Thursday, December 8, 2011

गरीबी के लिए कुछ भी करेगा

भारत में गरीबी रेखा को लेकर जहां काफी बहस हुई और योजना आयोग की रपट की छीछालेदर हुई, वहीं पड़ोसी देश चीन में स्वयं राष्टï्रपति ने ही इसकी नई परिभाषा दी। देश के ग्रामीण इलाकों में गुजर-बसर कर रहे लोगों को अत्यावश्यक जीवन-यापन को प्रतिबद्घ राष्टï्रपति हू जिंतओ ने गरीबी रेखा का स्तर बढ़ा दिया। हालांकि कहा जा रहा है कि हू जिंतओ ने ऐसा अपनी लोक्िरपयता बचाए रखने के लिए किया है, जिससे आने वाले समय में कोई भी उनके लोकप्रियता पर सवाल न खड़ा कर सके। अब चीन में प्रतिदिन एक डॉलर यानी करीब 50 रुपए से कम कमाने वाले व्यक्ति को गरीब माना जाएगा। अभी तक यह रेखा सीमा 55 सेंट पर थी, लेकिन जिसे चीनी सरकार ने 92 फीसदी बढ़ा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब चार गुना अधिक लोग सरकारी सब्सिडी और प्रशिक्षण के दायरे में आएँगे। हू जिंताओ का कहना है कि लोगों के वेतन में बढ़ती असमानता को रोकने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है, वर्ष 2020 तक चीन में किसी को खाने या कपड़ों के बारे में चिंता नहीं करनी पड़ेगी। जानकारों का कहना है कि गरीबों के लिए इस हितकारी फैसले के पीछे चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है। अगले दो वर्षों में हू जिंताओ के राष्ट्रपति पद से हटने के आसार बताए जा रहे हैं। गद्दी छोडऩे के बाद भी हू जिंताओ चाहते हैं कि उनकी और उनके नज़दीकी राजनेताओं की पैठ बनी रही, वो अब भी चीन में वर्चस्व रखने वाली सेन्ट्रल मिलिट्री कमिशन के अध्यक्ष हैं और इस फैसले से जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते हैं। राजनीतिक प्रेक्षक यह भी कहते हैं कि हू जिंताओ ने अपने वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए ही इस समय यह फैसला लिया है। साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से चीनी सरकार स्थानीय बाज़ार में मांग को बढ़ावा देना चाहती है। गरीब लोगों को सरकारी मदद मिलेगी तो उनके पास आमदनी बढ़ेगी और बाजार में निचले स्तर के सामानों के लिए मांग बढ़ेगी। एक बात और ध्यान रखने लायक है कि चीन की कुल आबादी का 40 फीसदी शहरों में रहता है और 60 फीसदी ग्रामीण इलाकों में। गरीबी रेखा का यह फैसला सिर्फ ग्रामीण इलाकों पर लागू होता है। चीन के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में गरीबी और बेरोजगारी एक बड़ी परेशानी है। हू जिंताओ के सत्ता में आने से पहले चीनी सरकार की नीति दक्षिणी इलाकों पर केन्द्रित थी। गौर करने योग्य बात यह भी है कि गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों को चीन में सब्सिडी, रोजगार के लिए प्रशिक्षण, सस्ती दरों पर कर्ज और ग्रामीण इलाकों में सरकारी मदद से चलनेवाली ढांचागत परियोजनाओं में नौकरी के अवसर मिलेंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले दिनों में शहरों की ओर लोगों को आना घटेगा। अगर दूर भविष्य पर नजर डालें तो कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो चीन के आर्थिक विकास को धीमा कर सकते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि चीन के तेज आर्थिक विकास की वजह से गाँवों में अपेक्षाकृत कम उत्पादक काम को छोड़कर शहरों की ओर आ रहे थे। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बेरी आशनग्रीन चेतावनी देते हैं कि हर तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के विकास की दर का धीमा होना अपरिहार्य है और उन देशों में ये स्थिति जल्दी आ जाती है जहां उम्रदराज लोगों की आबादी बहुत अधिक है। चीन की एक बच्चे की नीति और लोगों औसत उम्र का बढऩा जल्दी ही चीन को इस श्रेणी में ला खड़ा करेगी। वे इस बात से सहमत हैं कि चीन के विकास की दर अब धीमी होगी। ये कहना जरुरी है कि चीन एक बड़ा निर्यातक भी है जो ट्रेड सरप्लस में है। ट्रेड सरप्लस यानी निर्यात से होने वाली उसकी आय आयात में उसके खर्च से अधिक है। लेकिन चीन का आयात लगातार बढ़ रहा है इसलिए ख़ुद वह कई देशों के लिए एक बड़ा बाज़ार बनता जा रहा है। कुछ लोगों को चीन को लेकर संशय भी होता है। भारत की तरह चीन में भी लोग बढ़ती महंगाई से लोग परेशान हैं। चीन के अधिकारी महंगाई को लेकर असुविधाजनक स्थित में जाते जा रहे हैं। हाल ही में कर्ज कम करने के लिए चीन के केंद्रीय बैंक ने कई कदम उठाए हैं। वर्तमान में दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाएं घायल अवस्था में कराह रही हैं और महामंदी के बाद धीरे-धीरे अपने आपको अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही हैं। पश्चिमी देशों के उपभोक्ता और सरकारें अपने आपको कर्ज से मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। ये दोनों ही आने वाले समय में उपभोक्ता सामग्रियों और सेवाओं के बड़े शक्ति होंगे, ठीक उसी तरह जैसे वे पिछले दशक में थे। दूसरी ओर इसके बिल्कुल विपरीत चीन में मंदी के दौर में गति थोड़ी धीमी पड़ी उसके बाद अर्थव्यवस्था अपनी पूरी रफ्तार से चल पड़ी। वर्ष 2007 से 2011 तक चीन ने इतनी वैश्विक आर्थिक उन्नति की है जितनी जी-7 देशों ने मिलकर भी नहीं की।

Friday, November 11, 2011

सावधानी से चुनें हाली-डे पैकेज

अखबारों और इंटरनेट पर पब्लिश होने वाले हॉलिडे पैकेज टूर के लुभावने एड्स कई बार सैर का मजा किरकिरा भी कर देते हैं। ऐसे में जरूरत होती है संभलकर चलने की, ताकि इसमें किए खर्च को लेकर बाद में पछतावा हो। छुट्टियों में मूड फ्रेश करने और माहौल बदलने के लिए तमाम लोग घमूने जाना पसंद करते हैं। फिलहाल अधिकांश पैरंट्स अपने 'चों के साथ हॉलिडे पर जाने की प्लानिंग कर रहे हैं। ऐसे में कई लोग 'छे हॉलिडे पैकेज की तलाश में हैं। हो सकता है कि आप भी बेस्ट हॉलिडे पैकेज चुनने के लिए रोज अखबारों के पन्ने पलट रहे हों या इंटरनेट छान रहे हों लेकिन किसी भी पैकेज के चुनाव से पहले यह ध्यान रखें कि पैकेज में सब कुछ ठीक ठाक तो है, कोई हिडन कंडिशन तो नहीं है। लुभावनेपैकेजमेंकंडिशंसअप्लाई टूरि' सेक्टर का पीक सीजन शुरू हो चुका है और 'यादातर कंपनियां सस्ते पैकेज का प्रचार कर रही हैं, लेकिन पैकेज के इस खेल में कई पेच हैं, जो पैकेज की पूरी जानकारी लेने के बाद ही सामने आते हैं। अक्सर कंपनियां कस्टमर्स को अपनी ओर खींचने के लिए काफी लुभावने पैकेज देती हैं। लोगों को हॉलिडे पैकेज ऑफर करने वाली कंपनियां कई बार हिडन चाजेर्ज को छिपा लेती हैं और कई बार टैक्स नहीं जोड़तीं। इसीलिए लोग सस्ते पैकेज के बहकावे में जाते हैं। अखबारों में काफी बड़े-बड़े फॉन्ट में लुभावने ऐड दिए जाते हैं, ऐड के नीचे बहुत छोटे अक्षरों में लिखा होता है कंडिशंस अप्लाई या शर्ते लागू। कई ट्रैवल कंपनियां अपने ऐड में इस बात का खुलासा नहीं करतीं कि पैकेज के लिए दी जाने वाली रकम में खाने और रहने का खर्च शामिल है या नहीं। और तो और पैकेज की रकम में टैक्स भी नहीं जोड़ा जाता जो बाद वसूला जाता है। कंपनियां अपने कम बजट के पैकेज में केवल आने और जाने का किराया ही शामिल करती हैं। इसलिए ऐड के नीचे बारीक शब्दों में लिखे गए शर्ते लागू पर गौर करना निहायत जरूरी है। भ्रामकजानकारी अक्सर टूर कंपनियां अपना टूर प्रोग्राम कस्टमर को दिखाने से बचती हैं। इसका कारण है टूर पैकेज के जरिएभ्रामक जानकारी देकर लोगों को गुमराह करना और अपना पैकेज बेचना। यही कारण है कि टूर प्रोग्राम दिखाएबिना कंपनियां ऐसे पेपर पर साइन करवा लेती है, जिसपर शर्ते लागू लिखा होता है और कस्टमर बिना देखे साइनकरे उनके जाल में फंस जाते हैं। इसी के चलते कंपनियां मनमानी करती हैं। कई बार तो विदेश के टूर पैकेज केदौरान लोगों को काफी सस्ते होटल में ठहरा दिया जाता है, जो घूमने की लोकेशन से काफी दूर भी हो सकता है। ऐसेमें सही यही होगा कि पहले टूर पैकेज के स्टार और शर्ते लागू का सच जाने फिर पैकेज लें। स्टार में छिपा पैकेज इन दिनों ट्रैवल कंपनियों की ओर से सस्ते पैकेज के नाम पर कई विज्ञापन देखने को मिल रहे हैं। इन पैकेजों में कंपनियां दाम पर स्टार लगाकर नीचे लिख देती है नियम शर्तें लागू जिसपर अक्सर कस्टमर का ध्यान नहींजाता है। पर हकीकत यह है कि पैकेज का असली खर्च कंपनियां इसी स्टार के नीचे छिपा जाती हैं खासकर विदेशी टूर पैकेजो के मामले में। जैसे अखबार में सिंगापुर का चार दिन तीन रात का पैकेज सिर्फ 21,000 रुपए होता है पर सिंगापुर के इस 21 हजार रुपए के पैकेज की असलियत कुछ और ही है। दरअसल पैकेज में कई और खर्चे भी शामिल हैं, जो विज्ञापन में नहीं छापे जाते। वह सभी खर्च मिलाकर उस पैकेज का दाम प्रति व्यक्ति 41 हजार रुपए बैठता, जो काफी ज्यादा है। खेल करेंसी का दरअसल विदेशी पैकेज में तीन करेंसी का खर्च शामिल होता है। पहला भारतीय रुपया, दूसरा अमेरिकी डॉलर और तीसरा उस देश की करेंसी का खर्च, जहां का पैकेज लिया गया है। हां अगर अमेरिका का पैकेज लिया गया है तो तीसरी करेंसी का खर्च शामिल नहीं होता। कंपनियां कंरेसी के इसी खेल के जरिए कस्टमर को बेवकूफ बनाती हैं। अक्सर कंपनियां विज्ञापन में सिर्फ भारतीय रुपए और अमेरिकी डॉलर का ही खर्च बताती हैं। पैकेज में स्थान विशेष की मुद्रा के खर्चे के बारें में कुछ नहींबताया जाता है। इसके अलावा पासपोर्ट चार्ज, वीसा फीस, एयरपोर्ट टैक्स, यात्रा बीमा, मिनरल वाटर, खाना और पानी आदि भी का खर्चा भी इस पैकेज में शामिल नहीं है। यही कारण हैं कि सिंगापुर का 21 हजार का पैकेज 41 हजार रूपए बैठता है। हवाई किराए का खेल कई बार कंपनियां इन पैकेज के प्रचार में सस्ते पैकेज पेश करने दावा करती हैं, लेकिन असल में प्रचार के समय पैकेज का असली खर्च हवाई यात्रा का सच शर्तें लागू या स्टार लगाकर छिपा जाती हैं। अभी हाल में एक टूर कंपनी ने गोवा का 12,000 रुपए का सबसे सस्ता पैकेज देने का दावा किया था, लेकिन उसमें हवाई किराया दिल्ली से होकर मुंबई का था जिसे कंपनी ने जाहिर नहींकिया था। साथ ही पीक सीजन चार्ज, टैक्स आदि भी इसमें शामिल नहीं था। सभी टैक्स, पीक सीजन चार्ज और दिल्ली से हवाई किराया शामिल करने के बाद इस पैकेज की कीमत प्रति पर्यटक 28,000 रुपए हो गई। ऐसे में डिस्कांउट का या सबसे सस्ता टूर पैकेज जैसी कोई बात का मतलब ही नहींरह गया। इस तरह के पैकेज में कैश बैक ऑफर के लिए भी करीब 2-3 महीने पहले बुक करने के साथ पहले पैकेज की पूरी कीमत देनी होती है, तभी ऐसे डिस्काउंट ऑफर का फायदा उठाया जा सकता है। इसलिए इन पैकेजों को लेने से पहले इनमें छिपी कुल लागत को जान लेना जरूरी है। बाक्स प्लानिंग फार परफेक्ट वेकेशन समर वेकेशन्स यानी बिलकुल सही समय, अपने दिमाग को ठंडा और शांत बनाने का। वह भी एक बेहतर हॉलीडे प्लान के साथ। टूर पैकेज का सफर सुहाना और यादगार रहे इसके लिए थोड़ी मशक्कत सफर शुरू करने से पहले ही कर लेनी ठीक होगी- सही पैकेज पैकेज चुनते समय इस बात का खयाल रखें कि आपको होटल, आने-जाने का किराया, खाने का खर्चा अलग से देना पड़े। सभी चीजों के लिए एकमुश्त पैसा जमा करना 'यादा सही होगा। एक आदर्श टूर पैकेज आपके खर्चे को 20-25 फीसदी तक कम कर सकता है। जांचे परखें इन दिनों बहुत-सी कंपनियां समर वेकेशन पैकेज ऑफर दे रही हैं। कोई भी पैकेज लेने से पहले पूरी तरह से जांच-पड़ताल कर लें। सभी नियम शर्ते ध्यान से देख लें। जरूरी नहीं कि कोई एक कंपनी आपको जो सुविधाएं दे रही हो, वैसी ही सुविधाएं दूसरी कंपनी भी दे। ऐसे में पूरी तरह जांच-परख कर ही कोई पैकेज लें। खर्चे की तुलना यह हमेशा जरूरी नहीं होता कि टूर पैकेज लेने से आपको कोई 'यादा छूट मिलती हो। लोग कई बार ट्रेवल एजेंसी के विज्ञापनों से ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा पाते कि इन पैकेज से उन्हें फायदा होगा या नहीं। ऐसे में आप अलग से वहां जाने का खर्चा मालूम करके दोनों की तुलना कर सकती हैं। चूज करें ग्रुप टूर ग्रुप टूर में ट्रेवल एजेंसी या टूर ऑपरेटर आपको सस्ते-से सस्ते विकल्प के बारे में बता सकते हैं। अगर आपकी दिलचस्पी कुछ अलग है जैसे आपको सिर्फ स्त्रियों का साथ चाहिए या हेल्थ टूर, एजुकेशनल टूर या एडवेंचर टूर जैसा कुछ चाहती हैं तो ये सुविधाएं भी आपको मिल सकती हैं। अगर आप अकेले घूमने का लुत्फ उठाना चाहती हैं तो भी अपनी जरूरतों और बजट के हिसाब से सलाह ले सकती हैं। वेबसाइट से मार्गदर्शन होटल की वेबसाइट पर जाएं और कॉस्ट चैक करें। पैकेज में दिए गए होटल के चार्ज की तुलना उसके असल चार्ज से करें। बड़ा आसान-सा तरीका है। ट्रेवल एजेंसी की बहुत-सी साइट्स आपको मिल जाएंगी जिसमें कई तरह के पैकेज मिलेंगे। इससे आपको तुलना करने में भी आसानी होगी और इस नतीजे पर पहुंचना भी आसान होगा कि पैकेज आपके लिए फायदेमंद है या नहीं। सस्ती हवाई यात्रा ऑनलाइन ट्रेवल सर्च इंजन जैसे मेकमायट्रिप डॉट कॉम, क्लिअरट्रिप डॉट कॉम, यात्रा डॉट कॉम आदि चैक करते रहे और कई योजनाओं का फायदा उठाएं। कई बार एक महीना या तीन सप्प्ताह पहले बुक करने पर आपका हवाई सफर सस्ता भी पड़ सकता है। त्योहारों या ऑफ सीजन के समय भी एअर लाइंस टैरिफ कम करने की योजनाएं निकालती रहती हैं। ऐसी सीधे एअरलाइन पोर्टल से संपर्क करना भी 'छा विकल्प है। हकीकत जिस जगह जाना तय किया है उसके बारे में जानकारी हासिल करें। नेट, किताबें और आपके वो करीबी दोस्त जो वहां घूम चुके हैं, उनके अनुभव काम आएंगे। एक लिस्ट तैयार करें, साथ ही पसंद के हिसाब से प्राथमिकताएं भी तय करें। अंत में कहां ठहरना है, कहां-कहां घूमना है, यह सारी प्लानिंग पहले से ही कर लें। अंतिम पलों के लिए कुछ भी नहीं छोड़े। हां एडवेंचर ट्रिप में जरूर लास्ट मिनट डील की जा सकती है।

