Thursday, December 31, 2009
नववर्ष दो हजार दस
Posted by सुभाष चन्द्र at 7:28 PM 2 comments
Labels: नववर्ष
सरकारी बाबुओं की बल्ले-बल्ले
वेतन के लिए सरकार का खज़ाना खोल देने वाले छठे वेतन आयोग ने सरकारी बाबुओं को मिलने वाली छुट्ïिटयों पर भी अपनी राय व्यक्त की है। केन्द्रीय कर्मचारी 365 दिनों में 123 दिन की सरकारी छुट्टी मनाते हैं, इसके अलावा 8 कैजुअल, 30 अर्न किए गये तथा 20 हाफ-पे छुटियाँ अलग से होती हैं। मसलन ये आंकड़ा साल में 274 दिन काम करने का बैठता है। इसे सरकारी बाबुओं की लॉबी ने पूरी तरह से खारिज़ कर दिया है। इन छुट्टियों का खामयाजा लोगों को भुगतना पड़ता है क्योंकि इसी का परिणाम है सरकारी फाइलों की मोटी होती परत और काम के दिनों की छोटी होती संख्या। कभी आपने सरकारी दफ्तरों में एक के उपर एक लदी फाइलों का जंगल देखा है? देखा तो जरुर होगा, क्योंकि सरकारी दफ्तरों के काम-काज की रफ्तार का पता तो उनकी मोटी फाइलों को देखकर ही लगता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है और वह है सरकारी छुट्टियाँ हाल ही में केन्द्रीय मंत्री शशि थरुर ने एक ऐसा मुद्दा उठाया, जिसे केन्द्र सरकार लगातार टालती रही है। हालांकि इस विवादित मुद्दे को हवा देकर शशि थरुर ने सबका ध्यान सरकारी छुट्ïिटयों की तरफ खींचा है। यह अलग बात है कि कांग्रेस ने इसे थरुर का नीजी विचार बताया और इस मामले से पल्ला खींच लिया। मगर, प्रश्न अब भी वहीं बरकरार है? इस विषय पर छठे वेतन आयोग ने भी नजऱ दौड़ाई थी, उनका मानना है कि भारत में त्यौहारों के कारण इतनी छुट्टियाँ पड़ती हैं। धर्मनिरपेक्ष होने के कारण हर धर्म के लोगों के अनुसार पडऩे वाले त्यौहारों की अच्छी खासी लिस्ट होती है, इसके अलावा भी कई अन्य प्रकार की छुट्टियों होती हैं। जिसका सीधा असर सरकारी कामकाज पर पड़ता है। तीन राष्ट्रीय अवकाशों के अलावा 14 गजटेड छुट्टियाँ का लाभ सरकारी बाबुओं को मिलता है। इसमें 2 प्रतिबंधित अवकाश जोड़ दें और 104 शनिवार-रविवार की छुट्टियाँ तब कहीं जाकर केन्द्रीय कर्मचारियों की छुट्टियाँ वाली लिस्ट पूरी होती है। यानि साल के 34 प्रतिशत दिन तो छुट्टियाँ होती ही होती हैं, बाकी के 66 प्रतिशत दिनों में कितनी तन्मयता से सरकारी बाबू काम करते हैं, यह जग जाहिर है। इस पर करीब दो दशकों से असमंजस जैसी स्थिति बनी हुई है, करीब एक दशक पहले कार्यकुशलता को बढ़ावा देने के नाम पर केन्द्रीय कर्मचारियों को 5 डे वर्किंग का तोहफा दिया गया, जो कि पूर्व में 6 डे वर्किंग था, जिसमें भी हर दूसरे शनिवार की छुट्टियाँ होती थी। इस प्रास्तव को तुरंत हाथों-हाथ लिया गया और केन्द्र सहित कई राज्यों में इसे लागू कर दिया गया। हालांकि इस मामले पर पांचवे वेतन आयोग ने टिप्पणी की थी कि फिर से 6 डे वर्किंग लागू किया जाए, जिसके तहर हर दूसरे शनिवार की छुट्टी रहे। मगर, सरकारी बाबुओं ने इस सलाह को सिरे से खारिज़ कर दिया। फिर छठे वेतन आयोग ने भी इस मसले पर अपनी राय दी, लेकिन सरकार ने उसे अनसुना कर दिया। दोनों वेतन आयोगों ने इस मसले पर सिफारिश दी थी। सरकारी कार्यालयों के अलावा अदालतें, शिक्षण-संस्थान और संसद में छुट्टियाँ को लेकर ज्यादा उदारता देखी जाती है। जिसका ताजा उदाहरण है कि सन्ï 2009 में अब तक सुप्रीम कोर्ट 175 दिन बंद रह चुका है, जबकि केन्द्रीय कार्यालयों की साल भर की कुल छुट्ïटी 123 दिन की होती है। देश के हॉलीडे सिस्टम का हाल अगर आप ग्लोबल टीम के साथ भारत में किसी प्रोजेक्ट पर काम करना चाहते हैं, या किसी बिजनेस ट्रीप पर देश का दौरा कर रहे हों या फिर कोई ऐसा ऑपरेशन जिसमें भारतीय भी शामिल हैं, तो यहां के तीज-त्यौहारों सहित सालभर के हॉलीडे का हाल आपको जरुर जानना चाहिए। हालांकि प्राईवेट कंपनियां जो 24 घंटे सेवा प्रदाता हैं, वे इन छुट्ïिटयों पर कर्मचारियों को भत्ता देकर काम निकलवा लेती हैं, मगर सरकारी कार्यालय सुविधानुसार कार्य करने से कतराते हैं। राष्टï्रीय अवकाश देश में तीन धर्मनिरपेक्ष छुट्ïिटयां होती हैं, जिनमें 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस), 15 अगस्त(स्वतंत्रता दिवस)और 2 अक्टूबर(महात्मा गांधी जयंती) शामिल है। इस दिन सभी सरकारी दफ्तर बंद रहते हैं। ऑल इंडिया पब्लिक हॉलीडे तीन राष्ट्रीय अवकाश के अलावा 14 ऑल इंडिया पब्लिक हॉलीडे हैं, जिसके तहत सभी केन्द्रीय दफ्तर व बैंक बंद रहते हैं। इन 14 छुट्ïिटयों में 11 राष्ट्रीय स्तर के और 3 राज्यों के आधार पर लिये जा सकते हैं। धार्मिक सद्ïभावना के तहत इन छुट्ïिटयों में सभी प्रमुख धर्मों हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिख, जैन व बौद्ध धर्म के त्यौहार आते हैं। स्टेट पब्लिक हॉलीडे देश के 29 राज्यों में कुछ और धार्मिक तथा धर्मनिरपेक्ष छुट्ïिटयां होती हैं। क्योंकि सभी प्रदेशों की अपनी सभ्यता, संस्कृति है और त्यौहारों को मनाने का तरीका भी। सभी राज्य प्रतिवर्ष प्रदेश के पब्लिक हॉली डे की लिस्ट घोषित करते हैं। जैसे ज्यादातर राज्य 1 मई को मजदूर दिवस के रुप में मनाते हैं, जबकि महा राष्ट्र में इसी दिन पारसी नववर्ष मनाया जाता है। इसी तरह तमिलनाडु में कुल 24 पब्लिक हॉलीडे मनाये जाते हैं। प्रतिबंधित अवकाश छुट्ïिटयों की इस श्रृंखला में एक प्रतिबंधित अवकाश की श्रेणी भी रखी गयी है। यह पूरी तरह से व्यक्तिगत होता है, सरकारी कार्यालय व व्यापारिक प्रतिष्ठïान खुले होते हैं, मगर व्यक्ति अपनी सुविधानुसार इस छुट्ïटी को ले सकता है। यह पूर्णत: वैयक्तिक होता है। एड हॉक हॉलीडे एड हॉक हॉलीडे की चर्चा के बगैर छुट्ïिटयों की यह पूरी कहानी खतम नहीं होती। यह वह छुट्ïटी जैसे किसी राष्ट्रीय नेता की मृत्यु हो जाए या राज्य या केन्द्र के चुनाव हों, आद्यौगिक हड़ताल भी इसी कैटेगरी में आती है। इसके अलावा भी समय-समय पर राजनैतिक पार्टियों द्वारा बुलाया जाने वाला बंद भी सरकारी कामकाज को पूरी तरह से प्रभावित करता है। क्रिकेट मैचों के दौरान कार्यालयों में होने वाली कम उपस्थिति को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है, क्योंकि क्रिकेट क्रेजी इस देश में अमूमन बीमार होने का बहाना बनाकर मैच वाले दिन छुट्ïटियां ले ली जा जाती हैं। लगातार छुट्ïिटयां का सिलसिला बीते वर्ष में सरकारी मुलाजि़मों के लिए के सितंबर व अक्टूबर का महीना खूब एन्जॉय करने वाला रहा क्योंकि सितंबर माह में एक बार लगातार 4 दिन की छुट्ïटी रही तो सप्ताह भर के भीतर ही तीन दिन लगातार की फिर छुट्ïटी। यही नहीं बीते अक्टूबर महीने में भी कुछ ऐसा ही हाल रहा, जब तीन-तीन दिन लगातार की तीन छुट्ïिटयां सरकारी बाबुओं को खुश कर गयी। