उनका राज्य में बड़े पैमाने पर सक्रिय हो पाना असंभव लगता है। साथ ही पार्टी आलाकमान भी उनका विकल्प तलाश रही है। प्रदेश राजनीति में उनके विरोधियो ने उनको हाशिये पर धकेल दिया है इस लिहाज से वह अपना खुद का वजूद बचाने में लगे हुए है। इसी बात को जानते और वकत की नजाकत को भांपते हुए अब उन्होंने आदिवासियों का दिल फिर से जीतने का मन बनाया है ताकि आदिवासी इलाको में अपने बेटे अमित के लिए सम्भावना तलाशनी शुरू कर दी है। आदिवासी कार्ड खेलकर वह राज्य में अपने बेटे अमित को जनता के सामने लाकर वह राज्य की राजनीति में अपनी विरासत सौपने की दिशा में जल्द ही कदम बढ़ाकर फैसला ले सकते है। यही कारण है कि इन दिनों राहुल गांधी की तर्ज पर अमित भी कांग्रेस का प्रचार बड़े जोर शोर से कर रहे हैं साथ ही अपने करियर में ऐसे-ऐसे राजनीतिक तड़के लगा रहे कि जैसा कि कोई बड़ा राजनीतिज्ञ करता है।
छोटे जोगी पहली बार बड़ी चर्चा का कारण तब बने जब जून 2011 में उनपर जानलेवा हमला हुआ। मध्यप्रदेश के जबेरा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी और अपनी बहन तान्या सोलेमन के चुनाव प्रचार के लिए गए छोटे जोगी को कुछ असामाजिक तत्वों ने हमला कर बुरी तरह घायल कर दिया था। इसके फलस्वरूप उनके सिर पर चोट की वजह से बाई आंख की रोशनी चली गई थी। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नेत्र अस्पताल के डाक्टरों ने आंख में खून का थक्का जमने से रोशनी का न आना बताया। खून का थक्का साफ होने के बाद धीरे-धीरे आंखों में रोशनी वापस आ सकी।  इस मामाले में पहले तो अमित ने खुद पर हुए हमलों पर भाजपा को कोसते हुए ढेरों बयान बाजी की और जोर शोर से भाजपा नेता विनोद गोटिया और उजियार सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि स्थानीय शासन-प्रशासन की शह पर इन दोनों ने अपने साथियों के सात मिलकर हम पर और हमारे साथियों पर हमला किया जिसके गवाह स्थानीय लोग है। इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए छोटे जोगी कृतसंकल्प भी दिखे। पर दिल्ली वापस आकार और चोट का इलाज करवाने के बाद अचानक ही उनका रूख नम्र हो गया। उन्होने गांधी के सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि गांधी के सिद्धांतों की सियासत करने वालों को कार्रवाई की बजाय माफी को ज्यादा बड़ा मानना चाहिए। अब अमित हमले के आरोपियों पर कोई कानूनी कार्रवाई करना चाहते हैं। इस घटना में छोटे जोगी ने पहले आग में घी डाला और फिर उसपर थोड़ा सा पानी डालकर उसे धीरे-धीरे सुलगने दिया। राजनीति की थोड़ी सी समझ रखने वाला भी यह बता देगा कि यह पैंतरेबाजी छोटे जोगी को विरासत में मिली है। रणनीति की बिसात पर भले ही आवाज छोटे जोगी की हो पर बैकग्रांउड की आवाज तो सीनियर जोगी की ही है।
छत्तीसगढ़ में भी खबरों में बने रहने के लिए गाहे बगाहे छोटे जोगी कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं जिससे उनकी चर्चा हो सके। ऐसा ही एक कारनामा उन्होंने जांजगीर चांपा में बन रहे आधुनिक पवार प्लांट का विरोध जता कर किया। उनकी गिरफ्तारी को लेकर पूरे प्रदेश में सरकार के खिलाफ आंदोलन और पुतला दहन किया गया। दरअसल जांजगीर चांपा में बन रहे इस आधुनिक पवार प्लांट से किसानो की सिंचित और कृषि योग्य भूमि को भरी नुकसान होने की बात को लेकर अमित ने यह सारा हंगामा किया था। जिस स्थान पर सरकार की आधुनिक पवार प्लांट स्थापित करने