दिलीप कुमार की सायरा बानो यह एक इत्तेफाक है कि महान कलाकार दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो हैं और रहमान यानी दिलीप कुमार की पत्नी का नाम भी सायरा बानो ही है। लेकिन एक बात दोनों में असमान है और वह सायरा का चुनाव। दिलीप साहब ने अपनी सायरा खुद चुनी और रहमान की सायरा को चुना उनकी मां और परिवार ने। एक आम भारतीय लडक़े की तरह उन्होंने अपनी मां पर यह जिम्मेदारी सौंपी। अपनी पसंद उन्होंने एक वाक्य में जाहिर की कि उन्हें ऐसी लडक़ी चाहिए जो भले ही थोड़ी शिक्षित हो, थोड़ी खूबसूरत हो, लेकिन उसमें ढेर सारी इंसानियत और अच्छे व्यवहार का गुण हो। गुजरात के कच्छ प्रांत की सायरा को रहमान की मां ने एक सूफी मंदिर में प्रार्थना करते देखा था। व्यापारिक परिवार की इस कन्या के लिए उसके घर वाले भी योग्य वर की तलाश में थे। सायरा के जीजा जी भी तमिल फिल्मों के एक्टर थे और उनका नाम भी रहमान ही है। और तो और सायरा भी एआर रहमान की फैन में से एक थीं। पहली मुलाकात में तमिल से जुदा भाषा कच्छी बोलने वाली सायरा की भाषा रहमान ने भले ही न समझी हो लेकिन उसमें कुछ ऐसा था जो रहमान को प्रभावित कर गया। 3 घंटे की अपनी पहली ही मुलाकात में रहमान और सायरा, साथ-साथ जिंदगी बिताने का अहम फैसला कर चुके थे। 12 मार्च, 1995 को 27 साल की उम्र में रहमान, सायरा के साथ विवाह सूत्र में बंध गए। आज इनके तीन बच्चे हैं दो बेटियां, खतिजा व रेहाना और एक बेटा रूमी। गरीबों के मसीहा रहमान ने गरीबी को नजदीक से देखा है अत: वह उन तकलीफों से भी वाकिफ हैं जो पैसे के अभाव में झेलनी पड़ती हैं। रहमान आज जरूरत मंदों की हर संभव मदद करते हैं। 2004 से वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल एंबेसडर हैं, जिसमें वह स्टाप टीबी पार्टनरशिप के तहत जुड़े हैं। इसके जरिए विश्व में लोगों को टीबी से बचने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जाता है और इसके इलाज के लिए दवाइयां उपलब्ध कराई जाती हैं। भारत में बच्चों के पुर्नवास और शिक्षा-दीक्षा के लिए भी रहमान समय-समय पर चैरिटी करते रहते हैं। भारत में 2004 में आयी सुनामी से पीडि़त लोगों के पुनर्वास के लिए रहमान ने इंडियन ओशन नामक एलबम बनाया और इसकी सारी कमायी पीडि़तों के नाम कर दी। इसके अलावा संगीत के क्षेत्र में भी रहमान उस हर जरूरतमंद और गरीब की मदद करने का प्रयास करते हैं, जो संगीत सीखना चाहते हैं लेकिन पैसों के अभाव में नहीं सीख पाता। धर्म और रहमान एक वक्त था जब रहमान का मन भगवान को मानने से इनकार करता था लेकिन पीर करीमुल्लाह शाह कादरी या पीर कादरी के सानिध्य में आकर उनका अल्लाह पर भरोसा बढ़ा और उन्होंने अल्लाह के चमत्कार से अभिभूत होकर इस्लाम कबूल कर लिया। पीर कादरी के बाद उन्होंने महबूब आलम और मोहम्मद युसुफ भाई से इस्लाम के बारे में सीखा। आज भी यह दोनों रहमान के धार्मिक गुरु और सलाहकार हैं। रहमान ने न सिर्फ इस्लाम धर्म कबूल किया बल्कि इस पर कायम भी रहे। इस्लाम अपनाने के बारे में उनका स्पष्ट मत है इस्लाम अपनाकर मुझे लगा कि मेरा नया जन्म हुआ है। रहमान पर इस्लाम के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने पहले संगीत संस्थान का नाम सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के नाम पर रखा है। हर सवाल का जवाब-एक मुस्कान रहमान ने कभी भी उन चर्चाओं का हिस्सा बनना लाजमी नहीं समझा जिनमें संगीत की बात न हो। आज वह गोल्डन ग्लोब और आस्कर अवार्ड पाने वाले पहले भारतीय बनकर भी उतने ही शांत हैं जितने तब थे जब उनकी फिल्म चिक्कुबक-चिक्कुबकु हिट हुई थी। फिल्म के हिट होने के बाद जब सुरेश पीटर्स , जो उस समय के मशहूर संगीतकार थे, से किसी पत्रकार ने पूछा कि अब तो रहमान आपके बराबर पहुंच गए हैं तो पीटर्स का जवाब था रहमान का दायरा छोटा है और मेरा बड़ा। वह तमिल फिल्मों तक सीमित है और मैं फिल्मों के साथ एलबम आदि पर भी काम करता हूं। तब रहमान ने इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। जल्द ही पीटर्स सहित दुनिया को उनका जवाब, सोनी के वन्दे मातरम् एलबम के रूप में मिला, जो भारत सहित विश्व के 28 देशों में लांच हुआ। रहमान के दायरे को छोटा कहने वाले पीटर्स आज भी वहीं हैं जहां तब थे और रहमान उन बुलंदियों के छू चुके हैं जहां से सुरेश पीटर्स जैसे सैकड़ों लोग बौने ही नजर आते हैं। अगर रहमान उस वक्त पीटर्स की तरह सवाल जवाब में उलझे होते, तो शायद आज उनका यह मुकाम नहीं होता। रहमान के खास अंदाजों में से एक, हर बात को मुस्कुराहट के साथ टालना भी है ताकि वह अपनी सारी ताकत संगीत-सृजन में लगा सकें।
Monday, March 29, 2010
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