कभी लाखों लोगों का जीवन संवारने वाले गुजरात के हीरा उद्योग पर, मंदी की ऐसी मार पड़ी कि मंदी का असर कम होने के बाद भी अब लाखों लोगों के सामने रोजी रोटी की समस्या भी मुंह बाये खड़ी है। हीरा तराशने वाले हाथ आज वैकल्पिक रोजगार तलाश रहे हैं ताकि इनके घरों में चूल्हा जल सके। हालात की मार से बेमौत मरते इन कामगारों पर न तो राज्य सरकार को रहम आता है और न ही केन्द्र सरकार को। जीवन क्या है? चलता फिरता एक खिलौना है दो आंखों में, एक से हंसना, एक से रोना है जो जी चाहे, वह हो जाए, कब ऐसा होता है हर जीवन, जीवन जीने का एक समझौता होता है विदर्भ के किसानों की भुखमरी के चलते आत्महत्या का सिलसिला अभी थमा भी नहीं है कि गुजरात के कई जिलों में भी कमोबेश यही स्थिति उत्पन्न हो गयी है। पिछले कई महीनों से यहां लाखों लोगों के घरों में चूल्हा तक नहीं जला। जलेगा तब जब इनके पास पैसे होंगे और पैसे तब होंगे जब रोजगार होगा। पर न तो इनके पास पुराना रोजगार है और न आय का कोई नया जरिया। दूसरों के जीवन में चमक और सौभाग्य सदा के लिए भरने वाले इन लोगों का जीवन आज अंधकारमय है। बात हो रही है मंदी की मार से ठप्प पडे गुजरात हीरा उद्योग के बेरोजगार कारीगरों और उनके परिवार की। आर्थिक मंदी की मार गुजरात के हीरा उद्योग पर भी पड़ी है। यहां की 6547 हीरे की इकाइयों में 4317 बंद हो चुकी हैं और यहां काम करने वाले सभी कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं जिनकी संख्या लगभग 7 लाख सेज्यादा है। राज्य के लगभग नौ जिले इससे प्रत्यक्ष प्रभावित हैं। सूरत, अहमदाबाद, अमरेली, भावनगर, राजकोट, महसेना, पाटन, जूनागढ और बनासकंठा तो इससे प्रभावित हैं पर अन्य क्षेत्रों से आने वाले कामगार और उनके परिवार भी आज दाने-दाने को मोहताज हैं। इन लाखों लोगों की रोजी रोटी की समस्या न तो राज्य सरकार ने सुलझाने का प्रयास किया और न ही केन्द्र ने। दरअसल आर्थिक मंदी का सबसे ज्यादा असर ज्वेलरी उद्योग पर ही पड़ा है। ऐसे में गुजरात का हीरा उद्योग भी इससे अछूता न रह सका। अमेरिका और ब्रिटेन के आयातकर्ताओं के ऑर्डर निरस्त होने के चलते मजदूरों के साथ-साथ छोटी इकाईयों के मालिकों के सामने भी रोजी-रोटी की समस्या आ खड़ी हुई है। फिलहाल हालात में कुछ सुधार जरूर हुआ हैे पर अब भी अधिकांश मजदूरों के घरों में चूल्हा जलना भी मुश्किल है। इसीलिए ये मजदूर अब अपने इस पुश्तैनी काम को छोडक़र, दूसरे कामों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस उद्योग से जुड़े कारीगरों ने ऐसे दिन देखे हैं कि ये खुद तो दूसरा काम तलाश ही रहे हैं साथ ही अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर इस उद्योग से नहीं जोडऩा चाहते हैं। अगर सरकार ने जल्द ही इसपर ध्यान न दिया तो हीरो तराशने की यह कला अपनी अगली पीढ़ी के पास जा ही नहीं पायेगी और कई कालाओं की तरह एक दिन विलुप्त हो जाएगी।
Wednesday, March 17, 2010
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