tag:blogger.com,1999:blog-48577742343597917232024-03-05T14:34:38.156+05:30नीलमसामाजिक चेतना, मानवीय संवेदना और इंसानी जटिल प्रवृतियों की अभिव्यक्तिनीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.comBlogger112125tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-74149352792116931242015-07-23T22:10:00.000+05:302015-07-23T22:10:10.573+05:30निशाने पर कौन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इन दिनों लगातार एक खास वर्ग के बीजेपी नेता चर्चा में बने हुए हैं। ललित मोदी के नाम साथ पहले सुषमा स्वराज, फिर वसुंधरा राजे और फिर न जाने किस किस का नाम जोड़ा गया पर इस मामले में हकीकत से ज्यादा फसाने हैं। दूसरी ओर पकंजा से लेकर शिवराज तक और रमन से लेकर गडकरी तक किसी न किसी मामले में फंसते दिख रहे हैं। कहीं इसका कारण वह राजनीति तो नहीं जिसके बूते हर बार की तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी नाकामियों का ठींकरा दूसरों के सर फोड़ देते हैं। कहीं आगामी चुनाव में होने वाले हार की फनक तो नहीं लग गई मोदी-शाह जिसके लिए माहौल अभी से तैयार किया जा रहा है।<br />
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पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी की चर्चा चहुं ओर है। मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी मोदी आईपीएल का कॉन्सेप्ट लाने के साथ-साथ कई वजहों से सुर्खियों में रहे हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी और बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक उनकी अच्छी पैठ है। फिलहाल भले कांग्रेस उनका नाम वसुंधरा राजे, सुषमा स्वराज और दूसरे भाजपाई नेताओं से जोड़ रही हो पर ललित मोदी की माने तो उनके समर्थक हर दल में। भारतीय जनता पार्टी, केन्द्र या राज्य सरकारों के अंदर जो विभिन्न प्रकार के कथित घोटाले और अनियमित्ताओं के चर्चे हो रहे हैं, इसमें सत्यता चाहे जितनी हो, लेकिन प्रचार के पीछे भाजपा की आंतरिक लड़ाई को भी एक पक्ष माना जा सकता है। गौर से देखेंगे तो ये मामले उन्ही लोगों के खिलाफ उठ रहे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं बिहार में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, जो स्थिति बन रही है उसमें बिहार चुनाव भाजपा के लिए बेहद कठिन चुनाव में से एक है।<br />
सबसे पहले ललित गेट की शिकार बनी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज। यदि पूरी भाजपा में देखा जाए तो स्वराज, मोदी की प्रबल विरोधी रही हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले तक स्वराज ने मोदी का जमकर विरोध किया, आज वो भी ललित मोदी प्रकरण वाले मामले में फंसती हुई बताई जा रही हैं। वसुंधरा राजे में कुछ भाजपाइयों को नरेन्द्र मोदी वाला गुण दिखा और उनकी ओर जैसे ही कुछ लोगों का झुकाव हुआ राजे भी टारगेट में आ गई। इस मामले में कांग्रेस सडक़ पर उतरी तो वसुंधरा को घेरने के लिए कुछ दस्तावेज़ पेश किए। 1954 से 2010 तक के सरकारी रिकॉर्ड को दिखा कांग्रेस ने दावा किया कि धौलपुर पैलेस सरकारी सम्पत्ति है और आरोप लगाया कि वसुंधरा राजे ने इस पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से क़ब्ज़ा कर रखा है। ये भी आरोप लगाया कि राजे के बेटे दुष्यंत की कंपनी नियंता होटल हेरिटेज प्राइवेट लिमिटेड में राजे के साथ-साथ ललित मोदी की कंपनी आनंदा का भी शेयर है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का आरोप है कि राजे-भगोड़ा मोदी के बीच कारोबारी रिश्ते हैं। कांग्रेस ने ललित मोदी पर मारीशस की एक फर्जी कंपनी के जरिये मनी लांड्रिंग का आरोप भी लगाया जिसे दुष्यंत की कंपनी में लगाया गया। जयराम रमेश का आरोप है कि इसके जरिए 22 करोड़ आया जिसमें 11 करोड़ नियंता में लगा। धौलपुर पैलेस की मिल्कियत का, लेकिन विवाद रहा है और मामला कोर्ट तक में गया। दुष्यंत के वकील का दावा है कि धौलपुर हाउस उन्हीं के नाम है। बीजेपी ने भी कांग्रेस के आरोप को बेबुनियाद बताया। इसके बाद यह भी तथ्य सामने आया कि ललित मोदी को पद्म पुरस्कार देने की सिफारिश के मामले में राजस्थान कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घेरा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि वसुंधरा राजे और ललित मोदी के घनिष्ठ संबंध रहे हैं। राजे के पूर्व शासन के दौरान 2007 में ललित मोदी को पद्म पुरस्कार देने की सिफारिश करने का मामला उजागर होने के बाद भाजपा एक बार फिर बचाव की मुद्रा में आ गई है। भाजपा के पूर्व शासन के दौरान भ्रष्टाचार को संस्थागत किया गया था और परदे के पीछे से सरकार के कामों में भ्रष्टाचार को पनपाने में सबसे बड़ी भूमिका ललित मोदी की थी। राजे के खिलाफ उजागर हुए मामलों के बाद भी भाजपा नेतृत्व कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। इससे ही साफ होता है कि राजे के पूर्व शासन के दौरान जितनी भी गड़बडिय़ां हुई थीं उसमें भाजपा नेतृत्व और संगठन की सहमति रही है। ललित मोदी के लिए पद्म पुरस्कार की सिफारिश करना राष्ट्रीय पुरस्कार का अपमान है। ललित मोदी प्रकरण के कारण आरोपों से घिरी मुख्यमंत्री राजे अब इस विवाद में फिर उलझ गई हैं। इस मामले में प्रदेश भाजपा की तरफ से कोई सफाई अभी तक नहीं दी गई है। राजे के पूर्व शासन के दौरान खेल परिषद के जरिए 28 जुलाई 2007 को ललित मोदी के लिए पद्म पुरस्कार के लिए सिफारिश की गई थी। सरकार के निर्देश पर खेल परिषद ने ललित मोदी से आवेदन मंगवाया गया था। पद्म पुरस्कार के लिए ललित मोदी के व्यापार और क्रिकेट के खेल को आधार बनाया गया था।<br />
इन सब का जवाब दिया समस्याओं से घिरे और घोटालों के आरोपी आईपीएल के पूर्व प्रमुख ललित मोदी ने अपने विरोधियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हुए सनसनीखेज खुलासों की चेतावनी दी है कि अब चीजों को बाहर लाने की उनकी बारी है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों का नाम लेते हुए मोदी ने अपने कई ट्वीट में दावे किए कि खुलासे बम का गोला साबित होंगे और इसके लपेटे में पूर्ववर्ती पीएमओ भी आएगा। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि अब तथ्यों को सामने रखने का वक्त आ गया है। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, दूसरे खूबसूरत जगह के लिए दूसरे विमान पर सवार होने से पहले यह युद्ध है। मैं युद्ध जीतने के लिए एक लड़ाई हारने को चुना है। सुषमा स्वराज के इस्तीफे के लिए विपक्ष की मांग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, गलत लोगों के इस्तीफे की मांग की जा रही है। मैं आपको आश्वस्त करना चाहूंगा कि तूफान आने वाला है।<br />
खैर ललित की बात को दरकिनार करके सोचते हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा के लिए या भाजपा का यह संघर्ष आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। इन दिनों भाजपा के अंदर भौतिक द्वन्द्व भी चल रहा है, जो चरम की ओर बढ़ेगा क्योंकि जहां सबसे ज्यादा व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है, वही वह सबसे ज्यादा असुरक्षित भी होता है। फिलहाल भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को संभवत: भरोसा हो गया है कि बिहार का चुनाव वे हार भी सकते हैं। यदि बिहार के चुनाव में भाजपा की हार हुई तो उसे सीधे प्रधानमंत्री की कार्यशैली और अध्यक्ष के सांगठनिक कौशल से जोडक़र देखा जाने वाला था, लेकिन उससे पहले ही घोटालों और अनियमित्ताओं का प्रचार प्रारंभ हो गया है। निश्चित ही यह भी संभव है कि बिहार चुनाव में भाजपा हार जाए। या परिणाम दिल्ली जैसे हों। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को बचाने वाली कॉरपोरेट मीडिया भाजपा के नेताओं के ऊपर लग रहे दाग को व्यापक तरीके से प्रचारित कर रही है क्योंकि यदि बिहार चुनाव में भाजपा की हार हुई, तो उसका ठीकरा कथित घोटालेबाज और अनियमित्ता करने वालों पर फोड़ा जा सके। हां, एक बात और है कि मोदी समर्थक कॉरपोरेट, मोदी के समकक्ष अन्य किसी भाजपा नेता को खड़ा नहीं होने देना चाहते हैं। लिहाजा मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं। व्यापमं में फस रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बारे में भी कहा जाता है कि वे भी अत्यंत पिछड़ी जाति के हैं और मोदी वाली संभावना भी उनमें दिखती है। अब इन घोटालों और अनियमित्ताओं के प्रचार ने मोदी की कार्यशैली एवं शाह के संगठन कौशल पर प्रश्न खड़ा नहीं होगा। अब प्रचारित यह किया जाएगा कि बिहार एवं बंगाल की हार के लिए घोटाले एवं अनियमित्ता वाले नेता जिम्मेवार हैं, न कि मोदी की जनविरोधी नीतियां और शाह का संगठन कौशल। इसलिए कुल मिलाकर कहा जाए तो नरेन्द्र भाई और अमित भाई, बड़ी बारीकी से भाजपा के खिलाफ हो रहे प्रचार को अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने एवं अपने फायदे के रूप में उपयोग करने में सफल हो रहे हैं, ऐसा कहना गलत नहीं होगा।<br />
फिलहाल कांग्रेस की रणनीति साफ है। मोदी के मंत्रियों और राजस्थान की मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े की मांग को लेकर 20 जुलाई तक वो यूं ही रुक-रुक कर खेलती रहेगी। संसद का सत्र शुरू होते ही लंबे शाट्स खेलेगी। लेकिन इसके लिए कांग्रेस को आम आदमी पार्टी समेत तमाम विपक्षी पार्टियों का साथ चाहिए होगा जो उसको मिल सकता है। यानी कहना गलत न होगा कि चाहे संसद हो या सडक़ जवाब भाजपा को ही देना होगा।<br />
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निशाना किसका?<br />
सवाल यह है कि भाजपा इस तरह जो आरोपों से घिर रही है उसके पीछे हैं कौन? क्योंकि मामला सुषमा, वसुंधरा, स्मृति और पकंजा पर खत्म नहीं हुआ बल्कि शिवराज और रमन सिंह भी इसकी जद में हैं। तीन बार मुख्यमंत्री रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर भी चावल घाटाले का आरोप लगने लगा है। उन्हें भी प्रधानमंत्री मटेरियल बताया जा रहा है और उन्हें भी कुछ लोग मोदी के विकल्प के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के ऊपर आरोपों की झड़ी लग चुकी है और कई मामले में केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली पर भी निशाना साधा जा रहा है। इधर, महाराष्ट्र के प्रभावशाली नेता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु हो चुकी है और उनकी बेटी पंकजा के ऊपर अनियमित्ता का आरोप है। ऐसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विद्यार्थी शाखा के लोकप्रिय नेता रहे मराठा क्षेत्र के प्रभावशाली नेता विनोद तावडे के खिलाफ भी मामला उछल रहा है। वे भी प्रधानमंत्री मटेरियल के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे थे। इधर, संघ के चहेते भाजपा नेता नितिन गडकरी के खिलाफ कई मामले लंबित हैं। उन्हें भी प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जा रहा था। संघ ने तो डंके की चोट पर महाराष्ट्र से सीधे उन्हें दिल्ली लाकर बिठा दिया, लेकिन कई घोटालों में नाम आने के बाद इन दिनों संघ भी चुप्पी साधे हुए है। अंत में अति ईमानदार छवि वाले गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिर्कर को आनन-फानन में केन्द्रीय प्रतिरक्षा मंत्री बनाया गया और नरेन्द्र मोदी के विकल्प की संभावना उनमें तलाशी जाने लगी। इस बीच सुना है कि उनके खिलाफ भी चुनाव के दौरान अपनी शिक्षा के विषय में चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का आरोप लग रहा है। यानी जिन भाजपा नेताओं में प्रधानमंत्री के विकल्प की छवि दिखाई दे रही है, उन्ही के खिलाफ अनियमित्ता का आरोप प्रचारित हो रहा है। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कई संयोग एक साथ सामने आए तो उसे षड्यंत्र मान लेना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा के अंदर मोदी समर्थकों को बारिकी से बचाया जा रहा है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी के मामले को लगातार मीडिया में दबाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। खुद अमित शाह कई मामलों में फंसे रहे हैं, लेकिन उनको मीडिया बड़ी तसल्ली से बचा रही है। इसका संकेत साफ है कि भाजपा के अंदर सत्ता का संघर्ष बड़ी तेजी से विस्तार प्राप्त कर रहा है। इन दिनों जब भाजपा नेताओं पर घोटालों और अनियमित्ताओं का आरोप प्रचारित हो रहा है, तो साफ-साफ भाजपा के दो गुटों के आपसी द्वन्द्व, जो परोक्ष रूप में था वह प्रत्यक्ष होने लगा है।<br />
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नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-34059608919528082022014-06-03T18:48:00.002+05:302014-06-03T18:48:35.908+05:30अडानी की नजर अब छत्तीसगढ़ पर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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भले ही लाख तर्क दिए जाएं पर सच यही है कि नरेंद्र मोदी और अडानी काफी करीब है और अब मोदी के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अडानी की शक्ति में भी इजाफा हुआ है। गुजरात के बाद अब अडानी की नजर छत्तीसगढ़ पर है यही कारण है कि उनकी पैरवी पर विष्णुदेव साय केंद्र में मंत्री बने हैं।<br />
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यूं तो राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में शामिल चार हजार लोग खास थे, लेकिन उसमें भी चार परिवार बेहद खास थे। औद्योगिक समूह की पहली पंक्ति में शुमार मुकेश अंबानी-नीता, अनिल अंबानी-टीना, अंबानी बंधुओं की मां कोकिला बेन, गौतम अडानी-प्रीति और वॉलीवुड स्टार सलमान खान। अडानी और अंबानी बंधुओं का इस आयोजन में आना महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि महत्वपूर्ण था देश की बागडोर संभालने वाले महारथियों में अडानी का पलड़ा अंबानी से ज्यादा भारी होना। टीम मोदी में एक ऐसा अनजान चेहरा शपथ लिया था, जिसे सुबह तक पता नहीं था कि इस रेस में अडानी ने उस पर दांव लगा दिया है। वहीं, टीम मोदी से एक ऐसा चेहरा गायब था, जिसे लाने के लिए अंबानी ने सारे घोड़े खोल दिए थे। इसमें सबसे चतुर खिलाड़ी नरेन्द्र मोदी थे, जिन्होंने मुकेश अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का रास्ता निकाल लिए थे।<br />