Wednesday, August 31, 2011

विकास को अवरूद्घ करती बिजली

नीतीश सरकार सूबे में विकास की बात करती है। आए दिन विदेशी प्रतिनिध मंडलों से मीटिंग करके निवेश की बात करती है, उद्योग लगाने की बात करती है, लेकिन गरमी शुरू होते ही बिजली ने भी गच्चा देना शुरू कर दिया है। बिजली की कमी को चलते उद्योग-धंधे कौन लगाएगा और चलेंगे कैसे, यह बड़ा सवाल है बिहार से बाहर रहने वाले लोगों की नजर में राज्य में विकास की बयार बह रही है, मगर बिहार में रहने वाले लोगों को जब झुलसती गरमी में बिजली नहीं मिलने का अंदेशा है तो उनके लिए विकास की बात बेमानी हो जाती है। खुद प्रदेश सरकार भी मानती है कि प्रदेश में बिजली की किल्लत है। अलबत्ता आने वाले वर्षों में इस कमी को पूरा करने का आश्वासन जरूर दिया जाता है। आज का सच यही है कि बिहार में बिजली संकट अपने चरम पर है। प्रदेश सरकार का सीधे तौर पर आरोप है कि केेंद्र सरकार से बिजली खरीदने के लिए हुए करार का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है। यही वजह है कि यह संकट कायम है। दूसरी ओर, राज्य के विपक्षी दलों के लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी के कारण ही बिजली-पानी को लेकर समस्या उत्पन्न हो गई है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो केेंद्र सेक्टर से राज्य को हर हाल में 1695 मेगावॉट बिजली मिलनी चाहिए। अगर बिजली संयंत्रों में कोई खराबी भी आ जाए, तो भी इसकी भरपाई करनी होती है, लेकिन इस करार का लगातार उल्लंघन होता रहा है। एक अधिकारी का कहना है कि राज्य में ठंड के दिनों में 2,100 से 2,400 मेगावॉट तथा गर्मी के दिनों में 2,500 से 3,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होती है, लेकिन पिछले कुछ समय से केेंद्रीय सेक्टर के तापीय एवं पनबिजली घरों से 700 से 900 मेगावॉट बिजली ही मिल पा रही है। राज्य के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव भी मानते हैं कि बिजली के मामले में राज्य पूरी तरह केेंद्र पर निर्भर है और केेंद्र सरकार है कि मदद ही नहीं कर रही है। श्री प्रसाद के अनुसार राज्य सरकार ने अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अब बाजार से बिजली खरीदने का फैसला किया है। राज्य में तापघर लगाने की भी पहल की जा रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां विपक्षी दलों ने बिजली समस्या को प्रमुख मुद्दा बनाया था, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगले कुछ वर्षों में बिजली संकट के समाधान का वादा किया था। बहरहाल, गर्मी की दस्तक के साथ ही बिजली संकट और बढऩे का अंदेशा है। बिजली संकट को लेकर राज्य के कई इलाकों में लोग सडक़ पर उतरने लगे हैं। बिजली को लेकर पूरे प्रदेश में कोहराम मचा हुआ है। राज्य की राजधानी पटना सहित भोजपुर, नवादा, मुंगेर, दरभंगा और भागलपुर जिलों में बिजली को लेकर लोग सडक़ों पर उतरने लगे हैं, जबकि वहीं राज्य विद्युत बोर्ड ने चरणबद्ध तरीके से सभी इलाकों में बिजली आपूर्ति करने का दावा किया है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष पीके राय के अनुसार, राज्य के सभी इलाकों में चरणबद्ध तरीके से बिजली आपूर्ति करने का निर्देश दे दिया गया है। इसके लिए अधिकारी निगरानी भी कर रही हैं। विद्युत विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो शुरू से ही बिजली के मामले में राज्य पिछड़ा रहा है। वर्ष 2009-10 में राज्य में बिजली की अधिकतम मांग 2,500 मेगावॉट थी तो अधिकतम आपूर्ति 1,508 मेगावॉट थी। वर्ष 2008-09 में अधिकतम मांग 1,900 मेगावॉट थी तो आपूर्ति सिर्फ 1,348 मेगावॉट थी। इसी तरह 2007-08में राज्य के लिए 1,800 मेगावॉट की बिजली आवश्यक थी तो आपूर्ति 1,244 मेगावॉट ही थी। अनुमान है कि वर्ष 2012-13 तक राज्य को 4,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होगी। राज्य विद्युत बोर्ड के प्रवक्ता हरेराम पांडेय कहते हैं कि पिछले एक महीने से केेंद्रीय सेक्टर से विद्युत आपूर्ति में कोई सुधार नहीं हो रहा है। इस कारण राज्य में विद्युत संकट उत्पन्न हो गया है। दूसरी ओर कहलगांव और कांटी तापघरों में बिजली उत्पादन पूरी तरह ठप है। कोयला और पानी की समस्या तथा तकनीकी कारणों से ताप और पनबिजली घरों की करीब आधा दर्जन इकाइयों में उत्पादन नहीं हो रहा है। बरौनी तापीय विद्युत केेंद्र से सिर्फ 50 मेगावॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि केन्द्र सेक्टर से 800 मेगावॉट बिजली मिल रही है, जिसमें से 350 मेगावॉट बिजली अनिवार्य सेवा के तहत है। वर्तमान में पूरा बिहार बिजली संकट से जूझ रहा है। प्रतिदिन किसी न किसी क्षेत्र में बिजली की मांग को लेकर लोग सडक़ पर उतर रहे हैं। इस मामले में सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। पिछले विधानसभा सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्षी सदस्यों द्वारा सदन में हंगामे के बाद ऊर्जा मंत्री ने स्पष्ट किया था कि बिजली संकट के जल्द समाधान का कोई उपाय फिलहाल सरकार के पास नहीं है।

