Wednesday, December 23, 2009

पक्षियों का ठिकाना...

पक्षी प्रकृति पदत्त सबसे सुन्दर जीवों की श्रेणी में आते हैं। इनसे मानव के साथ रिश्तों की जानकारी के उल्लेख प्राचीनतम ग्रंथों में भी मिलते हैं। किस्सा तोता मैना का तो आपने सुना ही होगा। इन किस्सों में आपने पाया होगा कि राजा के प्राण किसी तोते में बसते थे। फिर राम कथा के जटायु प्रसंग को कौन भुला सकता है। कबूतर द्वारा संदेशवाहक का काम भी लिया जाता रहा है। कहा जाता है कि मंडन मिश्र का तोता-मैना भी सस्वर वेदाच्चार करते थे। कई देवी देवताओं की सवारी पक्षी हुआ करते थे। पक्षियों का जीवन विविधताओं भरा अत्यंत ही रोचक होता है। पक्षियों के जीवन की सर्वाधिक आश्चर्यजनक घटना है उनका प्रवास। अंग्रेज़ी में इसे माइग्रेशन कहते हैं। शताब्दियों तक मनुष्य उनके इस रहष्य पर से पर्दा उठाने के लिए उलझा रहा। उत्सुकता एवं आश्चर्य से आंखें फाड़े आकाश में प्रवासी पक्षियों के समूह को बादलों की भांति उड़ते हुए देखता रहा।
पक्षी हज़ारों मील दूर से एक देश से दूसरे देश में प्रवास कर जाते हैं। साधारणतया तो पक्षियों के किसी खास अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह जाने की घटना को पक्षियों का प्रवास कहा जाता है। पर इस घटना को वातावरण में किसी खास परिवर्तन एवं पक्षियों के जीवनवृत्त के साथ भी जोड़कर देखा जा सकता है।
पक्षियों का प्रवास एक दो तरफा यात्रा है और यह एक वार्षिक उत्सव की तरह होता है, जो किसी खास ऋतु के आगमन के साथ आरंभ होता है और ऋतु के समाप्त होते ही समाप्त हो जाता है। यह यात्रा उनके गृष्मकालीन और शिशिरकालीन प्रवास, या फिर प्रजनन और आश्रय स्थल से भोजन एवं विश्राम स्थल के बीच होती है। मातृत्व का सुखद व सुरक्षित होना अनिवार्य है। ऐसा मात्र इंसानों के लिए हो ऐसी बात नहीं है। सुखद व सुरक्षित मातृत्व पशु-पक्षी भी चाहते हैं। इस बात का अंदाज़ा साइबेरिया से हज़ारों किलोमीटर दूर का कठिन रास्ता तय कर हुगली, पश्चिम बंगाल पहुंचे साइबेरियन बर्ड को देख कर लगाया जा सकता है।
प्रवासी यात्रा में पक्षियों की सभी प्रजातियां भाग नहीं लेतीं। कुछ पक्षी तो साल भर एक ही जगह रहना चाहते हैं। और कई हज़ारों मील की यात्रा कर संसार के अन्यत्र भाग में चले जाते हैं। प्रकृति की अनुपम देन पंखों की सहायता से वे संसार के दो भागों की यात्रा सुगमता पूर्वक कर लेते हैं। इनकी सबसे प्रसिद्ध यात्रा उत्तरी गोलार्द्ध से दक्षिण की तरफ की है। गृष्म काल में तो उत्तरी गोलार्द्ध का तापमान ठीक-ठीक रहता है, पर जाड़ों में ये पूरा क्षेत्र बर्फ से ढ़ंक जाता है। अत: इस क्षेत्र में पक्षियों के लिए खाने-पीने और रहने की सुविधाओं का अभाव हो जाता है। फलत: वे आश्रय की तलाश में भूमध्य रेखा पार कर दक्षिण अमेरिका या अफ्रीका के गर्म हिस्सों में प्रवास कर जाते हैं। अमेरिकी बटान (गोल्डेन प्लोवर) आठ हज़ार मील की दूरी तय कर अर्जेन्टीना के पम्पास क्षेत्र में नौ महीने गृष्म काल का व्यतीत करते हैं। इस प्रकार वे प्रवास कर साल भर गृष्म ऋतु का ही आनंद उठाते हैं। उन्हें जाड़े का पता ही नहीं होता। इसी प्रकार साइबेरिया के कुछ पक्षी भारत के हिमालय के मैदानी भागों में प्रवास कर जाते हैं। हुगली के हरिपाल जैसे अनजान व शांत इलाके में ये पक्षी आकर तीन से चार