आजकल रूरल टूरिज्म यानी ग्रामीण पर्यटन अपने पूरे शबाब पर है। चाहे गुजरात के गांव हों या हिमाचल प्रदेश के या फिर राजस्थान, केरल और सिक्किम के इन सभी राज्यों के कुछ चुनिंदा गांवों में पर्यटकों का दिल से स्वागत किया जाता है। यहां लोग गांव को करीब से देखने के सपने को साकार कर सकते हैं। इसके अन्तर्गत लोग ग्रामीणों के बीच गांवों में रहकर उनके जीवन का आनंद ले सकते हैं। पर्यटकों के सपनें को पूरा करने का बीड़ा उठाया है कई सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन ने जो इन दिनों रूरल टूरिज्म की व्यवस्था कराने में व्यस्त है। आजकल पर्यटक विभिन्न स्थानों और संस्कृतियों के बारे में जानने की चाहत रखते है। भारत की विविधता को गांवों के माध्यम से प्रस्तुत कर, पर्यटकों की इसी इच्छा को पूरा करने का प्रयास कर रहा है भारत का पर्यटन मंत्रालय और इसमें उसका साथ दे रहा है संयुक्त राष्ट्र का विकास कार्यक्रम। इसके तहत फिलहाल 36 गांवों को चुना गया है जिसमें से प्रमुख हैं- नामथांग सिक्किम में रांगपो टाउन के निकट नामथांग में पर्यटक बौद्ध परंपराओं की झांकी देख सकते हैं। यहां पर टूरिस्ट को इनटरटेन करने का जिम्मा लिया है हेल्प टूरिज्म नामक संस्था ने जो यहां रूरल टूरिज्म उपलब्ध करती है। नामथांग में पर्यटक ग्रामीणों के घर में रुककर वहां के जीवन को गहराई से अनुभव कर सकते है। सामथर सामथर को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय जाता है सेवानिवृत्त जनरल जिमी सिंह को जो वहां के ग्रामीणों को घर बैठे रोजगार दिलाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने सामथर को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया। पश्चिम बंगाल में कलिमपोंग से 80 किमी दूर सामथर गांव में पर्यटक भूटिया, लेपचा समुदायों की संस्कृति को करीब से जान सकते है। वहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी पर्यटकों का मन मोह लेता है। यहां भी भूटिया, लेपचा एवं अन्य नेपाली ग्रामीणों के घरों में पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था है। लाहुल स्पीति हिमाचल प्रदेश में यह कार्य कर रही है इको स्फीयर नामक स्वंम सेवी संस्था जो स्पीति घाटी में रूरल टूरिज्म उपलब्ध कराती है। यहां पर्यटन के लिहाज से मई से लेकर अक्टूबर मध्य तक का समय उपयुक्त है। यहां पर्यटक याक पर सवारी एवं ट्रेकिंग का मजा ले सकते है। पर्यटकों को अपने घरों में ठहराने से स्थानीय निवासी भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। होदका होदका में शाम-ए-सरहद नामक एक रिसार्ट बनाया गया है, जो गांव में मिट्टी से बने अन्य घरों की भांति है। गुजरात के कच्छ इलाके में भुज के निकट स्थित यह गांव पर्यटकों को लुभाने में बेहद कामयाब रहा है। यहां पर्यटन के बढ़ावा देने में स्थानीय समुदाय ने भी अहम भागीदारी निभाई है। मिट्टी से बने घर यहां पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करते है। घूमने लायक यहां और भी बहुत कुछ है। कच्छ के रन में रेगिस्तान घूमने के अलावा यहां के प्रवासी पक्षियों को भी निहारा जा सकता है। ऐसे ही और भी गांव है जिसकी जानकारी पर्यटकों को भारत के पर्यटन विभाग से मिल सकती है। तो देर किसी बात की अपने बचपन के गांव देखने के सपने को कर डालिए झटपट पूरा।
Thursday, March 4, 2010
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1 Comment:
jankaariparak lekh likhne k liye aapko dhanyawad neelam ji.abhi bahut logon ko iski jankaari nahi hai. darasal hindustn ko dekhna hai to gaaon hi se shuruaat honi chahiye.bharat ka rang dekhna hai to gaaon hi dekhna chahiye.Paryatan ki is shuruaat k liye tourism department badhai ka paatra hai
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