उनमें और मुझमें अंतर है इतना वे परहित चाहते हैं मैं आत्महित चाहता हूँ उनमें और मुझमें मतभेद है इसका वे राष्टï्रहित चाहते हैं मैं स्वहित चाहता हूँ अजीब दास्तान है दो पीढिय़ों की वे काम चाहते हैं मैं नाम चाहता हूँ जब भी तय की जाती है देश की तक़दीर वे आदर पाते हैं मैं कुर्सी पाता हूँ
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3 Comments:
achha hai..... sochna parega ...
kapil
Noida
sach ka samna karvati hai apki kavita
Kuchh samajh me nahi aaya..koun kya chahta hai aur kise kya mila.
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