Saturday, December 26, 2009

खेलों का महाकुंभ खटाई में

खेलों के महाकुंभ की सफलता, संदेहों के घेरे में है। कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन करने वाली समिति के अधिकारियों में तालमेल के आभाव को लेकर कैग की चिंता जायज है। कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के अध्यक्ष माइकल फेनेल का प्रधानमंत्री से, आयोजन की तैयारियों में हस्तक्षेप करने की दरख्वास्त करना, इसकी तैयारियों की पोल खोलने के लिए काफी है। खेलों का निमार्ण कार्य अगर इसी गति से चलता रहा तो भारत पर कॉमनवेल्थ खेलों के असफल आयोजन का बट्टा लग सकता है।
न स्टेडियम तैयार हैं और न ही खेल गांव, न ही सड़कों का सौदर्यीकरण हो पाया है और न ही बिजली-पानी की व्यवस्था ही हो पायी है। खेल 2010 में 3 से 14 अक्टूबर के बीच होने हैं पर इसकी तैयारियों की गति तो यही दर्शाती है कि इस बार भारत को, इन खेलों के असफल आयोजन के लिए शर्मसार होना पड़ सकता है। यहां बात 2010 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स की हो रही है जिसकी लचर गति से होने वाली तैयारी ने प्रधानमंत्री को भी चिंतित कर दिया है। पिछले कॉमन वेल्थ गेम्स 1986 के सफल आयोजन के लिए इंदिरा गांधी ने सेना की मदद ली थी। कुछ ऐसे ही हालात इस बार भी बन रहे हैं। डर है कि पिछली बार की तरह कहीं इस बार भी सेना की मदद न लेनी पड़े। और तो और सेना की मदद के बावजूद 2010 में होने वाले कॉमनवेल्थ खेल सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाए, इसमें भी संदेह है। खेलों के आयोजन की अब तक की तैयारियों को देखकर तो यही लग रहा है कि न तो स्टेडियम ही समय पर तैयार हो पायेंगे और न ही आने वाले अतिथियों के रुकने की व्यवस्था ही हो पायेगी।
वैसे तो इस बात के संकेत काफी पहले से मिल रहे थे कि तयशुदा समयसीमा में इन खेलों की तैयारियां पूरी नहीं हो पायेंगी पर पिछले दिनों महालेखा परीक्षण यानी कैग और कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के अध्यक्ष माइकल फेनेल के असंतोष ने फिर से लोगों का ध्यान इन खेलों के आयोजन की ओर खींचा है। इस महाकुंभ के लिए अक्षरधाम के पास प्रस्तावित खेल गांव भी अबतक अधूरा है। आलम यह है कि अबतक कई ब्लाक की छतें तक नहीं ढाली गई हैं। इसके बाद अगर युद्धस्तर पर भी बिल्डिंग के फिनिशिंग का काम किया गया तो भी कॉमनवेल्थ खेलों तक यह पूरा नहीं हो पायेगा। खैर बिल्डिंग की फिनिशिंग का काम कुछ अधूरा रह गया, तो भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन खेलों की सबसे बड़ी जरूरत, स्टेडियम भी अगर अधूरे रहे तो? कैग की मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार इन खेलों के लिए बनने वाले मुख्य स्टेडियम की डिजाइन तक को अबतक अंतिम रूप नहीं दिया गया है। साथ ही चिन्हित 19 स्टेडियम में से 13 में अब तक 25 से 50 फीसदी ही काम हुआ है। छत्रसाल स्टेडियम, नेहरू स्टेडियम, साकेत स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स, यमुना स्पोटर्स कॉम्प्लेक्स, डॉ। करणी सिंह शूटिंग रेंज आदि अभी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हैं और जिस रफ्तार से यहां काम हो रहा है उसे देखकर यह संभावना कम ही है कि यह समय पर पूरे हो पायेंगे।
खेलों के मद्देनजर बिजली की व्यवस्था के लिए 1500 मेगावाट का बवाना प्लांट बनाने का निर्णय लिया गया था। इस प्लांट पर सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए बिजली मुहैय्या करवाने की जिम्मेदारी थी पर अब तक यह प्रोजेक्ट मात्र 30 फीसदी ही पूरा हो पाया है। इन दिनों हो रही बिजली की किल्लत को देखते हुए, दादरी पावर प्लांट और दामोदर वैली कार्पोरेशन से बिजली मिलने की उम्मीद करना भी बेकार है। ऐसे में खेलों के समय बिजली कहां से मिलेगी, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। खेलों के लिए पानी के सुचारू इंतजाम पर भी सवालिया निशान लगे हैं। जल बोर्ड के पास इतना पैसा भी नहीं है कि वह अपने पुराने प्लांटों की मरम्मत करवा सके तो नए प्लांट के निर्माण की बात तो भूलना ही बेहतर है। ऐसा ही हाल खेलों के दौरान आने वाले अतिथियों के ठहरने की व्यवस्था का भी है। मंत्रालय के सचिव सुरजीत बेनर्जी की अध्यक्षता में इन खेलों के लिए गठित कमेटी, टॉस्क फोर्स की माने तो विदेशी मेहमानों के लिए दस हजार कमरों की जरूरत पड़ेगी पर अब तक केवल चार हजार कमरें ही विदेशी मेहमानों के रहने लायक बन पाएं हैं। इसके अलावा 20 हजार कमरें अन्य मेहमानों के लिए चाहिए। हालांकि आयोजन समिति रजिस्टर्ड गेस्ट हाउसों के 11 हजार कमरें, ब्रेड एण्ड ब्रेकफास्ट योजना के 3000 कमरे और डीडीए के 5,500 कमरों की व्यवस्था करने का दावा कर रही है। इन कमरों को तैयार करने का लक्ष्य 31 मार्च 2010 का दिया गया है पर टास्क फोर्स के हालिया सर्वेक्षण पर गौर करें तो जिस रफ्तार से काम हो रहा है उसमें तय समयसीमा में काम खत्म हो पाना मुश्किल है। कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के मद्देनजर दिल्ली की खूबसूरती बढ़ाने के लिए बनने वाली सड़कों, फ्लाईओवर, रेल्वे ब्रिज आदि का काम भी आधा-अधूरा ही पड़ा है। अब ऐसे में न तो महालेखा परिक्षक यानी कैग की मूल्यांकन रिपोर्ट गलत है और न कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन की चिंता। खेलों के लिए होने वाली तैयारियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली सरकार ने इस प्रोजेक्ट से जुड़ी 6 योजनाओं को ठण्डे बस्तें में डाल दिया है।
अंतर्राष्ट्रीय गाइडलाइन के अनुसार यह निर्माण कार्य मई 2009 तक पूरा हो जाना चाहिए था। फिर एक साल का ट्रायल पीरियड होता। लेकिन हालात यह हैं कि कार्य अक्तूबर तक अधूरे हैं और इनकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है। निर्माण कार्यों की देरी के लिए, पीडब्ल्यूडी के अधिकारी आयोजन समिति को दोष दे रहे हैं, आयोजन समिति एजेंसियों को और एजेंसिया एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। अक्टूबर में कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन, 70 देशों के सदस्यों के साथ, तैयारियों का जायजा लेने आ रही है। यहां अधूरी तैयारियों के लिए कोई जिम्मेदारी लेने तक को तैयार नहीं है। ऐसे में फेडरेशन और 70 देशों के सदस्य कितना संतुष्ट हो पायेंगे, कहना मुश्किल है।

नीलम