Tuesday, July 26, 2011

राजनीति आड़े आ रही है दिल्ली के विकास में

राजनेता यदि सही मायने में दिल्ली का विकास करना चाहें तो इसका विकास हो जाएगा, बशर्ते सियासतदान उसमें दखल अंदाजी नहीं करें। दिल्ली में 22 किलोमीटर लंबी गंदा नाला बन चुकी यमुना नदी के सफाई के नाम पर जिस प्रकार से करोड़ो रुपये बर्बाद किये जा चुके हैैं, वह दुखद स्थिति है। दुखद इस बात को लेकर नहीं कि करोड़ो रुपये जो किसी न किसी रूप में जनता का था, बर्बाद किया जा चुका हैै बल्कि इसलिए कि करोड़ो रुपये बहाने के बाद भी यमुना का कायाकल्प नहीं हो पाया। आज की तारीख में भी यदि सरकार चाहे और लीडर लोग अपनी वोट बैंक की राजनीति न घुसाएं तो एक भी पैसे की सरकारी मदद लिए बिना पौराणिक यमुना नदी का लंदन की टेम्स नदी की तरह कायाकल्प हो सकता है। दिल्लीवासियों का अपने शहर क ो विश्वस्तरीय बनाने का सपना तब तक हक ीकत में नहीं बदल सकता जबतक यहां वोट की राजनीति होती रहेगी। दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर जैसा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री बार-बार कहती है कि दिल्ली को पेरिस सरीखाा शहर बनाना हैै, बनाने के लिए लीडर और सरकार को दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा और मिलकर काम करना होगा। अनधिकृत कालोनियों और एनक्र ोचमेंट से छुटकारा पाना होगा। मेरी समझ में यमुना को साफ करना बहुत ही आसान काम है। शुद्घि के काम में एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। मेेरी समझ में यमुना के तीन सौ मीटर के आस-पास किसी भी तरह के निर्माण की कोर्ट की बंदिश का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है। अहमदाबाद में साबरमती नदी मामले में जैसी पहल गुजरात सरकार ने की हैै, उसी तर्ज पर यमुना के लिए भी दिल्ली में प्रयास होने चाहिए। सिर्फ करोड़ों रुपये बहाने से विकास नहीं होने वाला हैै। एक तरफ सरकारी नीतियां और दूसरी तरफ कई एजेंसियों के घालमेल के कारण यमुना की सफाई उलझ कर रह गई हैै। कितनी हैरत की बात है कि सरकार ने कोर्ट में भी माना है कि पिछले वर्षो के भीतर यमुना की सफाई के लिए उसने तकरीबन 1700 करोड़ रुपये खर्च कर दिये हैं। इसका परिणाम आज तक क्या निकला है ? यह मेरे सामने भी है और आपके सामने भी। बीते दिनों मैंने भी एक अखबार में खबर पढ़ा था कि यमुना नदी की सफाई के नाम पर और 3150 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बन गई हैै। जबकि इस मद में पहले ही करीब 1200 करोड़ रुपये बहाए जा चुके हैं और नतीजा सिफर रहा है। हमारी-आपकी मेहनत की कमाई से जुटाई सरकारी राशि को किस प्रकार से खर्च किया जा रहा हैै, यह आप भी सोंचे और मैं भी। यमुना में प्रदूषण के स्तर की बात की जाए तो दिल्ली के 18 बड़े नाले 3296 मिलियन गैलन मीटर सीवर प्रतिदिन सीधे नदी में गिरते हैं। दिल्ली में यमुना के पानी को ई श्रेणी में रखा गया है, जिसमें नहाना भी बिमारियों को न्यौता देना है। सीवर के अलावा शहर की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला प्रदूषित पानी भी नदी में गिरता है। यह जानना दिलचस्प है कि वर्ष 1994 से 1999 के बीच दिल्ली सरकार ने सीवर ट्रीटमेंट सुविधा को मजबूत करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड को 284.98 करोड़ रुपये का ऋण मुहैया कराया। इसके बाद वर्ष 1999 से 2004 के बीच सरकार ने इसी काम के लिए 598.84 करोड़ रुपये जारी किये लेकिन जल बोर्ड इसमें से 439.60 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया। जबकि दिल्ली राज्य औद्योगिक व बुनियादी विकास ढांचा निगम ने 147.09 करोड़ रुपये खर्च किए। उधर यमुना एक्शन प्लान के तहत दिल्ली को करीब 170 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराई गई। इसके अलावा भी अलग-अलग मदों में काफी राशि खर्च की गई। इतना कुछ खर्च करने के बाद भी यदि सरकार यमुना को साफ नहीं बना पाती तो मैं क्या कहूं।

Tuesday, July 19, 2011

faishan ke sath katamtaal karti theva kala

राजस्थान की पांच सदी पुरानी थवाई कला इतिहास और विरासत के पन्नों से निकल कर अब रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर है। एक ही परिवार के कंधों पर इस विरासत को संभालने का जिम्मा है। राजस्थान की थेवा कला भी कमाल की है। एक ही परिवार के सदस्यों को सर्वाधिक राष्ट्रीय पुरस्कार पाने के लिए लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड्र्स -2011 में शामिल होने का गौरव है। प्रतापगढ़ के एकमात्र राज सोनी परिवार को थेवा कला को बचाए रखने और नए स्वरूप में ढालने का सौभाग्य हासिल है। राजस्थान में राज्याश्रय में पलने वाली हस्तकलाओं ने सारे विश्व में अपना डंका बजाया। प्रतापगढ़ प्रदेश की ऐसी ही विश्व प्रसिद्ध कला नगरी है। अखिल भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक गौरव प्राप्त प्रतापगढ़ सिर्फ एक कला के कारण लोगों की निगाहों का केंद्र है। लोग दूरदराज से खास तौर पर थेवा के आभूषण और वस्तुएं लेने प्रतापगढ़ चले आते हैं।राज सोनी परिवार ने आठ राष्ट्रीय और दो राज्य स्तरीय अवार्ड प्राप्त कर अपनी परंपरागत थाती थेवा कला को नए स्वरूप में ढालने का सौभाग्य हासिल किया है। यह अपने आप में अनूठा है कि इन्साइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका में उल्लिखित थेवा कला के मर्मज्ञ सिर्फ प्रतापगढ़ में ही बसते हैं। रामायण में उल्लेख रामायण में जिन 64 कलाओं का उल्लेख है। उनमें वर्णित थवाई कला ही आज की थेवा कला है। कर्नल टॉड और गौरी शंकर ओझा ने भी राजस्थान के इतिहास में इसका उल्लेख किया हैं। 19वीं सदी में हेनर की भारत यात्रा के दौरान थेवा कला से काफी प्रभावित हुए थे। उनके यात्रा वृतांत में भी इसका उल्लेख है। पीढिय़ों की धरोहर सदियों पूर्व मालवा से नाथू सोनी देवगढ़ में आ बसे थे। देवगढ़ तब प्रतापगढ़ रियासत की राजधानी था। कला पारखी राजा ने सोनी परिवार को ‘राज सोनी’ का दर्जा दिया। 1775 में तत्कालीन नरेश सांवतसिंह ने इस परिवार को तीन सौ बीघा जमीन जागीर स्वरूप दी। प्रतापगढ़ में करीब दस पीढिय़ां इसी कला की बदौलत अपना जीवन यापन करती रही हैं। राजकीय संरक्षण के दिनों में राज सोनी परिवार ने इस कला में निखार लाने का प्रयास किया और इससे न सिर्फ प्रतापगढ़ या राजस्थान को ही बल्कि भारत को भी गौरवान्वित करके अनूठी पहचान भी बनाई। बारीक कारीगिरी हाथी, घोड़े, शेर, शिकारी, फूल, पत्ती, राधा-कृष्ण, इतिहास और प्रकृति से जुड़े सैकड़ों विषय जब सोने और कांच की जड़ाऊ नक्काशी के बीच दिखाई देते हैं तो एकबारगी आंखें चुंधिया जाती हैं। लोग थेवा की आकर्षक, कलात्मक वस्तुओं और आभूषणों को देखते हैं तो यह सोच कर दंग रह जाते हैं कि आखिर कांच के भीतर सोने की यह कारीगरी की कैसे जाती है? अब तो थेवा कला में छोटी डिब्बियां, ऐश-ट्रे, इत्रदान, सिगरेटकेस, टाइपिन कफलिंक्स, अंगूठी, बटन, पेंडुलम, पायल, बिछिया, बॉक्स आदि जाने कितनी चीजें बड़े ही कौशल से बनाई जाती हैं। थेवा की रचना प्रक्रिया अनोखी है। सोने, चांदी, कांच और कलाकारी के मिश्रण से बनती हैं थेवा की चीजें। थेवा कला का चित्रकला से गहरा नाता है। इसलिए थेवा कलाकार का चित्रकला में पारंगत होना जरूरी है। परंपरागत चित्रों का अंकन थेवा की खास शैली है। शिकार के विविध पक्ष, रासलीला, पशु-पक्षी, राधाकृष्ण की लीलाएं फूल-पत्तियां, ढोलामारू आदि का सूक्ष्म चित्रांकन नींव के वे पत्थर हैं जो सुंदर थेवा कलाकृति का आधार बनते हैं। सोने के पतले पतर पर सबसे पहले टांकल (कलाकारों की विशिष्ट कलम) से आकृति उकेरी जाती है। पारंपरिक भाषा में इसे कंडारना कहते हैं। कंडारने के लिए टांकली को डंडी के सहारे बहुत हलके हाथ से चलाते हैं और चित्र की खुदाई हो जाती है। कंडारने के बाद आकृति के आसपास से फालतू सोना हटा दिया जाता है। इस प्रक्रिया को जाली बनाना कहते हैं। डिजाइन चीजों के आधार पर तय किए जाते हैैैं। थेवा कलाकारों ने विभिन्न उपादानों में रासलीला के विभिन्न दृश्यों, महाराणा प्रताप के जीवन चरित्र, शिकार, विवाह आदि की पूरी प्रक्रिया को अपनी कला के जरिए सजीव किया है। चित्र उकेरने और जाली बनाने के लिए यदि सोने के पतर पर सीधे ही काम किया जाए तो उसके टूटने का खतरा रहता है, इसलिए इसे चांदी के फ्रेम में घड़ कर, चांदी की तह से लकड़ी के तख्ते पर राल (गोंद का एक रूप) की मदद से चिपका देते हैं ताकि कलाकार को ठोस आधार मिल सके। ठोस धरातल मिलने पर कंडारने और जाली बनाने में कोई परेशानी नहीं होती। चांदी का फ्रेम और परत भी इसी उद्देश्य से लगाते हैं ताकि सोने की नाजुक और पतली परत सुरक्षित रहे। कलाकार चित्र बनाने में सारा हुनर लगा देता है, क्योंकि आगे चल कर यही वस्तु के सौंदर्य को सही आकार देता है। जाली का डिजाइन बनने के बाद असली प्रक्रिया शुरू होती है। यहां तक का काम तो कोई भी सोनी आसानी से कर सकता है, परंतु जालीदार सोने की परत को कंाच पर फिट करने का काम बहुत सावधानी का होता है। यह प्रक्रिया भी गुप्त है। अब लकड़ी के तख्ते की राल को गरम करके चंादी-सोने के पतर को उतार लेते हैं। एसिड में डुबो कर सोने की परत का इंप्रेशन कांच पर लिया जाता है। कांच बेल्जियम का होता है। इसके बाद गुप्त पद्धति से कांच को सोने और चंादी के फ्रेम के बीच फिट कर दिया जाता है। पंरपरा सिमटा दायरा थेवा कला एक ही परिवार की धाती है। परिवार के सिर्फ पुरुष सदस्य इसे अति गोपनीयता से बनाते हैं। किसी और को बताना या सिखाना तो दूर की बात है, घर की लड़कियों से भी यह कला गुप्त रखी जाती है ताकि शादी के बाद वे इसे ससुराल में न बता दें। इस कला का उद्भव कैसे और कहां से हुआ? आज के संदर्भ में इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ इतना ही है कि यह कला करीब 500 वर्ष पुरानी हैै । राज सोनी परिवार के पूर्वज नाथू जी इसके आदि पुरुष थे। आज जब परंपरागत कलाकारों की प्रगति के लिए इतने प्रयास किए जा रहे हैं, तो थेवा कलाकार अपनी परंपरा के दायरे में उलझे हैं, ऐसा क्यों है? यह प्रश्न अपनी जगह सही है, पर राजसोनी परिवार का मानना है कि थेवा उनके लिए थाती है, धरोहर है। उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है कि वे परंपरावादी हैं। इसी कला ने तो राजसोनी परिवार को विश्व के नक्शे पर खास पहचान दी है। उनके परिवार के प्राय: सभी लोगों को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिले हैं। उनके लिए यह कम गौरव की बात नहीं है कि लोग प्रतापगढ़ को थेवा या उनके परिवार के नाम से पहचानते हैं। थेवा से बने सामान में सबसे ज्यादा टाप्स और लॉकेट बिकते हैं। वैसे नेकलेस, टॉप्स और अंगूठी का सेट भी लोग पसंद करते हैं। डिब्बियां भी ज्यादा बिकती हैं। एक सेट में करीब 17 ग्राम सोना लगता है और यह सोने की कीमत के हिसाब से बिक जाता है। थेवा कलाकार जब बेचने के हिसाब से माल बनाते हैं तो छोटे आइटम ज्यादा बनाते हैं। पुरस्कार वगैरा या फिर ऑर्डर पर बड़े आइटम भी बनाते हैं। बड़ी चीजों मे मंजे हुए कलाकारों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए बड़े आइटम खास मौके पर ही बनते हैं। आज हर क्षेत्र में नई तकनीक और नए औजार आ गए हैं, परंतु थेवा कलाकारों के कामकाज में बदलाव नहीं आया है। औजार वही हैं, चीजें वही हैं, हां, ग्राहक जरूर बदले हैं। पहले राजा-महाराजा ग्राहक थे, अब सेठ-साहूकार या सरकार। पहले माल तौल से बिकता था, अब नग के हिसाब से। झलाई का काम पहले कोयले की सिगड़ी पर होता था अब खास तरीके के स्टोव पर। अब साधारण लोग भी थेवा के जेवर खरीदने लगे हैं, क्योंकि इनमें नाममात्र का सोना होता है। इसलिए हर हाल में कीमत कुछ कम हो जाती है। थेवा कलाकार इसीलिए सारा माल सोने का नहीं बनाते हैं। ऊपर सोना और नीचे चांदी लगाते हैं ताकि आम आदमी ले सके, पर यदि कोई कहे तो सारा कुछ सोने से भी बनाते हैं। सोने की कीमतों में बढ़ोतरी से थेवा कलाकारों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग सकता है, परंतु कलाकारों का मानना है कि भविष्य बहुत अच्छा है। यदि सोना महंगा होता है तो कम सोने में बने होने के कारण थेवा के आभूषण बहुत ही लोकप्रिय होंगे। पहले के मुकाबले थेवा के माल की खपत बहुत बढ़ी है। पर सवाल यही है कि विरासत को क्या सिर्फ एक परिवार का धाती बनाकर रखना सही है। अगर राज सोनी परिवार ऐसा न करता तो शायद यह कला किसी और बुलंदी पर होती।