सूत्र बताते हैं कि विष्णु देव साय को मंत्री बनवाने में अडानी की अहम भूमिका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के सबसे वरिष्ठ नेता रमेश बैस को दरकिनार कर मोदी ने साय को मंत्री बनाया। इससे संदेश ये गया जैसे रमन सिंह की सिफारिश पर साय को लिया गया हो, लेकिन कहानी दूसरी है। साय अडानी की पसंद हैं। वैसे तो मंत्री बनाए गए लगभग नेताओं को पता नहीं था कि वह टीम मोदी का हिस्सा बनने वाले हैं, लेकिन साय को खुद को इससे कोसों दूर मानकर चल रहे थे। शपथ-ग्रहण के दिन यानी 26 मई को साय के पास सुबह आठ बजे गुजरात भवन से फोन आता है। नरेंद्र मोदी से बात होती है। उन्हें गुजरात भवन बुलाया जाता है और शाम को शपथ लेने का न्यौता दिया जाता है। इस फैसले से साय खुद हैरान थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने खुद कहा था कि वे मंत्री पद की दौड़ में कहीं नहीं हैं। हालांकि, ये बात हर नेता कहता है, लेकिन साय का कहना इसलिए महत्वपूर्ण है कि साय छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी नेताओं में हैं, जो राजनीति में होते हुए छल-प्रपंच नहीं करते। स्पष्ट बात और सच की स्वीकारोक्ति साय की खासियत है। सूत्र बताते हैं कि साय भी नहीं जानते कि उन्हें ये पद रमन सिंह की मेहरबानी और योग्यता पर नहीं मिला, बल्कि अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। सच की स्वीकारोक्ति विष्णुदेव साय की खासियत है। केंद्र में मंत्री पद मिलना उनकी इस खासियत का ईनाम नहीं, बल्कि अडानी के भरोसे के कारण मिला है। अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, उससे माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। पता चला है कि हाल के दिनों से अडानी की दिलचस्पी छत्तीसगढ़ में कुछ ज्यादा बढ़ गई है। वे छत्तीगसढ़ में कांग्रेस से जुड़े उद्योगपति नवीन जिंदल का किला ध्वस्त कर अपना बर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं। इसको लेकर अंदरूनीतौर पर काफी दिनों से ताना-बाना बुना जा रहा है। उद्योगपतियों और सरकार के बीच सेतु का काम करने वाले अडानी द्वारा छत्तीसगढ़ में एक बड़े खेल की योजना बनाई गई है। बताया गया कि गौतम अडानी के लोग करीब एक माह से रायगढ़ क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राज्य के चार आदिवासी नेताओं के साध कर राज्य में बड़े राजनीतिक उलटफेर का रास्ता तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में दो विपरीत मिजाज वाले आदिवासी नेताओं को साधकर अडानी कैंप की योजना राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तक कराने की है। सूत्र बताते हैं कि अडानी जिस रणनीति से चल रहे हैं, उसमें मोदी का साथ मिलना तय है। हालांकि मोदी चतुर खिलाड़ी हैं, लेकिन अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, मोदी भी उसे नहीं समझ पा रहे। लिहाजा, माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। सूत्रों ने बताया कि अडानी के इस गोपनीय मिशन में राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, रामविचार नेताम, नंद कुमार साय और विष्णुदेव साय को टारगेट किया जा रहा है। अडानी गुट के लोग इन चारों नेताओं को अलग-अलग तरीके से ग्रिप में लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें दो नेता सीएम रमन सिंह के काफी करीबी हैं - रामसेवक पैकरा और विष्णुदेव साय। वहीं, नंद कुमार साय-रामविचार नेताम जैसे रमन सिंह विरोधी नेताओं के जरिए वहां आदिवासी नेतृत्व की मांग को बुलंद कराया जाएगा।<br />
दरअसल, अडानी राज्य में अपने मनमाफिक सीएम को बिठाकर छत्तीसगढ़ का अकेला सम्राट बनने की योजना लेकर चल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सरकारी मशीनरी को सेट करने के साथ छत्तीसगढ़ में स्थापित जिंदल ग्रुप को उखाड़ने की कोशिश में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि जिंदल ग्रुप किसी समय पर भाजपा नेताओं के करीबियों में शुमार था, लेकिन बाद में सत्ता से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के कारण बाहर खड़े होकर भाजपा सरकार के लिए परेशानी पैदा करने लगे। उधर, कोल ब्लॉक घोटाले में भाजपा नेता अजय संचेती और अडानी के ब्लॉक निरस्त कराने में जिंदल की अहम भूमिका मानी जाती है। कहा जाता है कि तभी से अडानी ने मिशन छत्तीसगढ़ की योजना बनाकर वहां अपने दूतों को भेजा और वे दूत पूरी शिद्दत से काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं।<br />
कहा तो यह भी जा रहा है कि गौतम अडानी को छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच मतभेद का भी लाभ मिल रहा है। सीएम रमन सिंह दोहरी आस्था के कारण संदिग्ध हैं। मोदी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देते। अडानी के मोदी से नजदीकी रिश्ते हैं। अडानी जहां मोदी के साथ मिलकर खेल जमाने में सफल रहे, वहीं मुकेश अंबानी अपना खेल नहीं जमा पाए। सूत्र बताते हैं कि मुकेश अंबानी अरुण शौरी को वित्तमंत्री बनवाना चाहते थे। शौरी उनकी पसंद थे और मोदी को यह बात बताकर उन्हें राजी करने का हरसंभव प्रयास किया गया। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में पहला मौका है, जब मुकेश अंबानी की पसंद को नजरअंदाज कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि मोदी शौरी को कहीं और भले समायोजित कर लें, लेकिन वह ये संदेश देने से बचना चाहते थे कि उनकी टीम में अंबानी के लोग हैं। इसलिए वित्तमंत्री का पद किसी और को देने की बजाय अपने सिपहसालार अरुण जेटली को दिया। हालांकि, अंबानी के लिए ये एक बड़ा झटका कहा जाएगा, क्योंकि इसके पहले हर वित्तमंत्री उनके इशारे पर बनता था। इसमें मजेदार बात ये है कि मोदी ने सारा काम इतनी चतुराई से किया है कि न अडानी को अंबानी की मंशा की भनक लगने दी और न अंबानी को अडानी का खेल पता चलने दिया। मतलब मोदी ने अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का कूटनीतिक रास्ता निकाल जता दिया कि राजनीति में वह कितने उस्ताद हैं। <br />
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नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-14071592857563128152012-12-12T01:10:00.001+05:302012-12-12T01:10:13.642+05:30छाया नशा 12-12 12 का<br />12-12-12 का आंकड़ा सौ साल बाद आएगा इसलिए इस दिन को युवावर्ग भाग्यशाली मान रहा है। फिर चाहे हो वो आम लोग हो या ज्योतिष सभी के अनुसार 12-12-12 का ये आंकड़ा अपने आप में अदभुत है। यही कारण कारण है कि शादी से लेकर बच्चे के जन्म और नई नौकरी ज्वाइन करने से लेकर कोई भी नया काम करने के लिए लोग इस दिन का बेकरारी से इंतजार कर रहे हैं।<br /><br />जिस तरह पिछले साल 11-11-11 की तारीख को लेकर लोग खासकर युवा पागल थे उसी तरह इस साल 12-12-12 के जादुई तारीख को लेकर भी युवाओं का जुनून देखते ही बन रहा है। इस तारीख का जादू हर किसी के सिर चढ़ कर बोल रहा है। देश भर में लोग इस दिन को यादगार बनाने का मन बना रहे है, जिन के घरो में नवजात आने वाला है वो लोग किसी भी तरह अपने घरो के चिराग को इसी अदभुत योग नक्षत्र की घड़ी में जन्म देना चाहते है, कुछ माएं तो असहनीय प्रसव पीड़ा को 24 घंटे ओर सहने को तैयार है। साथ ही युवा जोड़े इस दिन शादी करने के लिए जहां अदालतों में रजिस्ट्री करवा चुके हैं वहींइस दिन के लिए पंडितों व ज्योतिषाचर्यो से खास मुहूर्त भी निकलवाया जा रहा है।<br /><br />यादगार बनाने की होड़<br />इस महीने 12-12-12 की खास तिथि को कई लोग अपने-अपने तरीके से यादगार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कोई इस दिन विवाह, तो कोई नन्हे मेहमान को घर लाने की तैयारी में है। वहीं युवा इस दिन को पार्टी के साथ सेलिब्रेट कर रहे हैं। 12 दिसंबर यानी 12-12-12 को शहर के कई लोग खास तिथि के रूप में देख रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं कि उस दिन उनकी जिंदगी में कोई ऐसी चीज हो, जो हमेशा के लिए यादगार बन जाये। यही वजह है कि लोग अपने घर में नया मेहमान लाने के लिए भी इस तारीख को चुन रहे हैं। कई बड़े अस्पतालों के डॉक्टर्स के अनुसार जिन महिलाओं की डिलीवरी डेट दिसंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में है, वे अपना ऑपरेशन 12 दिसंबर को कराने की इच्छा जता रही हैं। वैसे तो इस दिन हिंदुओं में पारंपरिक रीति-रिवाज से शादी का कोई मुहूर्त नहीं है। पर कई जोडिय़ां इस खास दिन पर कोर्ट मैरिज या फेरों के साथ शादी करने के लिए तैयार हैं। कई लोग अपने नए शाप को इसी दिन इसे लांच करने की योजना बना चुके हैं। वो सभी 12 दिसंबर को ही अपने शॉप की शुरुआत करना चाहते हैं ताकि सभी के लिए ये दिन यादगार बन जाए। जिनका जन्मदिन 12 दिसंबर को आता है वो भी इस खास तारीख को यादगार बनाना चाहते हैं। कुछ युवा इस खास दिन को पार्टी करके सेलिब्रेट करने की तैयारी की है। कुल मिलाकर कोई भी इस तारीख को यूं ही नहींजाने देना चाहता है।<br /><br />गूंजेगी शादी की शहनाई<br />हर जोड़ें का बस यही सपना होता है कि उनकी शादी इतनी यादगार बने कि सालों तक लोग इसे याद रखें। अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए इस साल सैकड़ों जोड़ों ने एक अनोखी तारीख के दिन सात जन्मों के इस बंधन में बंधने की प्लैनिंग की है। ये तारीख है इस साल दिसंबर के महीने में 12 तारीख जो एक अनोखा योग बना रही है। इस बेहद अनोखी तारीख को कई कपल अपने जीवन का सबसे यादगार दिन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। भले ही हिंदू धर्म के अनुसार इस तारीख को कोई शादी का साया नहीं पड़ रहा है। लेकिन कई जोड़े इस डेट को शादी करने के लिए पंडित जी के पंचांग को छोड़ न्यूमेरोलॉजिस्ट की सहायता ले रहे हैं। जो लोग इस दिन शादी करने वाले हैं उनका मानना है कि शादी जीवन का एक ऐसा उत्सव है जो हमेशा यादगार रहता है। ऐसे में ये तारीख एक स्पेशल दिन को और भी स्पेशल बना देगी। हालांकि इस तारीख को कोई शुभ मुहूर्त तो नहीं हैं, पर अंक विज्ञान के अनुसार 12-12-12 यानी 3 3 3= 9 होता है। ये तारीख मंगल कार्य के लिए उत्तम है। लेकिन ज्योतिष की माने तो ये भी देखना पड़ेगा कि जिन कपल का आपसी तालमेल मंगल के कारण बिगड़ रहा है, उनको ये तारीख नहीं अपनानी चाहिए।<br /><br />नन्हे मेहमान को लाने का जुनून<br />पटेल अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. शमा बत्रा कहती हैं कि कभी गाडिय़ों के वीआईपी नंबर के लिए मारामारी होती थी। इसके बाद मोबाइल नंबर की बारी आई लेकिन अब एक तय तारीख पर बच्चा पैदा करने की तैयारी जोरों पर है। फिलहाल हर जगह बच्चों की पैदाइश इस तय तारीख पर कराने के लिए बुकिंग की लाइन लग रही है और ये तारीख है 12-12-12। तय तारीख पर डिलीवरी कराने की ये प्रकिया मुश्किल ही नहीं कभी कभी खतरनाक भी साबित हो सकता है। जिन महिलाओं की पहली डिलीवरी है, उनको तों खास तौर पर इस तरह की तारीखों पर बच्चे पैदा कराने पर डॉक्टर साफ मना भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं यदि उनके परिजनों की भी काउंसलिंग की जा रही है। डॉक्टर इस बात पर खास गौर कर रहे हैं कि मां ने कम से कम 38 हफ्ते पूरे कर लिए हों। कई डॉक्टर इस तरह के ऑफरेशन से साफ मना कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रकृति को उसका काम करने दिया जाना चाहिए। ऐसी मांग करने वाली कुछ माओं को तो सख्त हिदायत दी गई है कि वो अपना जुनून छोड़ दें क्योंकि वक्त से पहले या बाद में बच्चे की पैदाइश में जच्चा-बच्चा के साथ ऑपरेशन के दौरान भी और बाद में भी पैदा बच्चे में गड़बड़ी की आशंका रहती है। पर फिर भी बच्चों की किस्मत को चार चांद लगाने के लिए लोग तारीखों का चुनाव खुद कर रहे हैं। कोशिशे ये हैं कि बच्चा तय शुदा तारीख पर ही पैदा हो इसके लिए इस बार 12 के तिलिस्म को तरजीह दी गई है। इसे शुभ माना जा रहा है। मानना है कि ये बच्चे के लिए शुभ होगा। अंक ज्योतिष के अनुसार बच्चे का इस तारीख को जन्म उसके पुरे जीवन के लए शुभ होगा। उसके व्यवहार से लेकर कैरियर की कामयाबियों तक उसकी जन्म तारीख उसके लिए भाग्यशाली साबित होगा। <br /><br />ऐसी दीवानगी ठीक नहीं<br />मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख कहते हैं कि 12-12-12 जैसी अनोखी तारीख देखने में ये संख्या जितनी रोचक और आकर्षक लग रही है, उतना ही युवाओं को भटकाने वाली भी है। इस संख्या का प्रभाव इतना है कि जिन युवाओं का विवाह निर्धारित हो चुका है वो इसी दिन विवाह करना चाह रहे हैं। इस तिथि के प्रति लोग इतने उत्सुक हैं कि पंडितों या शुभ मुहूर्त का भी ख्याल नहीं कर रहे हैं। अगर 12-12-12 के प्रति आकर्षण का कारण सिर्फ रोचकता होता तो फिर भी इसे हम उत्सुक युवाओं की सोच कह सकते थे लेकिन हैरानी वाली बात ये है कि युवाओं के मस्तिष्क में ये सोच भी अपनेआप ही अवतरित नहीं हुई बल्कि इस मानसिकता पर भी न्यूमरोलॉजी का पूरा प्रभाव है। इस रोचकता को भी ज्योतिषीय कोण के आधार पर देखा जाए तो समझ में आ जाएगा कि हमारे युवा कितने फ्री माइंडेड और अंध-विश्वास के दूर रहने वाले हैं। कथनों से प्रभावित होकर ही युवा 12-12-12 को विवाह करने या फिर संतान को दुनियां में लाने के लिए बहुत जागरुक और उत्सुक हो गए हैं। कई महीनों पहले ही लोगों ने विवाह के लिए स्थान सहित सभी जरूरी प्रबंध कर लिए हैं। वहीं महिलाओं ने इसी दिन अपने बच्चे को जन्म देने के लिए डॉक्टरों से समय ले लिया है लेकिन क्या किसी विशेष तारीख पर विवाह करने या जन्म लेने वाले व्यक्तियों के सफल और खुशहाल जीवन की गारंटी ली जा सकती है? कुल मिलाकर इसे एक तरह का अंधविश्वास ही कहेगे जिसके रौ में बहुतायत में युवा बह रहे हैं।<br /><br />ज्योतिषी मान रहे हैं शुभ<br />ज्योतिषाचार्य पं. संजीव शर्मा की माने तो 12-12-12 का ये आंकड़ा अपने आप में अदभुत है और ज्योतिष के हर अंग के अनुसार ये तिथि चमत्कारी है। इस दिन का नक्षत्र, योग अपने आप में अदभुत है और 12-12-12 साल का आखिरी अनूठा संयोग है। अगला अनूठा संयोग 100 साल बाद आयेगा। इस दिन जन्म लेनेवाले बच्चे भविष्य में कभी असफल नहीं होंगे। इन बच्चों का मूलांक तीन और भाग्यांक दो रहेगा। ये किसी भी विषम परिस्थिति में सामना आसानी से कर सकेंगे क्योंकि ये हर बात पर अडिग रहनेवाले होंगे। इसलिए जो भी लक्ष्य निर्धारित करेंगे, उसे वे हासिल भी करेंगे। 12 में एक और दो है। इसलिए इसका मूलांक एक जोड़ दो यानी तीन होता है। तीन मूलांक का कारक बृहस्पति होता है। बृहस्पति के प्रभाव से ये संयोग बहुत ही शुभ साबित होता है। ऐसे अंक वाले जातक अलग पहचान, अलग व्यक्तिव रखते हैं। वे उच्च आकांक्षावाले होते हैं। इस योग में अब्राहम लिंकन, चर्चिल, चाल्र्स रॉबर्ट जैसे महान लोगों का जन्म हुआ था। पर विवाह के लिए इस दिन कोई मुहूर्त नहींहै। अंकशास्त्री पं. रूपेश जैन कहते हैं कि 12-12-12 की तिकड़ी व्यक्ति के जीवन में ठहराव और सामंजस्य ला सकती है। हिंदू नक्षत्रों के आधार पर न्यूमरोलॉजी को अध्यात्म से जोडक़र भी देखा जा रहा है। ये दिन आपके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकता है। वे जोड़े जो इस दिन विवाह बंधन में बंधेंगे या जो जन्म लेंगे उनको दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होगा और वे एक खुशहाल जीवन जी पाएंगे।<br />नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-32368802869530761742012-08-18T14:26:00.000+05:302012-08-18T14:26:18.368+05:30लव सेक्स और सत्ता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />सियासतदां अभी शेहला मसूद और भंवरी के भंवर से निकल भी नहींपाएं है कि गीतिका और फिजा की मौत ने राजनीतिक हलकों में फिर हडक़ंप मचा दिया है। वैसे भी जब-जब सियासत नंगी हुई है, तब-तब अवाम शर्मिंदा हुआ है। हर बार कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ी है। पहले भी कई ऐसे कांड हुए हैं जिसने सफेदपोशों के चोहरों पर काली स्याही पोत दी है।<br />
