Wednesday, July 21, 2010

कहा है महंगाई

भले ही महंगाई को लेकर समूचा विपक्ष सड़क पर है, लेकिन संसद के भीतर पक्ष और विपक्ष में एका है। आखिर, मामला सांसदों के वेत्तन-भत्ते की बढ़ोत्तरी का जो है जो देश की महगाई के साथ दिन दूनी और रात चोगुनी गति से बढ रहा है एक रुपये में दो कप चाय या कॉफी। मसाला डोसा दो रुपये में। एक रुपये में मिल्क शेक, शाकाहारी भोजन मात्र 11 रुपये में और शाही मांसाहारी भोजन मात्र 36 रुपये में। आप सोच रहे होंगे कि यह किस जमाने की बात हो रही है। सच मानिए यह आज की बात है। हमारे सांसदों को यह सुविधा हमारी सरकार संसद के अंदर दे रही है। संसद की कैैंटीन का यही मीनू कार्ड है सब कुछ तो मुफ्त है सांसदों पर हर महीने 21 करोड़ 14 लाख, 70 हजार रुपये खर्च किया जाता है। इसमें से करीब 14 हजार रुपये तो ऑफिस का ही खर्च है। इसके अलावा संसदीय क्षेत्र के लिए मासिक भत्ता 10 हजार मिलता है। संसद के तीन सत्र होते हैं और प्रत्येक सत्र के लिए इन्हें दैनिक भत्ते के तौर पर 1000 रुपये मिलते हैं। हर सांसद और उनके पति या पत्नी को रेलवे की तरफ से मुफ्त एसी-1 की सुविधा भी उपलब्ध है। पति या पत्नी के साथ बिजनेस क्लास में देश में कहीं भी 40 हवाई यात्राएं मुफ्त हैं। इन्हें दिल्ली में बंगला या फ्लैट दिया जाता है, जिसका किराया मात्र दो हजार रुपये होता है। पचास हजार यूनिट बिजली मुफ्त और साथ में पानी फ्री। बंगलों में एसी, फ्रिज, टीवी की सुविधा के साथ-साथ सोफा की सफाई, पर्दों की धुलाई मुफ्त की जाती है। सांसदों को तीन फोन लाइनों की पात्रता है और हर साल 170,000 लोकल कॉल फ्री हैं। 25 से भी अधिक बार बढ़ चुका है वेतन संवैधानिक तौर पर भारतीय संसद का गठन 1952 में हुआ। उसके दो साल बाद 1954 में सांसदों का वेतन-भत्ता कानून बना। उसके बाद से करीब 25 बार से भी अधिक सांसदों के वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाओं में बढ़ोतरी हो चुकी है। सांसद वेतन वृद्धि मामले में विदेशी सांसदों को मिलने वाले वेतन एवं अन्य भत्तों का तर्क देते हैं, लेकिन यह बात भूल जाते हैं कि अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस सहित यूरोप तथा अन्य विकसित देशों के जनजीवन और भारतीय जनजीवन में कितना अंतर है। भारत में आज भी 84 करोड़ लोग मात्र 20 रुपये प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं और एक-तिहाई जनता कुपोषण का शिकार है। अब 3जी का भी मजा लेंगे लोकसभा सचिवालय का कहना है कि सांसदों के वेतन भत्ते पर विचार के लिए गठित संयुक्त समिति ने उन्हें 3-जी सुविधा देने के मुद्दे पर विचार किया है। वर्तमान में सदस्यों के लिए सालाना 50,000 मुफ्त कॉल की सुविधा है। 3-जी पैकेज पर और इस सुविधा के अतिरिक्तइस्तेमाल पर आने वाला खर्च इसी मुफ्त कॉल में समायोजित किया जाएगा। लोकसभा सचिवालय के अनुसार, एमटीएनएल, बीएसएनएल द्वारा दी जा रही नई सुविधा सदस्यों के लिए वैकल्पिक होगी। सदस्यों को 3-जी सुविधा पर काम करने वाले हैंडसेट का खर्च खुद वहन करना होगा।

Tuesday, July 6, 2010

पादरी बनना हो तो पसर्नल जबाव दें...

