Thursday, December 24, 2009

पुरानी फाइल पर नया कलेवर

छत्तीसगढ में नक्सलिय्ाों द्वारा आईएस अधिकारी विनोद चौबे सहित 30 लोगों की बेरहमी से की गई हत्य्ाा के बाद लगा था कि अब राज्य्ा सरकार के साथµसाथ केन्द्र सरकार भी इस समस्य्ाा से निपटने के लिए कोई पुख्ता कदम उठाएगी, पर ऐसा हुआ नहीं। छत्तीसगढ में पिछले कई सालों से चलने वाले नक्सली पुनर्वास पैकेज को ही थोडा विस्तार देकर, लागू करके केन्द्र सरकार ने अपने कर्तव्य्ाों की इतिश्री कर ली है।
छत्तीसगढ के नक्सल प्रभावित इलाकों की स्थिति आज ऐसी ही है। य्ाहां हर दिन किसी आदिवासी को य्ाा तो पुलिस का मुखबिर बताकर सरेआम मार दिय्ाा जाता है य्ाा उसके गुनाहों की सजा देने के लिए उसे बंदी बना लिय्ाा जाता है। य्ाहां ऐसे लोगों को भी नहीं बक्शा जाता जो किसी भी तरह से सरकारी फाय्ादा लेते हैं। पर नक्सलिय्ाों ने अपनी सबसे बडी वारदात को अंजाम जब दिय्ाा जब बीती 14 जुलाई को उन्होंने मदनवाडा में राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे को उनके साथिय्ाों सहित उडा दिय्ाा। इस घटना से केन्द्र भी सकते में आ गय्ाा था क्य्ाोंकि इस वारदात को अंजाम देने के लिए, नक्सलिय्ाों ने किसी माहिर रणनीतिकार की तरह पहले 3 किमी लंबा एम्बुस लगाय्ाा और फिर जाल बिछाकर चौबे और उनके साथिय्ाों को वहां आने के लिए मजबूर कर दिय्ाा। राज्य्ा के साथ पूरा देश इस घटना पर दुखी होने से ज्य्ाादा अचंभित था क्य्ाोंकि इससे पहले य्ाा तो नक्सल वारदातों को राज्य्ा सरकार द्वारा दबा दिय्ाा जाता था य्ाा तोड मरोड कर इस तरह प्रस्तुत किय्ाा जाता कि वह एक साधारणµसी घटना बनकर रह जाती थी। चौबे के काफिले पर हुए नक्सलिय्ाों के आत्मघाती हमले और इस हमले में हुई मौतों को सरकार दबाने में नाकाम रही। य्ाही वह समय्ा था जब पूरे देश को छत्तीसगढ में नक्सलिय्ाों की ताकत का अंदाजा हुआ था। इस घटना के बाद विपक्ष ने रमन सरकार की नाक में दम कर डाला। बात प्रधानमंत्र्ाी और गृहमंत्र्ाी तक जा पहुंची। लगने लगा अब तो तीन दशक पुरानी इस समस्य्ाा से छत्तीसगढ को छुटकार मिल ही जाएगा। पर न ऐसा होना था और न ही हुआ।
केंद्रिय्ा गृहमंत्र्ाी पी। चिदम्बरम ने इस घटना के बाद लोकलुभावन नक्सली पुनर्वास पैकेज की घोषणा की है जिसमें नक्सलिय्ाों को आमधारा में जोडने के प्रय्ाास किए जाएंगे वह भी उन्हें प्रलोभन देकर। केन्द्र के नक्सली राहत पैकेज की घोषणओं में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलिय्ाों को व्य्ावसाय्ािक प्रशिक्षण के साथµ साथ डेढ लाख की राशि उसके नाम से बैंक में सावधि जमा खाते में जाम की जाएगी जिसे नक्सली तीन साल के बाद, अच्छे चाल चलन का परिचय्ा देकर प्राप्त कर सकता है। पैकेज के दिशनिर्देशों पर गौर करें तो आत्मसमर्पण करते समय्ा य्ादि नक्सली हथिय्ाार भी जमा करता है तो उसके पैसे अलग से मिलेंगे। इसमें जनरल परपज मशीनगन आरपीजीय्ाूएमजी य्ाा स्निकर राइफल के ख्भ् हजार, किसी भी एके राय्ापल के क्भ् हजार, पिस्तौल य्ाा