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<br />नैना साहनी, मधुमिता शुक्ला, शशि प्रसाद, भंवरी देवी, गीतिका शर्मा और अब फिजा इन सबके जीवन की कहानी लगभग एक जैसी है। सभी ने अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राजनीतिक शख्सियतों का सहारा लिया और अपना सबकुछ उनपर लुटा दिया पर बदले में न सत्ता मिली न ही जिंदगी जीने का हक। इन सबके रातों रात चमकने के सपने ने इनसे इनकी आखिरी सांसे भी छीन ली। किसी को अज्ञात हमलावरों ने गोलियों से भून डाला तो किसी को तंदूर की आग के भेट चढऩा पड़ा। पर ये सिलसिला यहींरुका नहींहै और शायद कभी रुकेगा भी नहीं क्योंकि सत्ता का नशा और सत्ता का उपयोग अपने विलासिता के साधन जुटाने में करना नेताओं के लिए नया ट्रेंड नहीं है। बस हर बार इसको डील करने का तरीका बदल जाता है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio9q6EnMDUWsttzsPO8MNhIiaO5mmCDEUEBv_BH3_TPNbjk0Icwae6VhxFOZ77qjPFKp892IBaBqSxuaKzHsmbJDp2Sw5b7BBzR5t8GsmWV2Art8q7Xvw-0B3LzyWLNok-ofTKtMI2_ikr/s1600/naina-sahni.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio9q6EnMDUWsttzsPO8MNhIiaO5mmCDEUEBv_BH3_TPNbjk0Icwae6VhxFOZ77qjPFKp892IBaBqSxuaKzHsmbJDp2Sw5b7BBzR5t8GsmWV2Art8q7Xvw-0B3LzyWLNok-ofTKtMI2_ikr/s320/naina-sahni.jpg" width="320" /></a></div>
<br />अगर नैना साहनी में राजनीतिक महत्वकांक्षा और समाज में नाम पाने का जुनून न जागता और युवक कांग्रेस का दबंग नेता सुशील शर्मा उसकी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने का वादा न करते तो शायद नैना का हश्र इतना दहला देने वाला न होता। मंदिर मार्ग के एक फ्लैट में कांग्रेस का खूबसूरत और तेजतर्रार युवा नेता नैना साहनी के साथ में रहता था। नैना को भले ही सुशील ने अपने घर वालों से कभी नहीं मिलवाया था, लेकिन तेज दिमाग नैना के दबाव के चलते उसको गुपचुप शादी करनी पड़ी थी। नैना के भी पॉलिटिकल रिश्ते थे, जो सुशील को बाद में अखरने लगे थे और यही उसकी हत्या की भी वजह भी बने। 2 जुलाई 1995 की रात कांस्टेबल अब्दुल कादिर कुंजू और होमगार्ड चंद्रपाल को दिल्ली के ओपन एयर रेस्तरां से उठने वाला धुंआ कुछ इतना ज्यादा लगा कि वो चैक करने के लिए अंदर जा पहुंचे। अंदर पहुंचते ही बदबू आना शुरू हो गई। ये दोनों पुलिस वाले अगर अंदर नहीं जाते तो दुनिया कभी भी तंदूर कांड से रूबरू नहीं हो पाती। सुशील ने नैना को ठिकाने लगाने का मन तब बनाया जब किसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हो गई और गुस्से में सुशील ने नैना पर अपने लाइसेंसी रिवॉल्वर से दाग दीं एक-एक करके पूरी तीन गोलियां। जान लेने के बाद भी उसका गुस्सा खत्म नहीं हुआ। उसने रेस्तरां के मैनेजर के साथ मिलकर लाश के टुकड़े-टुकड़े कर उनको जलते तंदूर में झोंक दिया। नैना साहनी की दर्दनाक हत्या ने सरकार को हिलाकर रख दिया। कांग्रेस के नेता का यह रूप देखकर हर कोई हैरत में था। सरकार को न जवाब देते बन रहा था न कार्यवाही करते। मजबूरन लोगों और मीडिया के दबाव के चलते पुलिस और प्रशासन सक्रिय हुआ। पुलिस की बढ़ती गतिविधियों के चलते सुशील को सरेंडर करना पड़ा। लेकिन वह इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था। हर बार वह पुलिस को उलझाता रहा। बयानों के लगातार बदलने और झूठ बोलने के कारण मामला उलझता जा रहा था। सुशील ने फ्लैट से लेकर, उसमें मिले कागजातों तक को अपना मानने से इनकार कर दिया। इसी बीच नैना साहनी की एक डायरी में 3 जुलाई को नैना की लिखावट का लेख भी मिला। सुशील ने बस उसे पहचाना ताकि ये साबित किया जा सके कि नैना 2 जुलाई को मरी ही नहीं। कई वकीलों ने इस केस से हाथ खींचा तो सुशील ने भी तमाम कानूनी दांवपेच भिड़ाए। लेकिन मीडिया के जरिए पब्लिक प्रेशर काम आया, जांच अधिकारियों को सतर्कता बरतनी पड़ी और कोर्ट ने सुशील को फांसी की सजा सुना दी। फिलहाल सुशील जेल में है और सुप्रीम कोर्ट से राहत भरे फैसले की उम्मीद कर रहा है।<br />राजनीतिक मुहब्बत की एक और खूनी दास्तां है युवा कवयित्री मधुमिता शुक्ला और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की जहां मधु को अपनी जान गवां कर एक नेता से प्रेम करने का कर्ज चुकाना पड़ा। कम उम्र का जोश, वीर रस की कविताएं, दबंग राजनेता की मोहब्बत, सियासत का रसूख इस कॉकटेल के नशे में मधुमिता जिंदगी और प्रेम की अपनी इबारत गढऩे लगी। जिस समय अमरमणि से उसकी मुलाकात हुई थी, तब उसकी उम्र महज 18 साल थी, जबकि 45 साल के अमर मणि न केवल शादीशुदा थे, बल्कि बच्चों के बाप भी थे। एक नवोदित कवयित्री मधुमिता शुक्ला और अमरमणि की प्रेम कहानी बदस्तूर चलती रहती अगर मधुमिता ने अमरमणि पर विवाह करने का जोर ना डाला होता। यूपी के स्टांप और रजिस्ट्रेशन राज्य मंत्री (तत्कालीन मायावती सरकार में) अमरमणि त्रिपाठी के प्यार में पागल यह कवयित्री उसके अवैध अंश को जन्म देना चाहती थी। लेकिन मंत्री साहब को यह गवारा नहीं था। मई 2003 को अचानक मधुमिता की उनके लखनऊ स्थित पेपर मिल कालोनी के घर में हत्या कर दी जाती है। शक की सुई मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर उठीं। मधुमिता की मौत के बाद डायरी और पत्रों से इस बात का साफ खुलासा हो गया कि त्रिपाठी के दबाव में मधुमिता दो बार गर्भपात करवा चुकी थी। जिस समय हत्या हुई, उस समय भी वे छह माह की गर्भवती थी। मधुमिता की हत्या ने उत्तरप्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। मीडिया के दबाव चलते अंत्येष्टि से चंद घंटे पहले मधुमिता के शव से भ्रूण निकालने के लिए पुलिस को मजबूर कर दिया। अजन्मे बच्चे का डीएनए टेस्ट से मधुमिता और त्रिपाठी के रिश्तों की पुष्टि हो गई। मीडिया का साथ मिला तो लखीमपुर में रह रही मधुमिता की बड़ी बहन निधि में भी हिम्मत दिखाई। दबाव बढऩे लगा, जांच में तेजी आई और राजफाश होने लगे। पता चला मधुमिता की हत्या में अमरमणि और उसकी पत्नी मधुमणि दोनों का हाथ था। खतरनाक प्रेम की भेंट में जहां मधुमिता को जान से हाथ धोना पड़ा वहीं त्रिपाठी भी उम्रकैद की सजा भी काट रहा है। अमरमणि को 21 सितंबर 2003 को में गिरफ्तार कर लिया जाता है और उनकी जमानत की अर्जी भी ठुकरा दी जाती है। 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून में एक विशेष अदालत ने मंत्री अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, उनके चचेरा भाई रोहित चतुर्वेदी और उनके सहयोगी संतोष राय को मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में दोषी पाया। अदालत ने अमरमणि को आजीवन कारावस की सजा सुनाई। <br />फैजाबाद की रहने वाली शशि प्रसाद लॉ की स्टूडेंट थी। वह राजनीति में आना चाहती थी। इसलिए शार्टकट के रूप में उसने मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री आनंद सेन को चुना। आनंद सेन ने भी उसकी आंखों में बसे इस ख्बाव को देख लिया था। फिर शुरू हुआ वायदों का सिलसिला। वायदे बढ़ते गए, जिस्मानी दूरियां मिटती गईं। बीएसपी कार्यकर्ता राजेंद्र प्रसाद की बेटी शशि प्रसाद के आनंद सेन के साथ संबंध बने पर इस संबंध से उसे सत्ता सुख तो नहींमिला पर मौत जरूर मिली। 22 अक्टूबर 2007 को शशि अचानक गायब हो गई। गुमशुदगी की सूचना 23 अक्टूबर 2007 को दर्ज कराई गई। एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी जब शशि का कुछ पता नहीं चला तो शशि के पिता ने आनंद पर अपहरण और हत्या का आरोप लगाया। मामले में आनंद और उनके ड्राइवर विजय को आरोपी बनाया गया। लंबी छानबीन और धड़पकड़ के बाद पता चला कि वह इस दुनिया से जा चुकी थी। उसकी हत्या हो गई थी। फैजाबाद की अदालत ने आनंद सेन और उसके ड्राइवर को उम्रकैद की सजा सुनाई।<br />हाल ही राजस्थान की गवर्नमेंट को हिलाने वाली भंवरी देवी का केस पिछले कई दिनों से सुर्खियों में है। सत्ता का नशा और सत्ता का उपयोग अपने विलासिता के साधन जुटाने में करना नेताओं के लिए नया ट्रेंड नहीं है। पर जब उनकी विलासिता की वस्तु पलटकर उनका गिरहबान पकड़ लेती है और उनको ब्लैकमेल करने लगती है तो उसका हश्र सिर्फ मौत ही होता है।<br />
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पेशे से नर्स भंवरी देवी कोई साधारण महिला नहीं थी, बल्कि सत्ता के गलियारों में जहां उसकी ऊंची पहुंच थी, वहीं इस पहुंच को बरकरार रखने के लिए उसने शार्टकट का इस्तेमाल करने तक से गुरेज नहीं किया। जैसलमेर सरकारी अस्पताल में नर्स भंवरी देवी 2001 में कॉग्रेस एमएलए मल्खान सिंह बिश्नोई के संपर्क में आईं और बाद में राजस्थान के वॉटर रिसोर्स मिनिस्टर महिपाल मदेरणा के संपर्क में। बिश्नोई को मंत्री बनाने के लिए मदेरणा के साथ अश्लील सीडी बनाई ताकि गहलोत कैबिनेट में उन्हें बदनाम कर हटाया जा सके। भंवरी ने मदेरणा और बिश्नोई दोनों के साथ अश्लील सीडी तैयार की और दोनों को ब्लैकमेल करती रहीं। 1 सितंबर 2011 में भंवरी लापता हो गई। 2 दिसंबर को मदेरणा कैबिनेट से बाहर हुए और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। भंवरी देवी का अपहरण हुआ है, वह बंधक है या फिर उसकी हत्या कर उसे जला दिया गया है, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है, लेकिन इस मामले ने फिर एक बार कांग्रेसी नेताओं की इज्जत उतार कर जरूर रख दी है।<br />
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एमडीएलआर की पूर्व एयर होस्टेस गीतिका शर्मा ने 4 अगस्त की देर रात अशोक विहार फेज-3 स्थित अपने फ्लैट में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी। उनका शव रविवार सुबह उनके परिजनों ने पंखे से उतारा। 2 पेज के सूइसाइड नोट में गीतिका ने हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा और उसी कंपनी की मैनेजर अरुणा चड्ढा पर मानसिक प्रताडऩा का आरोप लगाया था। पुलिस ने दोनों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया। सूइसाइड नोट के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटों बाद कांडा ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि यह उनके खिलाफ कोई राजनैतिक षड्यंत्र का हिस्सा है जबकि गीतिका ने सुसाइड नोट में लिखा है कि कांडा उसका पायाद उठाना चाहते थे।<br />
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<br />अनुराधा बाली यानी फिजा की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। फिजा 2008 में उस समय सुर्खियों में आई थीं जब उन्होंने हरियाणा के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री चंद्रमोहन से शादी की थी। दिसंबर 2008 में जब पूरा देश मुंबई के आतंकवादी हमलों से जूझ रहा था ऐसे में हरियाणा की जमीं पर कुछ नया और अनोखा ही पक रहा था। जन्म से हिन्दू चंदर मोहन और अनुराधा ने देश के 2.3 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं पर चोट करते हुए यह घोषणा की कि उन्होंने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है और चांद मोहम्मद और फिजा बन एक दूसरे के साथ निकाह पढ़ लिया है। 43 साल के इस अधेड़ ने इस्लाम कबूलकर दूसरा विवाह रचा लिया क्योंकि उसकी पहली पत्नी जिंदा है उससे उन्हें दो बच्चे भी हैं। पर चंदर उर्फ चांद ने जितने जोर-शोर से अपने निकाह का ऐलान किया था उतनी ही तेजी से वह इससे दूर भी हो गए। इसका कारण था कि उनके पिता ने उनसे सारे अधिकार छीन लिए थे।<br />
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चंदर के प्यार में अपनी नौकरी तक दांव पर लगाने वाली फिजा फिर से सुश्री बाली बन अपनी मां के साथ बेरोजगारी में दिन बिताने लगी। उसपर कर्ज बढ़ते जा रहे थे और प्यार की नाकामी का गम भी। इस गम को मिटाने के लिए वह शराब पीने लगी और लोगों से बात बेबात झगडऩे भी लगी। जितना खूबसूरत इस कहानी का आगाज था उतना ही दर्दनाक फिजा यानी अनुराधा का अंत है। अपने 41वें जन्मदिन के 10 दिन बाद 6 अगस्त 2012 को फिजा मरी हुई पाई गईं। उनका शव उनकी मौत के तीसरे दिन बरामद हुआ। उनका खूबसूरत शरीर सड़ चुका था और उसमें कीड़े रेंग रहे थे। शुरूआती जांच के बाद पुलिस ने कहा कि अनुराधा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। पुलिस की यह बात सच मानी जा सकती थी क्योंकि अनुराधा पहले भी आत्महत्या करने की कोशिश कर चुकी है। वह जीवन से निराश भी थी पर फांसी लगाने का बाद उसका शव बिस्तर पर कैसे आया, उसके घर में ढेर सारी शराब की बोतले क्या कर रही थीं और क्यों चद्रमोहन उसका जिक्र तक नहींकरना चाहते जैसे सवाल उसकी मौत को संदिग्ध बनाते हैं।<br /><br />अपनी भूख शांत करने के बाद हमारे देश के पॉलिटिशियंस ने अपनी इन तथाकथित ‘प्रेमिकाओं’ को ही ठिकाने लगा दिया। उसका न तो इन्हें कभी कोई पछतावा रहा और न ही इनके परविार के सदस्यों को। आज भी इस तरह के गुनाह करने वालों को कोई मुक्कमल सजा नहींमिली है। इनके केस अदालत दर अदालत चल रहे हैं और ये बेशर्मकी तरह जी रहे हैं। इन्हें तो कभी शर्म आएगी नहीं, लेकिन हम जैसे लोगों को भी इनके कारनामे सामने आने के बावजूद शर्म नहीं आती और जब यह वोट की भीख मांगते हुए हमारी चौखट पर आते हैं तो समाज-नैतिकता के नाम पर दुहाई देने वाले हम लोग ही इन्हें चुनकर सत्ता में भेज देते हैं। जब तक लड़कियां अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शार्टकट अपनाती रहेंगी और सियासतदां अपने शरीर की भूख मिटाने के लिए ऐसी महिलाओं और लड़कियों को अपना शिकार बनाते रहेंगे तब तक इस तरह की घटनाएं घटती रहेंगी और सियासत शर्मसार होती रहेगी।<br /></div>
नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-9328433015080428722012-02-08T02:29:00.005+05:302012-02-08T02:31:55.562+05:30कहां प्लेस की जा रही हैं लड़कियां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पिछले आठ वर्षो के दौरान मानव तस्कर छत्तीसगढ़ के जनजातीय इलाके सरगुजा, रायगढ़ और जशपुर से भोली-भाली लड़कियों को नौकरी और प्रशिक्षण के नाम पर भगा कर ले जा रहे हैं। बाद में इन लड़कियों को दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू और चेन्नई जैसे महानगरों में ले जाकर बेच (प्लेस कर) दिया जाता है। गौरतलब यह है कि ऐसे है आदिवासी इलाके जहां नक्सलियों की कुछ खास दखल नहीं है।<br />