Tuesday, June 21, 2011

गोल्ड लोन लेने से पहले

गोल्ड लोन सोने के गहने या शुद्ध सोना जैसे ईंट आदि के बदले मिलता है। गोल्ड लोन सस्ता नहीं है। यह तभी लेना चाहिए जब आप निश्चित हों कि कर्ज की रकम भर सकते हैं। जरूरी नहीं है कि जिस सोने को गिरवी रखकर लोन लिया जा रहा है, उसे घोषित किया हो, पर अगर सोना और लोन ज्यादा हो तो आयकर वाले आपके पीछे पड़ सकते है। साथ ही अगर समय पर लोन चुकाया जाए तो कम रकम के लिए आप महंगे गहनों को गंवा सकते हैं। ‘जब घर में पड़ा है सोना तो काहे का रोना।’ आजकल टीवी और रेडियो पर यह लुभावना विज्ञापन अक्सर सुनाई पड़ता है। इसे देखकर लगता है कि जब भी आपको रुपयों की जरूरत हो तो गोल्ड लोन लेना कितना आसान और साधारण माध्यम है। आप एकदम और कभी भी लोन ले सकते हैं। पर क्या वाकई गोल्ड लोन लेना अच्छा, आसान और सुरक्षित है? आजकल अभिनेता अक्षय कुमार टीवी और रेडियो के विज्ञापनों में मन्नापुरम फाइनेंस के गोल्ड लोन के लिए यह जुमला कहते हुए नजर आते हैं। जिसे देकर लगता है कि लोन लेना कितना सरल है पर गोल्ड लोन जितना साधारण दिखता है कि बस अपने गोल्ड को गिरवी रखा और उसके बदले में आनुपातिक रूप में फाइनेंस कंपनी लोन दे देती है, यह उतना साधारण भी नहीं है। इसमें बहुत सारे जोखिम और कई कमियां हैं। गोल्ड लोन आपके सोने के गहने या शुद्ध सोना जैसे कि ईंट आदि को गिरवी रखकर दिया जाता है। और यह जरूरी नहीं है कि जिस सोने को आप गिरवी रखकर लोन लेने जा रहे हैं, उसे आपने घोषित किया हो, परंतु अगर सोना ज्यादा कीमत का हो और लोन भी ज्यादा हो तो आयकर महकमा बैंकों और फाइनेंस कंपनियों से जानकारी लेकर आपके पीछे पड़ सकता है। बहरहाल, गोल्ड लोन एक ऐसा उत्पाद है जो कि बहुत ही जल्दी आपको मिल जाता है। जल्दी से लोन मिलने का एकमात्र कारण है कि यह आपको सोने को गिरवी रखकर मिलता है। इसमें कर्ज लेने के लिए तमाम तरह की दूसरी औपचारिकताएं पूरी नहीं करनी पड़ती हैं। गोल्ड लोन की रकम सोने की मात्रा और शुद्धता के ऊपर निर्धारित की जाती है। लेकिन यहां पर सबसे बड़ी बात यह है कि गोल्ड लोन देने वाली संस्थाएं इस बात का ध्यान नहीं रखती हैं कि कर्ज लेने वाला कर्ज चुका भी पाएगा या नहीं? सोने के मूल्यांकन के सभी कंपनियों के पैमाने अलग-अलग होते हैं, अगर आपका सोना हालमार्क है तो उसकी कीमत अच्छी आंकी जाएगी और आपको ज्यादा लोन मिल पाएगा। परंतु अगर सोना हालमार्क नहीं है तो आपको बहुत सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि आपके ज्यादा कीमत वाले सोने का मूल्यांकन बहुत ही कम किया जा सकता है और आपका सोना जो कि कीमत में बहुत ज्यादा है उसे कर्ज देने वाली संस्था गिरवी रख लेगी। गोल्ड लोन केवल सोने के गहनों के बदले ही मिल सकता है। अगर गहने में किसी प्रकार का कोई महंगा रत्न आदि जड़ा हुआ है तो उसकी कीमत नहीं आंकी जाती है, और गहने के तोल में रत्न आदि का भार कम कर दिया जाता है। मूल्यांकन केवल सोने का ही किया जाता है। आपको लोन में कितनी रकम मिल सकती है यह उस सोने की मात्रा और शुद्धता पर निर्भर करता है, जो कि गिरवी रखा जाना है। कर्ज सोने के मूल्यांकन का 60 से 100 फीसद तक हो सकता है। यह सब तो ठीक है, परंतु यहां सोने के मूल्य के अनुपात में जिस पर लोन दिया जा रहा है, उसके लिए बाजार का अपना एक स्वाभाविक जोखिम है। जैसे कि बाजार में पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला कि सोना कभी बहुत ज्यादा ऊपर पहुंच गया और फिर एकदम कम भाव पर आ गया। सोने के भाव में कमी होने पर कर्ज देने वाली कंपनी और कर्ज लेने वाला दोनों जोखिम में आ जाते हैं। बाजार में आजकल यही सोचा जाता है कि सोने का भाव केवल ऊपर ही जाएगा जो कि बाजार और ऐसी संस्थाओं के लिए बहुत बड़ा जोखिम है। गोल्ड लोन की अवधि साधारणतया एक महीने से लेकर दो बरस तक की होती है और अगर आपको लोन की अवधि बढ़ानी है तो बढ़ा भी सकते हैं, परंतु उसके लिए ये संस्थाएं शुल्क के नाम पर कुछ अतिरिक्तपैसा आपकी जेब से निकाल लेती हैं। गोल्ड लोन पर ब्याज दर 11 से लेकर 28 फीसद प्रति वर्ष तक हैं। ब्याज दर गोल्ड लोन की रकम पर निर्भर करती है, जितना सोना आपने गिरवी रखा है और उसके बदले में मिलने वाली रकम अगर ज्यादा होगी तो ब्याज ज्यादा ब्याज और रकम कम होगी तो ब्याज भी कम। साथ ही ब्याज की दर निर्भर करती है गोल्ड लोन के अनुपात पर, अगर अनुपात ज्यादा है तो ब्याज ज्यादा होगा और अगर कम अनुपात होगा तो ब्याज करीब 12 फीसद होगा। ज्यादा समय के लिए ज्यादा ब्याज देय होता है और कम समय के लिए कम ब्याज देय होता है। कर्ज देने वाली संस्थाओं और बैंकों को सुनिश्चित करना होता है कि सोना शुद्ध है और नकली नहीं है। अगर वे यह सुनिश्चित नहीं कर पाती हैं तो उनके लिए तो पूरा कर्ज ही घाटे का सदा बन जाता है। ब्याज दर के अलावा अतिरिक्तशुल्क क्या है? कर्ज लेने वाले को इसका पता भी पहले ही लगा लेना चाहिए। अतिरिक्तशुल्क जैसे कि प्रोसेसिंग चार्जिज, समय के पहले कर्ज अदा करने पर शुल्क जो कि गोल्ड लोन के 0.5 से एक फीसद तक कुछ भी हो सकता है। फिर अगर लोन को रिन्यूवल करवाना है तो लोन की अवधि के अनुसार उसका भी अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है। अगर इसी दौरान कर्ज लेने वाले को कुछ हो जाए तो कर्ज देने वाला उसके लिए बीमा करवाते हैं, जिससे लोन की रकम भरी जा सके और सोना कर्ज लेने वाले के परिवार को लौटा दिया जाता है। बीमे का शुल्क भी अतिरिक्त होता है। गोल्ड लोन अधिकतर ईएमआई आधारित नहीं होता है। लोन की अवधि में कभी भी भुगतान किया जा सकता है। जैसे कि अगर एक वर्ष के लिए लोन लिया है तो आप एक वर्ष में उस लोन का भुगतान कभी भी कर सकते हैं। गोल्ड लोन में डिफाल्टर दर बहुत ही कम होती है। कर्ज लेने वाले तीस फीसद लोग तो उसी माह में लोन चुकता कर देते हैं। बाजार में गोल्ड लोन में डिफाल्टर दर दो फीसद से भी कम होती है। अगर कोई डिफाल्टर होता भी हैतो कर्जदाता कंपनी या बैंक गिरवी में रखा गया सोना या गहना बेचकर अपनी रकम वसूल कर लेते हैं। लेकिन गिरवी रखे गए सोने की नीलामी की प्रक्रिया बहुत लंबी है। गहने या सोने की नीलामी करने से पहले डिफाल्टर को रजिस्टर्ड पत्र भेजा जाता है, साथ ही उनसे बातचीत करके मामले को सुलझाने की कोशिश की जाती है, उन्हें कहा जाता है कि कम से कम ब्याज तो चुकाएं। फिर उन्हें कर्ज चुकाने के लिए और समय देने की कवायद शुरू की जाती है। कुल मिलाकर गोल्ड लोन सस्ता लोन नहीं है। और आपकोगोल्ड लोन तभी लेना चाहिए जब आप निश्चित हों कि निश्चित समय के बाद आप कर्ज की रकम वापस भरकर गोल्ड लोन चुका सकते हैं। हां, और किसी लोन से यह लोन लेना बहुत ही सरल है और लोन जल्दी भी मिल जाता है और अगर समय पर लोन नहीं चुकाया जाता है तो आप अपने महंगे सोने के गहनों को कम रकम के लोन के चक्कर में गंवा सकते हैं।