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती, 3 को शनिवार व 4 को रविवार की लगातार छुट्ïटी रही, फिर उत्तर प्रदेश में 9 अक्टूबर को कांशीराम निर्वाण दिवस, 10 तारीख को शनिवार व 11 तारीख को रविवार की वजह से भी तीन दिन लगातार की छुट्ïटी और अंत में 17 अक्टूबर का दीपावली की गजटेड छुट्ïटी 18 को रविवार व 19 अक्टूबर को भैया दूज की प्रतिबंधित छुट्ïटी की वजह से यह माह सरकारी दफ्तरों के लिए आरामदायक रहा। हालांकि नवंबर महीनों में छुट्ïिटयों का थोड़ा टोटा रहा पर दिसबंर की 4 लगातार छुट्ïिटयां सरकारी कर्मचारियों को बल्ले बल्ले करने के लिए उत्साहित कर रही हैं। 25 दिसंबर को क्रिसमस, 26 को शनिवार व 27 को रविवार तथा अगले दिन सोमवार को मोहर्रम की छुट्ïटी तय थी ही साथ ही 1 जनवरी 2010 को शुक्रवार फिर शनिवार और रविवार की छुट्टी से ये बाबू उत्साहित हैं। मनोज manragini.blogspot.com
Posted by नीलम at 4:14 PM 3 comments
Wednesday, December 30, 2009
सर्दियों में सैर सपाटा
सर्दियों में सैर सपाटा सर्दी का मौसम घूमने फिरने वालों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है। इस मौसम में विदेशी सैलानी भी भारत का रुख करते हैं क्योंकि उनके लिए भारत की सर्दियां गुलाबी होती हैं। अगर इन सर्दियों में आपका भी सैरसपाटे का मन है तो निकल पडिए भारत के किसी भी कोने में, ये मौसम पूरे भारत के लिए आदर्श है। चाहे बर्फीली वादियां हों या तपता रोगिस्तान या फिर समुंदर का किनारा, सर्दी के मौसम में घूमने का अलग ही मजा है। वैसे तो सर्दियों में घर से बाहर न निकलने के लिए लोगों के पास ढेरों बहाने मौजूद होते हैं पर घूमने फिरने की बात पर सभी आसानी से तैयार हो जाते हैं। यही वह मौसम है जब घूमने से सबसे ज्यादा आनंद आता है। भारत में ऐसे ढेरों स्थान हैं जिनकी खूबसूरती सर्दियों में अपने चरम पर होती है। प्रकृकि के कई अनोखे रंग इस मौसम में बिखरते हैं। विदेशी सैलानियों को भी भारत का यह सर्दियों का मौसम अपनी ओर खींचता है क्योंकि सर्दियों में भारत उनके देश की अपेक्षा गर्म रहता है। यहां बताए जा रहे हैं भारत के कुछ फेवरेट विंटर डेस्टिनेशन तय आप को करना हैं कि यह सर्दियां आप कहां बिताना चाहते हैं। १.बर्फीली घाटियों में टहलें चाहे स्नोफॉल का मजा लेना हो या बर्फ पर घूमना या फिर स्लेजिंग और स्कीइंग के खेल का मजा लेना यह तब तभी संभव हो पायेगा जब आप सर्दियों में पहाडों की सैर करेंगे। आसमान से सफेद रुई जैसी बर्फ जब आपके शरीर से टकराती है तो उस अनुभव को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। स्नोफॉल की शुरुआत अक्सर जनवरीद्ब्रफरवरी में होती है। पहले भले ही लोग सर्दियों में पहाडो पर जाने से कतराते हों पर अब, लोग सर्दियों का इंतजार करते हैं ताकि बर्फीली वादियों की सैर कर सकें। । पर्वतों की रानी शिमला सर्दी हो या गर्मी शिमला हर मौसम में सबकी पसंदीदा हिल स्टेशन है। स्नोफॉल देखने के लिए तो शिमला सबसे पहले लोग शिमला का ही रुख करते है क्योंकि यह दिल्ली से काफी करीब है। यहां का मौसम कुछ कुछ निराला है। यहां कुफरी और नारकंडा में जब स्नोफॉल होता है तब शिमला का मौसम सुहाना होता है। इससे होता यह है कि आप कुफरी और नारकंडा में बर्फ में खेलने के बाद शिमला के मॉलरोड पर टहल सकते हैं। कुफरी और नारकंडा में स्नोफॉल होने के बाद शिमला में स्नोफॉल शुरू होता है। जो मजा यहां के मॉल रोड और स्केंडल पॉइंट पर स्नोफॉल देखने और बर्फ पर खेलने में आता है वह कहीं और नहीं आता। शिमला के आसपास जाखू मंदिर, कालीबाडी, वायसराइगल लॉज, समर हिल आदि भी घूमने का अलग ही आनंद है। हनीमून इन कुल्लू मनाली हिमालय का जो सौंदर्य व्यास नदी के तट पर बसे कूल्लू मनाली में दिखता है वह शायद ही और कहीं देखने को मिले। एक ओर कल कल बहती व्यास नहीं दूसरी ओर आसमान को छूती पर्वत श्रृंखलाएं किसी को भी रोमांचित कर सकती हैं। तभी तो इसे हनीमून मनाने के लिए सबसे आदर्श माना जाता है। यहां भी जनवरी से हिमपात शुरू हो जाता है। सबसे पहले रोहतांग दर्रे के पास हिमपात होता है। इसके साथ ही यहां का मार्ग बंद हो जाता है। और फिर देखते ही देखते पूरा शहर बर्फ की चादर से ढंक जाता है। वशिष्ठ मंदिर और हिडम्बा मंदिर जाने के लिए भी बर्फ पर चलना पडता है। हिमाचल प्रदेश में मनाली के निकट सोलांग घाटी विंटर गेम्स के लिए आदर्श स्थान है। यहां के ढलानों की विशेषता है कि यहां नौसिखिए सैलानियों भी स्कीइंग करने आनंद उठा सकते हैं। मनाली से सौलांग वैली आसानी से जाया जा सकता है। नैनीताल का टाइगर प्रोजेक्ट नैनीताल में स्नोफॉल का आनंद तो लिया ही जा सकता है साथ ही वाइल्ड लाइफ को भी काफी करीब से देखा जा सकता है। नैनीताल की नैनाभिराम दृश्य और पहाडों पर जमी सफेद बर्फ की चादर इसको स्वर्ग सा खूबसूरत बना देती हैं। और इन्हीं पर्वतों के साये में बसा है नैनीताल का कार्बेट नेशनल पार्क जो भ्ख्क् वर्ग किमी में फैला है। इसे साल, खैर, शीशम आदि वृक्ष और भी खूबसूरत बनाते हैं। यह उद्यान अपने बाघों के लिे पहचाना जाता है। आज इस उद्यान में बाघों की संख्या काफी अधिक है। बाघ के अतिरिक्त यहां भालू, तेंदुआ, जंगली सुअर, पैंथर, बारहसिंगा, नीलगाय, सांभर, चीतल, हाथी और कई अन्य प्राणी देखे जा सकते हैं। रामगंगा नदी उद्यान के मध्य से बहती है। यहां पक्षियों की ४०० से अधिक प्रजातियां हैं। उनमें से मोर, बाज, वनमुर्गी, तीतर, बया, हरियल, उल्लू, अबाबील, कलचुरी, बगुला आदि को सैलानी आसानी से देख पाते हैं। सर्दियों