की योजना है वह डोलोमाइट एरिया घोधित है यानी वहां पर खनिज सम्पदा की भरमार है। ऐसी स्थिति में नियमानुसार पवार प्लांट यहां पर स्थापित नहीं किया जा सकता। अमित अपने हजारों साथियों के साथ वहां विरोध प्रदर्शन करने जा रहे थे पर पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया औप उनके साथियों समेत उनको बाराद्वार रेस्टहाउस नजर बंद कर दिया। इस बात का फायदा जोगी ने बखूबी उठाया और काफी समय तक मीडिया की नजरे इनायत उनपर बनी रही। इसी तरह पिछले दिनों अमित जोगी ने प्रदेश भाजपा पर संगीन आरोप लगाते हुए यहां तक कह डाला कि बस्तर में ना तो प्राथमिक सुविधाएं हैं और ना ही आदिवासियों के इलाज की व्यवस्था। उनके पास ना तो रोजगार के संसाधन उपलब्ध हैं और ना ही आधारभूत सुविधाएं। ऐसे में वहां ते आदिवासियों में के सामने नक्सली बनने के अलावा और चारा बचता ही नहींहै। गरीबी और अशिक्षा जैसी समस्याएं आज भी मुंह बाए सबके सामने खड़ी है। आज के समय में वे खुद भी अगर बस्तर में पैदा हुए होते तो शायद वे भी नक्सली ही होते। अमित जोगी के इस बयान ने कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रही राजनीतिक गहमागहमी को हवा दे दी है और फिर से बयानों का दौर शुरू होने की संभावना तो बढ़ ही गई है। साथ ही अमित ने एक ऐसा मुद्दा उठाया है जिसकी चर्चा सिर्फ प्रदेश में ही नहींबल्कि उसके बाहर भी काफी समय तक गूंजेगी।
सीनियर जोगी ने अमित को अपना उत्तराधिकारी तो बना लिया पर क्या वह अमित को सत्ता सुख दिला पाने में कामयब होंगे यह प्रश्न सभी के साथ छोटे जोगी को भी परेशान कर रहा है। इसका कारण है आदिवासी वोट बैंक का सीनियर जोगी के हाथों से लगातार फिसलना। पिछले दिनों बलिराम कश्यप के निधन से रिक्त हुई सीट बस्तर की के लिए जोगी ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर प्रचार किया था पर फिर भी यह सीट भाजपा के पाले में चली गई। इस हार के बावजूद आदिवासियों की हर सभा में आज भी जोगी की एहमियत कम नही हुई है। आज भी उनकी सभाओं में लोगों की भारी भीड़ उमड़ आती है। अब जोगी की कोशिश है कि इस भीड़ को अमित के पक्ष में किसी भी तरह किया जाए। हत्या कांड में जेल की यात्रा कर चुके अमित अब पिता के पग चिन्हों पर चलकर अपनी छवि बदलने की तैयारियों में जुट गए है। वह इस बात को जानते है चाहे राज्य के कांग्रेसी नेता उनके पिता को आने वाले दिनों में किनारे करने के मूड में है लेकिन पिता आदिवासी इलाके में उनको स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। अजित जोगी भी इस बात को बखूबी जान रहे है। शायद तभी उनकी नजर आदिवासियों के एक बड़े वोट बैंक पर आज भी लगी हुई है। जोगी का सपना और मकसद एक है कि किसी तरह आने वाले विधान सभा चुनाव में अमित को कांग्रेस पार्टी टिकट दे जिससे राज्य में वह उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा सके। इसीलिए छोटे जोगी आदिवासियों को हितचिंतक बन उनके पक्ष में बयान बाजी कर रहे हैं। देखना होगा अजित जोगी का ये दाव छत्तीसगढ़ में कितना कारगर साबित होता है। इस बहाने अजित जोगी जहां अपने बेटे को आगे कर अपनी विरासत को आगे बढ़ाएगे वहीं आदिवासियों के बीच अपनी लोकप्रियता के मद्देनजर अपने बेटे अमित जोगी की राजनीतिक राह आसान कर देंगे। अब यह तो समय ही बताएगा कि उनका यह कदम और छोटे जोगी की पैंतरेबाजियां आने वाले समय में कितना कारगर साबित होती हैं।

नीलम