Sunday, April 3, 2011

ये पल वर्षो तक याद रहेंगे

Wednesday, March 9, 2011

नई इबारत गढ़ती नाजुक उंगलियां

सफलता के नए आयाम स्थापित करती नए जमाने की नारी अपनी चिपरिचित अबला और बेचारी वाली छवि को तोड़ हर फील्ड में अपनी पस्थिति दर्ज करवा रही हैं। अब तो आलम यह है कि पुरुषों के तथाकथित पौरूष प्रदर्शन की फील्ड में भी महिलाओं का दबदबा बढ़ा है। महिलाओं की इसी सफलता को सलाम- पढ़-लिख कर क्या करना है, आगे चलकर तो घर ही संभालना है, शादी करो और बच्चे पालो यह कुछ ऐसे जुमले हैं जो कुछ समय पहले तक लगभग हर लड़की को कभी न कभी सुनने पड़ते थे। लेकिन आज अपनी पुरानी छवि को तोड़ भारतीय महिलाएं घर की चारदीवारी से निकल कर खुले आसमां में उड़ान भर रही हैं। कई ऐसे क्षेत्र जहां पहले महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां कामयाब होकर उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा है। आज महिलाओं ने बतौर सैनिक, सिक्योरिटी गार्ड, स्टेशन कंट्रोलर, ट्रेन ड्राइवर, कैब ड्राइवर आदि काम करके लोगों चौकाया है। कहना गलत न होगा कि पिछले कुछ सालों में महिलाएं और अधिक सशक्त हो कर उभरी हैं। आसमान नापतीं पायलट कुछ वर्ष पहले तक इस चुनौतीपूर्ण प्रोफेशन को कम ही महिलाएं अपनाती थीं, लेकिन अब एयरलाइंस की बढ़ती संख्या और करियर की संभावनाओं को देखते हुए यह महिलाओं के लिए पसंदीदा क्षेत्र बन कर उभरा है। यही कारण है कि महिलाओं के कदम अब आसमान में भी बढऩे लगे हैं। उनके इन बढ़ते कदमों का हौसला तब और बढ़ गया जब भारत की सशस्त्र सेनाओं के इतिहास में पहली बार दो महिला विमान चालकों को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। सब लेफ्टिनेंट सीमा रानी शर्मा तथा अम्बिका हुड्डा को 'विंग्सÓ प्रदान किए गए हैं। नौसैनिक विमानन के 56 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब महिला अधिकारियों को मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट के बेड़े में पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल किया गया है। ट्रेन की ड्राइविंग सीट का सफर कुछ साल पहले तक शायद ही कोई इस बात की कल्पना भी कर सकता था कि कोई महिला ट्रेन की ड्राइविंग सीट पर भी सवार हो सकती है लेकिन सन 2000 में एक्सप्रेस ट्रेन की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाली सुरेखा यादव ने कामयाबी का जो रास्ता दिखाया आज उसपर महिलाएं ट्रेन की गति से ही दौड़ती नजर आ रही हैं। सुरेखा के बाद पश्चिम रेलवे की पहली महिला ड्राइवर प्रीति कुमारी, लखनऊ इंडियन रेलवे लोकोमोशन की पहली ट्रेन ड्राइवर शमता, नॉर्थ रेलवे की पहली महिला इंजन ड्राइवर लक्ष्मी, झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली आदि ऐसे नाम है जो पुरुषों के एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में उनको चुनौती दे रही हैं और आने वाली पीढ़ी को पे्ररणा भी। अब तो अत्याधुनिक दिल्ली मेट्रो की ड्राइविंग ग्रुप में भी कुछ लड़कियों को शामिल किया गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि महिलाएं इस क्षेत्र में भी तरक्की की राह पर चलने लगी हैं। फिल्म निर्माण एवं निर्देशन भारतीय महिला डायरेक्टर्स पुरुष डायरेक्टरों से हर मायने में काफी आगे दिखती हैं। इसका सबूत है नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स और फिल्म फेयर अवॉर्ड्स जिनको वे दशकों से अपने नाम करती आ रही हैं। अवार्ड पाने वाली महिला निर्देशकों की लंबी कतार है जो अपना रास्ता खुद बना रही हैं। कथा, चश्मे बद्दूर, स्पर्श और दिशा जैसी फिल्में बनाने वालीं सई परांजपे, बांग्ला फिल्मों की चर्चित अभिनेत्री, स्क्रिप्ट राइटर और फिल्मकार अपर्णा सेन, सलाम बॉम्बे के लिए विदेशों में तमाम अवॉर्ड जीतने वाली मीरा नायर, मलयालम फिल्मों की हीरोइन रच चुकीं रेवती सहित कल्पना लाजमी, दीपा मेहता, तनूजा चंद्रा, किरण राव आदि चंद वह नाम हैं जिन्होंने डायरेक्शन की फील्ड में भी अपना कमाल दिखाया है। कॉरपोरेट और फाइनेंस में मिली कामयाबी पहले जहां कारपोरेट और फाइनेंस की फील्ड्स को पुरुषों के एकाधिकार वाला क्षेत्र माना जाता था, वहीं अब महिलाओं ने अपनी मेहनत से न सिर्फ अपना स्थान बनाया है बल्कि अपनी उपयोगिता को भी साबित किया है। यही वजह है कि पिछले एक दशक में इन फील्ड्स में महिलाओं की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है और उन्होंने बड़े पदों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। इसका उदाहरण है आईसीआईसीआई बैंक की हेड चंदा कोचर, बायोकॉन लि. की चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर किरण मजुमदार शॉ, ब्रिटानिया की एमडी विनीता बाली, रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर उषा थरोट, श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ की प्रेसिडेंट ज्योति नाइक, एसोचैम की प्रेजिडेंट स्वाति पीरामल, काइनेटिक फाइनेंस की मैनेजिंग डायरेक्टर सुलाजा फिलाडिआ मोटवानी और एचएसबीसी इंडिया की सीईओ नैना लाल किदवई आदि जिनकी सफलता ने कॉरपोरेट और फाइनेंस फील्ड में महिलाओं को नई राह दिखाई है। आज आलम यह है कि तमाम कॉरपोरेट कंपनियों में उच्च पदों पर बैठी महिलाएं अपनी सफलता की कहानी खुद कह रही हैं। भले ही पुरुषों को उनकी सफलता को पचाने में थोड़ा वक्त लग रहा है, लेकिन महिलाओं की सफलता की यह यात्रा निरंतर जारी है। मिसाइल व परमाणु प्रोजेक्ट स्पेस पर जाने वाली कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स् से तो हम भलीभांति परिचित हैं। पर इनके अलावा भी ऐसी कई भारतीय मूल की महिलाएं है जो अंतरिक्ष संबंधि कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। इन्हींमें एक टेसी थॉमस पहली भारतीय महिला हैं, जो देश की मिसाइल प्रोजेक्ट (डिआरडिओ में) को हैंडिल कर रही थीं। टेसी को मिसाइल वूमेन के नाम से पहचाना जाता है। टेसी उन भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जो देश के मिसाइल प्रोजेक्ट में काम करने की इच्छा रखती हैं। अग्नि-2 मिसाइल प्रोजेक्ट की हेड रही टेसी को अग्नि-5 मिसाइल प्रोजेक्ट की कमान भी सौंपी गई है। टेसी के अलावा भी कई भारतीय मूल की महिलाएं नासा के अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी हुई हैं जो समय-समय पर अपने प्रयोगों में उन्हें भागीदार बनाता रहता है। मोर्चा संभालती नाजुक कलाईयां पिछले साल जारी किए आंकड़ों के मुताबिक इंडियन फोर्सेज में करीब 2000 लेडी ऑफिसर्स काम कर रही थीं। करीब दो दशक पहले जब पहली बार इंडियन आर्म्ड फोर्सेज में महिलाओं से नौकरी के लिए आवेदन मांगा था, तो माना यह जा रहा था कि शायद ही कोई लड़की यह जॉब चुनेगी। लेकिन उम्मीद से कहीं ज्यादा आईं ऐप्लिकेशंस ने सबकी आशंकाओं को गलत साबित कर दिया। सेना में चुनी गईं महिलाओं ने बेहतरीन परफॉर्मेंस से अपने चयन को सही साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह उनकी मेहनत ही है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय सेना के तीनों अंगों में महिलाओं को पर्मानेंट कमीशन यानी पक्की और पूरी नौकरी देने का फैसला किया। इसके तहत अब महिलाओं को भी पुरुषों की तरह पांच साल बाद स्थायी कमीशन, पेंशन और दूसरी सुविधाएं मिलेंगी। मोर्चे पर महिलाओं की सफलता का एक और इतिहास तब बना जब पिछले दिनों बीएसएफ ने अपनी वुमन विंग को बॉर्डर पर भी तैनात किया है। घर संभालने वाली नाजुक कलाइयां आज दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दे रही हैं। आईटी में बढ़ा अट्रेक्शन अगर नए जमाने की नई नौकरियों की बात करें, तो महिलाओं को आईटी फील्ड ने सबसे ज्यादा अट्रैक्ट किया है। देखा जाए तो पिछले एक दशक में आईटी ने भारतीय युवाओं को रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध कराए हैं। ऐसे में लड़कियों ने भी इस मौके को हाथोंहाथ लिया और इस फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाई। नैसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल आईटी सेक्टर में करीब 25 पर्सेंट महिलाएं काम कर रही हैं जिनमें से 8 पर्सेंट आईटी कंपनियों में टॉप पोजिशन पर हैं। महिलाओं ने आईटी फील्ड में सबसे ज्यादा तरक्की की है और एक हालिया रिपोर्ट की माने तो यह संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। मनपसंद काम है हॉस्पिटैलिटी का एयरलाइंस और फाइव स्टार होटलों की संख्या में दिनोंदिन होती बढ़ोतरी की वजह से महिलाओं के लिए लगातार रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी हो रही है। महिलाएं हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के नए चेहरे के रूप में सामने आई हैं। महिलाओं के ज्यादा केयरिंग होने की वजह से इस सेक्टर ने महिलाओं को हाथोंहाथ लिया है। इससे महिलाएं पहले के मुकाबले ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई हैं। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर ने महिलाओं को सुरक्षित वातावरण और अच्छी सैलरी पर काम करने का मौका उपलब्ध कराया है। सफलता के इन पड़ावों पर परचम लहराने के बावजूद अभी भी कई ऐसे पद हैं जिन पर महिलाएं फिलहाल आसीन नहीं हुई हैं। जैसे स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के तीनों अंगों के सर्वोच्च पद, फाइटर पायलट, नौ सेना में युद्ध पोत चालक, चुनाव आयुक्त, केबिनेट सेक्रेटरी और योजना आयोग की उपाध्यक्ष,, भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, रॉ, आईबी और सीबीआई जैसी सरकारी खुफिया एजेंसियों के शीर्ष पद व इसरो और इयूका जैसे प्रमुख वैज्ञानिक केंद्रों के उच्च पदों को महिलाओं का अभी भी इंतजार है। इनपर अभी तक कोई महिला आसीन नहीं हुई है। इनमें से कुछ पदों से दूरी का कारण वर्तमान नियम हैं, जो शारीरिक और मानसिक योग्यता के आधार पर महिलाओं को उन भूमिकाओं को निभाने से रोकते हैं तो कई पदों का खाली होना महिला विकास की धीमी प्रगति और देर से शुरु हुई प्रक्रिया से जुड़ा है। आशा है कि कदम दर कदम कामयाबी हासिल करने वाले कदमों से यह दूरी भी जल्द ही नप जाएगी।

Tuesday, March 8, 2011

महिला दिवस

महिला दिवस पर नारी को सम्मान दैनिक भास्कर ने किया नारी का सम्मान पुरस्कार लेती डॉ उर्मिला शुक्ल

Wednesday, February 16, 2011

नौकरियां ही नौकरियां

आकर्षक नौकरी तलाशने वाले युवाओं के लिए खुशखबरी है। भारतीय कंपनियों सहित तमाम सरकारी संस्थान और प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की बहार आने वाली है। विशेषज्ञों का मानना है कि आईटी, दूरसंचार, बैंकिंग और स्वास्थ्य जैसे चार क्षेत्रों में ही मार्च तक पांच लाख नई नौकरियों के अवसर मिलेंगे।