में तो यहां प्रवासी पक्षी भी आ बसते हैं। रामगंगा के तट पर ऊदबिलाव, मगरमच्छ और जलगोह भी देखे जा सकते हैं। दार्जिलिंग दार्जिलिंग के चाय बागान जितने खूबसूरत गर्मियों के दिनों में दिखते हैं उससे कहीं ज्यादा आकर्षक तब दिखते हैं जब बर्फ की चादर उनपर पूरी तरह से बिछ जाती है। यहां इस मौसम में सैलानियों को बर्फ पर खेलना काफी भाता है। बर्फीले रास्तों पर चल कर यहां के बौद्ध मठ एवं पर्वतारोहण संस्थान देखने का मजा ही कुछ और है। धरती का स्वर्ग स्नोफॉल की बात हो धरती के स्वर्ग कश्मीर को भुला दिया जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता। वैसे तो इस मौसम में पूरा कश्मीर ही बर्फ से ढक जाता है पर कुछ जगह ऐसा जहां आप बारद्ब्रबार जाना चाहेंगे। शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि कश्मीर का गुलमर्ग देश का सबसे पहला स्कीइंग डेस्टिनेशन है। इस खेल का लुत्फ उठाने आज भी यहां देशद्ब्रविदेश के हजारों सैलानी आते हैं। यहां आकर गंडोले में बैठ ऊंचे बर्फीले पहाडी ढलानों पर नहीं गए, तो कश्मीर दर्शन अधूरा समझिए। इसके अलावा पटनी टाप भी लोगों को काफी पसंद आता है। इसके अलावा उत्तराखंड के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर भी इस मौसम में काफी भीड होती है। २. सन, सैंड और सर्फिग यानी समुंदर का किनारा सुंदर सागरतट घूमने के शौकीन लोगों को अपनी ओर आकर्षित न करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता। वो भारत हा है जहां एक ओर उंचे पहाड हैं तो दूसरी समुद्र के तट जो इसे तीन ओर से घेरे हुे हैं। नंगे पैर समुद्र के किनारे पैदल चहने की कल्पना हर इंसान ने कभी न कभी की ही होगी। तो अगर आपका भी सपना समुद्र को अपने पैरों के नीचे लेने का कर रहा हो तो यह मौसम आपको बुला रहा है। इन दिनों समुद्री हवाएं और भी सुहानी लगती हैं और किनारे की सूखी रेत पर पैदल चलना भी सुखद लगता है। तभी तो सन, सैंड और सर्फिग के शौकीन विदेशी पर्यटक भी इन दिनों भारतीय तटों पर नजर आ जाते हैं। विदेशी सैलानियों का स्वर्ग गोवा सुंदर सागर तटों का जिक्र आते ही सबसे पहले जो तस्वीर हमारे जेहन में आती है वो है गोवा जो अपने अपने आपमें एक संपूर्ण पर्यटन स्थल है। यहां की लंबी तटरेखा पर करीब ४० मनोरम बीच हैं। कई ऐतिहासिक चर्च व प्राचीन मंदिर भी यहां हैं। वैसे तो पर्यटक राजधानी पणजी के समीप मीरामार बीच पर शाम को सूर्यास्त का शानदार नजारा देखना ज्यादा पसंद करते हैं पर अगर खूबसूरती की बात करें तो कलंगूट को यहां का सबसे सुंदर तट है। दोना पाउला तट पर मोटरबोट की सैर और वाटर स्कूटर का रोमांचक सफर किया जा सकता है। अंजुना बीच पर बैठकर लाल चट्टानों से टकराती लहरों को देखना भी अपने आप एक नया अनुभव होगा। यहां से कुछ पर ही बागा बीच है, जहां सैलानी समुद्र स्नान का आनंद लेते हैं। गोवा में कई ऐतिहासिक चर्च हैं। इनमें बैसिलिका ऑफ जीसस सबसे प्रसिद्ध है। करें जगन्नाथ के दर्शन उडीसा के शहर पुरी सैर करना मतलब एक पंथ दो काज करने जैसा है। और शहर बंगाल की खाडी के मनमोहक सागरतटों वाला शानदार शहर है। इसे जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां का सुंदर, स्वच्छ, विस्तृत और सुनहरा सागरतट दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। दूर तक फैले सफेद बालू के तट पर बल खाती सागर की लहरों को देख हर कोई मंर्तमुग्ध हो जाता है। भीडभाड भरे जीवन से परे जब सैलानी यहां पहुंचते हैं तो स्वयं को उन्मुक्त महसूस करते हैं। समंदर को छूकर आती हवाएं उनमें एक नई ऊर्जा का संचार कर देती हैं। इसलिए पुरी के मनोरम बीच पर सुबह से शाम तक खासी रौनक रहती है। सुबह से दोपहर तक यहां समुद्र स्नान और सूर्य स्नान करने वालों की भीड रहती है तो शाम को सूर्यास्त का मंजर देखने लोग यहां जुटते हैं। पुरी का यह बीच मीलों तक फैला है। शहर के निकट तट पर भारतीय सैलानी अधिक होते हैं तो पूर्वी हिस्से में अधिकतर विदेशी सैलानी सनबाथ का आनंद ले रहे होते हैं। यहां हस्तशिल्प की वस्तुओं हाट लगता है। इसकी जगमगाहट पर्यटकों को शाम को यहां खींच लाती है। उस समय समुद्र की लहरों का शोर माहौल को संगीतमय बनाए रखता है। जगन्नाथ पुरी यह देश के चार पविर्त धामों में से एक है। १६वीं सदी में बना जगन्नाथ मंदिर यहां महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है। यह मंदिर भगवान कृष्ण, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। पुरी का विश्वप्रसिद्ध रथयार्ता महोत्सव इसी मंदिर से जुडा है। पुरी घूमने आए सैलानी विश्वविख्यात कोणार्क मंदिर भी देख सकते हैं। १५ वींीं सदी में बना यह मंदिर सूर्यदेव को समर्पित है। यूनेस्को की ओर से इसे विश्व धरोहरों की सूची में दर्ज किया जा चुका है। समय हो तो पर्यटक भुवनेश्वर शहर, चिल्का झील और गोपालपुर ऑन सी सागरतट भी देखने जा सकते हैं। कोवलम के बीच केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम के समीप कोवलम बीच देश के सुंदरतम समुद्रतटों में से एक है। यह देश का पहला तट है जिसे अंतरराष्टीय स्तर के सीद्ब्रबीच के रूप में विकसित किया गया है। इसलिए यहां विदेशी सैलानियों की संख्या भी काफी होती है। कोवलम का सुंदर किनारा ताड और नारियल के वृक्षों से घिरा है। यहां दो छोटीद्ब्रछोटी खाडियां हैं, जिनके कोनों पर ऊंची चट्टानें हैं। चट्टानों पर बैठ सैलानी मचलती लहरों का आनंद लेते हैं। यह सागर की लहरें कुछ शांत हैं। तिरुअनंतपुरम में और भी कई दर्शनीय स्थान हैं। इनमें श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर शंखमुगम बीच, नेपियर संग्रहालय और श्री चिर्ताकला दीर्घा मुख्य हैं। भारत का अंतिम छोर तमिलनाडू के कन्याकुमारी को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। यहां तीन सागरों के संगम के साथ सूर्योदय व सूर्यास्त का अनूठा नजारा देखा जा सकता है। यहां से श्रीलंका भी काफी करीब है। हिं्द महासागर, बंगाल की खाडी और प्रशांत महासागर यानी तीन अलगद्ब्रअलग रंगों के समुद्र का नजारा इसके अलावा भारत में और कहीं नहीं देखा जा सकता