माह का प्रवास करते हैं। इस दौरान वे प्रजनन की क्रिया संपन्न करते हैं। बच्चों को जन्म देने के बाद वे पुन: वापस लौट जाते हैं। उत्तर प्रदेश के भी कई वन्य विहार, नदियों, झीलों आदि में ये अपना बसेरा बना लेते हैं। हंस (हेडेड गोज), कुररी (ब्लैक टर्न), चैती, छेटी बतख (कामन टील), नीलपक्षी (गार्गेनी), सराल (इवसलिंग), सिंकपर (पिनटेल), तेलियर (स्टर्लिंग), पनडुब्बी (ग्रेब्स), टिकरी (कूट्स), अबाबीलों (स्वैलोज), बगुलों (हेरोन्स), बतासी (स्विफ्ट्स), अबाबील (स्वैलो), बुलबुल (नाइटिंजेल), पपीहा (कक्कू), पथरचिरटा (बंटिंग), बत्तख (डक्स), सामुद्रिक (गल्स), रोबिन, बाज, नीलकंठ, क्रेन, मुर्गाबी (लून्स), जलसिंह (पेलिकन्स), आदि प्रवासी पक्षी न सिर्फ दिखने में खूबसूरत होते हैं बल्कि अपनी दिलकश अदाओं के लिए भी जाने जाते हैं।
बत्तख (डक्स), सामुद्रिक (गल्स) एवं समुद्र तटीय पक्षी रात या दिन किसी भी समय अपनी यात्रा करते हैं। पर कुछ पक्षी जैसे कौए, अबाबील, रोबिन, बाज, नीलकंठ, क्रेन, मुर्गाबी (लून्स), जलसिंह (पेलिकन्स), आदि केवल दिन में ही उड़ान भरते हैं। अपनी लम्बी उड़ान के दौरान ये कुछ देर के लिए उचित जगह पर चारे की खोज में रुकते हैं। किन्तु अबाबील और बतासी तो अपने आहार कीट-पतंगों को उड़ते-उड़ते ही पकड़ लेते हैं। दिन में उडऩे वाले पक्षी झुंड में चलते हैं। बत्तख, हंस एवं बगुले में झुंड काफी संगठित होता है। इन्हें टोली का नाम दिया जा सकता है। जबकि अबाबील का झुंड काफी बिखरा-बिखरा होता है।
अधिकांश पक्षी रात में ही लंबी यात्रा करना पसंद करते हैं। इस श्रेणी में बाम्कार (थ्रशेज), एवं गोरैया (स्पैरो) जैसे छोटे-छोटे पक्षी आते हैं। ये अंधेरे में अपने शत्रुओं से बचते हुए यात्रा करते हैं। इसके अलावा एक और बात महत्त्वपूर्ण है, यदि ये पक्षी दिन में यात्रा करें तो रात होते-होते काफी थक जाएंगे। अत: अगली सुबह ऊर्जाहीन इन पक्षियों को अपने आहार प्राप्त करने में काफी दिक़्क़त होगी। यह उनके लिए प्राणघातक भी साबित हो सकता है। जबकि रात को चलते हुए सवेरा होते-होते ये उचित जगह पर थोड़ा विश्राम भी कर लेते हैं, फिर भोजनादि की तलाश में जुट जाते हैं। रात होते ही आगे की यात्रा पर पुन: निकल पड़ते हैं। कुछ पक्षी जैसे बाज, बतासी, कौडि़ल्ला (किंगफिशर), आदि अलग-अलग अपनी ही प्रजाति की टोली में चलते हैं। जबकि अबाबील, पीरू (टर्की), गिद्ध एवं नीलकंठ कई प्रजातियों की टोली में चलते हैं। इसका कारण उनके आकार-प्रकार का एक ही तरह का होना या फिर आहार की प्रकृति एवं पकडऩे के तरीक़े का समान होना हो सकता है। कुछ प्रजातियों में नर और मादा की टोली अलग-अलग चलती है। नर गंतव्य पर पहले पहुंच कर घोंसलों का निर्माण करता है। जबकि मादा अने साथ नन्हें शिशु फक्षी को लिए पीछे से आती है।
अपनी प्रवासीय यात्रा के दौरान ये पक्षी कितनी दूरी तय करते हैं यह उनकी स्थानीय परिस्थिति एवं प्रजाति के ऊपर निर्भर करता है। इनके द्वारा तय की गई यात्रा की दूरी मापने के लिए पक्षी विज्ञानी इन्हें बैंड लगा देते हैं या फिर इनके ऊपर रिंग लगा देते हैं। फिर जहां वे पहुंचते हैं, उसका उनहें अंदाज़ा हो जाता है। और तब दूरी माप ली जाती है। आर्कटिक क्षेत्र के कुररी (टर्न) पक्षी को सबसे ज़्यादा दूरी तय करने वाला पक्षी माना जाता है। लेबराडोर