रिवाल्वर य्ाा बारूदी सुरंग के फ् हजार रुपए, जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल के ख्. हजार रुपए, सेटेलाइट फोन के क्. हजार रुपय्ो, वाय्ारलेस सैट के एक से पांच हजार रुपए तथा प्रति कारतूस फ् रुपय्ो दिय्ाा जाएगा। अब जरा छत्तीसगढ के पुनर्वास पैकेज पर ध्य्ाान दें जो ख्... से लागू है। य्ाहां तो केन्द्र से ज्य्ाादा उदारता दिखाय्ाी गई है। जो नक्सली आत्मसमपर्ण करते हैं, सबसे पहले उनपर से आपराधिक मामले हटा लिए जाते हैं। एमएलजी हथिय्ाार के साथ गिरफ्तारी देने वालों को फ् लाख, एके ब्स्त्र्ाा के साथ समर्पण करने वालों को स्त्र्ााभ् हजार, बंदूक के साथ समर्पण करने वाले को भ्. हजार नकद दिए जाते हैं। साथ ही इन्हें कृषि भूमि और सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दी जाती है। केन्द्र के पैकेज में व्य्ावसाय्ािक प्रशिक्षण और तीन साल तक दो हजार रुपए, प्रतिमाह देने का प्रावधान नय्ाा है। कुल मिलाकर य्ाह पैकेज राज्य्ा के पैकेज जैसा ही है। भले ही आम लोगों को य्ाह पैकेज लुभा रहा हो पर नक्सलिय्ाों के लिए इसके माय्ाने कुछ भी नहीं हैं। अगर नक्सली ऐसे लुभावने वादों पर भरोसा करते तो अब तक छत्तीसगढ से नक्सल समस्य्ाा का अंत हो चुका होता क्य्ाोंकि छत्तीसगढ में पिछले क्. सालों से नक्सलिय्ाों के लिए पुनर्वास पैकेज चलाय्ाा जा रहा है। केन्द्र का य्ाह नय्ाा पैकेज छत्तीसगढ के संदर्भ में पुरानी किताब पर नई जिल्द से ज्य्ाादा कुछ नहीं है।
नक्सलिय्ाों में इस पैकेज को लेकर कोई भी सुगबुगाहट अब तक नहीं दिखाय्ाी दी है बल्कि क्फ् जुलाई को मदनवाडा की वारदात को अंजाम देने के बाद नक्सलिय्ाों के हौसले काफी बुलंद हो गए हैं। पिछले दिनों उन्होने सरकार के कई कायर््ाो को प्रभावित करने का प्रय्ाास किय्ाा। नए टाॅवरों को ध्वस्त कर दिय्ाा, नई बनने वाली पुलिस चौकिय्ाों के लिए निर्माण सामग्री नहीं पहुंचने दी। मजदूरों को धमकाय्ाा गय्ाा कि अगर उन्होंने किसी भी सरकारी काम में हिस्सा लिय्ाा तो उन्हें मौत के घाट उतार दिय्ाा जाएगा। अब भी छत्तीसगढ में नक्सलिय्ाों की खूनी वारदात लगातार जारी है। नक्सली न सिर्फ सुरक्षा बलों को चकमा दे रहे हैं, बल्कि पुलिस के मुखबिरों को सरेआम मौत के घाट भी उतार रहे हैं। पिछले दिनों नकस्लिय्ाों ने दो बडी जन अदालतें लगाकर पुलिस के चार मुखबिरों की गला रेतकर हत्य्ाा कर दी। नक्सलिय्ाों की इन अदालतों में नक्सली उन लोगों को सरेआम मौत की सजा सुनाते हैं जिनपर उनके साथ धोखा करने का आरोप होता है, वह भी आम होगों के सामने ताकि उनके मन में नक्सलिय्ाों से बगावत का बीज अगर पनप भी रहा हो तो वह हमेशा हमेशा के लिए शांत हो जाए। बस्तर, राजनांदगांव और सरगुजा के लोग नक्सलिय्ाों की इन जन अदालतों से भलीभांति परिचित हैं। जिन चार मुखबिरों की नक्सलिय्ाों ने हत्य्ाा की थी उनकीा लाश को लाने का साहस तक पुलिस नहीं कर सकी। ग्रामीणों ने उन लोगों की लाश थाने पहुंचाय्ाी।