पहले भारतीयों को रोजगार के लिए विदेशों का रुख करना पड़ता था, मगर अब विदेशी यहां आ रहे हैं। तमाम जानकार कह रहे हैं कि अगले कुछ महीनों में भारत में नौकरियों की बाढ़ आने वाली है। नौकरी दिलाने वाली देश की सबसे बड़ी 'एच आर कंसल्टेंसी मैनपावरÓ ने देश में नौकरी के अवसर पर अपने सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा किया है कि आने वाले दिनों में भारत में हर क्षेत्र में नौकरी के अनेक अवसर होंगे। सर्वेक्षण के मुताबिक जुलाई से सितंबर तिमाही में नौकरियों की तादाद काफी तेजी से बढ़ेगी। 36 देशों में हुए इस सर्वेक्षण में भारत का रोजगार दृष्टिकोण बाकी देशों से ज्यादा है। देश की ज्यादातर कंपनियों के मुताबिक जुलाई से सितंबर की बीच उनके ऑफिस में कर्मचारियों की संख्या बढ़ेगी। सबसे ज्यादा मौके होंगे माइनिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में। वहीं, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज में भी नौकरियों के जमकर मौके होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्तवर्ष में 8.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर सकती है, जो वर्ष 2009-10 के 7.4 प्रतिशत से अधिक होगी। वैश्विक परामर्शक फर्मों के विशेषज्ञों के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में विभिन्न क्षेत्रों और कंपनियों के विभिन्न स्तरों पर नौकरियों की बरसात होगी। कहा जा रहा है कि दक्षता के साथ-साथ आधारभूत ढांचा में निवेश के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के 8.7 प्रतिशत सालाना की दर से बढऩे की संभावना है और वर्ष 2020 तक यहां 3.75 करोड़ रोजगारों का भी सृजन होगा। हाल ही में परामर्शक फर्म एक्सेंचर ने विश्व आर्थिक मंच में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन जैसी चार प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं कुल मिलाकर विश्व अर्थव्यवस्था के करीब 40 प्रतिशत के बराबर है। इसमें कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था मौजूदा समय में आठ प्रतिशत की विकास दर की उम्मीद के मुकाबले 8.7 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ेगी तथा वर्ष 2020 तक मौजूदा उम्मीद के मुकाबले 3.75 करोड़ अधिक रोजगार सृजित होने की संभावना है। तमाम विदेशी संस्थाएं भी अब इस सच को अब जान चुकी हैं कि भारत में दक्षता और कर्मठता की कमी नहीं है। तभी तो दक्ष पेशेवरों की उपलब्धता तथा कम लागत के चलते वैश्विक कामकाजी भूमिका वाले बड़े रोजगार भारत आने लगे हैं। विश्व की नामी-गिरामी कंपनियां यहां निवेश करने के लिए लालायित हैं। अंतरराष्टï्रीय सर्वे की संस्था ग्लोबल हंट का मानना है कि बीते दो-तीन वर्ष में भारत आने वाले वैश्विक भूमिका वाले रोजगारों में 25-35 प्रतिशत वृद्धि हुई है। भारत को बड़ी संख्या में दक्ष पेशेवर बहुत ही प्रतिस्पर्धी लागत पर उपलब्ध होने का लाभ मिल रहा है। उनकी दक्षता वैश्विक है और प्रौद्योगिकी एवं विश्लेषण के लिहाज से उनका जोड़ नहीं है। लगभग 20 प्रतिशत कंपनियों ने भारत को क्षेत्रीय दर्जा दिया है और भारत उनके लिए अब एशिया प्रशांत का हिस्सा नहीं रह गया है। 15-20 प्रतिशत वैश्विक कर्मचारी अपने पदानुक्रम के लिहाज से भारतीय अधिकारियों के अधीन आ रहे हैं। मिलिट्री तथा न्यूक्लियर हार्डवेयर और सिविलियन एयरक्राफ्ट व इन्फ्रास्ट्रक्चर इक्विपमेंट अकेले ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें अमेरिका के साथ भारतीय व्यापारिक संबंधों के चलते भविष्य में रोजगार के करीब सात लाख नए अवसर पैदा होंगे। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री की रिपोर्ट 'इंडिया - ए ग्रोथ पार्टनर इन द यूएस इकोनॉमीÓ के अनुसार भारतीय बिजनेस अब अमरीका के दूसरे कई क्षेत्रों में पैर पसार रहा है, जबकि पहले वह केवल इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और आईटी संबंधित सेवाओं तक ही सीमित था। अमेरिका में व्यापार कर रहीं भारतीय कंपनियां ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी नागरिकों को नौकरियां दे रही हैं और कम्यूनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम में भी सक्रिय रूप से भागीदारी निभा रही हैं। अनुमान है कि अमेरिका में भारतीय कंपनियां लंबी पारी खेलेंगी। गौरतलब है कि अपने भारत दौरे के समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय और अमेरिकी कंपनियों के बीच करोड़ों डॉलर की डील की है, जिसमें कई इक्विपमेंट और दर्जनों एयरक्राफ्ट के ऑर्डर शामिल हैं। सूत्र बताते हैं कि कंज्यूमर ड्यूरेबल निर्माता एलजी ने भी अगले वित्त वर्ष में 10 हजार सेल्स पेशेवर नियुक्त करने की योजना बनाई है। निजी कंपनियों के अलावा, सरकारी बिजली उपकरण निर्माता भेल ने आठ हजार लोगों को भर्ती करने का ऐलान किया है। भेल के सीएमडी बीपी. राव के अनुसार, कंपनी बीते दो वर्ष के दौरान भी आठ हजार कर्मचारी भर्ती कर चुकी है।अपने कामकाज को गति देने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अब थोक में भर्तियां करने जा रहा है और 90 वरिष्ठ पद के अधिकारियों की नियुक्तियों के लिए आवेदन मांगे हैं। ये अधिकारी विधि, अनुसंधान और सामान्य प्रशासन कार्य के लिए भर्ती किए जाएंगे।सेबी ने नई नियुक्तियों की शुरुआत ऐसे समय की है, जबकि संस्था में नए चेयरमैन की तलाश चल रही है। सेबी के चेयरमैन सीबी भावे का कार्यकाल फरवरी, 2011 को पूरा हो रहा है। इसी तरह अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस लाइफ अपनी विस्तार योजना के तहत चालू आगामी वित्त वर्ष में 3,000 बिक्री प्रबंधकों की नियुक्ति करेगी। साथ ही, कंपनी ने 1.5 लाख बीमा एजेंटों की नियुक्ति की भी योजना बनाई है। रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस के अध्यक्ष एवं कार्यकारी निदेशक मलय घोष के अनुसार, हम अपने कर्मचारियों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि करने जा रहे हैं। देश का दिग्गज निजी बैंक आईसीआईसीआई आने वाले समय में सात हजार कर्मचारियों की भर्ती करने की योजना पर काम कर रहा है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने कार्यक्षमता बढ़ाने और बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए करीब 38,000 लोगों की नियुक्ति करने की योजना बनाई है। टीसीएस के एचआर प्रमुख अजय मुखर्जी के अनुसार, हम करीब 38,000 लोगों की नियुक्तियां करने जा रहे हैं। इनमें 20,000 लोग ट्रेनी लेवल पर और 10,000 मिड-लेवल पर लिए जाएंगे।मंदी ने सबसे ज्यादा किसी एक सेक्टर को मारा था, तो वह है टेक्सटाइल एवं गारमेंट सेक्टर, लेकिन अब यह बीते जमाने की बात हो गई है। अब टेक्सटाइल कंपनियां काबिल लोगों की तलाश कर रही हैं। इस सेक्टर में लाखों रोजगार के मौके बन रहे हैं। टेक्सटाइल एक्सपोर्ट कंपनियों में छंटनी के शिकार हुए करीब 80 फीसदी लोगों को फिर से नौकरियों पर रख लिया गया है। वहीं, देश में टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने लगभग 21 फीसदी लोगों को रोजगार मुहैया कराया है, जो अगले पांच वर्षों में में 27-28 फीसदी तक बढ़ सकती है। एक आकलन के मुताबिक, बंगलुरू में 5,000 से 7,000 टेलरों की जरूरत है। वहीं, तिरुपुर में करीब एक लाख लोगों की जरूरत है। फिलहाल, तिरुपुर में करीब 4.5 लाख लोग अपैरल इंडस्ट्री से जुड़े हैं। हालांकि, बंगलुरू में हालात थोड़े अलग हैं। यहां करीब 50,000 लोगों को नौकरी से हटाया गया था, फिर भी इनमें से करीब 80 फीसदी लोगों ने फिर से ज्वाइन कर लिया है। वहीं, पिछले वर्ष मांग कमजोर रहने की वजह से कई यूनिटों को बंद कर दिया था। एक बार फिर से मांग बढऩे लगी है और उन बंद यूनिटों को फिर से खोलने का फैसला किया है। जानकारों की राय में भारतीय टेक्सटाइल उद्योग इस समय सनसेट इंडस्ट्री से सनराइज इंडस्ट्री के रूप में तब्दील हो रहा है। सरकार ने कुल 30 टेक्सटाइल पार्क मंजूर किए गए हैं, जिनमें करीब 16,953 करोड़ रुपये का निवेश होगा। इससे 5.75 लाख रोजगार उपलब्ध होंगे। साथ ही, 1140 करोड़ रुपये तकनीक के अपग्रेडेशन पर खर्च होंगे। कहा जा सकता है कि टेक्सटाइल उद्योग के पुराने दिन लौट रहे हैं। विभिन्न औद्योगिक विकास कार्यक्रमों एवं निर्यात संवद्र्धन गतिविधियों के साथ तथा अतीत के प्रदर्शन एवं इस उद्योग की ताकत के मद्देनजर भारतीय चमड़ा उद्योग ने अपना उत्पादन बढ़ाने, 2013-14 तक निर्यात 7.03 अरब अमेरिकी डॉलर तक ले जाने और 10 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। आक्रामक निर्यात रणनीति ने समाज के कमजोर तबके के लिए आर्थिक वृद्धि एवं आर्थिक सशक्तिरण के युग का सूत्रपात किया है। ऑटो इंडस्ट्री का तो हर नया माह बिक्री के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है। इस रफ्तार को बनाए रखने के लिए कंपनियों को चाहिए काबिल लोग। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल एसोसिएशन के मुताबिक, देश की ऑटो कंपनियों को 2012 तक छह लाख कुशल लोगों की जरूरत है। देश की तीन बड़ी ऑटो कंपनियों ने करीब छह हजार नई नौकरियां देने का ऐलान किया है। मारुति इस साल साढ़े नौ सौ लोगों को नौकरी देगी। कंपनी मानेसर में नया प्लांट लगा रही है। अपनी क्षमता में बढ़ोतरी करने के साथ एक नया रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर बना रही है, जो 2012 तक बनकर तैयार होगा। इसके लिए मारुति को बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की जरूरत है। मारुति के अलावा जनरल मोटर्स भी भारत में अपने कर्मचारियों की क्षमता में 20 फीसदी की बढ़ोतरी करने जा रही है। कंपनी के हलोल और तालेगांव में प्रोडक्शन बढ़ाने के अलावा रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी अपनी बंगलुरू इकाई में इंजीनियरों की भर्ती भी करेगी। पैसेंजर के साथ कॉमर्शियल वाहन बनाने वाली महिंद्रा एंड महिंद्रा को अपने नए प्लांट के लिए तीन से चार हजार लोगों की जरूरत है। कंपनी ये भर्तियां अगले दो वर्ष में पूरी कर लेगी। इसके अलावा, ह्युंदई भी चेन्नई में अपने रिसर्च सेंटर के लिए डेढ़ से दो हजार नए कर्मचारियों की भर्ती कर रही है। साथ ही, कई विदेशी कंपनियां भी भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू कर रही हैं। इसके चलते नए कर्मचारियों की जरूरत भी बढ़ रही है। इंडस्ट्री के मानकों के मुताबिक, एक कार की मैन्युफैक्चरिंग के लिए पांच कर्मचारियों की जरूरत होती है, जबकि एक कॉमर्शियल व्हीकल के उत्पादन में 13 लोग लगते हैं। ऐसे में मौजूदा क्षमता और विस्तार योजनाओं के मुताबिक अगले डेढ़ से दो साल में ऑटो इंडस्ट्री को करीब दस लाख नए कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी।बताया जा रहा है कि डेलॉयट टाउच तोहमात्सू इंडिया लि. की भारत में अगले तीन वर्ष में 10 करोड़ डॉलर निवेश की योजना है और वह अपने विस्तार कार्य में तेजी लाने के लिए यहां 3000 लोगों की भर्ती करेगी। कंपनी ने एक बयान में कहा है कि उसकी योजना अपने कर्मचारियों की संख्या 2012 तक 20 प्रतिशत बढ़कर 18000 करने की है। कंपनी के देश में फिलहाल 15000 कर्मचारी हैं और उसके कार्यालय 13 स्थानों पर हैं।बेशक, सरकार की पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा रोजगार उपलब्धता में विस्तार के शुरू से ही प्रयास किए गए। आज बैंको की उदार नीतियों, स्कॉलरशिप्स, एजुकेशन लोन जैसी सुविधाओं से युवाओं के पास आगे बढऩे के काफी मौके उपलब्ध हैं। मेडिकल और इंजीनियरिंग सेक्टर में अभी भी योग्य लोगों की काफी कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार गंभीरता से काम कर रही है। सरकार ने हाल ही में टॉप तकनीकी संस्थानों व मेडिकल संस्थानों में सीटों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया है। वे लोग, जो इस दायरे में नही आते हैं, उनके लिए भी सरकार प्रयासरत है। इसमें नेशनल काउंसिल फॅार वोकेशनल ट्रेनिंग की भूमिका महत्वपूर्ण है। जिसके तहत सन 2020 तक करीब पांच करोड़ लोगों को दक्ष बनाया जाएगा। निश्चित तौर पर आने वाला समय युवाओं के लिए आशाओं से भरा है और जल्द ही निराशा का दौर समाप्त होने वाला है।