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छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों से बड़े पैमाने पर लड़कियों की बिक्री किए जाने और उन्हें देश के महानगरों में बंधुवा बनाए जाने की घटनाओं ने राज्य शासन की नींद उड़ा दी है। राज्य के अलग-अलग हिस्सों से लगातार इस तरह की तरह घटनाएं सामने आ रही हैं। जिस समय एक्टर शाइनी आहूजा का अपनी आदिवासी नौकरानी के साथ रेप का प्रकरण चर्चा में था, उसी समय छत्तीसगढ़ की नाबालिग लड़कियों की मंडी के कहे जाने वाले जशपुर में मुंबई पुलिस का एक दल बंधक बनाई गई लड़की को छोडऩे के लिए आया हुआ था। यह इस बात का बड़ा सबूत है कि छत्तीसगढ़ की आदिवासी लड़कियां न सिर्फ बाहर भेजी जा रही है बल्कि बेची भी जा रही हैं। बावजूद इसके न तो मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह इस बात को मानने को तैयार हैं और न ही गृहमंत्री ननकी राम कंवर। पिछले कई सालों से इन इलाकों से प्लेसमेंट एजेंसी के नाम पर अशिक्षित या अर्धशिक्षित गरीब आदिवासी युवतियों को घरों में काम दिलाने के बहाने शहरों में पहुंचा देना कोई मुश्किल काम नहीं है। फिलहाल सिर्फ दिल्ली में तकरीबन 200 प्लेसमेंट एजेंसियां है, जो छत्तीसगढ़ के सरगुजा, जशपुर के अलावा झारखंड के रांची, गुमला, पलामू आदि इलाकों से आदिवासी लड़कियों को घरेलू नौकरानी का काम दिलाने आकर्षित करती हैं। उनके निशाने पर हैं उरांव आदिवासी लड़कियां हैं जिनमें से अधिकांश ने मिशनरियों के प्रभाव में आकर इसाई धर्म अपना लिया है। इनके एजेंट का काम इन लड़कियों के वे रिश्तेदार करते हैं, जो कई साल पहले से ही इन महानगरों में काम कर रहे होते हैं। <br />
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दिल्ली की ज्यादातर प्लेसमेंट एजेंसियों के संचालक उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड के संदिग्ध प्रवृति के लोग हैं। पहले ये खुद छत्तीसगढ़ जाकर लड़कियों को तलाश कर ले जाते थे लेकिन पिछले दो साल से जब इनके खिलाफ अंचल में आवाज उठने लगी है तो उन आदिवासी लड़की लड़कों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो इन गांवों से पहले से ही निकलकर दिल्ली पहुंच चुके हैं। इन प्लेसमेंन्ट एजेंसियों ने स्वयंसेवी संगठनों और सरकारी विभागों की आंख में धूल झोंकने के लिए बहुत से नियम कायदे बना रखे हैं। जिनमें से एक यह भी है कि नाबालिग लड़कियों को काम पर नहीं रखा जायेगा। पर अब तक देखने में यही आया है कि उनके निशाने पर 8 से 14 साल की लड़कियां ही हैं। प्लेसमेंट एजेंसियां चलाने वाले ऐसी लड़कियां लाने वाले दलालों को आने-जाने का खर्च और 5 से 15 हजार रूपये तोहफे के तौर पर देते हैं। रोजगार की तलाश में ये युवतियां बड़े शहरों में पहुंचने के बाद असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंस जाती हैं। वैसे तो गाहे बगाह कुछ लोगों कुछ लोगों को इस मामले में गिरफ्तार भी किया जाता है पर लड़कियों को बहला-फुसला कर बाहर ले जाने का सिलसिला थम नहींरहा है। लड़कियों को भारत के दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू और चेन्नई जैसे महानगरों में तो प्लसमेंट दिया ही जाता है साथ ही इन लड़कियों को घरेलू काम कराने के बहाने से कुवैत और जापान तक भी ले जाया जाता है। <br />
मानव व्यापार के मुद्दे ने 2007 में भी जोर पकड़ा था, जब मिशनरियों द्वारा संचालित कुनकुरी की स्वयंसेवी संस्था ने अपने सर्वेक्षण में 3718 युवतियों के गायब होने का खुलासा किया था। संस्था ने बताया था कि इन युवतियों को दिल्ली एवं अन्य महानगरों में बेचा गया। आदिवासी क्षेत्रों में लड़कियों को उठाने वाले दलालों के गिरोह भी सक्रिय हैं। वर्ष 2007 में तत्कालीन भाजपा विधायक राजलिन बेकमेन एवं राकपा के नोबेल वर्मा ने इस मामले को विधानसभा में भी उठाया था। पर मामला आया गया हो गया। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में मानव तस्करी का व्यवसाय अनवरत जारी है और सरकार इसके विरुद्ध आदिवासी क्षेत्रों में किसी भी कानून को सख्ती से लागू कर पाने में असफल रही है। दिल्ली और राज्य के कई स्वयंसेवी संगठनों की आवाज भी सरकार को इस मामले में कदम उठाने के लिए राजी नहींकर पा रही हैं। <br />
राज्य के बिलासपुर, जशपुर, रायगढ़ और सरगुजा जिले में लड़कियों के अपहरण के कई मामले दर्ज हैं, जिनमें लगातार वृद्धि हो रही है पर यह ऐसे इलाके हैं जहां नक्सलियोंं की दखल कुछ कम हैं। इस तरह तो यही बात सामने आता है कि जिन क्षेत्रों में नक्सलियों का जोर है वहां की आदिवासी लड़कियों ज्यादा सुरक्षित हैं। गौर करने वाली बात यह है कि आज जिन आदिवासी इलाकों से लड़कियां गायब हो रही हैं वह ऐसे इलाके हैं जहां नक्सलियों का दखल कम है या न के बराबर है। आज जितनी भी प्लसमेंट एजेसियां छत्तीसगढ़ में अपना शिकार ढूढ़ रही हैं वह सब ऐसे इलाकों का ओर रूख नहींकरती जहां नक्सलियों का बोलबाला है। राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर आदि जिलों में जहां नक्सलियों का राज चलता है वहां न तो प्लसमेंट एंजेसियां पूर्ण रूप से सक्रिय हैं और न ही मिशनरी।<br />
प्रदेश भाजपा सरकार मानव तस्करी को रोक पाने में असफल है। परिणाम यह है कि मासूम, भोली-भाली आदिवासी बालाओं की खरीद-बिक्री छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिलों में बेरोकटोक जारी है। शासन-प्रशासन इस ओर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है। इस मामले को लेकर कई बार विधानसभा में भी सरकार से प्रश्न पूछे जा चुके हैं, लेकिन सरकार हमेशा इस पर गोलमोल जवाब देकर टाल देती है। सरकार की उदासीनता का ही परिणाम है कि आज यह संख्या 20 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहींझारखंड और उड़ीसा जैसे गरीब राज्यों के सीमावर्ती गांवों की आदिवासी बालाओं को प्लेसमेंट एजेंसी के नाम पर दलाल सुनहरे भविष्य का सपना दिखाते हैं और उन्हें बड़े शहरों में ले जाकर बेच देते हैं। कई समाजसेवी संगठनों का आरोप है कि ऐसे मामलों में एक ओर तो दूरदराज के क्षेत्रों से पुलिस थाने तक पहुंच पाना आदिवासियों के वश की बात नहीं है और अगर कोई पुलिस तक पहुंच भी जाता है तो पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने से आनाकानी करती है।<br />
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अब फिर एक बार विधानसभा में यह मामला उठा है जो शायद हर बार तरह फिर विधानसभा खत्म होते-होते ठंडा पड़ जाएगा। ये समाज की एक बुराई है, जिसके पीछे दो ही कारण प्रमुख हैं एक तो गरीबी दूसरी सरकार की उदासीनता। भले ही इन दिनों छत्तीसगढ़ में न जाने कहां-कहां से लोग आ रहे हैं और रोजगार पा रहे हैं, पर जो मूल छत्तीसगढ़ी हैं, वे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक मजदूरी करते पाए जाते हैं। यह दोहरापन आखिर क्यों? उन्हें अपने ही राज्य में रोजगार क्यों नहीं मिल पाता? क्यों विवश हैं वे और क्यों विवश है सरकार जो उनकी बेटियों को बिकता देखकर भी मौन है। फिर इसमें पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है कि आखिर क्यों वह इन एंजेसियों पर नजर नहींरखती है। शायद भाजपा सरकार और प्रदेश की पुलिस किसी बड़ी घटना के इंतजार कर रही है। </div>
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इतवार वीकली में प्रकाशित</div>नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-48783711749701202642012-01-30T01:49:00.002+05:302012-01-30T01:52:11.547+05:30राजनीतिक पहचान की जद्दोजहद में अमित जोगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राहुल गांधी की तर्ज पर कभी किसी सरकारी योजना का विरोध जताकर तो कभी अपने उपर हमला करने वालों को माफ करने को लेकर अमित जोगी इन दिनों चर्चा में बने हुए हैं। चर्चाओं को यूं विस्तार देने के पीछे की उनके मंशा छत्तीसगढ़ में अपने लिए वह राजनीतिक जमीन तलाश करना है जो उनपर लगे आरोपों के चलते उनसे छिन सी गई है। उनके इस काम में उनके मददगार है छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और उनके पिता अजित जोगी।<br />
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राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहां चीजे हमेशा एक जैसी नही रहती हैं। उतार चढ़ाव आते जाते रहते है पर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के राजनीतिक जीवन में 2003 के बाद जो उतार आया वह अब तक जारी है। एक समय था जब मध्य प्रदेश से अलग हुए आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के नाम का डंका बड़े जोर शोर के साथ बजा करता था। साथ ही उनकी गिनती दस जनपद के खासमखास लोगो में होती थी जहां पर उनका सिक्का बड़ी बेबाकी से चला करता था। यही नही अविभाजित मध्य प्रदेश में रायपुर में अपनी प्रशासनिक दक्षता का जोगी ने लोहा भी मनवाया था। इसी के चलते पार्टी आलाकमान ने जोगी को छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रुपी कांटो का ताज सौंपा। आलाकमान जोगी पर इस कदर भरोसा करता है कि 2003 के आम चुनाव से पहले उनके इकलौते बेटे अमित जोगी का नाम राकपा के महासचिव रामअवतार जग्गी मर्डर केस में आने के बाद भी छत्तीसगढ़ में 2003 के आम चुनाव में पार्टी ने जोगी को ही आगे किया परन्तु उसके हाथ से सत्ता फिसल गई और साथ ही पीछे छूट गया वह रूतबा भी जिसके बलबूते पर जोगी की साख टिकी थी। 2003 के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा के जीतने वाले नेताओं को खरीदने और फिर से सत्ता में काबिज होने का सपना देखने वाले जोगी को इस मामले में पकड़े जाने पर कांग्रेस आलाकमान की नाराजगी भी झेलनी पड़ी। पर वह बात आयी गई हो गई। इस बात से इंकार नहींकिया जा सकता है कि आज भी छत्तीसगढ़ में जोगी से ज्यादा शक्तिशाली कांग्रेसी नेता कोई दूसरा नहींहै। यही कारण है कि पार्टी आलाकमान आज भी जोगी को ही प्रदेश में आगे करती रही है और हर बार वहां होने वाले चुनाव में जोगी का ही सिक्का चलता है। इन सबके बावजूद आज भी लोग जोगी के उत्तराधिकारी के रूप में अमित जोगी को नहींदेखते हैं जो अमित के राजनीतिक भविष्य के लिए गहन चिंता का विषय है। शायद इसीलिए अब छोटे जोगी पिता की मदद से समय रहते अपनी राजनीतिक जमीन तलाश लेना चागते हैं। <br />
जब 2003 के चुनावों ने करवट बदली और जोगी के हाथ से सत्ता फिसल गई ठीक इसी समय अमित के सितारे भी गर्दिश में चले गए। एक समय अजित जोगी के उत्तराधिकारी के तौर देखे जाने वाले अमित का नाम राकपा के महासचिव रामअवतार जग्गी की हत्या की साजिश रचने और दिलीप सिंह जूदेव घूस प्रकरण के कारण उनकी खासी किरकिरी हुई। माना जाता है कि जूदेव प्रकरण को हवा देने में अमित जोगी की खासी अहम् भूमिका है। इतना ही नहींइसके बाद मर्डर के सिलसिले में अमित जोगी को जेल की हवा भी खानी पड़ी। 2004 में अजित जोगी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए जिसके चलते आज तक वह व्हील चेयर में है परन्तु लचर स्वास्थ्य के बाद भी अभी जोगी का राजनीति से मोह नही छूट है। <br />
जोगी का एक दौर था और उस दौर में वह आदिवासियों के बीच खासे लोकप्रिय थे, पर आज आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में चावल वाले बाबा जी यानी डा.रमन सिंह के मुकाबले जोगी की पूछ परख लगभग मृत्त प्राय है। यही कारण है कि पिछले चुनाव में जोगी ने राज्य के कोने कोने में पार्टी के लिए वोट मांगे थे पर जनता ने उनके नेतृत्व को नकार दिया। यह घटना ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह जोगी अपने राज्य के आदिवासियों के बीच ठुकराए जा रहे है, जबकि जोगी खुद को आदिवासियों का बड़ा हिमायती बताया करते थे। 2008 के चुनावो में आदिवासी बाहुल्य इलाको में कांग्रेस को केवल 11 सीट मिल सकी। इसके बाद से लगातार राज्य में कांग्रेस का ग्राफ घटता जा रहा है। एक समय ऐसा भी आया जब खुद अजित जोगी की राजनीति पर संकट पैदा हो गया है। उनको करीब से जाने वाले कहते है वर्तमान दौर में उनकी राजनीति के दिन ढलने लगे थे और अपने राज्य में ही जोगी अपने विरोधियो से पार नही पा रहे थे। पहले जोगी ने 15 वी लोक सभा के चुनावो में अपनी पत्नी डॉक्टर रेनू जोगी को लोक सभा का चुनाव लड़ाया लेकिन वहां पर भी जोगी को मुंह की खानी पड़ी। इसके बाद भी राजनीति के प्रति उनका मोह कम नही हुआ। राज्य सभा के जरिये केंद्र वाली सियासत करने में रूचि दिखाई लेकिन असफलता ही हाथ लगी। जोगी की इन सारी नाकामयाबियों में उनके विरोधियों का बड़ा हाथ रहा जिनमेंंबहुत से विरोधी ऐसे भी थे जो कांग्रेसी हैं पर जोगी के विरोधी भी हैं। इसी के चलते अब कई लोग और कांग्रेस के जानकार यह मानने लगे है अगर समय रहते राज्य में जोगी का विकल्प नही खोजा गया तो राज्य में रमन सिंह तीसरी बार अपनी सरकार बना लेंगे। जोगी को भी अब लगने लगा है कि व्हील चेयर पर वह अपने और पार्टी के नाम पर वोट नहींमांग सकते हैं। शायद तभी वो राज्य में वंशवाद को बढ़ाने में लगे है और इसीलिए अब वह अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के लिए अमित को तैयार कर रहे हैं। भारतीय राजनीति में वंशवाद से कोई अछूता नही है। फिर जोगी तो उस पार्टी की उपज है जहां सबसे ज्यादा वंशवाद की अमर बेल फैली है। इसकी परछाई जोगी पर स्वाभाविक तौर पर पडऩी ही थी। <br />
अब जोगी यह बात भली भांति जान गए है मौजूदा समय में उनका राज्य में बड़े पैमाने पर सक्रिय हो पाना असंभव लगता है। साथ ही पार्टी आलाकमान भी उनका विकल्प तलाश रही है। प्रदेश राजनीति में उनके विरोधियो ने उनको हाशिये पर धकेल दिया है इस लिहाज से वह अपना खुद का वजूद बचाने में लगे हुए है। इसी बात को जानते और वकत की नजाकत को भांपते हुए अब उन्होंने आदिवासियों का दिल फिर से जीतने का मन बनाया है ताकि आदिवासी इलाको में अपने बेटे अमित के लिए सम्भावना तलाशनी शुरू कर दी है। आदिवासी कार्ड खेलकर वह राज्य में अपने बेटे अमित को जनता के सामने लाकर वह राज्य की राजनीति में अपनी विरासत सौपने की दिशा में जल्द ही कदम बढ़ाकर फैसला ले सकते है। यही कारण है कि इन दिनों राहुल गांधी की तर्ज पर अमित भी कांग्रेस का प्रचार बड़े जोर शोर से कर रहे हैं साथ ही अपने करियर में ऐसे-ऐसे राजनीतिक तड़के लगा रहे कि जैसा कि कोई बड़ा राजनीतिज्ञ करता है।<br />
छोटे जोगी पहली बार बड़ी चर्चा का कारण तब बने जब जून 2011 में उनपर जानलेवा हमला हुआ। मध्यप्रदेश के जबेरा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी और अपनी बहन तान्या सोलेमन के चुनाव प्रचार के लिए गए छोटे जोगी को कुछ असामाजिक तत्वों ने हमला कर बुरी तरह घायल कर दिया था। इसके फलस्वरूप उनके सिर पर चोट की वजह से बाई आंख की रोशनी चली गई थी। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के नेत्र अस्पताल के डाक्टरों ने आंख में खून का थक्का जमने से रोशनी का न आना बताया। खून का थक्का साफ होने के बाद धीरे-धीरे आंखों में रोशनी वापस आ सकी। इस मामाले में पहले तो अमित ने खुद पर हुए हमलों पर भाजपा को कोसते हुए ढेरों बयान बाजी की और जोर शोर से भाजपा नेता विनोद गोटिया और उजियार सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा कि स्थानीय शासन-प्रशासन की शह पर इन दोनों ने अपने साथियों के सात मिलकर हम पर और हमारे साथियों पर हमला किया जिसके गवाह स्थानीय लोग है। इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए छोटे जोगी कृतसंकल्प भी दिखे। पर दिल्ली वापस आकार और चोट का इलाज करवाने के बाद अचानक ही उनका रूख नम्र हो गया। उन्होने गांधी के सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि गांधी के सिद्धांतों की सियासत करने वालों को कार्रवाई की बजाय माफी को ज्यादा बड़ा मानना चाहिए। अब अमित हमले के आरोपियों पर कोई कानूनी कार्रवाई करना चाहते हैं। इस घटना में छोटे जोगी ने पहले आग में घी डाला और फिर उसपर थोड़ा सा पानी डालकर उसे धीरे-धीरे सुलगने दिया। राजनीति की थोड़ी सी समझ रखने वाला भी यह बता देगा कि यह पैंतरेबाजी छोटे जोगी को विरासत में मिली है। रणनीति की बिसात पर भले ही आवाज छोटे जोगी की हो पर बैकग्रांउड की आवाज तो सीनियर जोगी की ही है।<br />