है। ३. पधारो म्हारे देश क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि भरी गर्मी में आप राजस्थान की गर्म रेत पर चहल कदमी करें। नहीं न। पर इस मौसम में रेत के ऊंचेद्ब्रनीचे टीलों बनी हवा की लहरें और दूर तक फैली रेत पर चलते ऊंटों के काफिले आपका मन मोह लेंगे। यही वह मौसम है जब आप मरुभूमि के ऐसे दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। राजस्थान का बहुत बडा क्षेर्तफल थार रेगिस्तान से घिरा है। यहां ऐसे बहुत से ठिकाने हैं, जहां सैलानी डेजर्ट हॉलिडे मना सकते हैं। इन स्थानों की रेतीली धरती पर रेत के विशालकाय टीले यानी सैंडद्ब्रड्यूंस देखना किसी रोमांच से कम नहीं है। इसे स्थानीय भाषा में रेत के टिब्बे या रेत के धोरे कहा जाता है। बीकानेर में लें कैमल सफारी का मजा बीकानेर शहर अपने किले, महल और हवेलियों के लिए पहचाना जाता है। राव बीकाजी द्वारा स्थापित इस के आसपास स्थित जूनागढ फोर्ट, लालगढ पैलेस, गंगा गोल्डन जुबली म्यूजियम, देवी कुंड और कैमल रिसर्च सेंटर आदि दर्शनीय हैं। बीकानेर के निकट सैलानी सैंड ड्यूंस की सैर भी कर सकते हैं। इसके लिए फ्ख् किमी दूर गजनेर वाइल्ड लाइफ सैंचुरी या कटारीसर गांव जाना होता है। रेगिस्तान की धरती का सही रूप देखना है तो कैमल सफारी सबसे अच्छा और रोमांचक तरीका है। इन सभी नगरों में टूर ऑपरेटरों द्वारा कैमल सफारी की व्यवस्था की जाती है। ऊंट के मालिक पर्यटकों के लिए गाइड का काम करते हैं। कैमल सफारी का कार्यऋम दो दिन से एक सप्ताह तक का बनाया जा सकता है। कैमल सफारी के दौरान मरुभूमि के ग्राम्य जीवन को करीब से देखने का अनुभव भी अनूठा होता है। बीकानेर से फ्. किमी दूर देशनोक में करणीमाता का मंदिर है जहां चूहों को पूजनीय माना जाता है। गोल्डन सिटी जैसलमेर राव जैसल द्वारा स्थापित यह ऐतिहासिक शहर सर्दियों में सैलानियों का पसंदीदा पर्यटन स्थल है। गर्म धूप में सुनहरी रेत को देखना हो तो जैसलमेर की सैर करना बेहतर होगा। गोल्डेन सिटी के नाम से पहचाना जाने वाले जैसलमेर में विशाल किला, सुंदर हवेलियां और शहर से कुछ दूर स्थित सैंड ड्यूंस सभी कुछ है। पीले पत्थरों से बने जैसलमेर फोर्ट को सोनार किला कहा जाता है। र्तिकूट पहाडी पर स्थित यह किला विशाल परकोटे से घिरा है। सोनार किले के अंदर कुछ सुंदर महल भी दर्शनीय हैं। राज परिवार के सुंदर महलों के अलावा यहां आम लोगों के घर भी हैं। शहर में भव्य हवेलियां भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इनमें सबसे आकर्षक पटवों की हवेली है। यह सात मंजिली पांच हवेलियों का समूह है। जैसलमेर की गडीसर झील भी है जहां बोटिंग का आनंद लिया जा सकता है। सैलानियों के लिए यहां सबसे बडा आकर्षण सम सैंड ड्यूंस है जो शहर से ब्ख् किमी दूर स्थित हैं। वहां पहुंचकर चाहे आप रेत पर पैदल घूमें या फिर ऊंट पर बैठ रेत के धोरों के मध्य घूमने निकल पडें। साथ ही लोद्रवा, कनोई, कुलधारा आदि गांवों के समीप भी रेत के टीले देखे जा सकते हैं। इसके अलावा अगर आप राजस्थान जाएं तो जयपुर, जोधपुर और अजमेर शरीफ भी जरूर जाएं। इन सबका अपना अलग आकर्षण है। इसके अलावा नागौर और चूरू के नजदीक भी रेत के टीलों को देखा जा सकता है। इन टीलों की खासियत यह है कि यहां के टीले तेज हवाओं के साथ अकसर स्थान बदल लेते हैं। इसलिए इन्हें शिफ्टिंग सैंड ड्यूंस भी कहा जाता है। ४. मौसम जंगल में खोने का अगर आप लंबे समय से चाहते हैं कि कुदरती नजारों के साथ वन्य जीवन को भी करीब से निहारा जाए तो इसके लिे भी यह मौसम सबसे उपयुक्त है। नवंबर से मार्चद्ब्रअप्रैल तक का समय जब सर्दी में तापमान कम होता है तो वन्य प्राणियों को उन्मुक्त रूप से विचरते देखा जा सकता है। निहारें सौराष्ट्र के शेर को गीर नेशनल पार्क, गुजरात की ही नहीं बल्कि देश की भी प्रमुख वाइल्ड लाइफ सैरगाह है क्योंकि यही वह एकमार्त स्थान है जहां आप एशियाई शेर के दर्शन कर सकते हैं। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेर्त के जूनागढ में पडता है। लगभग ख्म्. वर्ग किमी में फैले यहां के वन सागवान, बरगद आदि के अलावा कीकर, बेर एवं बबूल जैसे कंटीले पेडद्ब्रपौधों से आच्छादित हैं। एशियाई बब्बर शेर यहां का विशेष वन्य प्राणी है जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं। इसके अलावा यहां तेंदुआ, चौसिंगा, चीतल, लकडबग्घा, नीलगाय, चिंकारा व जंगली सुअर भी देखे जा सकते हैं। नदी घाटी में मगर और गोह भी देख सकते हैं। गीर नेशनल पार्क पहुंचने के लिए निकटतम एयरपोर्ट केशोड है। अक्टूबर से अप्रैल तक यहां भ्रमण का उपयुक्त समय है। काजीरंगा में करें हाथी की सवारी असम का काजीरंगा राष्टीय उद्यान एक सींग वाले भारतीय गैंडे और जंगली भैंसे के लिए विश्व विख्यात है। आज ये दोनों प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं। इनके संरक्षण के इरादे से ही इसे राष्टीय उद्यान घोषित किया गया था उत्तर में बहती ब्रह्मपुर्त नदी और दक्षिण में पहाडों से घिरा यह क्षेर्त किसी को भी आनंदित कर सकता है। यहां पाए जाने वाले जीवों में तेंदुआ, बारहसिंगा, भालू, सांभर, काकड, हुलाक, पाडा, हाथी और बाघ आदि शामिल हैं। इसके अलावा यहां तीतर, चील, हवासिल, उल्लू आदि पक्षी भी बडी संख्या में हैं। कांजीरंगा पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जोरहाट है। उद्यान के अंदर घूमने के लिए हाथी की सवारी करनी होती है। तो देर किस बात की इस बार की सर्दियों में निकल पडिए एक नए अंदाज से भारत को देखने लिए। यकीन मानिए किसी भी मौसम की तुलना में सर्दियों में भारत की खूबसूरती और भी निखर आती है तभी तो इस मौसम में हजारों की संख्या में विदेशी सैलानी भारत का रुख करते हैं।
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Tuesday, December 29, 2009
बढ़ती जनसंख्या और शादी में देरी