धार्मिक कुर्सी पर बैठे लोगों का चरित्र जब संदेहास्पद हो जाता है तो उनकी जगह दूसरों को आने में कठिनाई आती हो। ऐसा ही मामला नए पादरी को बनने में आ रही है, जहां उन्हें नितांत व्यक्तिगत सवालों के जबाव देने पड़ रहे हैं। ईसाई धर्म में पादरियों को कैसा सम्मान प्राप्त है, कहने की आवश्यकता नहीं है। पादरी बनना अपने आप में एक गौरव का विषय है। लेकिन पिछले कुछ समय से पादरी के चाल-चरित्र के कारण लोग पादरियों को संदेह की नजरों से देखने लगे तो कई चर्च पर कालिख लगी। लिहाजा, खोई गरिमा को फिर से पाने के लिए और अपने नैसर्गिक महत्व को बरकरार रखने के लिए चर्च प्रसाशसन पादरियों की नियुक्ति में कोई हिल-हवाला नहीं रखना चाहता। सो, नितांत व्यक्तिगत सवालों के जबाव सुनकर भी संतुष्टï होना चाहता है।
अमूमन हर साक्षात्कार में कोई न कोई ऐसा सवाल जरूर होता है, जो अभ्यर्थी को को परेशान करता है। पर रोमन कैथलिक चर्च में पादरी बनने के इच्छुक अभ्यर्थी से साक्षात्कार में कुछ ऐसे सवाल पूछे जा रहे हैं, जिससे उनके दिमाग के तार हिल जा रहे हैं। अभ्यर्थी को एक फॉर्म दिया जा रहा है, जिसमें कुछ इस तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। पिछली बार कब आपने सेक्स किया था? अभी तक आपको सेक्स का कैसा अनुभव रहा है? क्या आप पॉरनॉग्रफ़ी पसंद करते हैं? इन सवालों के मनमाफिक जवाब मिलने के बाद अगले राउंड में अभ्यर्थी से कुछ और पर्सनल और कठिन सवाल पूछे जा रहे हैं। अब इन सवालों की बानगी देखिए- क्या आप बच्चों को पसंद करते हैं? क्या आप अपनी उम्र के लोगों की तुलना में बच्चों को ज्यादा पसंद करते हैं?
दरअसल, पिछले दिनों पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के कई मामले आने के बाद चर्च नेता ऐसे कदम उठा रहे हैं ताकि वे लोग पादरी न बन पाएं, जो बाद में चर्च की छवि खराब कर दें। इसी बात को ध्यान में रखकर पादरी बनने के इच्छुक अभ्यर्थी से ऐसे सवाल पूछे जा रहे हैं। पर बहुत से सवाल ऐसे जिनसे कुछ और चीजों का निर्धारण किया जा रहा है। इनसे यह पता किया जा रहा है कि अभ्यर्थी गे है या नहीं। वेटिकन के गाइडलाइंस के मुताबिक गे अभ्यर्थी को पादरी बनने से रोका जाना चाहिए। हालांकि यहां पर ऐसी कोई सीमा रेखा नहीं है, पर ज्यादातर गे कैंडिडेट्स को सलेक्ट नहीं किया जा रहा है। कुछ तो गे कैंडिडेट्स तो ऐसे हैं , जो अब तक कुंवारे हैं, पर उन्हें मौका नहीं दिया जा रहा है।
दरअसल, 2002 में यौन शोषण का बवाल होने के बाद से ही चर्चों की यह पहली कोशिश रहती है कि किसी भी तरीके से कोई गे कैंडिडेट्स पादरी नहीं बन सके। इस इंटरव्यू में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि आप अपने यौन इच्छाओं को काबू में कैसे रख पाएंगे, इस बारे में आपकी रणनीति क्या है? इन सवालों से यह साफ है कि पिछले कुछ सालों में पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण मामलों से हुए बदनामी के बाद चर्च अब सावधान हो गए हैं और पादरियों के चयन में वह कोई ढील देने के लिए तैयार नहीं है, ताकि आगे से ऐसी बदनामी न हो।
गौरतलब यह भी है कि पोप जॉन पॉल-2 ने भी 2003 में ऐलान किया कि जहां तक धार्मिक जीवन या प्रीस्टहुड में उन लोगों के लिए कोई जगह नहीं है जो बच्चों को नुकसान पहुंचाते हैं। 50 और 60 के दशकों में कैथलिक बिशप्स, पादरियों द्वारा यौन शोषण को आध्यात्मिक समस्या मानते थे। ऐसी समस्या जिसका समाधान भी आध्यात्मिक ही होता था। आध्यात्मिक समाधान यानी प्रार्थना। 60 के दशक से ही डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक बिशप्स ने इस बारे में अपना नजरिया बदलना शुरू कर दिया। इस दृष्टिकोण के मुताबिक जिन पादरियों ने बच्चों का यौन शोषण किया है, सही मनोवैज्ञानिक उपचार पाने के बाद वे ठीक हो जाते हैं और उन्हें फिर से धर्म सेवा में ले लिये जाने में कोई नुकसान नहीं है।

नीलम