वेलेनटाइन डे के है रूप अनेक

ऐसा नहीं है कि 14 फरवरी को ही प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व के अलग-अलग भागों में फरवरी के अलग-अलग तारीखों के प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहीं इसे ड्रैगोबेटे के तौर पर मनाया जाता है तो कहीं सिपंदरमजगन के रूप में। यही नहीं कहीं-कहीं तो इसे अलग अलग महीनों की अलग-अलग तारीखों में भी मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में वसंतोत्सव ही प्रेमोत्सव हैं। फरवरी और मार्च का पूरा महीना ही भारतीय वसंतोत्सव रूप में मनाते हैं। इस समय प्रकृति भी मानो प्रेममय हो जाती है और रंग-बिरंगे फूलों के रूप में अपने प्रेम का इजहार करती है। कहते हैं इस दिन प्रेम के देवता कामदेव अपने पुष्प बाणों से प्रेमियों को घायल करते हैं। भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र माना गया है और यही कारण है कि इस पर्व के साथ पवित्रता का भाव भी समाहित है। फनलैंड का फ्रेंडस डे वैसे तो फ्रैंडशिफ डे अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है पर फनलैंड में वेलेंटाइन डे के दिन को फ्रेंड्स डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां प्रेमी या प्रेयसी के बजाय मित्रों को याद किया जाता है। स्लोवेनिया का फारमर डे स्लोवेनिया में एक कहावत है कि सेंट वेलेंटाइन जड़ों की कुंजियां लाते हैं इसलिए 14 फरवरी को पौधे और फूल उगना शुरू करते हैं। वेलेंटाइन डे के अवसर पर यहां खेतों में काम की शुरुआत का मुहूर्त किया जाता है और इसे इसी रूप में मनाया भी जाता है। स्लोवेनिया में यह भी विश्वास है कि पक्षियां इसी दिन आपस में प्रणय निवेदन और शादी भी करती हैं। रोमानिया का ड्रैगोबेटे रोमानिया में प्रेमियों का परंपरागत पर्व है ड्रैगोबेटे, जो 24 फरवरी को मनाया जाता है। इसका नामकरण रोमानियाई लोकगीतों के एक लोकप्रिय पात्र के आधार पर किया गया है। माना जाता है कि ड्रैगोबेटे बाबा डोकिया का पुत्र था। उसके नाम के पहले शब्द ड्रैग का अर्थ रोमानियाई भाषा में प्रिय होता है और ड्रैगोस्ट का अर्थ वहां है प्रेम। भले ही हाल के वर्षो में वहां वेलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत हो गई है पर इसके साथ-साथ ड्रैगोबेटे भी वहां के एक परंपरागत पर्व के रूप में मनाया जाता है। भारत की तरह परंपरावादी लोग वहां भी वेलेंटाइन डे को पश्चिम से आयातित, अंधविश्वास को बढ़ावा देनेवाला पर्व मानते हैं और उसका उग्र विरोध भी करते हैं। इजरायल का हैग हाहावा यहूदी परंपरा के अनुसार अव तू बाव महीने (जो आम तौर पर अगस्त में होता है) की 15वीं तिथि को हैग हाहावा पर्व मनाया जाता है। यह उनकी परंपरा के तहत प्रेम का पर्व है। इस अवसर पर लड़कियां सफेद कपड़े पहन कर अंगूर के बागान में नृत्य करती हैं और लडक़ों से अपने प्रेम का इडहार करती हैं। आधुनिक इजरायली संस्कृति में इसे प्रेम की अभिव्यक्ति करने और विवाह के प्रस्ताव भेजने के लिए जाना जाता है। इस अवसर पर प्रेमी जोड़ें फूलों, कार्ड्स और उपहारों का आदान-प्रदान भी करते हैं। ईरान का सिपंदरमजगन ईरान की पर्शियन संस्कृति में एक पर्व है सिपंदरमजगन। प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में मान्य यह त्योहार यहां जलाली कैलेंडर के अनुसार बहमन महीने की 29 तारीख को मनाया जाता है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार यह तारीख सामान्यतया 17 फरवरी होती है। यह पर्व यहां 20वीं शताब्दी ईसा पूर्व से मनाया जा रहा है। ब्राजील का नैमोराडॉस ब्राजील में एक पर्व मनाया जाता है डिया डॉस नैमोराडॉस। इसका अर्थ है प्रणय दिवस। नए संदर्भो में इसे ब्वॉय फ्रेंड्स या गर्लफ्रेंड्स डे के तौर पर भी मनाते हैं। 12 जून को मनाए जाने वाले इस पर्व के अवसर पर लडक़े-लड़कियां अपने प्रिय साथी से चॉकलेट, कार्ड और फूल आदि उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। प्रणय निवेदन के लिए इस दिन का चयन वहां शायद इसीलिए किया गया है क्योंकि यह सेंट अंथोनी के दिन के ठीक पहले पड़ता है। सेंट अंथोनी को यहां विवाह के संत के रूप में जाना जाता है। कोलंबिया का डिया डेल एमॉर य ला एमिस्टाड कोलंबिया में सितंबर माह के तीसरे शुक्रवार और शनिवार को डिया डेल एमॉर य ला एमिस्टाड नामक त्योहार मनाया जाता है। इस देश में एमिगो सीक्रेटो यानी गोपनीय मित्रता का प्रचलन अभी भी काफी लोकप्रिय है। इस मौके पर यहां सामूहिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जहां हर किसी के नाम से पुर्जियां डाली जाती हैं और जिसे जिसके नाम की पुर्जी मिल जाए, वह उसका मित्र होता है। जापान का चॉकलेट डे व कावाबात्ता जापान और कोरिया में वेलेंटाइन डे को ऐसे दिन के रूप में मनाया जाता है जब लड़कियां लडक़ों को चॉकलेट, कैंडी या फूल भेंट करती हैं। जापान में तो लड़कियों के लिए यह अनिवार्य समझा जाता है कि वे अपने सभी पुरुष सहकर्मियों को चॉकलेट भेंट करेंगी। जापानी में इसे गिरिचोको कहा जाता है। इसमें गिरि का अर्थ है अनिवार्यता और चोको का चॉकलेट। यह होनमेई चोको के विपरीत है, जिसका अर्थ प्रियतम को चॉकलेट देना होता है। इस अवसर पर यहां मित्र भी आपस में चॉकलेटों का आदान-प्रदान करते हैं। इनमें लड़कियां भी आपस में चॉकलेटों का आदान-प्रदान करती हैं और लडक़े भी ऐसा करते हैं। इसे टोमो चोको कहते हैं। टोमो का अर्थ मित्र होता है। यह 14 मार्च को मनाया जाता है। इसके अलावा एक और प्रेमोत्सव भी जापान में मनाया जाता है। इसे कावाबात्ता कहते हैं। दक्षिण कोरिया का पेपेरो दिवस दक्षिण कोरिया में हर साल 11 नवंबर को पेपेरो दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर युवा जोड़े एक-दूसरे को रूमानी चीजें भेंट करते हैं। चीन का द नाइट ऑफ सेवेंस चीनी संस्कृति में वेलेंटाइन डे के समानांतर एक पर्व है द नाइट ऑफ सेवेंस। लोककथा है कि चीन के चंद्र कैलेंडर के अनुसार सातवें महीने के सातवें दिन कॉउहर्ड और वीवर मेड की मुलाकात स्वर्ग में हुई थी। उनकी याद में यहां प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को बधाई देते हैं। वैसे यहां प्रेमी जोड़ों के लिए एक और त्योहार लैंटर्न फेस्टिवल भी है। यह पर्व चीनी नववर्ष समारोह के अंतिम दिन होता है, जो अकसर मार्च के पहले हफ्ते में ही पड़ता है। पुराने जमाने में यही एक दिन होता था जब कोई अविवाहित स्त्री अपने घर से अकेले बाहर निकल सकती थी। हालांकि उस वक्त भी वह परदे में होती थी और उसे कोई एक व्यक्ति ही देख सकता था। अब ये सब पाबंदियां तो नहीं रहीं, अलबत्ता रोमांस जरूर इस दिन पूरे देश में उछाल मारता दिखता है।

