Monday, December 28, 2009

अंतर

उनमें और मुझमें अंतर है इतना वे परहित चाहते हैं मैं आत्महित चाहता हूँ उनमें और मुझमें मतभेद है इसका वे राष्टï्रहित चाहते हैं मैं स्वहित चाहता हूँ अजीब दास्तान है दो पीढिय़ों की वे काम चाहते हैं मैं नाम चाहता हूँ जब भी तय की जाती है देश की तक़दीर वे आदर पाते हैं मैं कुर्सी पाता हूँ

3 Comments:

Anonymous said...

achha hai..... sochna parega ...
kapil
Noida

chhattishgarh_neelam said...

sach ka samna karvati hai apki kavita

मनोज द्विवेदी said...

Kuchh samajh me nahi aaya..koun kya chahta hai aur kise kya mila.

नीलम