सफलता के नए आयाम स्थापित करती नए जमाने की नारी अपनी चिपरिचित अबला और बेचारी वाली छवि को तोड़ हर फील्ड में अपनी पस्थिति दर्ज करवा रही हैं। अब तो आलम यह है कि पुरुषों के तथाकथित पौरूष प्रदर्शन की फील्ड में भी महिलाओं का दबदबा बढ़ा है। महिलाओं की इसी सफलता को सलाम- पढ़-लिख कर क्या करना है, आगे चलकर तो घर ही संभालना है, शादी करो और बच्चे पालो यह कुछ ऐसे जुमले हैं जो कुछ समय पहले तक लगभग हर लड़की को कभी न कभी सुनने पड़ते थे। लेकिन आज अपनी पुरानी छवि को तोड़ भारतीय महिलाएं घर की चारदीवारी से निकल कर खुले आसमां में उड़ान भर रही हैं। कई ऐसे क्षेत्र जहां पहले महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां कामयाब होकर उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा है। आज महिलाओं ने बतौर सैनिक, सिक्योरिटी गार्ड, स्टेशन कंट्रोलर, ट्रेन ड्राइवर, कैब ड्राइवर आदि काम करके लोगों चौकाया है। कहना गलत न होगा कि पिछले कुछ सालों में महिलाएं और अधिक सशक्त हो कर उभरी हैं। आसमान नापतीं पायलट कुछ वर्ष पहले तक इस चुनौतीपूर्ण प्रोफेशन को कम ही महिलाएं अपनाती थीं, लेकिन अब एयरलाइंस की बढ़ती संख्या और करियर की संभावनाओं को देखते हुए यह महिलाओं के लिए पसंदीदा क्षेत्र बन कर उभरा है। यही कारण है कि महिलाओं के कदम अब आसमान में भी बढऩे लगे हैं। उनके इन बढ़ते कदमों का हौसला तब और बढ़ गया जब भारत की सशस्त्र सेनाओं के इतिहास में पहली बार दो महिला विमान चालकों को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। सब लेफ्टिनेंट सीमा रानी शर्मा तथा अम्बिका हुड्डा को 'विंग्सÓ प्रदान किए गए हैं। नौसैनिक विमानन के 56 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब महिला अधिकारियों को मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट के बेड़े में पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल किया गया है। ट्रेन की ड्राइविंग सीट का सफर कुछ साल पहले तक शायद ही कोई इस बात की कल्पना भी कर सकता था कि कोई महिला ट्रेन की ड्राइविंग सीट पर भी सवार हो सकती है लेकिन सन 2000 में एक्सप्रेस ट्रेन की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाली सुरेखा यादव ने कामयाबी का जो रास्ता दिखाया आज उसपर महिलाएं ट्रेन की गति से ही दौड़ती नजर आ रही हैं। सुरेखा के बाद पश्चिम रेलवे की पहली महिला ड्राइवर प्रीति कुमारी, लखनऊ इंडियन रेलवे लोकोमोशन की पहली ट्रेन ड्राइवर शमता, नॉर्थ रेलवे की पहली महिला इंजन ड्राइवर लक्ष्मी, झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली आदि ऐसे नाम है जो पुरुषों के एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में उनको चुनौती दे रही हैं और आने वाली पीढ़ी को पे्ररणा भी। अब तो अत्याधुनिक दिल्ली मेट्रो की ड्राइविंग ग्रुप में भी कुछ लड़कियों को शामिल किया गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि महिलाएं इस क्षेत्र में भी तरक्की की राह पर चलने लगी हैं। फिल्म निर्माण एवं निर्देशन भारतीय महिला डायरेक्टर्स पुरुष डायरेक्टरों से हर मायने में काफी आगे दिखती हैं। इसका सबूत है नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स और फिल्म फेयर अवॉर्ड्स जिनको वे दशकों से अपने नाम करती आ रही हैं। अवार्ड पाने वाली महिला