छत्तीसगढ़ में भी खबरों में बने रहने के लिए गाहे बगाहे छोटे जोगी कुछ न कुछ ऐसा करते रहते हैं जिससे उनकी चर्चा हो सके। ऐसा ही एक कारनामा उन्होंने जांजगीर चांपा में बन रहे आधुनिक पवार प्लांट का विरोध जता कर किया। उनकी गिरफ्तारी को लेकर पूरे प्रदेश में सरकार के खिलाफ आंदोलन और पुतला दहन किया गया। दरअसल जांजगीर चांपा में बन रहे इस आधुनिक पवार प्लांट से किसानो की सिंचित और कृषि योग्य भूमि को भरी नुकसान होने की बात को लेकर अमित ने यह सारा हंगामा किया था। जिस स्थान पर सरकार की आधुनिक पवार प्लांट स्थापित करने की योजना है वह डोलोमाइट एरिया घोधित है यानी वहां पर खनिज सम्पदा की भरमार है। ऐसी स्थिति में नियमानुसार पवार प्लांट यहां पर स्थापित नहीं किया जा सकता। अमित अपने हजारों साथियों के साथ वहां विरोध प्रदर्शन करने जा रहे थे पर पुलिस ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया औप उनके साथियों समेत उनको बाराद्वार रेस्टहाउस नजर बंद कर दिया। इस बात का फायदा जोगी ने बखूबी उठाया और काफी समय तक मीडिया की नजरे इनायत उनपर बनी रही। इसी तरह पिछले दिनों अमित जोगी ने प्रदेश भाजपा पर संगीन आरोप लगाते हुए यहां तक कह डाला कि बस्तर में ना तो प्राथमिक सुविधाएं हैं और ना ही आदिवासियों के इलाज की व्यवस्था। उनके पास ना तो रोजगार के संसाधन उपलब्ध हैं और ना ही आधारभूत सुविधाएं। ऐसे में वहां ते आदिवासियों में के सामने नक्सली बनने के अलावा और चारा बचता ही नहींहै। गरीबी और अशिक्षा जैसी समस्याएं आज भी मुंह बाए सबके सामने खड़ी है। आज के समय में वे खुद भी अगर बस्तर में पैदा हुए होते तो शायद वे भी नक्सली ही होते। अमित जोगी के इस बयान ने कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रही राजनीतिक गहमागहमी को हवा दे दी है और फिर से बयानों का दौर शुरू होने की संभावना तो बढ़ ही गई है। साथ ही अमित ने एक ऐसा मुद्दा उठाया है जिसकी चर्चा सिर्फ प्रदेश में ही नहींबल्कि उसके बाहर भी काफी समय तक गूंजेगी।<br />
सीनियर जोगी ने अमित को अपना उत्तराधिकारी तो बना लिया पर क्या वह अमित को सत्ता सुख दिला पाने में कामयब होंगे यह प्रश्न सभी के साथ छोटे जोगी को भी परेशान कर रहा है। इसका कारण है आदिवासी वोट बैंक का सीनियर जोगी के हाथों से लगातार फिसलना। पिछले दिनों बलिराम कश्यप के निधन से रिक्त हुई सीट बस्तर की के लिए जोगी ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर प्रचार किया था पर फिर भी यह सीट भाजपा के पाले में चली गई। इस हार के बावजूद आदिवासियों की हर सभा में आज भी जोगी की एहमियत कम नही हुई है। आज भी उनकी सभाओं में लोगों की भारी भीड़ उमड़ आती है। अब जोगी की कोशिश है कि इस भीड़ को अमित के पक्ष में किसी भी तरह किया जाए। हत्या कांड में जेल की यात्रा कर चुके अमित अब पिता के पग चिन्हों पर चलकर अपनी छवि बदलने की तैयारियों में जुट गए है। वह इस बात को जानते है चाहे राज्य के कांग्रेसी नेता उनके पिता को आने वाले दिनों में किनारे करने के मूड में है लेकिन पिता आदिवासी इलाके में उनको स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। अजित जोगी भी इस बात को बखूबी जान रहे है। शायद तभी उनकी नजर आदिवासियों के एक बड़े वोट बैंक पर आज भी लगी हुई है। जोगी का सपना और मकसद एक है कि किसी तरह आने वाले विधान सभा चुनाव में अमित को कांग्रेस पार्टी टिकट दे जिससे राज्य में वह उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा सके। इसीलिए छोटे जोगी आदिवासियों को हितचिंतक बन उनके पक्ष में बयान बाजी कर रहे हैं। देखना होगा अजित जोगी का ये दाव छत्तीसगढ़ में कितना कारगर साबित होता है। इस बहाने अजित जोगी जहां अपने बेटे को आगे कर अपनी विरासत को आगे बढ़ाएगे वहीं आदिवासियों के बीच अपनी लोकप्रियता के मद्देनजर अपने बेटे अमित जोगी की राजनीतिक राह आसान कर देंगे। अब यह तो समय ही बताएगा कि उनका यह कदम और छोटे जोगी की पैंतरेबाजियां आने वाले समय में कितना कारगर साबित होती हैं।<br />
<br /></div>नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-51855941144810828902011-12-08T17:26:00.000+05:302011-12-08T17:27:13.072+05:30गरीबी के लिए कुछ भी करेगाभारत में गरीबी रेखा को लेकर जहां काफी बहस हुई और योजना आयोग की रपट की छीछालेदर हुई, वहीं पड़ोसी देश चीन में स्वयं राष्टï्रपति ने ही इसकी नई परिभाषा दी। देश के ग्रामीण इलाकों में गुजर-बसर कर रहे लोगों को अत्यावश्यक जीवन-यापन को प्रतिबद्घ राष्टï्रपति हू जिंतओ ने गरीबी रेखा का स्तर बढ़ा दिया। हालांकि कहा जा रहा है कि हू जिंतओ ने ऐसा अपनी लोक्िरपयता बचाए रखने के लिए किया है, जिससे आने वाले समय में कोई भी उनके लोकप्रियता पर सवाल न खड़ा कर सके।
अब चीन में प्रतिदिन एक डॉलर यानी करीब 50 रुपए से कम कमाने वाले व्यक्ति को गरीब माना जाएगा। अभी तक यह रेखा सीमा 55 सेंट पर थी, लेकिन जिसे चीनी सरकार ने 92 फीसदी बढ़ा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब चार गुना अधिक लोग सरकारी सब्सिडी और प्रशिक्षण के दायरे में आएँगे। हू जिंताओ का कहना है कि लोगों के वेतन में बढ़ती असमानता को रोकने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है, वर्ष 2020 तक चीन में किसी को खाने या कपड़ों के बारे में चिंता नहीं करनी पड़ेगी। जानकारों का कहना है कि गरीबों के लिए इस हितकारी फैसले के पीछे चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है। अगले दो वर्षों में हू जिंताओ के राष्ट्रपति पद से हटने के आसार बताए जा रहे हैं। गद्दी छोडऩे के बाद भी हू जिंताओ चाहते हैं कि उनकी और उनके नज़दीकी राजनेताओं की पैठ बनी रही, वो अब भी चीन में वर्चस्व रखने वाली सेन्ट्रल मिलिट्री कमिशन के अध्यक्ष हैं और इस फैसले से जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते हैं। राजनीतिक प्रेक्षक यह भी कहते हैं कि हू जिंताओ ने अपने वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए ही इस समय यह फैसला लिया है। साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से चीनी सरकार स्थानीय बाज़ार में मांग को बढ़ावा देना चाहती है। गरीब लोगों को सरकारी मदद मिलेगी तो उनके पास आमदनी बढ़ेगी और बाजार में निचले स्तर के सामानों के लिए मांग बढ़ेगी।
एक बात और ध्यान रखने लायक है कि चीन की कुल आबादी का 40 फीसदी शहरों में रहता है और 60 फीसदी ग्रामीण इलाकों में। गरीबी रेखा का यह फैसला सिर्फ ग्रामीण इलाकों पर लागू होता है। चीन के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में गरीबी और बेरोजगारी एक बड़ी परेशानी है। हू जिंताओ के सत्ता में आने से पहले चीनी सरकार की नीति दक्षिणी इलाकों पर केन्द्रित थी। गौर करने योग्य बात यह भी है कि गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों को चीन में सब्सिडी, रोजगार के लिए प्रशिक्षण, सस्ती दरों पर कर्ज और ग्रामीण इलाकों में सरकारी मदद से चलनेवाली ढांचागत परियोजनाओं में नौकरी के अवसर मिलेंगे।
विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले दिनों में शहरों की ओर लोगों को आना घटेगा। अगर दूर भविष्य पर नजर डालें तो कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो चीन के आर्थिक विकास को धीमा कर सकते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि चीन के तेज आर्थिक विकास की वजह से गाँवों में अपेक्षाकृत कम उत्पादक काम को छोड़कर शहरों की ओर आ रहे थे। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बेरी आशनग्रीन चेतावनी देते हैं कि हर तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के विकास की दर का धीमा होना अपरिहार्य है और उन देशों में ये स्थिति जल्दी आ जाती है जहां उम्रदराज लोगों की आबादी बहुत अधिक है। चीन की एक बच्चे की नीति और लोगों औसत उम्र का बढऩा जल्दी ही चीन को इस श्रेणी में ला खड़ा करेगी। वे इस बात से सहमत हैं कि चीन के विकास की दर अब धीमी होगी।
ये कहना जरुरी है कि चीन एक बड़ा निर्यातक भी है जो ट्रेड सरप्लस में है। ट्रेड सरप्लस यानी निर्यात से होने वाली उसकी आय आयात में उसके खर्च से अधिक है। लेकिन चीन का आयात लगातार बढ़ रहा है इसलिए ख़ुद वह कई देशों के लिए एक बड़ा बाज़ार बनता जा रहा है। कुछ लोगों को चीन को लेकर संशय भी होता है। भारत की तरह चीन में भी लोग बढ़ती महंगाई से लोग परेशान हैं। चीन के अधिकारी महंगाई को लेकर असुविधाजनक स्थित में जाते जा रहे हैं। हाल ही में कर्ज कम करने के लिए चीन के केंद्रीय बैंक ने कई कदम उठाए हैं।
वर्तमान में दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाएं घायल अवस्था में कराह रही हैं और महामंदी के बाद धीरे-धीरे अपने आपको अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही हैं। पश्चिमी देशों के उपभोक्ता और सरकारें अपने आपको कर्ज से मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। ये दोनों ही आने वाले समय में उपभोक्ता सामग्रियों और सेवाओं के बड़े शक्ति होंगे, ठीक उसी तरह जैसे वे पिछले दशक में थे। दूसरी ओर इसके बिल्कुल विपरीत चीन में मंदी के दौर में गति थोड़ी धीमी पड़ी उसके बाद अर्थव्यवस्था अपनी पूरी रफ्तार से चल पड़ी। वर्ष 2007 से 2011 तक चीन ने इतनी वैश्विक आर्थिक उन्नति की है जितनी जी-7 देशों ने मिलकर भी नहीं की।सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-75273351005920924712011-11-11T02:30:00.006+05:302011-11-11T02:43:23.600+05:30सावधानी से चुनें हाली-डे पैकेज<div style="text-align: justify;"><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhmDKdLhdP-Va66jAmG4ANYmQetG33AusLVox2r-YXAUi4zO5Di8_Mm-o3qZSwYQghPLJmYvQ3R32ENThJpLu-KboN1pSIUDR_MsEKUHVKps-OYX8Cf86UWqWqOZAmZdt9ckOdG0CiIKn0/s1600/tourism.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhmDKdLhdP-Va66jAmG4ANYmQetG33AusLVox2r-YXAUi4zO5Di8_Mm-o3qZSwYQghPLJmYvQ3R32ENThJpLu-KboN1pSIUDR_MsEKUHVKps-OYX8Cf86UWqWqOZAmZdt9ckOdG0CiIKn0/s320/tourism.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5673476766487700114" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">अखबारों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">इंटरनेट</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पब्लिश</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">होने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वाले</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हॉलिडे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पैकेज</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">टूर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लुभावने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">एड्स</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">सैर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मजा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किरकिरा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">भी</span> <span style="font-weight: bold;">कर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">देते</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हैं।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ऐसे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जरूरत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">होती</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">है</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">संभलकर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">चलने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">ताकि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">इसमें</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">खर्च</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लेकर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बाद</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पछतावा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">न</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;"><span>हो।</span></span>
<span>छुट्टियों</span> <span>में</span> <span>मूड</span> <span>फ्रेश</span> <span>करने</span> <span>और</span> <span>माहौल</span> <span>बदलने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>तमाम</span> <span>लोग</span> <span>घमूने</span> <span>जाना</span> <span>पसंद</span> <span>करते</span> <span>हैं।</span> <span>फिलहाल</span> <span>अधिकांश</span> <span>पैरंट्स</span> <span>अपने</span> <span>ब</span>'<span>चों</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>हॉलिडे</span> <span>पर</span> <span>जाने</span> <span>की</span> <span>प्लानिंग</span> <span>कर</span> <span>रहे</span> <span>हैं।</span> <span>ऐसे</span> <span>में</span> <span>कई</span> <span>लोग</span> <span>अ</span>'<span>छे</span> <span>हॉलिडे</span> <span>पैकेज</span> <span>की</span> <span>तलाश</span> <span>में</span> <span>हैं।</span> <span>हो</span> <span>सकता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>आप</span> <span>भी</span> <span>बेस्ट</span> <span>हॉलिडे</span> <span>पैकेज</span> <span>चुनने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>रोज</span> <span>अखबारों</span> <span>के</span> <span>पन्ने</span> <span>पलट</span> <span>रहे</span> <span>हों</span> <span>या</span> <span>इंटरनेट</span> <span>छान</span> <span>रहे</span> <span>हों</span> <span>लेकिन</span> <span>किसी</span> <span>भी</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>चुनाव</span> <span>से</span> <span>पहले</span> <span>यह</span> <span>ध्यान</span> <span>रखें</span> <span>कि</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>सब</span> <span>कुछ</span> <span>ठीक</span> <span>ठाक</span> <span>तो</span> <span>है</span>, <span>कोई</span> <span>हिडन</span> <span>कंडिशन</span> <span>तो</span> <span>नहीं</span> <span>है।</span>