आज नक्सली इलाकों के हालात य्ाह हैं कि जवान ब् किमी से ज्य्ाादा अंदर सर्च नहीं करना चाहते हैं। पिछले दिनों एक सरकारी फरमान की अनदेखी के चलते क्फ् जवानों को कायर््ामुक्त करना पडा। य्ाह जवान मोर्चे पर जाना नहीं चाहते थे। केन्द्रिय्ा सुरक्षा बल और राज्य्ा पुलिस के बीच इतना तनाव इस कदर बढ गय्ाा है कि बीच बचाव के लिए मुख्य्ामंत्र्ाी डाॅ। रमन सिंह को पंचाय्ात बिठा कर खुद फैसला करने आना पडा। ऐसे विकट हालात वाले राज्य्ा के लिए नक्सली पुनर्वास पैकेज किसी मजाक से कम नहीं है।
अब जरा छत्तीसगढ में दस सालों से लागू इस पैकेज में आत्मसमर्पण करने वाले नकसलिय्ाों की संख्य्ाा पर गौर कर लिय्ाा जाए। पिछले दस सालों में क्ब्। शातिर नक्सलिय्ाों ने आत्मसमर्पण किय्ाा है और ख्ब्॥ ऐसे आदिवासिय्ाों ने, जिन्होंने नक्सलिय्ाों के बहकावे में आकर संघम य्ाा दलम ज्वाइन किय्ाा था। कुल मिलाकर ख्भ्.. के आसपास। छत्तीसगढ में नक्सलिय्ाों की मोटीµमोटी गणना की जाए तो इनकी संख्य्ाा फ्भ् हजार के आसपास है। य्ाानी इन ढाई हजार लोगों के आत्मसमर्पण करने के बावजूद आज भी य्ाह देश का सबसे बडा आतंकवादी समूह है।
बस्तर के हालात ऐसे हैं कि आदिवासिय्ाों के लिए कोई भी सरकारी सहाय्ाता से लाभान्वित होने के बारे सोचना य्ाानी मौत को सीधा निमंत्र्ाण देना है। नक्सली इन अबोध ग्रामीणों को किसी भी प्रकार का अनुदान, कृपा राशि अनाज य्ाा स्वास्थ्य्ा सुविधाएं तक लेने नहीं देते। ऐसे में इस राहत पैकेज का क्य्ाा मतलब? नक्सल प्रभावित क्षेत्र्ाों में नकसल प्रभाव को खुद मुख्य्ामंत्र्ाी भी स्वीकार करते हैं। इन क्षेत्र्ाों में नक्सली, ठेकेदारों और अफसरों से खुलेआम फ्॥ करोड से ज्य्ाादा सालाना वसूलते हैं और इसकी भरपाई के लिए ठेकेदार और अफसर कहां से कमाते होंगे, य्ाह बताने की आवश्य्ाकता नहीं है। इसमें नेताओं का भी हिस्सा होता होगा, इसमें भी कोई शक नहीं। अब इस फाय्ादे के सौदे को न तो नेता खोना चाहेगा और न ही अफसर और ठेकेदार। आखिर नक्सलिय्ाों की आड में उनकी अपनी तिजोरिय्ाां भी तो भर ही रही हैं।
खैर बात गृहमंत्र्ाालय्ा के पुनर्वास पैकेज की। लगता है गृहमंत्र्ाालय्ा ने नक्सली समस्य्ाा का ठीक से अध्य्ाय्ान नहीं किय्ाा है य्ाा फिर नौकरशाहों ने चिदम्बरम को इस अंधेरे में रखा है कि इस पैकेज के दूरगामी परिणाम होंगे। बल्कि सच तो य्ाही है कि य्ाह य्ाोजना भी समय्ा के साथ अपनी सामय्ािकता खो देगी। होगा बस य्ाह कि इस पैकेज के लालच में कुछ नकली नक्सली, असली हथिय्ाारों के साथ आत्मसमर्पण करेंगे। इससे उनको लाखों रुपय्ाों के साथ जीवनय्ाापन का साधन मिल जाएगा और सरकार अपनी य्ाौजना को भलीभूत होते देख, खुश हो लेगी। पर इन सबमें नकस्ली समस्य्ाा का क्य्ाा?

1 Comment:

Anonymous said...

आपके विचार काफी सराहनीय है। जहां तक मुझे सुनने में आया है कि मदनवाड़ा कांड में नक्सली सीआरपीएफ के जवानों को अपना निशाना बनाने वाले थे, लेकिन इसमें धोखे से पुलिस अधीक्षक पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे शहीद हो गए

नीलम