विश्व जनसंख्या दिवस के दिन जनसंख्या को बढऩे से रोकने के गुलाम नबी आजाद के नायाब तरीके ने एक नई बहस को जन्म दिया है। साथ ही यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया है कि आखिर भारतीयों की बढ़ती जनसंख्या को रोका कैसे जाए? पहले भारत जनसंख्या के मामले में चीन से काफी पीछे था पर अब उसके आगे बढऩे को आमादा है। कुछ लोगों की राय है कि भारत में बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए चीन जैसे कड़े नियम बनाने होंगे, पर क्या भारत का कोई भी राजनीतिक दल या मंत्री चीन जैसा कड़ा रुख अपनाने की हिमाकत कर सकता है? बच्चे दो ही अच्छे, छोटा परिवार सुखी परिवार, हम दो हमारे दो, यह कुछ ऐसे स्लोगन हैं जो भारतीयों को परिवार नियोजन के लिए अभिप्रेरित करते हैं। अब इनमें शादी में देर भली, लेट मैरिज, हैप्पी लाइफ जैसे स्लोगन भी सुनने के लिए तैयार हो जाइये क्योंकि अगर केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद की चली तो वह भारतीयों का परिवार, छोटा करने के लिए लोगों को देर से शादी करने को प्ररित करेंगे। पिछले दिनों एक प्रेस कांप्रेक्स में केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री ने भारतीयों को देर से शादी करने की सलाह दे डाली। साथ ही यह भी कहा जो भारतीय देर से शादी करते हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए। आजाद ने यह सारी बातें भारत की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिहाज से कहा था। उनका मानना है कि लेट शादी होगी तो लोग बच्चे भी कम पैदा करेंगे। इस बात को लेकर आजाद की मंशा भले ही अच्छी हो पर उनके इस बयान ने उनको विवादों में घसीट लिया। अधिकांश लोगों का मत है कि आजाद ने बिना सोचे समझे अपनी राय जाहिर कर दी है। समाजशात्रियों की माने तो भारत की समाजिक संरचना में विवाह का अभिप्राय सिर्फ सेक्स ही नहीं है। भारतीयों के लिए विवाह एक संस्कार है और वे विवाह वंश वृद्धि करने के लिए करते हैं। ऐसे में अगर देर से विवाह होता है तो बच्चों की पैदाइश में समस्या हो सकती है। यही मत चिकित्सा विशेषज्ञों का भी है। उनके अनुसार 30 से ज्यादा उम्र होने पर स्त्रियों की प्रजजन क्षमता घट जाती है और बच्चे को जन्म देने में समस्या हो सकती है। ऐसे में देर से शादी करने वाले दंपत्ति को संतान उत्पन्न करने में समस्या होगी। इसके अलावा भी एक पक्ष है जिसपर आजाद ने गौर नहीं किया। तमाम शोधों से यह बात सामने आयी है कि आजकल के बच्चे समय से पहले बड़े हो रहे हैं। उनके ज्ञान का स्तर हर मामले में पहले की अपेक्षा बढ़ा है। इसमें सेक्स ज्ञान और उसके प्रति जागरुकता भी शामिल है। वैसे भी आजकल शादी पहले की अपेक्षा देर से हो रही है। अब अगर शादी और भी विलंब से हुई तो युवाओं की असामाजिक क्रियाकलापों में लीन होने की संभावना बढ़ जाएगी। बाबा रामदेव की माने तो संस्कृति का पतन जितना अब तक हो चुका है, देर से शादी होने पर इसमें और ज्यादा गिरावट आएगी। इसका कारण वह जिज्ञासा होगी जो युवाओं में उम्र के साथ पैदा होगी और इसी का जवाब पाने के लिए उन्हें मजबूरन गलत राह चुननी पड़ेगी। अपने भाषण में आजाद ने एक और बात कही, जिसपर लोगों को ऐतराज है। आजाद ने कहा कि गांवों में बिजली और टीवी ने जनसंख्या वृद्धि की दर को कम किया है। लोग देर रात तक टीवी देखते हैं और फिर इतने थक जाते हैं कि सेक्स का विचार भी उनके मन में नहीं आता। इसपर बाबा रामदेव का मत है कि आजकल लोग आलसी हो गए हैं। पहले जिस समय का उपयोग ग्रामीण खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए करते थे, आज वही समय वह टीवी देखकर बर्बाद कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि आज वे अपनी हर छोटी बड़ी जरूरत के लिए शहरों पर निर्भर हो रहे हैं। खैर आजाद के इस कथन ने भले ही उनको विवादों के घेरे में ले लिया है पर उनके भाषण ने भारत की उस समस्या पर सोचने को मजबूर कर दिया है जिसे सभी ने लगभग भुुला दिया है। भारत की विस्फोटक होती जनसंख्या नि:संदेह आज भारत की सबसे बड़ी समस्या होना चाहिए। आज कोई भी इसका जिक्र नहीं करता पर आजाद के भाषण ने इस समस्या पर फिर से लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। भले ही बढती जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है पर साथ ही यह भारत की एक बड़ी ताकत भी है। इतिहास गवाह है जब भी देश पर कोई भी खतरा, फिर चाहे वह मानवीय हो या प्राकृतिक, मंडराता है, सारा भारत एक हो, उस खतरे से जूझने को तैयार खड़ा दिखता है। पर सिर्फ एक इस कारण से बढ़ती जनसंख्या पर लगाम न लगाना गलत होगा। लगातार बढ़ती जनसंख्या से भारत के प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ा है। मंदी के इस दौर में आस्टेऊलिया, अमेरिका और मध्य पूर्व एशिया के प्रवासी भारतीय, नौकरी छूटने के कारण बड़ी संख्या में स्वदेश लौट रहे हैं। ऐसे में भारत के संसाधनों पर नि:संदेह दबाव बढेगा। स्वास्थ्य मंर्ती का अपनी बात कहने का तरीका भले ही गलत हो पर उनकी सोच गलत नहीं थी। भारत की जनसंख्या इन दिनों विस्फोटक रूप से बढ़ रही है और अगर अभी इसपर लगाम नहीं लगाया गया तो हम सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश चीन को भी पीछे छोड देंगे। संयुत्तक् राष्ट्र संघ का अनुमान है कि भारत में जनसंख्या वृद्धिदर अगर इसी तेजी से बढती रही तो 2101 तक भारत की आबादी 2 अरब होगी। भारत की सरकार ने भी अपनी तरफ से सब प्रयोग कर डाले हैं पर वह जनसंख्या विस्फोट को रोक पाने में कामयाब नहीं हो सकी। आज पश्चिम के देश इस बढती जनसंख्या को आतंकवाद से भी ज्यादा विस्फोटक और खतरनाक मानते हैं। इसलिए अब सिर्फ भाषण, सलाह या बहसबाजी से काम नहीं चलेगा। इससे बेहतर है कोई कडा रुख इख्तियार करना ताकि देश में जनसंख्या विस्फोट होने से रोका जा सके। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अगला विश्व युद्ध खाने और पानी के लिए लडा जाएगा, जो विध्वंसकारी होगा। चीन की नीति 1979 में चीन की जनसंख्या दर 2.8 थी और केरल की 3 और आज चीन की जनसंख्या दर 1.7 है और केरल में आज भी दर उतनी ही है। कहना गलत न होगा कि यह सिर्फ केरल ही नहीं पूरे भारत का हाल है। एक समय था जब चींन की आबादी काफी तेजी से बढ रही थी। वहां की सरकार इसपर लगाम लगाने में नाकाम थी। फिर चीन की सरकार ने लोगों पर बल का इस्तेमाल किया और एक बच्चा पैदा करने की नीति को को बलपूर्वक लागू किया और उसी नतीजा है कि आज जनसंख्या उनके काबू में है। चीन में एक बच्चा होने के बाद सरकार बलपूर्वक लोगों की नसबंदी कर देती है और जो लोग दूसरा बच्चा पैदा करने का गुनाह करते हैं, उन्हें कडी से कडी सजा मिलती है। इसी का नतीजा है कि आज वहां की आबादी सरकार के काबू में है। कैसे करें काबू भारत की बढती जनसंख्या का कारण भारत की दोषपूर्ण स्वास्थ्य नीतियां रही हैं। विशेषज्ञों की माने तो आजादी के बाद, भारत के लोगों को गरीब भारत की परिसंपत्ति कहा गया था। यानी यहां की जनसंख्या को भारत संपत्ति माना गया। यही मानना ही दोषपूर्ण साबित हुआ और जब तक हम संभले काफी देर हो चुका थी। भारतीयों को यह समझने में ही सालों लग गए कि बच्चे भगवान की नहीं, उनकी अपनी देन हैं। भारत में जनसंख्या पर काबू पाने का प्रयास 1960 से शुरू किया गया था पर अब तक इसपर काबू नहीं पाया जा सका है। करोडों रुपए इसके कैम्पेनिंग में खर्च हो रहे हैं, पर नतीजा आज भी शून्य ही है। इससे तो यही माना जा सकता है कि यह साफ तौरपर सरकारी योजनाओं की विफलता है। अब रहा सवाल चीन की तरह कडा रुख अपनाने का तो वह भारत में संभव ही नहीं है। चीन की तरह भारतीयों पर बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके नतीजे काफी विस्फोटक हो सकते हैं। संजय गांधी ने 1977 में कुछ इसी तरह का प्रयोग किया था। उन्होंने भारत की बढती आबादी पर रोक लगाने के लिए जबरदस्ता लोगों की नसबंदी करवा दी थी। इसका नतीजा उन्हें और इंदिरा गांधी को चुनाव में हार के रूप में भुगतना पडा। अब ऐसे में कोई भी राजनीतिक पार्टी भारतीयों की इस कमजोर नस को दबा कर अपना राजनीतिक करियर खराब नहीं करना चाहती। महत्वपूर्ण आकडे कम उम्र में शादी होने बच्चे ज्यादा होने की संभावना 40 प्रतिशत बढ जाती है। झारखंड, राजस्थान और बिहार में 70 प्रतिशत लडकियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में ही हो जाती है। भारत में पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम 1952 से शुरू हुआ था पर अब तक 2.1 का टीीएफआर का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। फिलहाल भारत का टीएफआर 2.7 है औैर ग्रामीण क्षेर्तों में 3 है। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के अनुसार 2010 तक प्रति महिला 2 बच्चे का लक्ष्य है पर आज भी 53 प्रतिशत महिलाएं चाहती हैं उनके कम से कम तीन बच्चे हों। अगर मौजूदा जन्मदर यही रही तो विश्व स्वास्थ्य संगङ्गन के अनुसार 2101 तक भारत की जनसंख्या दे अरब होगी। 2030 तक भारत चीन को पछाड़ देगा। आजाद से असहमति आजाद की देर से शादी करने के मशवरे पर न सिर्फ समाजशास्र्ती असहमत हैं बल्कि चिकित्सा विशेषज्ञों का भी इसपर कडा ऐतराज है। आजाद का यह कहना सही है कि शादी जितनी देर से होगी बच्चे होने की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी। लेकिन साथ ही महिलाओं की प्रसूति और प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होगी। इसके अलावा देर से होने वाले बच्चों में जीन संबंधि विसंगतियां अधिक पाई जाती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एक रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि लेट मैरिज से जन्म लेने वाले बच्चों में जीन संबंधि होती है। कैसे हो काबू भले आजाद ने बिजली और टीवी को जनसंख्या वृद्धि दर कम करने की बात को मजाक में कहा हो और इसपर कई लोग असहमत होंगे पर बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो उनकी बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखते हैं। इमरजेंसी के 32 साल बाद फिर से बढती जनसंख्या के गडे मुर्दे को आजाद एक बार फिर से उखाडने का साहस किया है। वैसे तो भारत में जनसंख्या पर काबू पाने का प्रयास 1952 से शुरू किया गया था पर अब तक इसपर काबू नहीं पाया जा सका है। करोडों रुपए इसके कैम्पेनिंग में खर्च हो रहे हैं, पर नतीजा आज भी शून्य ही है। इससे तो यही माना जा सकता है कि यह साफ तौरपर सरकारी योजनाओं की विफलता है। अब रहा सवाल चीन की तरह कडा रुख अपनाने का तो वह भारत में संभव ही नहीं है। चीन की तरह भारतीयों पर बल का प्रयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके नतीजे काफी विस्फोटक हो सकते हैं। संजय गांधी ने 1977 में कुछ इसी तरह का प्रयोग किया था। उन्होंने भारत की बढती आबादी पर रोक लगाने के लिए जबरदस्ता लोगों की नसबंदी करवा दी थी। इसका नतीजा उन्हें और इंदिरा गांधी को चुनाव में हार के रूप में भुगतना पडा। अब ऐसे में कोई भी राजनीतिक पार्टी भारतीयों की इस कमजोर नस को दबा कर अपना राजनीतिक करियर खराब नहीं करना चाहती।
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Monday, December 28, 2009
अंतर
उनमें और मुझमें अंतर है इतना वे परहित चाहते हैं मैं आत्महित चाहता हूँ उनमें और मुझमें मतभेद है इसका वे राष्टï्रहित चाहते हैं मैं स्वहित चाहता हूँ अजीब दास्तान है दो पीढिय़ों की वे काम चाहते हैं मैं नाम चाहता हूँ जब भी तय की जाती है देश की तक़दीर वे आदर पाते हैं मैं कुर्सी पाता हूँ
Posted by सुभाष चन्द्र at 11:13 AM 3 comments
Saturday, December 26, 2009
खेलों का महाकुंभ खटाई में
Posted by नीलम at 12:22 PM 1 comments
Labels: कॉमनवेल्थ खेल, नीलम शुक्ला
Friday, December 25, 2009
आसमान से आगे.. .. .. जहां और भी हैं