निर्देशकों की लंबी कतार है जो अपना रास्ता खुद बना रही हैं। कथा, चश्मे बद्दूर, स्पर्श और दिशा जैसी फिल्में बनाने वालीं सई परांजपे, बांग्ला फिल्मों की चर्चित अभिनेत्री, स्क्रिप्ट राइटर और फिल्मकार अपर्णा सेन, सलाम बॉम्बे के लिए विदेशों में तमाम अवॉर्ड जीतने वाली मीरा नायर, मलयालम फिल्मों की हीरोइन रच चुकीं रेवती सहित कल्पना लाजमी, दीपा मेहता, तनूजा चंद्रा, किरण राव आदि चंद वह नाम हैं जिन्होंने डायरेक्शन की फील्ड में भी अपना कमाल दिखाया है। कॉरपोरेट और फाइनेंस में मिली कामयाबी पहले जहां कारपोरेट और फाइनेंस की फील्ड्स को पुरुषों के एकाधिकार वाला क्षेत्र माना जाता था, वहीं अब महिलाओं ने अपनी मेहनत से न सिर्फ अपना स्थान बनाया है बल्कि अपनी उपयोगिता को भी साबित किया है। यही वजह है कि पिछले एक दशक में इन फील्ड्स में महिलाओं की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है और उन्होंने बड़े पदों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। इसका उदाहरण है आईसीआईसीआई बैंक की हेड चंदा कोचर, बायोकॉन लि. की चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर किरण मजुमदार शॉ, ब्रिटानिया की एमडी विनीता बाली, रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर उषा थरोट, श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ की प्रेसिडेंट ज्योति नाइक, एसोचैम की प्रेजिडेंट स्वाति पीरामल, काइनेटिक फाइनेंस की मैनेजिंग डायरेक्टर सुलाजा फिलाडिआ मोटवानी और एचएसबीसी इंडिया की सीईओ नैना लाल किदवई आदि जिनकी सफलता ने कॉरपोरेट और फाइनेंस फील्ड में महिलाओं को नई राह दिखाई है। आज आलम यह है कि तमाम कॉरपोरेट कंपनियों में उच्च पदों पर बैठी महिलाएं अपनी सफलता की कहानी खुद कह रही हैं। भले ही पुरुषों को उनकी सफलता को पचाने में थोड़ा वक्त लग रहा है, लेकिन महिलाओं की सफलता की यह यात्रा निरंतर जारी है। मिसाइल व परमाणु प्रोजेक्ट स्पेस पर जाने वाली कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स् से तो हम भलीभांति परिचित हैं। पर इनके अलावा भी ऐसी कई भारतीय मूल की महिलाएं है जो अंतरिक्ष संबंधि कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। इन्हींमें एक टेसी थॉमस पहली भारतीय महिला हैं, जो देश की मिसाइल प्रोजेक्ट (डिआरडिओ में) को हैंडिल कर रही थीं। टेसी को मिसाइल वूमेन के नाम से पहचाना जाता है। टेसी उन भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जो देश के मिसाइल प्रोजेक्ट में काम करने की इच्छा रखती हैं। अग्नि-2 मिसाइल प्रोजेक्ट की हेड रही टेसी को अग्नि-5 मिसाइल प्रोजेक्ट की कमान भी सौंपी गई है। टेसी के अलावा भी कई भारतीय मूल की महिलाएं नासा के अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी हुई हैं जो समय-समय पर अपने प्रयोगों में उन्हें भागीदार बनाता रहता है। मोर्चा संभालती नाजुक कलाईयां पिछले साल जारी किए आंकड़ों के मुताबिक इंडियन फोर्सेज में करीब 2000 लेडी ऑफिसर्स काम कर रही थीं। करीब दो दशक पहले जब पहली बार इंडियन आर्म्ड फोर्सेज में महिलाओं से नौकरी के लिए आवेदन मांगा था, तो माना यह जा रहा था कि शायद ही कोई लड़की यह जॉब चुनेगी। लेकिन उम्मीद से कहीं ज्यादा आईं ऐप्लिकेशंस ने सबकी आशंकाओं को गलत साबित कर दिया। सेना में चुनी गईं महिलाओं