Sunday, February 13, 2011

अजब प्रेम की गजब कहानी

सत्ता, सेक्स और संपत्ति का घालमेल किस हद तक हो सकता है, इसकी एक बानगी एनडी तिवारी, डॉ. उज्ज्वला शर्मा और रोहित शेखर है। तीनों के अपने-अपने दावे और उसी के अनुरूप अपने-अपने तर्क। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, इसे अच्छे से अच्छा मनोविज्ञानी भी न समझ पाए। बड़ी असमंजस की स्थिति है। सच जानने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि एनडी तिवारी को डीएनए टेस्ट कराना होगा। टेस्ट अभी हुआ नहीं है, सो कानून की पेचीदगियों से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, मगर इस सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता है कि ऊंचे और शीशे के मकानों में रहने वालों के किस्से भी अजब-गजब होते हैं। जीवन के ढाई दशक बीत जाने के बाद रोहित शेखर नामक युवक कहता है कि आठ दशक पार कर चुके वृद्ध एनडी तिवारी उसके जैविक पिता हैं। शुरुआती दिनों में सुनने में यह अजीब लगता था, लेकिन जब पांच दशक से अधिक की जिंदगी जी चुकी रोहित शेखर की मां डॉ. उज्ज्वला शर्मा भी अपने बेटे के साथ खड़े होकर कहती है- 'हां, तिवारी ही रोहित के जैविक पिता हैं। सरकारी कागजों में पिता के रूप में जिस बीपी शर्मा का नाम है, वह तो उसके पालन-पोषण करने वाले हैंÓ तो मामला और पेचीदा हो जाता है। आमलोगों की रायशुमारी में यह मामला सत्ता, शोहरत और दौलत का है। आखिर, क्यों एक बेटा अपने को नाजायज कहलाने पर तुला हुआ है, वह भी इतने सालों के बाद? लेकिन, इस बारे में रोहित का अपना तर्क है- 'मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूं कि आगे से किसी बच्चे का हक नहीं मारा जाए। जब संविधान ने जीने का अधिकार दिया है तो हर बच्चे का हक बनता है कि उसे उसका पिता का नाम मिले।Ó मामले को सरसरी तौर पर देखा जाए तो विवादित वीडियो टेप के चलते आंध्रप्रदेश का गवर्नर पद गंवाने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 साल के युवक रोहित शेखर की याचिका पर तिवारी को नोटिस जारी किया है। रोहित का आरोप है कि तिवारी उसके पिता हैं और इसे साबित कराने के लिए उनका डीएनए टेस्ट कराया जाए। कहा जा सकता है कि नारायण दत्त तिवारी अपने लंबे राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। पहले एक विवादित वीडियो टेप के कारण उन्हें आंध्र प्रदेश के गवर्नर पद से इस्तीफा देना पड़ा और अब रोहित शेखर की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट का नोटिस। रोहित शेखर पिछले साल भर से यह मांग कर रहा था कि उसकी बात को साबित करने के लिए नारायण दत्त तिवारी का डीएनए टेस्ट कराया जाए। दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट की एक सदस्यीय बेंच ने पिछले साल रोहित शेखर की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट का कहना था कि रोहित को 18 साल का होने के तीन साल के अंदर ये याचिका दाखिल करनी चाहिए थी। इस आदेश को चुनौती देते हुए रोहित ने अपना पक्ष रखा कि नारायण दत्त तिवारी लगातार उन्हें और उनकी मां को झांसा देते रहे कि जल्द ही वे उन्हें अपना लेंगे। मामला अदालत कैसे पहुंचा, इसका भी खुलासा रोहित ने किया। रोहित के अनुसार, '7 दिसंबर, 2005 को एनडी तिवारी नई दिल्ली में सैम पित्रोदा से मिलने आए थे। यहां के ताजमान सिंह होटल में ठहरे थे। उस समय उनके साथ कई बड़े अधिकारी भी थे। मैं भी तिवारी से मिलने के लिए होटल पहुंचा। उनके सहायक को पर्ची दी कि मैं मिलना चाहता हूं। मैं बाहर इंतजार करता रहा और तिवारी ने मिलने का समय नहीं दिया। जब मैं खुद अंदर गया तो देखा कि तिवारी मेरी पर्ची को फाड़ चुके थे। मुझे काफी गुस्सा आया। उन्होंने मुझसे बात तक करने से इनकार कर दिया। वहीं से मैंने ठान लिया कि मैं अब अपना हक लेकर रहूंगा।... ऐसी ही उपेक्षा तिवारी ने हम लोगों के साथ अपने 80वें जन्मदिन पर भी की। मां के कहने पर हम उनके आवास पर केक लेकर पहुंचे थे। हजारों की संख्या में उनके चाहने वाले थे। हमने सबके सामने उन्हें केक काटने के लिए कहा, मगर हमारी तरफ से भेंट किए गए केक को उन्होंने बंद कमरे में काटा। साथ ही, उनके निकट के सहयोगियों ने कमरे से बाहर जाने से मना कर दिया। इन घटनाओं के बाद करीब दो वर्ष तक मैंने यह कोशिश की कि मामला आपसी बातचीत के जरिए सुलझ जाए, लेकिन तिवारी को यह मंजूर नहीं हुआ। नतीजन, मामला पिछले तीन वर्ष से कोर्ट में है और अब मुझे पूरा भरोसा है कि कोर्ट के हस्तक्षेप से मुझे मेरा हक मिल जाएगा।Ó बहरहाल, मामला जितना दिख रहा है, पर्दे के पीछे इसके कई अनछुए पहलू भी हैं। दरअसल, सत्ता और सेक्स का घालमेल भारतीय राजनीति में दशकों पुराना है। यह मामला भी कुछ उसी तर्ज पर है। सत्तर के दशक के उत्तराद्र्ध में शेर सिंह हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा नाम होते थे। केंद्र में राज्यमंत्री भी रह चुके थे। वर्ष 1967 से 1979 तक वह सांसद भी रहे। उन्हीं शेर सिंह की पुत्री हैं डॉ. उज्ज्वला शर्मा। राजनीतिक लोगों के बीच उठना-बैठना उज्ज्वला शर्मा का भी था। घर आने वाले अतिथियों की आवभगत भी कभी-कभार वह किया करती थीं। उस समय एनडी तिवारी यूथ कांग्रेस में थे। एक सरपरस्ती के चलते उनका शेर सिंह के यहां आना-जाना लगा रहा। हालंाकि, उस समय उज्ज्वला शर्मा विवाहित थीं। उनके पति बीपी. शर्मा एक व्यवसायी थे। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का दामाद होने का लाभ भी उन्हें कारोबार में मिलने लगा था और 'कारोबारÓ चल निकला। उस समय के कुछ लोगों से जब इस बाबत चर्चा की गई तो पता चला कि विवाह के कुछ दिनों बाद ही उज्ज्वला की अपने पति बीपी शर्मा से नहीं बनती थी। दोनों के स्वभाव में कई असमानताएं थी। बेशक, लोकलाज के कारण दोनों एक छत के नीचे रहते थे, मगर अलगाव की स्थिति थी। बीपी शर्मा नई दिल्ली से बार-बार बिहार भी जाते थे। चूंकि, बीपी शर्मा का ताल्लुक बिहार से था, इसलिए वह कभी पारिवारिक कारणों से, तो कभी कारोबार के कारण बिहार जाते-आते रहते थे। अलगाव की स्थिति बढ़ती जा रही थी। उसी दरम्यान एनडी तिवारी को इस बात की जानकारी हुई। बताया यह भी जाता है कि उस समय एनडी तिवारी दांपत्य जीवन में वर्षों गुजारने के बाद भी संतान सुख प्राप्त नहीं कर सके थे। इसलिए उज्ज्वला और तिवारी की नजदीकियां बढ़ती गईं। पहले भौतिक रूप से निकट आने के बाद कब दोनों दैहिक स्तर पर भी एक-दूजे के हो गए, किसी को पता ही नहीं चला। आज डॉ. उज्ज्वला शर्मा बेहिचक के कहती हैं, 'जब से तिवारी को यह पता चला कि मेरे और बीपी शर्मा के संबंध मधुर नहीं हैं तो वह स्नेह के जरिए मेरे निकट आए। करीब सात वर्षों तक स्नेहपूर्ण संबंध रहा। वर्ष 1977 में जब मैंने देखा कि एनडी तिवारी जैसे योग्य और भद्र पुरुष की ओर से पिछले सात वर्षों से एक निकट मैत्री संबंध का प्रस्ताव है तो मैं खुद को रोक नहीं पाई। कई बातों के होने के बावजूद मेरे और तिवारी के शारीरिक संबंध बने। फलस्वरूप 15 फरवरी, 1979 को रोहित का नई दिल्ली में जन्म हुआ।Ó यहां तक की कहानी के बाद तो यही लगता है कि मामला सब कुछ क्लियर है। फिर ये अदालती चक्कर क्यों? दरअसल, नारायण दत्त तिवारी इन बातों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। तिवारी का साफ तौर पर कहना है कि वह संतान पैदा करने के काबिल ही नहीं हैं। अगर कुदरतन ऐसा होता तो उनके दांपत्य जीवन में भी संतान की किलकरियां सुनने को मिलतीं। यह बात अलग है कि तिवारी के रंगीन मिजाजी के किस्से उत्तराखंड की पहाडिय़ों से लेकर पूरे देश में चाव लेकर सुने और सुनाए जाते हंै। दरअसल, दो बार कांग्रेस के खिलाफ चुनाव जीतने वाले तिवारी ने 1963 में जब कांग्रेस का दामन थामा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी इस कामयाबी ने अच्छे-अच्छों को कायल बना दिया। वे हेमवतीनंदन बहुगुणा के खास रहे, पर जब आपातकाल में संजय गांधी की चरणपादुकाओं ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया तब उन्होंने बहुगुणा की तरफ देखा तक नहीं। वह चार बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कितने ही केंद्रीय मंत्रालयों के मंत्री रहे। पुराने लाल टोपीधारी तिवारी हर समय उद्योपगतियों की आंखों के तारे और दुलारे रहे। उनकी इस अदा का कांग्रेस आलाकमान भी कायल रहा। राजनीति के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच तिवारी आधी सदी तक कांग्रेस राजवंश के वफादार बने रहे। कहा जाता है कि अपना प्रशस्तिवाचन सुनना उनका प्रिय शगल रहा है और इस पर वह मुग्ध भी होते रहे हैं। जिसने भी उनका प्रशस्ति गान किया उसे उन्होंने निहाल कर दिया। उनका यही कौशल था, जिसके चलते 2002 में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने मीडिया के दिग्विजयी धुरंधरों को मुख्यमंत्री आवास के पिछवाड़े में खूंटे से बांध दिया था। इसके उलट, तिवारी के राजनीतिक जीवन की त्रासदी रही है कि सार्वजनिक कार्यों से ज्यादा उनकी चर्चा यौन संबंधों को लेकर हुई। पता नहीं कितनी ही स्त्रियों का नाम उनसे जोड़ा गया। वे चाहे यूपी के मुख्यमंत्री रहे हों या केंद्रीय मंत्री, राजनीति की बार बालाएं यात्रा से लेकर घर तक उनके जीवन पर छाई रहीं। जब वे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री थे तब एक कमसिन और हसीन लड़की को राज्य की सबसे ताकतवर महिला माना जाता था। इसे लेकर पूरे राज्य में चटखारेदार किस्से सुनाकर लोग अपनी यौन कुंठाओं को आवाज देते रहे। इसे संयोग कहें या उनके अंदाज की बानगी कि मुख्यमंत्री के उनके उस कार्यकाल में भी पहले दस सर्वाधिक ताकतवर लोगों में भी सात महिलाएं ही थीं। यह अकारण नहीं था कि सनसनीखेज वीडियो के खुलासे के बाद आंध्र प्रदेश के अखबार भी राजभवन को 'ब्रोथल हाउसÓ नाम दे रहे थे। इन सारी महिलाओं की तादाद को अगर जोड़ा जाए तो इसके मुकाबले बड़े से बड़ा मुगल बादशाह भी बौना दिखता है। इसी कड़ी में एक नाम डॉ. उज्ज्वला शर्मा का भी है। उन्होंने पहले तो कभी सार्वजनिक मंचों पर यह नहीं कहा कि मेरे तिवारी के बीच शारीरिक संंबंध हैं, जो कई वर्षों तक चले। मगर, उसी उज्ज्वला शर्मा का पुत्र रोहित शेखर सैकड़ों फोटो और अन्य सबूत लेकर कानूनी दावे के साथ बार-बार कह रहा है कि मेरे नाजायज बाप एनडी तिवारी हैं। मुझे मेरे बाप का नाम चाहिए। यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या अभी तक रोहित शेखर को बाप का नाम नहीं मिला था? जबाव मिलता है, सरकारी कागजों में उसके बाप का नाम बीपी शर्मा है, जो उसकी मां के पति हैं। कानूनी किताबों के आधार पर यह कहा जा रहा है कि बीपी शर्मा स्वभाविक पिता हैं, क्योंकि वह उसके मां के पति हैं और उन्होंने रोहित का लालन-पालन किया है। चूंकि, बीपी शर्मा का डीएनए और रोहित शेखर का डीएन आपस में मेल नहीं खाता है, इसलिए वह उसके जैविक पिता नहीं हैं यानी पिता भी हुए दो- स्वाभाविक और जैविक। इससे पहले भी हाईकोर्ट ने पुत्र विवाद मामले में एनडी तिवारी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपने पुत्र का दावा करने वाले रोहित शेखर की याचिका से संशोधित अंशों को हटाने की मांग की थी। इतना ही नहीं, अदालत ने तिवारी पर लगाए 75 हजार रुपये के जुर्माने को खारिज करने से भी इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति विक्रम जीत सेन और न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की खंडपीठ ने तिवारी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि रोहित ने संशोधित याचिका में ऐसे कोई भी नए तथ्य नहीं जोड़े जिनका केस पर प्रभाव पड़ता हो। एकल जज का फैसला पूरी तरह उचित है और उन पर मामले को बेवजह लटकाने पर लगाया गया 75 हजार रुपये का जुर्माना भी उचित है। अदालत ने एकल जज के फैसले के निर्देशानुसार जुर्माने की राशि रोहित शेखर को देने का निर्देश दिया है। रोहित शेखर एनडी तिवारी का का पुत्र है या नहीं, इस मुद्दे पर अब भी सुनवाई जारी है। करीब तीन वर्षो से चल रहे रोहित शेखर और एनडी तिवारी के प्रकरण में आखिरकार अदालत को भी मानना पड़ा कि रोहित की बातों में दम है। कुछ तो है, जो यह युवक एनडी तिवारी को अपना बाप बता रहा है। खास बात यह है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने तिवारी को डीएनए संबंधी मामले में नोटिस भी भेजा है। न्यायालय ने यह नोटिस रोहित शेखर की याचिका पर जारी किया है। याचिका में शेखर ने दावा किया है कि तिवारी उनके पिता हैं। मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह और न्यायमूर्ति राजीव सहाय की खंडपीठ ने रोहित की याचिका के आधार पर तिवारी को नोटिस जारी करते हुए उनसे 9 फरवरी तक न्यायालय में अपना पक्ष रखने को कहा है। अपनी याचिका में रोहित ने तमाम तरह के सबूत संलग्न किए हैं, जो यह साबित करते हैं कि एनडी तिवारी, उज्ज्वला और रोहित के कितने करीब रहे हैं। अब यह मामला डीएनए टेस्ट की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि इस राज पर से पर्दा हटे कि एनडी तिवारी ही रोहित शेखर के पिता हैं और अगर पिता हैं तो फिर रोहित शेखर को उसका हक मिलना चाहिए। इस दिशा में अब सब कुछ हाईकोर्ट पर निर्भर करता है।

नीलम