आसमान से आगे.. .. .. जहां और भी हैं चोकिला अय्यर, निरूपमा राव, अरुंधती घोष, सुजाता सिंह, चित्रा नारायण, ये कुछ ऐसे नाम हैं जिनको आम लोग नहीं जानते पर यह वह महिलाएं हैं जो विदेशों में, भारतीय महिलाओं की परंपरागत छवि को, एक नए मुकाम की ओर ले जाने का प्रयास कर रही हैं। पिछले दिनों आई एक खबर ने मन में रोमांच सा भर दिया। खबर थी कि बीएसएफ ने भारत की पहली महिला बाटालियन को सीमा पर तैनात किया है। वही सीमा जिसकी रक्षा जवानों के हाथ हुआ करती थी। अब वहां महिलाएं दुश्मनों से दो-दो हाथ करेंगी। यानी चूडिय़ां पहनने वाली नाजुक कलाइयां अब दोनाली के वार से दुश्मनों के हौसले पस्त करने को तैयार हैं। कुछ ऐसा ही परिवर्तन तब भी हुआ था जब 2001 में चोकिला अय्यर को भारत की पहली विदेश सचिव के तौर नियुक्त किया गया था। भले ही चोकिला की नियुक्ति मात्र एक औपचारिता रही हो पर उनकी नियुक्ति ने भविष्य में, विदेशी नौकरी में आने वाली महिलाओं का मार्ग प्रशस्त करने का काम किया। वैसे तो ज्यादातर कार्यक्षेत्रों में महिलाओं ने काफी पहले ही बाजी मार ली है पर कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां अब भी पुरुषों का एकक्षत्र राज माना जाता है। इन्हीं में से एक है फॉरेन सर्विसेज, जहां कुछ समय पहले तक महिलाओं की घुसपैठ कम थी लेकिन अब इस क्षेत्र मेें भी महिलाएं खुद को साबित कर रही हैं। पिछले चार सालों में भारतीय महिलाओं ने फॉरेन सर्विसेज में कामयाबी पाकर, पुरुषों के सबसे मजबूत माने जाने वाले गढ़ में सेंध मारी है। पिछले चार सालों में यानी वर्ष 2005 से 2008 के दौरान इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। इस दौरान चुने गए विदेशी सेवा अधिकारियों की संख्या पर गौर करें तो 84 पदों में से 24 पदों पर महिलाओं ने कामयाबी पाई है जो लगभग 29 प्रतिशत है। वहीं 2008 में 25 में 8 पद महिलाओं के हिस्से में आएं हैं जो 32 प्रतिशत है। यानी तेजी से महिलााएं फॉरेन सर्विसेज में भी अपने पर फैला रही हैं। विदेशी सेवा में महिलाओं को मिली कामयाबी आसान नहीं थी। वैसे भी भारत ही नहीं बल्कि विश्व के ज्यादातर देशों में महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले कमतर ही माना जाता है। एक वक्त था जब भारत में विदेशी सेवा में जाने के लिए महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रावधान थे। नियमानुसार महिलाओं को शादी करने से पूर्व इस नौकरी को अलविदा कहना पड़ता था साथ ही उन्हें पुरुषों के मुकाबले वेतन भी कम मिलता था। इस नियम को चुनौती दी 1979 में सीबी मुथम्मा ने। उन्होंने फॉरेन सर्विसेज में महिलाओं के साथ किए जा रहे इस लैंगिक भेदभाव के सरकारी फरमान को को खत्म करने की अपील सुप्रीम कोर्ट में की। कोर्ट ने भी उनके ऐतराज को सही माना और महिलाओं के साथ कि ए जा रहे इस भेदभावपूर्ण नियम को खत्म कर दिया। इसके बाद भी महिलाओं को फॉरेन सर्विसेज में आज मिली कामयाबी के लिए काफी इंतजार करना पड़ा और समाज व परिवार से बगावत करनी पड़ी। भारत में माता पिता अपनी बेटियों के लिए नौकरी का मतलब टीचर या प्रोफेसर बनना ही मानते थे। बहुत ज्यादा प्रोगेसिव परिवार हुआ तो बेटी को इंजीनियर या डाक्टर बनते देखना चाहता था। इसके पीछे एकमात्र मंशा यही हुआ करती थी कि लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी तो हो जाएं पर नौकरी के साथ ही अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी आसानी से निभा सकें। वैसे अब से 30 साल पहले महिलाएं खुद भी साफ्ट पोस्टिंग चाहती थी ताकि उन्हें ज्यादा काम न करना पड़े। उनकी यह मानसिकता पिछले 15-20 सालों में बदली है। ऐसे में नौकरी के लिए विदेश जाने के नाम पर महिलाओं को कितने मोर्चों पर जूझना पड़ा होगा, सोचा जा सकता है। खैर जो बीत गयी, वह बात गई। आज महिलाएं हर वो उंचाई छूने की ख्वाहिश रखती हैं जो कभी उनकी पहुंच से बाहर थी। नित नवीन करियर की राहें तलाशने वाली आज की नारी के लिए फॉरेन सर्विसेज एक आकर्षक और चुनौतीभरा करियर है। जहां उन्हें कई नई उंचााइयांं छूने का मौका मिलता है। यही कारण है कि आज अधिक से अधिक संख्या में महिलाएं फॉरेन सर्विसेज की ओर रुख कर रही हैं। आज आलम यह है कि अरब देशों में, जहां पश्चिमी देश भी महिलाओं को भेजने से कतराते हैं, भारतीय महिलाएं पूरी दबंगता से कार्य कर रही हैं। लेबनान में भारतीय राजदूत, नेनगछा लाह्युम ने अपनी बालकनी में बम फटते देखा था लेकिन तब भी उन्होंने एकबार भी यह नहीं कहा कि उन्हें कहीं और पोङ्क्षस्टग दे दी जाए। दीपा गोपालन वाधवा कतर में काम कर रही हैं। एक ऐसा देश जहां महिलाओं को, ऊंचे ओहदे पर आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रत्यक्ष न सही, अप्रत्यक्ष तौर पर ही सही, दीपा इस देश की महिलाओं को प्रेरित करने का काम कर रही हैं। घाना की भारतीय उच्चायुक्त रुचि घनश्याम पहली महिला थी जिन्हें इस्लामाबाद में नियुक्त किया क्या था वह भी तब, जब महिला अधिकारी की स्थिति शो पीस से ज्यादा नहीं थी। रुचि, घाना से पहले नेपाल और न्यूयार्क में भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। इसी तरह मीरा शंकर जर्मनी में कार्य कर रही हैं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के अगले स्थायी भारतीय सदस्त के रूप में देखा जा रहा है। चीन में निरुपमा राव इस प्रयास में हैं कि एशिया के ये दो बड़े देश भारत और चीन कैसे अपने तनाव को कम करके एकसाथ, एकमंच पर आ सकें ताकि एशिया, विश्व के सामने अपनी मजबूत दावेदारी सिद्ध कर सके। इसी तरह लीबिया में मणिमेखलई मुरुगेसन, आस्ट्रेलिया में सुजाता सिंह, न्यूयार्क में नीलम देव, शंघाई में रीवा गांगुली आदि भारतीय दूतावासों में नियुक्त हैं। इन महिलाओं ने उस सोच को बदलने का काम किया है जिसके चलते उन्हें मात्र सजी धजी गुडिय़ा के रूप में देखा जाता। अपने कड़े फैसलों और कार्य करने के जज्बे के चलते आज उन्हें दुनिया के ऐसे देशों में भी नियुक्त करने में किसी को कोई ऐतराज नहीं होता जो महिलाओं के लिहाज से सुरक्षित नहीं माने जाते हैं। आज भारतीय महिलाएं विदेशों में भी पूरी तरह कामयाब हैं। फिर चाहे वह शांत मुल्क न्यूयार्क, आस्ट्रेलिया या स्वीटजरलैंड हो या नित नए खतरों से जूझता लीबिया, कतर या लेबनान ही क्यों न हो। कमजोर मानी जाने वाली नारी का यह नया अवतार, नि:संदेह आने वाली पीढि़ का पथप्रदर्शक बनेगा।
Posted by नीलम at 4:33 PM 0 comments
खिलवाड़
एक प्राचार्य ने अप्रैल फूल को नया अंजाम दिया क्लास न चलने की शिकायत लानेवाले छात्रों को मनोरंजन हेतु सौ रुपए दे विदा किया समझ में नहीं आता किसने, किससे क्या खिलवाड़ किया?