<span style="font-weight: bold;"><span>
लुभावने</span></span><span style="font-weight: bold;">पैकेज</span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;">कंडिशंस</span><span style="font-weight: bold;">अप्लाई</span><span>
टूरि</span>'<span>म</span> <span>सेक्टर</span> <span>का</span> <span>पीक</span> <span>सीजन</span> <span>शुरू</span> <span>हो</span> <span>चुका</span> <span>है</span> <span>और</span> '<span>यादातर</span> <span>कंपनियां</span> <span>सस्ते</span> <span>पैकेज</span> <span>का</span> <span>प्रचार</span> <span>कर</span> <span>रही</span> <span>हैं</span>, <span>लेकिन</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>इस</span> <span>खेल</span> <span>में</span> <span>कई</span> <span>पेच</span> <span>हैं</span>, <span>जो</span> <span>पैकेज</span> <span>की</span> <span>पूरी</span> <span>जानकारी</span> <span>लेने</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>ही</span> <span>सामने</span> <span>आते</span> <span>हैं।</span> <span>अक्सर</span> <span>कंपनियां</span> <span>कस्टमर्स</span> <span>को</span> <span>अपनी</span> <span>ओर</span> <span>खींचने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>काफी</span> <span>लुभावने</span> <span>पैकेज</span> <span>देती</span> <span>हैं।</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>हॉलिडे</span> <span>पैकेज</span> <span>ऑफर</span> <span>करने</span> <span>वाली</span> <span>कंपनियां</span> <span>कई</span> <span>बार</span> <span>हिडन</span> <span>चाजेर्ज</span> <span>को</span> <span>छिपा</span> <span>लेती</span> <span>हैं</span> <span>और</span> <span>कई</span> <span>बार</span> <span>टैक्स</span> <span>नहीं</span> <span>जोड़तीं।</span> <span>इसीलिए</span> <span>लोग</span> <span>सस्ते</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>बहकावे</span> <span>में</span> <span>आ</span> <span>जाते</span> <span>हैं।</span> <span>अखबारों</span> <span>में</span> <span>काफी</span> <span>बड़े</span>-<span>बड़े</span> <span>फॉन्ट</span> <span>में</span> <span>लुभावने</span> <span>ऐड</span> <span>दिए</span> <span>जाते</span> <span>हैं</span>, <span>ऐड</span> <span>के</span> <span>नीचे</span> <span>बहुत</span> <span>छोटे</span> <span>अक्षरों</span> <span>में</span> <span>लिखा</span> <span>होता</span> <span>है</span> <span>कंडिशंस</span> <span>अप्लाई</span> <span>या</span> <span>शर्ते</span> <span>लागू।</span> <span>कई</span> <span>ट्रैवल</span> <span>कंपनियां</span> <span>अपने</span> <span>ऐड</span> <span>में</span> <span>इस</span> <span>बात</span> <span>का</span> <span>खुलासा</span> <span>नहीं</span> <span>करतीं</span> <span>कि</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>दी</span> <span>जाने</span> <span>वाली</span> <span>रकम</span> <span>में</span> <span>खाने</span> <span>और</span> <span>रहने</span> <span>का</span> <span>खर्च</span> <span>शामिल</span> <span>है</span> <span>या</span> <span>नहीं।</span> <span>और</span> <span>तो</span> <span>और</span> <span>पैकेज</span> <span>की</span> <span>रकम</span> <span>में</span> <span>टैक्स</span> <span>भी</span> <span>नहीं</span> <span>जोड़ा</span> <span>जाता</span> <span>जो</span> <span>बाद</span> <span>वसूला</span> <span>जाता</span> <span>है।</span> <span>कंपनियां</span> <span>अपने</span> <span>कम</span> <span>बजट</span> <span>के</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>केवल</span> <span>आने</span> <span>और</span> <span>जाने</span> <span>का</span> <span>किराया</span> <span>ही</span> <span>शामिल</span> <span>करती</span> <span>हैं।</span> <span>इसलिए</span> <span>ऐड</span> <span>के</span> <span>नीचे</span> <span>बारीक</span> <span>शब्दों</span> <span>में</span> <span>लिखे</span> <span>गए</span> <span>शर्ते</span> <span>लागू</span> <span>पर</span> <span>गौर</span> <span>करना</span> <span>निहायत</span> <span>जरूरी</span> <span>है।</span>
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuzpFuoekXWLkAUACsMDcs5EK48qPx4ZVbTUhCz0WzJdIFc5U-K2Djyf_s4AFphEt2txzP8K8as0Uv41bUx6WV-lXDeJlvMfi0KQ0r68mWmqBuwRrvdTCdouOPnA1YDC72ViM0J0gdileP/s1600/gurgaon-tourism-fair.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 217px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuzpFuoekXWLkAUACsMDcs5EK48qPx4ZVbTUhCz0WzJdIFc5U-K2Djyf_s4AFphEt2txzP8K8as0Uv41bUx6WV-lXDeJlvMfi0KQ0r68mWmqBuwRrvdTCdouOPnA1YDC72ViM0J0gdileP/s320/gurgaon-tourism-fair.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5673476588943922898" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">भ्रामक</span><span style="font-weight: bold;">जानकारी</span><span>
</span><span>अक्सर</span> <span>टूर</span> <span>कंपनियां</span> <span>अपना</span> <span>टूर</span> <span>प्रोग्राम</span> <span>कस्टमर</span> <span>को</span> <span>दिखाने</span> <span>से</span> <span>बचती</span> <span>हैं।</span> <span>इसका</span> <span>कारण</span> <span>है</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>जरिए</span><span>भ्रामक</span> <span>जानकारी</span> <span>देकर</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>गुमराह</span> <span>करना</span> <span>और</span> <span>अपना</span> <span>पैकेज</span> <span>बेचना।</span> <span>यही</span> <span>कारण</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>टूर</span> <span>प्रोग्राम</span> <span>दिखाए</span><span>बिना</span> <span>कंपनियां</span> <span>ऐसे</span> <span>पेपर</span> <span>पर</span> <span>साइन</span> <span>करवा</span> <span>लेती</span> <span>है</span>, <span>जिसपर</span> <span>शर्ते</span> <span>लागू</span> <span>लिखा</span> <span>होता</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>कस्टमर</span> <span>बिना</span> <span>देखे</span> <span>साइन</span><span>करे</span> <span>उनके</span> <span>जाल</span> <span>में</span> <span>फंस</span> <span>जाते</span> <span>हैं।</span> <span>इसी</span> <span>के</span> <span>चलते</span> <span>कंपनियां</span> <span>मनमानी</span> <span>करती</span> <span>हैं।</span> <span>कई</span> <span>बार</span> <span>तो</span> <span>विदेश</span> <span>के</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span><span>दौरान</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>काफी</span> <span>सस्ते</span> <span>होटल</span> <span>में</span> <span>ठहरा</span> <span>दिया</span> <span>जाता</span> <span>है</span>, <span>जो</span> <span>घूमने</span> <span>की</span> <span>लोकेशन</span> <span>से</span> <span>काफी</span> <span>दूर</span> <span>भी</span> <span>हो</span> <span>सकता</span> <span>है।</span> <span>ऐसे</span><span>में</span> <span>सही</span> <span>यही</span> <span>होगा</span> <span>कि</span> <span>पहले</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>स्टार</span> <span>और</span> <span>शर्ते</span> <span>लागू</span> <span>का</span> <span>सच</span> <span>जाने</span> <span>फिर</span> <span>पैकेज</span> <span>लें।</span>
<span style="font-weight: bold;">स्टार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">छिपा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पैकेज</span>
<span>इन</span> <span>दिनों</span> <span>ट्रैवल</span> <span>कंपनियों</span> <span>की</span> <span>ओर</span> <span>से</span> <span>सस्ते</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>नाम</span> <span>पर</span> <span>कई</span> <span>विज्ञापन</span> <span>देखने</span> <span>को</span> <span>मिल</span> <span>रहे</span> <span>हैं।</span> <span>इन</span> <span>पैकेजों</span> <span>में</span> <span>कंपनियां</span> <span>दाम</span> <span>पर</span> <span>स्टार</span> <span>लगाकर</span> <span>नीचे</span> <span>लिख</span> <span>देती</span> <span>है</span> <span>नियम</span> <span>व</span> <span>शर्तें</span> <span>लागू</span> <span>जिसपर</span> <span>अक्सर</span> <span>कस्टमर</span> <span>का</span> <span>ध्यान</span> <span>नहींजाता</span> <span>है।</span> <span>पर</span> <span>हकीकत</span> <span>यह</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>पैकेज</span> <span>का</span> <span>असली</span> <span>खर्च</span> <span>कंपनियां</span> <span>इसी</span> <span>स्टार</span> <span>के</span> <span>नीचे</span> <span>छिपा</span> <span>जाती</span> <span>हैं</span> <span>खासकर</span> <span>विदेशी</span> <span>टूर</span> <span>पैकेजो</span> <span>के</span> <span>मामले</span> <span>में।</span> <span>जैसे</span> <span>अखबार</span> <span>में</span> <span>सिंगापुर</span> <span>का</span> <span>चार</span> <span>दिन</span> <span>तीन</span> <span>रात</span> <span>का</span> <span>पैकेज</span> <span>सिर्फ</span> 21,000 <span>रुपए</span> <span>होता</span> <span>है</span> <span>पर</span> <span>सिंगापुर</span> <span>के</span> <span>इस</span> 21 <span>हजार</span> <span>रुपए</span> <span>के</span> <span>पैकेज</span> <span>की</span> <span>असलियत</span> <span>कुछ</span> <span>और</span> <span>ही</span> <span>है।</span> <span>दरअसल</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>कई</span> <span>और</span> <span>खर्चे</span> <span>भी</span> <span>शामिल</span> <span>हैं</span>, <span>जो</span> <span>विज्ञापन</span> <span>में</span> <span>नहीं</span> <span>छापे</span> <span>जाते।</span> <span>वह</span> <span>सभी</span> <span>खर्च</span> <span>मिलाकर</span> <span>उस</span> <span>पैकेज</span> <span>का</span> <span>दाम</span> <span>प्रति</span> <span>व्यक्ति</span> 41 <span>हजार</span> <span>रुपए</span> <span>बैठता</span>, <span>जो</span> <span>काफी</span> <span>ज्यादा</span> <span>है।</span>
<span style="font-weight: bold;">खेल</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">करेंसी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span>
<span>दरअसल</span> <span>विदेशी</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>तीन</span> <span>करेंसी</span> <span>का</span> <span>खर्च</span> <span>शामिल</span> <span>होता</span> <span>है।</span> <span>पहला</span> <span>भारतीय</span> <span>रुपया</span>, <span>दूसरा</span> <span>अमेरिकी</span> <span>डॉलर</span> <span>और</span> <span>तीसरा</span> <span>उस</span> <span>देश</span> <span>की</span> <span>करेंसी</span> <span>का</span> <span>खर्च</span>, <span>जहां</span> <span>का</span> <span>पैकेज</span> <span>लिया</span> <span>गया</span> <span>है।</span> <span>हां</span> <span>अगर</span> <span>अमेरिका</span> <span>का</span> <span>पैकेज</span> <span>लिया</span> <span>गया</span> <span>है</span> <span>तो</span> <span>तीसरी</span> <span>करेंसी</span> <span>का</span> <span>खर्च</span> <span>शामिल</span> <span>नहीं</span> <span>होता।</span> <span>कंपनियां</span> <span>कंरेसी</span> <span>के</span> <span>इसी</span> <span>खेल</span> <span>के</span> <span>जरिए</span> <span>कस्टमर</span> <span>को</span> <span>बेवकूफ</span> <span>बनाती</span> <span>हैं।</span> <span>अक्सर</span> <span>कंपनियां</span> <span>विज्ञापन</span> <span>में</span> <span>सिर्फ</span> <span>भारतीय</span> <span>रुपए</span> <span>और</span> <span>अमेरिकी</span> <span>डॉलर</span> <span>का</span> <span>ही</span> <span>खर्च</span> <span>बताती</span> <span>हैं।</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>स्थान</span> <span>विशेष</span> <span>की</span> <span>मुद्रा</span> <span>के</span> <span>खर्चे</span> <span>के</span> <span>बारें</span> <span>में</span> <span>कुछ</span> <span>नहींबताया</span> <span>जाता</span> <span>है।</span> <span>इसके</span> <span>अलावा</span> <span>पासपोर्ट</span> <span>चार्ज</span>, <span>वीसा</span> <span>फीस</span>, <span>एयरपोर्ट</span> <span>टैक्स</span>, <span>यात्रा</span> <span>बीमा</span>, <span>मिनरल</span> <span>वाटर</span>, <span>खाना</span> <span>और</span> <span>पानी</span> <span>आदि</span> <span>भी</span> <span>का</span> <span>खर्चा</span> <span>भी</span> <span>इस</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>शामिल</span> <span>नहीं</span> <span>है।</span> <span>यही</span> <span>कारण</span> <span>हैं</span> <span>कि</span> <span>सिंगापुर</span> <span>का</span> 21 <span>हजार</span> <span>का</span> <span>पैकेज</span> 41 <span>हजार</span> <span>रूपए</span> <span>बैठता</span> <span>है।</span>
<span style="font-weight: bold;">हवाई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किराए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">खेल</span>