की तटों से ये ग्यारह हज़ार मील की दूरी तय कर अन्टार्कटिका में जाड़े के मौसम में पहुंचते हैं। इतनी ही दूरी तय कर गर्मी में ये वापस लौट जाते हैं। इसी तरह की मराथन उड़ान भरने वाली अन्य प्रजातियां हैं सुनहरी बटान, टिटिहरी (सैंड पाइपर) एवं अबाबील। ये आर्कटिक क्षेत्र से अर्जेन्टिना तक की छह से नौ हज़ार मील की दूरी तय करते हैं। यूरोप के गबर (व्हाइट स्टौर्क) जाड़ों में आठ हज़ार माल की दूरी तय कर दक्षिण अफ्रीका पहुंच जाते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि प्रवासी पक्षियों में ज़बरदस्त दमखम होता हागा, नहीं तो इतनी दूरी तय करना कोई आसान बात नहीं है। इस जगत में इनसे ज़्यादा अथलीट शायद ही कोई जीव होगा। प्रवासी यात्रा आरंभ करने के पहले ये पक्षी अपने अंदर काफी वसा एकत्र कर लेते हैं जो उनकी उड़ान वाली यात्रा के दौरान इंधन का काम करते हैं।
दूरी के साथ-साथ अपनी उड़ान में जो ऊंचाई ये छूते हैं वह भी कम रोचक नहीं है। कुछ तो जमीन के काफी साथ-साथ ही चलते हैं, जबकि सामान्य रूप से ये तीन हज़ार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। उंचाई पर उड्डयन में कठिनाई यह होती है कि ज्यों-ज्यों उड़ान की ऊंचाई अधिक होती जाती है त्यों-त्यों संतुलन एवं गति बनाए रखना काफी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि ऊपर में हवा का घनत्व काफी कम होता है और हवा की उत्प्लावकता (बुआएंसी) काफी कम हो जाती है। रडार के द्वारा पता लगा है कि कुछ छोटे-मोटे पक्षी पांच हज़ार से पंद्रह हज़ार फीट तक की ऊंचाई पर भी उड़ान भरते हैं। यहां तक कि हिमालय या एंडेस की पहाडिय़ों को पार करते समय ये पक्षी बीस हज़ार फीट या उससे भी अधिक की ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे यह पता लगता है कि पक्षी अपनी प्रवासीय यात्रा के दौरान सामान्य से अधिक गति से यात्रा करते हैं। छोटे-छोटे पक्षियों की यात्रा में औसत गति तीस मील प्रति घंटा होती है। जबकि अबाबील और अधिक गति से उड़ते हैं। बाज की गति तीस से चालीस मील प्रति घंटा होती है। तटीय पक्षी की गति चालीस से पचास मील प्रति घंटा होती है। जबकि बत्तख की गति पचास से साठ मील प्रति घंटा होती है। भारत में सबसे अधिक गति ब्रितानी पक्षी बतासी(स्वीफ्ट) का रिकार्ड किया गया है जो 171 से 200 मील प्रति घंटा होती है। प्रवासी पक्षी एक दिन या एक रात में कऱीब 500 मील की दूरी तय कर लेते हैं। पक्षी साधारणतया पांच से छह घटों की एक उड़ान भरते हैं। बीच में वे विश्राम या भोजन के लिये रुकते हैं। उनकी गति पर मौसम का भी प्रभाव पड़ता है। जैसे वर्षा, ओलों का गिरना या फिर तेज हवा के झोंकों से इनकी गति बाधित होती है।
कई पक्षियों की प्रवासी यात्रा में कफी नियमितता पाई जाती है। साल-दर-साल के गहन अध्ययन से यह पता लगा कि ये नियमित रूप से मौसम की प्रतिकूलता की मार सहकर भी अपनी लंबी यात्रा बिल्कुल नियत समय पर नियत स्थल पर पहुंच कर पूरी करते हैं। शायद ही कभी एकाध दिन की देरी हो जाए। अबाबील और पिटपिटी फुदकी (हाउस रेन) ठीक 12 अप्रैल को वाशिंगटन पहुंच जाती हैं। भारत के प्रख्यात पक्षीशास्त्री सालीम अली ने खंजन (ग्रे वैगटेल) को अलमुनियम का छल्ला पहना दिया। मुम्बई के उनके आवास पर यह पक्षी प्रति वर्ष नियत समय पर पहुंच जाया करता था। पक्षी अपने धुन के बड़े पक्के होते हैं।