Posted by सुभाष चन्द्र at 12:42 PM 0 comments
Thursday, December 24, 2009
पुरानी फाइल पर नया कलेवर
Posted by नीलम at 1:38 PM 1 comments
Labels: नक्सली पुनर्वास पैकेज, नीलम शुक्ला
Wednesday, December 23, 2009
पक्षियों का ठिकाना...
Posted by नीलम at 10:38 AM 1 comments
Labels: बाप जैसा करता है, वैसा ही करो
Tuesday, December 22, 2009
अपनी ढपली अपना राग
Posted by नीलम at 10:17 AM 0 comments
Labels: जीएसटी
Monday, December 21, 2009
अवसर मिलने पर हो सकती है विकास
भारत की कुल आबादी का लगभग आधी जनसंख्या महिलाओं का है। देश में जिस तरह से विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ी है, उससे आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, वातावरण के प्रति संवेदनशीलता पहले के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ी है। इसके साथ लोगों की जीवन स्तर, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की समझ ज्यादा हुई है। शिक्षा का स्तर पहले के मुकाबले अधिक ऊंचा हुआ। लेकिन अभी तक महिलाओं की जितनी भागीदारी होनी चाहिए, वह अभी तक नहीं हुई है। यदि चारों तरफ नजर दौड़ाई जाए तो किसी भी क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रतिशत पुरूषों के बराबर शायद ही देखने को मिलता है। चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक का क्षेत्र हो। चाहे सरकारी, सार्वजनिक, निजी या संयुक्त संगठन हो। मीडिया हो मनोरंजन। आज भी महिलाओं को नीतिगत फैसला करने का अधिकार नहीं मिला है। इन सबके बीच कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, किरण बेदी, इंदिरा नूई, किरण मजूमदार और सोनिया गांधी आदि नाम अपवाद स्वरूप हैं। लेकिन जनसंख्या के हिसाब से ऐसी कितनी महिलाएं देश में हैं। जिनके पास इनके बराबर अधिकार मिला है। संविधान ने महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार प्रदान किया है। समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार भी मिला हुआ है। समानता का अधिकार बिना लिंग भेद किए सबकों समान अवसर देने की वकालत करती है। देश में महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत 2001 की जनगणना के अनुसार 54.16 फीसदी है। जिनमें से अधिकांश महिलाएं घरेलू कार्यो में फंस जाती है। जिससे इनकी प्रतिभाएं दब जाती है। इनकों पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते है। जिससे इनको देश के विकास में भागीदार बनने का अवसर नहीं मिलता है। बात राजनीति की किया जाए तो देश के लगभग सभी राजनीतिक दल इनको संसद और विधान मंडलों में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात करते है। लेकिन बात जब इसे संसद से पारित करने की आती है तो कोई न कोई दल इसमें अडंगा लगाकर इसे संसद से पास नहीं होने देते है। इससे भी हास्यास्पद स्थिति तब आती है जब चुनाव के समय भी महिलाओं को टिकट के बंटवारे में भेदभाव करते है। अधिकत्तर महिलाओं को अपेक्षाकृत कमजोर मानी जाने वाली सीटें देकर अपने आंकड़ा को केवल भरने का काम करते है। एक अनुमान के अनुसार अगर श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पहले की अपेक्षा और अधिक की जाए तो अगले पांच सालों में देश के सकल घरेलू उत्पाद में 35 अरब डाॅलर की बढ़ोत्तरी हो सकती है। महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जाए तो भारत वर्ष 2015 तक पांच प्रतिशत और वर्ष 2025 तक 12 फीसदी और अमीर हो सकता है। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी पहले की तुलना में अभी कुछ सुधरी है। वर्ष 2000 में देश के रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 26 फीसदी थी जो बढ़कर 2005 में 31 प्रतिशत हो गई। यदि इनकी भागीदारी का ग्रामीण और शहरी क्षेत्र बांटे तो ग्रामीण क्षेत्र में इनकी भागीदारी बढ़ी है। वर्ष 2000 से 2005 के दौरान शहरी क्षेत्र में 20 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 34 प्रतिशत रोजगार में भागीदारी होती है। सांख्यिकी तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी इससे संबंधित कुछ और रोचक तथ्य सामने आएं है। संगठन ने अपने सर्वेक्षण में महिलाओं से बातचीत के बाद इस बात को उजागर किया कि अधिकांश घरेलू महिलाओं ने घर में ही रोजगार के पक्षधर हैं। संगठन के अनुसार भारत में 37.9 प्रतिशत महिलाएं घरेलू काम में लगी हैं। जबकि 0.4 प्रतिशत पुरूष इसमें लगे हुए हैं। राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण संगठन द्वारा देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कराए गए सर्वेक्षण के बाद महिलाओं से संबंधित आंकड़ें और तथ्य सामने आएं हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक 77 प्रतिशत और 66 प्रतिशत शहरी महिलाओं ने कहा कि हमें अधिक अवसर नहीं मिलते हैं। इसके लिए हमें आसान शर्तें और रियायत ब्याज दरों पर पूंजी की आवश्यकता है। महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में अवसर पाने के लिए प्रशिक्षण की जरूरतों को भी बताया। सर्वेक्षण में कहा गया कि वर्ष 2004-05 के दौरान 15 वर्ष से अधिक आयु की 40 प्रतिशत ग्रामीण तथा 50 प्रतिशत शहरी महिलाएं घरेलू काम में लगी थी। इनमें से 37 फीसदी ग्रामीण और 18 प्रतिशत शहरी महिलाएं उत्पादक कार्यों में लगी हुई थी। सर्वेक्षण के दौरान 72 प्रतिशत ग्रामीण और 68 प्रतिशत महिलाओं ने पार्ट टाइम कार्य करने की इच्छा व्यक्त की। यूचर ग्रुप और युचर कैपिटल द्वारा ‘‘भारत के विकास, आय और उपयोग पर कामकाजी महिलाओं का असर‘‘ सर्वेक्षण से कोई रोचक तथ्य सामने आए है। सर्वेक्षण कुल दो हजार महिलाओं को लिया गया था। जिनमें आधी कामकाज और आधी घरेलू महिलाएं थी। सर्वेक्षण के परिणाम से खुलासा हुआ कि यदि आय में वृद्धि होती है तो उसका कुछ भाग बचत और निवेश में जाता है। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी पहले की तुलना में अभी कुछ सुधरी है। वर्ष 2000 में देश के रोजगार में महिलाओं की भागीदारी 26 फीसदी थी जो बढ़कर 2005 में 31 प्रतिशत हो गई। यदि इनकी भागीदारी का ग्रामीण और शहरी क्षेत्र बांटे तो ग्रामीण क्षेत्र में इनकी भागीदारी बढ़ी है। वर्ष 2000 से 2005 के दौरान शहरी क्षेत्र में 20 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 34 प्रतिशत रोजगार में भागीदारी होती है। वित्तीय सेवाओं, घरेलू मद, शैक्षिक सेवाओं, फुटकर माल, ईंधन, यातायात और मनोरंजन आदि क्षेत्रों को कामकाजी महिलाओं को सीधा लाभ मिलता है।
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Labels: महिला
राजनीति में बहुओं की विरासत
Posted by नीलम at 12:21 PM 0 comments
Labels: भारतीय नारी, राजनीति
Sunday, December 20, 2009
मजबूर मासूमियत
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सोना हुआ बालिग
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Saturday, December 19, 2009
आधी आबादी का दिवास्वप्न
Posted by नीलम at 1:07 PM 0 comments
Labels: महिला आरक्षण