ने बेहतरीन परफॉर्मेंस से अपने चयन को सही साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह उनकी मेहनत ही है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय सेना के तीनों अंगों में महिलाओं को पर्मानेंट कमीशन यानी पक्की और पूरी नौकरी देने का फैसला किया। इसके तहत अब महिलाओं को भी पुरुषों की तरह पांच साल बाद स्थायी कमीशन, पेंशन और दूसरी सुविधाएं मिलेंगी। मोर्चे पर महिलाओं की सफलता का एक और इतिहास तब बना जब पिछले दिनों बीएसएफ ने अपनी वुमन विंग को बॉर्डर पर भी तैनात किया है। घर संभालने वाली नाजुक कलाइयां आज दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दे रही हैं। आईटी में बढ़ा अट्रेक्शन अगर नए जमाने की नई नौकरियों की बात करें, तो महिलाओं को आईटी फील्ड ने सबसे ज्यादा अट्रैक्ट किया है। देखा जाए तो पिछले एक दशक में आईटी ने भारतीय युवाओं को रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध कराए हैं। ऐसे में लड़कियों ने भी इस मौके को हाथोंहाथ लिया और इस फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाई। नैसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल आईटी सेक्टर में करीब 25 पर्सेंट महिलाएं काम कर रही हैं जिनमें से 8 पर्सेंट आईटी कंपनियों में टॉप पोजिशन पर हैं। महिलाओं ने आईटी फील्ड में सबसे ज्यादा तरक्की की है और एक हालिया रिपोर्ट की माने तो यह संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। मनपसंद काम है हॉस्पिटैलिटी का एयरलाइंस और फाइव स्टार होटलों की संख्या में दिनोंदिन होती बढ़ोतरी की वजह से महिलाओं के लिए लगातार रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी हो रही है। महिलाएं हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के नए चेहरे के रूप में सामने आई हैं। महिलाओं के ज्यादा केयरिंग होने की वजह से इस सेक्टर ने महिलाओं को हाथोंहाथ लिया है। इससे महिलाएं पहले के मुकाबले ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई हैं। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर ने महिलाओं को सुरक्षित वातावरण और अच्छी सैलरी पर काम करने का मौका उपलब्ध कराया है। सफलता के इन पड़ावों पर परचम लहराने के बावजूद अभी भी कई ऐसे पद हैं जिन पर महिलाएं फिलहाल आसीन नहीं हुई हैं। जैसे स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के तीनों अंगों के सर्वोच्च पद, फाइटर पायलट, नौ सेना में युद्ध पोत चालक, चुनाव आयुक्त, केबिनेट सेक्रेटरी और योजना आयोग की उपाध्यक्ष,, भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, रॉ, आईबी और सीबीआई जैसी सरकारी खुफिया एजेंसियों के शीर्ष पद व इसरो और इयूका जैसे प्रमुख वैज्ञानिक केंद्रों के उच्च पदों को महिलाओं का अभी भी इंतजार है। इनपर अभी तक कोई महिला आसीन नहीं हुई है। इनमें से कुछ पदों से दूरी का कारण वर्तमान नियम हैं, जो शारीरिक और मानसिक योग्यता के आधार पर महिलाओं को उन भूमिकाओं को निभाने से रोकते हैं तो कई पदों का खाली होना महिला विकास की धीमी प्रगति और देर से शुरु हुई प्रक्रिया से जुड़ा है। आशा है कि कदम दर कदम कामयाबी हासिल करने वाले कदमों से यह दूरी भी जल्द ही नप जाएगी।
Wednesday, March 9, 2011
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