प्रवासी पक्षी एक निश्चित पथ पर ही अपनी यात्रा तय करते हैं। हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय कर आने वाले ये पक्षी पुन: उसी रास्ते वापस लौट जाते हैं। ये अपना रास्ता नहीं भूलते। इससे स्पष्ट होता है कि इंसान से भी अधिक इनकी स्मरण शक्ति होती है। हां इस पथ में परिवर्तन कुछ खास कारणों से हो सकता है। साधारणतया भौगोलिक आकृतियां जैसे नदी, घाटी, पहाड़, समुद्री तट, आदि इनका मार्ग दर्शन करते हैं। कुछ पक्षी तो अपनी पिछली यात्रा के अनुभव के आधार पर अपने दूसरे साथियों का पथ प्रदर्शन एवं मार्ग दर्शन करते हैं। पर उनका अनुभव शायद ही बड़े काम का होता होगा। क्योंकि पक्षियों की अधिकांश प्रजातियां तो टोली में यात्रा करने से कतराते हैं। वे तो अलग-अलग ही चलते हैं। हां आकाशीय पिंड उनकी इस मराथन यात्रा में उनका पथ-प्रदर्शक होते हैं। पक्षियों के अंदर एक आंतरिक घड़ी भी होती है जो उनके गंतव्य तक पहुंचाने में सहायता प्रदान करती है।
अब पहले की तरह प्रवासी पक्षी नहीं आते। जानकारों का मानना है कि इसके पीछे प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है। मौसम मे परिवर्तन प्रवासी पक्षियों को रास नहीं आता इस कारण वे अब भारत से मुंह मोडऩे लगे हैं जलवायु परिवर्तन से पक्षियों का प्रवास बहुत प्रभावित हुआ है। पहले पूर्वी साइबेरिया क्षेत्र के दुर्लभ पक्षी मुख्यत: साइबेरियन सारस भारत में आते थे। जलस्त्रोतों के सूखने से उनके प्रवास की क्रिया समाप्त प्राय हो गई है। ये सुदूर प्रदेशों से अपना जीवन बचाने और फलने फूलने के लिए आते रहे हैं। पर हाल के वर्षों में इनके जाल में फांस कर शिकार की संख्या बढ़ी है। कई बार तो शिकारी तालाब या झील में ज़हर डाल कर इनकी हत्या करते हैं। माना जाता हा कि उनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है तथा उच्च वर्ग में इसका काफी मांग हाती है। अब वे चीन की तरफ जा रहे हैं। हम एक अमूल्य धरोहर खो रहे हैं। पक्षियों के प्रति लोगों में पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए। पक्षी विहार से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। इसके अलावा काफी बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों को दखने पर्यटक आते हैं।
इस प्रवासीय यात्रा की शुरुआत क्यों हुई यह भी रोचक है। एक साधारण सी कहावत है कि "बाप जैसा करता है, वैसा ही करो" – शायद इसी रास्ते पर इसकी शुरुआत मानी जा सकती है। पर यह कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं कही जी सकती। हां इतना तो माना जा सकता है कि बदलते वातावरण के कारण कुछ विपरीत परिस्थितियां पैदा हो गई होंगी, जिसके कारण पक्षियों के गृह स्थल पर भोजन एवं प्रजनन की सुविधाओं का अभाव हो गया होगा। इस सुविधा की प्राप्ति के लिए पक्षी अपने स्थान बदलने को विवश हो गए होंगे। समय बीतने के साथ यह साहसिक अभियान उनकी आदत में शुमार हो गया होगा। पक्षियों के जीवन यापन, शत्रुओं से सुरक्षा, भोजन एवं प्रजनन की सुविधा में यह प्रवास निश्चित रूप से उनके लिए लाभकारी साबित हुआ।

1 Comment:

Rahul srivastava said...

article on Birds is very intersting. It gives deep information about birds and their life.

नीलम