<span>कई</span> <span>बार</span> <span>कंपनियां</span> <span>इन</span> <span>पैकेज</span> <span>के</span> <span>प्रचार</span> <span>में</span> <span>सस्ते</span> <span>पैकेज</span> <span>पेश</span> <span>करने</span> <span>दावा</span> <span>करती</span> <span>हैं</span>, <span>लेकिन</span> <span>असल</span> <span>में</span> <span>प्रचार</span> <span>के</span> <span>समय</span> <span>पैकेज</span> <span>का</span> <span>असली</span> <span>खर्च</span> <span>व</span> <span>हवाई</span> <span>यात्रा</span> <span>का</span> <span>सच</span> <span>शर्तें</span> <span>लागू</span> <span>या</span> <span>स्टार</span> <span>लगाकर</span> <span>छिपा</span> <span>जाती</span> <span>हैं।</span> <span>अभी</span> <span>हाल</span> <span>में</span> <span>एक</span> <span>टूर</span> <span>कंपनी</span> <span>ने</span> <span>गोवा</span> <span>का</span> 12,000 <span>रुपए</span> <span>का</span> <span>सबसे</span> <span>सस्ता</span> <span>पैकेज</span> <span>देने</span> <span>का</span> <span>दावा</span> <span>किया</span> <span>था</span>, <span>लेकिन</span> <span>उसमें</span> <span>हवाई</span> <span>किराया</span> <span>दिल्ली</span> <span>से</span> <span>न</span> <span>होकर</span> <span>मुंबई</span> <span>का</span> <span>था</span> <span>जिसे</span> <span>कंपनी</span> <span>ने</span> <span>जाहिर</span> <span>नहींकिया</span> <span>था।</span> <span>साथ</span> <span>ही</span> <span>पीक</span> <span>सीजन</span> <span>चार्ज</span>, <span>टैक्स</span> <span>आदि</span> <span>भी</span> <span>इसमें</span> <span>शामिल</span> <span>नहीं</span> <span>था।</span> <span>सभी</span> <span>टैक्स</span>, <span>पीक</span> <span>सीजन</span> <span>चार्ज</span> <span>और</span> <span>दिल्ली</span> <span>से</span> <span>हवाई</span> <span>किराया</span> <span>शामिल</span> <span>करने</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>इस</span> <span>पैकेज</span> <span>की</span> <span>कीमत</span> <span>प्रति</span> <span>पर्यटक</span> 28,000 <span>रुपए</span> <span>हो</span> <span>गई।</span> <span>ऐसे</span> <span>में</span> <span>डिस्कांउट</span> <span>का</span> <span>या</span> <span>सबसे</span> <span>सस्ता</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>जैसी</span> <span>कोई</span> <span>बात</span> <span>का</span> <span>मतलब</span> <span>ही</span> <span>नहींरह</span> <span>गया।</span> <span>इस</span> <span>तरह</span> <span>के</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>कैश</span> <span>बैक</span> <span>ऑफर</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>भी</span> <span>करीब</span> 2-3 <span>महीने</span> <span>पहले</span> <span>बुक</span> <span>करने</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>पहले</span> <span>पैकेज</span> <span>की</span> <span>पूरी</span> <span>कीमत</span> <span>देनी</span> <span>होती</span> <span>है</span>, <span>तभी</span> <span>ऐसे</span> <span>डिस्काउंट</span> <span>ऑफर</span> <span>का</span> <span>फायदा</span> <span>उठाया</span> <span>जा</span> <span>सकता</span> <span>है।</span> <span>इसलिए</span> <span>इन</span> <span>पैकेजों</span> <span>को</span> <span>लेने</span> <span>से</span> <span>पहले</span> <span>इनमें</span> <span>छिपी</span> <span>कुल</span> <span>लागत</span> <span>को</span> <span>जान</span> <span>लेना</span> <span>जरूरी</span> <span>है।</span>
<span style="font-weight: bold;">बाक्स</span>
<span style="font-weight: bold;">प्लानिंग</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">फार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">परफेक्ट</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वेकेशन</span>
<span>समर</span> <span>वेकेशन्स</span> <span>यानी</span> <span>बिलकुल</span> <span>सही</span> <span>समय</span>, <span>अपने</span> <span>दिमाग</span> <span>को</span> <span>ठंडा</span> <span>और</span> <span>शांत</span> <span>बनाने</span> <span>का।</span> <span>वह</span> <span>भी</span> <span>एक</span> <span>बेहतर</span> <span>हॉलीडे</span> <span>प्लान</span> <span>के</span> <span>साथ।</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>का</span> <span>सफर</span> <span>सुहाना</span> <span>और</span> <span>यादगार</span> <span>रहे</span> <span>इसके</span> <span>लिए</span> <span>थोड़ी</span> <span>मशक्कत</span> <span>सफर</span> <span>शुरू</span> <span>करने</span> <span>से</span> <span>पहले</span> <span>ही</span> <span>कर</span> <span>लेनी</span> <span>ठीक</span> <span>होगी</span>-
<span style="font-weight: bold;">सही</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पैकेज</span>
<span>पैकेज</span> <span>चुनते</span> <span>समय</span> <span>इस</span> <span>बात</span> <span>का</span> <span>खयाल</span> <span>रखें</span> <span>कि</span> <span>आपको</span> <span>होटल</span>, <span>आने</span>-<span>जाने</span> <span>का</span> <span>किराया</span>, <span>खाने</span> <span>का</span> <span>खर्चा</span> <span>अलग</span> <span>से</span> <span>न</span> <span>देना</span> <span>पड़े।</span> <span>सभी</span> <span>चीजों</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>एकमुश्त</span> <span>पैसा</span> <span>जमा</span> <span>करना</span> '<span>यादा</span> <span>सही</span> <span>होगा।</span> <span>एक</span> <span>आदर्श</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>आपके</span> <span>खर्चे</span> <span>को</span> 20-25 <span>फीसदी</span> <span>तक</span> <span>कम</span> <span>कर</span> <span>सकता</span> <span>है।</span>
<span style="font-weight: bold;">जांचे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">परखें</span>
<span>इन</span> <span>दिनों</span> <span>बहुत</span>-<span>सी</span> <span>कंपनियां</span> <span>समर</span> <span>वेकेशन</span> <span>पैकेज</span> <span>ऑफर</span> <span>दे</span> <span>रही</span> <span>हैं।</span> <span>कोई</span> <span>भी</span> <span>पैकेज</span> <span>लेने</span> <span>से</span> <span>पहले</span> <span>पूरी</span> <span>तरह</span> <span>से</span> <span>जांच</span>-<span>पड़ताल</span> <span>कर</span> <span>लें।</span> <span>सभी</span> <span>नियम</span> <span>व</span> <span>शर्ते</span> <span>ध्यान</span> <span>से</span> <span>देख</span> <span>लें।</span> <span>जरूरी</span> <span>नहीं</span> <span>कि</span> <span>कोई</span> <span>एक</span> <span>कंपनी</span> <span>आपको</span> <span>जो</span> <span>सुविधाएं</span> <span>दे</span> <span>रही</span> <span>हो</span>, <span>वैसी</span> <span>ही</span> <span>सुविधाएं</span> <span>दूसरी</span> <span>कंपनी</span> <span>भी</span> <span>दे।</span> <span>ऐसे</span> <span>में</span> <span>पूरी</span> <span>तरह</span> <span>जांच</span>-<span>परख</span> <span>कर</span> <span>ही</span> <span>कोई</span> <span>पैकेज</span> <span>लें।</span>
<span style="font-weight: bold;">खर्चे</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">की</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">तुलना</span>
<span>यह</span> <span>हमेशा</span> <span>जरूरी</span> <span>नहीं</span> <span>होता</span> <span>कि</span> <span>टूर</span> <span>पैकेज</span> <span>लेने</span> <span>से</span> <span>आपको</span> <span>कोई</span> '<span>यादा</span> <span>छूट</span> <span>मिलती</span> <span>हो।</span> <span>लोग</span> <span>कई</span> <span>बार</span> <span>ट्रेवल</span> <span>एजेंसी</span> <span>के</span> <span>विज्ञापनों</span> <span>से</span> <span>ठीक</span>-<span>ठीक</span> <span>अनुमान</span> <span>नहीं</span> <span>लगा</span> <span>पाते</span> <span>कि</span> <span>इन</span> <span>पैकेज</span> <span>से</span> <span>उन्हें</span> <span>फायदा</span> <span>होगा</span> <span>या</span> <span>नहीं।</span> <span>ऐसे</span> <span>में</span> <span>आप</span> <span>अलग</span> <span>से</span> <span>वहां</span> <span>जाने</span> <span>का</span> <span>खर्चा</span> <span>मालूम</span> <span>करके</span> <span>दोनों</span> <span>की</span> <span>तुलना</span> <span>कर</span> <span>सकती</span> <span>हैं।</span>
<span style="font-weight: bold;">चूज</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">करें</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ग्रुप</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">टूर</span>
<span>ग्रुप</span> <span>टूर</span> <span>में</span> <span>ट्रेवल</span> <span>एजेंसी</span> <span>या</span> <span>टूर</span> <span>ऑपरेटर</span> <span>आपको</span> <span>सस्ते</span>-<span>से</span> <span>सस्ते</span> <span>विकल्प</span> <span>के</span> <span>बारे</span> <span>में</span> <span>बता</span> <span>सकते</span> <span>हैं।</span> <span>अगर</span> <span>आपकी</span> <span>दिलचस्पी</span> <span>कुछ</span> <span>अलग</span> <span>है</span> <span>जैसे</span> <span>आपको</span> <span>सिर्फ</span> <span>स्त्रियों</span> <span>का</span> <span>साथ</span> <span>चाहिए</span> <span>या</span> <span>हेल्थ</span> <span>टूर</span>, <span>एजुकेशनल</span> <span>टूर</span> <span>या</span> <span>एडवेंचर</span> <span>टूर</span> <span>जैसा</span> <span>कुछ</span> <span>चाहती</span> <span>हैं</span> <span>तो</span> <span>ये</span> <span>सुविधाएं</span> <span>भी</span> <span>आपको</span> <span>मिल</span> <span>सकती</span> <span>हैं।</span> <span>अगर</span> <span>आप</span> <span>अकेले</span> <span>घूमने</span> <span>का</span> <span>लुत्फ</span> <span>उठाना</span> <span>चाहती</span> <span>हैं</span> <span>तो</span> <span>भी</span> <span>अपनी</span> <span>जरूरतों</span> <span>और</span> <span>बजट</span> <span>के</span> <span>हिसाब</span> <span>से</span> <span>सलाह</span> <span>ले</span> <span>सकती</span> <span>हैं।</span>
<span style="font-weight: bold;">वेबसाइट</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मार्गदर्शन</span>
<span>होटल</span> <span>की</span> <span>वेबसाइट</span> <span>पर</span> <span>जाएं</span> <span>और</span> <span>कॉस्ट</span> <span>चैक</span> <span>करें।</span> <span>पैकेज</span> <span>में</span> <span>दिए</span> <span>गए</span> <span>होटल</span> <span>के</span> <span>चार्ज</span> <span>की</span> <span>तुलना</span> <span>उसके</span> <span>असल</span> <span>चार्ज</span> <span>से</span> <span>करें।</span> <span>बड़ा</span> <span>आसान</span>-<span>सा</span> <span>तरीका</span> <span>है।</span> <span>ट्रेवल</span> <span>एजेंसी</span> <span>की</span> <span>बहुत</span>-<span>सी</span> <span>साइट्स</span> <span>आपको</span> <span>मिल</span> <span>जाएंगी</span> <span>जिसमें</span> <span>कई</span> <span>तरह</span> <span>के</span> <span>पैकेज</span> <span>मिलेंगे।</span> <span>इससे</span> <span>आपको</span> <span>तुलना</span> <span>करने</span> <span>में</span> <span>भी</span> <span>आसानी</span> <span>होगी</span> <span>और</span> <span>इस</span> <span>नतीजे</span> <span>पर</span> <span>पहुंचना</span> <span>भी</span> <span>आसान</span> <span>होगा</span> <span>कि</span> <span>पैकेज</span> <span>आपके</span> <span>लिए</span> <span>फायदेमंद</span> <span>है</span> <span>या</span> <span>नहीं।</span>
<span style="font-weight: bold;">सस्ती</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हवाई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">यात्रा</span>
<span>ऑनलाइन</span> <span>ट्रेवल</span> <span>सर्च</span> <span>इंजन</span> <span>जैसे</span> <span>मेकमायट्रिप</span> <span>डॉट</span> <span>कॉम</span>, <span>क्लिअरट्रिप</span> <span>डॉट</span> <span>कॉम</span>, <span>यात्रा</span> <span>डॉट</span> <span>कॉम</span> <span>आदि</span> <span>चैक</span> <span>करते</span> <span>रहे</span> <span>और</span> <span>कई</span> <span>योजनाओं</span> <span>का</span> <span>फायदा</span> <span>उठाएं।</span> <span>कई</span> <span>बार</span> <span>एक</span> <span>महीना</span> <span>या</span> <span>तीन</span> <span>सप्प्ताह</span> <span>पहले</span> <span>बुक</span> <span>करने</span> <span>पर</span> <span>आपका</span> <span>हवाई</span> <span>सफर</span> <span>सस्ता</span> <span>भी</span> <span>पड़</span> <span>सकता</span> <span>है।</span> <span>त्योहारों</span> <span>या</span> <span>ऑफ</span> <span>सीजन</span> <span>के</span> <span>समय</span> <span>भी</span> <span>एअर</span> <span>लाइंस</span> <span>टैरिफ</span> <span>कम</span> <span>करने</span> <span>की</span> <span>योजनाएं</span> <span>निकालती</span> <span>रहती</span> <span>हैं।</span> <span>ऐसी</span> <span>सीधे</span> <span>एअरलाइन</span> <span>पोर्टल</span> <span>से</span> <span>संपर्क</span> <span>करना</span> <span>भी</span> <span>अ</span>'<span>छा</span> <span>विकल्प</span> <span>है।</span>
<span style="font-weight: bold;">हकीकत</span>
<span>जिस</span> <span>जगह</span> <span>जाना</span> <span>तय</span> <span>किया</span> <span>है</span> <span>उसके</span> <span>बारे</span> <span>में</span> <span>जानकारी</span> <span>हासिल</span> <span>करें।</span> <span>नेट</span>, <span>किताबें</span> <span>और</span> <span>आपके</span> <span>वो</span> <span>करीबी</span> <span>दोस्त</span> <span>जो</span> <span>वहां</span> <span>घूम</span> <span>चुके</span> <span>हैं</span>, <span>उनके</span> <span>अनुभव</span> <span>काम</span> <span>आएंगे।</span> <span>एक</span> <span>लिस्ट</span> <span>तैयार</span> <span>करें</span>, <span>साथ</span> <span>ही</span> <span>पसंद</span> <span>के</span> <span>हिसाब</span> <span>से</span> <span>प्राथमिकताएं</span> <span>भी</span> <span>तय</span> <span>करें।</span>
<span>अंत</span> <span>में</span> <span>कहां</span> <span>ठहरना</span> <span>है</span>, <span>कहां</span>-<span>कहां</span> <span>घूमना</span> <span>है</span>, <span>यह</span> <span>सारी</span> <span>प्लानिंग</span> <span>पहले</span> <span>से</span> <span>ही</span> <span>कर</span> <span>लें।</span> <span>अंतिम</span> <span>पलों</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>कुछ</span> <span>भी</span> <span>नहीं</span> <span>छोड़े।</span> <span>हां</span> <span>एडवेंचर</span> <span>ट्रिप</span> <span>में</span> <span>जरूर</span> <span>लास्ट</span> <span>मिनट</span> <span>डील</span> <span>की</span> <span>जा</span> <span>सकती</span> <span>है।</span></div>नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-54526928995183215752011-08-31T12:07:00.000+05:302011-08-31T12:10:22.775+05:30विकास को अवरूद्घ करती बिजलीनीतीश सरकार सूबे में विकास की बात करती है। आए दिन विदेशी प्रतिनिध मंडलों से मीटिंग करके निवेश की बात करती है, उद्योग लगाने की बात करती है, लेकिन गरमी शुरू होते ही बिजली ने भी गच्चा देना शुरू कर दिया है। बिजली की कमी को चलते उद्योग-धंधे कौन लगाएगा और चलेंगे कैसे, यह बड़ा सवाल है
बिहार से बाहर रहने वाले लोगों की नजर में राज्य में विकास की बयार बह रही है, मगर बिहार में रहने वाले लोगों को जब झुलसती गरमी में बिजली नहीं मिलने का अंदेशा है तो उनके लिए विकास की बात बेमानी हो जाती है। खुद प्रदेश सरकार भी मानती है कि प्रदेश में बिजली की किल्लत है। अलबत्ता आने वाले वर्षों में इस कमी को पूरा करने का आश्वासन जरूर दिया जाता है।
आज का सच यही है कि बिहार में बिजली संकट अपने चरम पर है। प्रदेश सरकार का सीधे तौर पर आरोप है कि केेंद्र सरकार से बिजली खरीदने के लिए हुए करार का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है। यही वजह है कि यह संकट कायम है। दूसरी ओर, राज्य के विपक्षी दलों के लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी के कारण ही बिजली-पानी को लेकर समस्या उत्पन्न हो गई है।
बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो केेंद्र सेक्टर से राज्य को हर हाल में 1695 मेगावॉट बिजली मिलनी चाहिए। अगर बिजली संयंत्रों में कोई खराबी भी आ जाए, तो भी इसकी भरपाई करनी होती है, लेकिन इस करार का लगातार उल्लंघन होता रहा है। एक अधिकारी का कहना है कि राज्य में ठंड के दिनों में 2,100 से 2,400 मेगावॉट तथा गर्मी के दिनों में 2,500 से 3,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होती है, लेकिन पिछले कुछ समय से केेंद्रीय सेक्टर के तापीय एवं पनबिजली घरों से 700 से 900 मेगावॉट बिजली ही मिल पा रही है। राज्य के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव भी मानते हैं कि बिजली के मामले में राज्य पूरी तरह केेंद्र पर निर्भर है और केेंद्र सरकार है कि मदद ही नहीं कर रही है। श्री प्रसाद के अनुसार राज्य सरकार ने अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए अब बाजार से बिजली खरीदने का फैसला किया है। राज्य में तापघर लगाने की भी पहल की जा रही है। उल्लेखनीय है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां विपक्षी दलों ने बिजली समस्या को प्रमुख मुद्दा बनाया था, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगले कुछ वर्षों में बिजली संकट के समाधान का वादा किया था।
बहरहाल, गर्मी की दस्तक के साथ ही बिजली संकट और बढऩे का अंदेशा है। बिजली संकट को लेकर राज्य के कई इलाकों में लोग सडक़ पर उतरने लगे हैं। बिजली को लेकर पूरे प्रदेश में कोहराम मचा हुआ है। राज्य की राजधानी पटना सहित भोजपुर, नवादा, मुंगेर, दरभंगा और भागलपुर जिलों में बिजली को लेकर लोग सडक़ों पर उतरने लगे हैं, जबकि वहीं राज्य विद्युत बोर्ड ने चरणबद्ध तरीके से सभी इलाकों में बिजली आपूर्ति करने का दावा किया है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष पीके राय के अनुसार, राज्य के सभी इलाकों में चरणबद्ध तरीके से बिजली आपूर्ति करने का निर्देश दे दिया गया है। इसके लिए अधिकारी निगरानी भी कर रही हैं।
विद्युत विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो शुरू से ही बिजली के मामले में राज्य पिछड़ा रहा है। वर्ष 2009-10 में राज्य में बिजली की अधिकतम मांग 2,500 मेगावॉट थी तो अधिकतम आपूर्ति 1,508 मेगावॉट थी। वर्ष 2008-09 में अधिकतम मांग 1,900 मेगावॉट थी तो आपूर्ति सिर्फ 1,348 मेगावॉट थी। इसी तरह 2007-08में राज्य के लिए 1,800 मेगावॉट की बिजली आवश्यक थी तो आपूर्ति 1,244 मेगावॉट ही थी। अनुमान है कि वर्ष 2012-13 तक राज्य को 4,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होगी।
राज्य विद्युत बोर्ड के प्रवक्ता हरेराम पांडेय कहते हैं कि पिछले एक महीने से केेंद्रीय सेक्टर से विद्युत आपूर्ति में कोई सुधार नहीं हो रहा है। इस कारण राज्य में विद्युत संकट उत्पन्न हो गया है। दूसरी ओर कहलगांव और कांटी तापघरों में बिजली उत्पादन पूरी तरह ठप है। कोयला और पानी की समस्या तथा तकनीकी कारणों से ताप और पनबिजली घरों की करीब आधा दर्जन इकाइयों में उत्पादन नहीं हो रहा है। बरौनी तापीय विद्युत केेंद्र से सिर्फ 50 मेगावॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि केन्द्र सेक्टर से 800 मेगावॉट बिजली मिल रही है, जिसमें से 350 मेगावॉट बिजली अनिवार्य सेवा के तहत है।
वर्तमान में पूरा बिहार बिजली संकट से जूझ रहा है। प्रतिदिन किसी न किसी क्षेत्र में बिजली की मांग को लेकर लोग सडक़ पर उतर रहे हैं। इस मामले में सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। पिछले विधानसभा सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्षी सदस्यों द्वारा सदन में हंगामे के बाद ऊर्जा मंत्री ने स्पष्ट किया था कि बिजली संकट के जल्द समाधान का कोई उपाय फिलहाल सरकार के पास नहीं है।
सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-85827780880946494592011-07-26T20:51:00.000+05:302011-07-26T20:54:55.994+05:30राजनीति आड़े आ रही है दिल्ली के विकास मेंराजनेता यदि सही मायने में दिल्ली का विकास करना चाहें तो इसका विकास हो जाएगा, बशर्ते सियासतदान उसमें दखल अंदाजी नहीं करें। दिल्ली में 22 किलोमीटर लंबी गंदा नाला बन चुकी यमुना नदी के सफाई के नाम पर जिस प्रकार से करोड़ो रुपये बर्बाद किये जा चुके हैैं, वह दुखद स्थिति है। दुखद इस बात को लेकर नहीं कि करोड़ो रुपये जो किसी न किसी रूप में जनता का था, बर्बाद किया जा चुका हैै बल्कि इसलिए कि करोड़ो रुपये बहाने के बाद भी यमुना का कायाकल्प नहीं हो पाया। आज की तारीख में भी यदि सरकार चाहे और लीडर लोग अपनी वोट बैंक की राजनीति न घुसाएं तो एक भी पैसे की सरकारी मदद लिए बिना पौराणिक यमुना नदी का लंदन की टेम्स नदी की तरह कायाकल्प हो सकता है। दिल्लीवासियों का अपने शहर क ो विश्वस्तरीय बनाने का सपना तब तक हक ीकत में नहीं बदल सकता जबतक यहां वोट की राजनीति होती रहेगी।
दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर जैसा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री बार-बार कहती है कि दिल्ली को पेरिस सरीखाा शहर बनाना हैै, बनाने के लिए लीडर और सरकार को दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा और मिलकर काम करना होगा। अनधिकृत कालोनियों और एनक्र ोचमेंट से छुटकारा पाना होगा। मेरी समझ में यमुना को साफ करना बहुत ही आसान काम है। शुद्घि के काम में एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। मेेरी समझ में यमुना के तीन सौ मीटर के आस-पास किसी भी तरह के निर्माण की कोर्ट की बंदिश का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है। अहमदाबाद में साबरमती नदी मामले में जैसी पहल गुजरात सरकार ने की हैै, उसी तर्ज पर यमुना के लिए भी दिल्ली में प्रयास होने चाहिए। सिर्फ करोड़ों रुपये बहाने से विकास नहीं होने वाला हैै।
एक तरफ सरकारी नीतियां और दूसरी तरफ कई एजेंसियों के घालमेल के कारण यमुना की सफाई उलझ कर रह गई हैै। कितनी हैरत की बात है कि सरकार ने कोर्ट में भी माना है कि पिछले वर्षो के भीतर यमुना की सफाई के लिए उसने तकरीबन 1700 करोड़ रुपये खर्च कर दिये हैं। इसका परिणाम आज तक क्या निकला है ? यह मेरे सामने भी है और आपके सामने भी। बीते दिनों मैंने भी एक अखबार में खबर पढ़ा था कि यमुना नदी की सफाई के नाम पर और 3150 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बन गई हैै। जबकि इस मद में पहले ही करीब 1200 करोड़ रुपये बहाए जा चुके हैं और नतीजा सिफर रहा है। हमारी-आपकी मेहनत की कमाई से जुटाई सरकारी राशि को किस प्रकार से खर्च किया जा रहा हैै, यह आप भी सोंचे और मैं भी। यमुना में प्रदूषण के स्तर की बात की जाए तो दिल्ली के 18 बड़े नाले 3296 मिलियन गैलन मीटर सीवर प्रतिदिन सीधे नदी में गिरते हैं। दिल्ली में यमुना के पानी को ई श्रेणी में रखा गया है, जिसमें नहाना भी बिमारियों को न्यौता देना है। सीवर के अलावा शहर की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला प्रदूषित पानी भी नदी में गिरता है।
यह जानना दिलचस्प है कि वर्ष 1994 से 1999 के बीच दिल्ली सरकार ने सीवर ट्रीटमेंट सुविधा को मजबूत करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड को 284.98 करोड़ रुपये का ऋण मुहैया कराया। इसके बाद वर्ष 1999 से 2004 के बीच सरकार ने इसी काम के लिए 598.84 करोड़ रुपये जारी किये लेकिन जल बोर्ड इसमें से 439.60 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया। जबकि दिल्ली राज्य औद्योगिक व बुनियादी विकास ढांचा निगम ने 147.09 करोड़ रुपये खर्च किए। उधर यमुना एक्शन प्लान के तहत दिल्ली को करीब 170 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराई गई। इसके अलावा भी अलग-अलग मदों में काफी राशि खर्च की गई। इतना कुछ खर्च करने के बाद भी यदि सरकार यमुना को साफ नहीं बना पाती तो मैं क्या कहूं।सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-30343992716325052552011-07-19T15:56:00.013+05:302011-07-19T17:14:24.040+05:30faishan ke sath katamtaal karti theva kala<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjClOo-3qjLYuN_m-pcSOR80DsWViZZXhO8D-PCTfbhJTGQf4uo7-xwKqtsDiV_W2EJ0m8yfM05yx7XSHVcgutfRLGB1w_QEsimba-O5HfOC0uo1YgBjWQSgww_WeZs0X4feVkc8hzZ6of8/s1600/PBLJT2001.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjClOo-3qjLYuN_m-pcSOR80DsWViZZXhO8D-PCTfbhJTGQf4uo7-xwKqtsDiV_W2EJ0m8yfM05yx7XSHVcgutfRLGB1w_QEsimba-O5HfOC0uo1YgBjWQSgww_WeZs0X4feVkc8hzZ6of8/s320/PBLJT2001.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5631027755940261522" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >राजस्थान की पांच सदी पुरानी थवाई कला इतिहास और विरासत के पन्नों से निकल कर अब रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर है। एक ही परिवार के कंधों पर इस विरासत को संभालने का जिम्मा है।</span><span style="font-size:100%;">
राजस्थान की थेवा कला भी कमाल की है। एक ही परिवार के सदस्यों को सर्वाधिक राष्ट्रीय पुरस्कार पाने के लिए लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड्र्स -2011 में शामिल होने का गौरव है। प्रतापगढ़ के एकमात्र राज सोनी परिवार को थेवा कला को बचाए रखने और नए स्वरूप में ढालने का सौभाग्य हासिल है। राजस्थान में राज्याश्रय में पलने वाली हस्तकलाओं ने सारे विश्व में अपना डंका बजाया। प्रतापगढ़ प्रदेश की ऐसी ही विश्व प्रसिद्ध कला नगरी है। अखिल भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक गौरव प्राप्त प्रतापगढ़ सिर्फ एक कला के कारण लोगों की निगाहों का केंद्र है। लोग दूरदराज से खास तौर पर थेवा के आभूषण और वस्तुएं लेने प्रतापगढ़ चले आते हैं।राज सोनी परिवार ने आठ राष्ट्रीय और दो राज्य स्तरीय अवार्ड प्राप्त कर अपनी परंपरागत थाती थेवा कला को नए स्वरूप में ढालने का सौभाग्य हासिल किया है। यह अपने आप में अनूठा है कि इन्साइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका में उल्लिखित थेवा कला के मर्मज्ञ सिर्फ प्रतापगढ़ में ही बसते हैं।
</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >रामायण में उल्लेख</span><span style="font-size:100%;">
रामायण में जिन 64 कलाओं का उल्लेख है। उनमें वर्णित थवाई कला ही आज की थेवा कला है। कर्नल टॉड और गौरी शंकर ओझा ने भी राजस्थान के इतिहास में इसका उल्लेख किया हैं। 19वीं सदी में हेनर की भारत यात्रा के दौरान थेवा कला से काफी प्रभावित हुए थे। उनके यात्रा वृतांत में भी इसका उल्लेख है।
</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >पीढिय़ों की धरोहर</span><span style="font-size:100%;">
सदियों पूर्व मालवा से नाथू सोनी देवगढ़ में आ बसे थे। देवगढ़ तब प्रतापगढ़ रियासत की राजधानी था। कला पारखी राजा ने सोनी परिवार को ‘राज सोनी’ का दर्जा दिया। 1775 में तत्कालीन नरेश सांवतसिंह ने इस परिवार को तीन सौ बीघा जमीन जागीर स्वरूप दी। प्रतापगढ़ में करीब दस पीढिय़ां इसी कला की बदौलत अपना जीवन यापन करती रही हैं। राजकीय संरक्षण के दिनों में राज सोनी परिवार ने इस कला में निखार लाने का प्रयास किया और इससे न सिर्फ प्रतापगढ़ या राजस्थान को ही बल्कि भारत को भी गौरवान्वित करके अनूठी पहचान भी बनाई।
</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >बारीक कारीगिरी</span><span style="font-size:100%;">
हाथी, घोड़े, शेर, शिकारी, फूल, पत्ती, राधा-कृष्ण, इतिहास और प्रकृति से जुड़े सैकड़ों विषय जब सोने और कांच की जड़ाऊ नक्काशी के बीच दिखाई देते हैं तो एकबारगी आंखें चुंधिया जाती हैं। लोग थेवा की आकर्षक, कलात्मक वस्तुओं और आभूषणों को देखते हैं तो यह सोच कर दंग रह जाते हैं कि आखिर कांच के भीतर सोने की यह कारीगरी की कैसे जाती है? अब तो थेवा कला में छोटी डिब्बियां, ऐश-ट्रे, इत्रदान, सिगरेटकेस, टाइपिन कफलिंक्स, अंगूठी, बटन, पेंडुलम, पायल, बिछिया, बॉक्स आदि जाने कितनी चीजें बड़े ही कौशल से बनाई जाती हैं।
थेवा की रचना प्रक्रिया अनोखी है। सोने, चांदी, कांच और कलाकारी के मिश्रण से बनती हैं थेवा की चीजें। थेवा कला का चित्रकला से गहरा नाता है। इसलिए थेवा कलाकार का चित्रकला में पारंगत होना जरूरी है। परंपरागत चित्रों का अंकन थेवा की खास शैली है। शिकार के विविध पक्ष, रासलीला, पशु-पक्षी, राधाकृष्ण की लीलाएं फूल-पत्तियां, ढोलामारू आदि का सूक्ष्म चित्रांकन नींव के वे पत्थर हैं जो सुंदर थेवा कलाकृति का आधार बनते हैं। सोने के पतले पतर पर सबसे पहले टांकल (कलाकारों की विशिष्ट कलम) से आकृति उकेरी जाती है। पारंपरिक भाषा में इसे कंडारना कहते हैं। कंडारने के लिए टांकली को डंडी के सहारे बहुत हलके हाथ से चलाते हैं और चित्र की खुदाई हो जाती है। कंडारने के बाद आकृति के आसपास से फालतू सोना हटा दिया जाता है। इस प्रक्रिया को जाली बनाना कहते हैं।
डिजाइन चीजों के आधार पर तय किए जाते हैैैं। थेवा कलाकारों ने विभिन्न उपादानों में रासलीला के विभिन्न दृश्यों, महाराणा प्रताप के जीवन चरित्र, शिकार, विवाह आदि की पूरी प्रक्रिया को अपनी कला के जरिए सजीव किया है। चित्र उकेरने और जाली बनाने के लिए यदि सोने के पतर पर सीधे ही काम किया जाए तो उसके टूटने का खतरा रहता है, इसलिए इसे चांदी के फ्रेम में घड़ कर, चांदी की तह से लकड़ी के तख्ते पर राल (गोंद का एक रूप) की मदद से चिपका देते हैं ताकि कलाकार को ठोस आधार मिल सके। ठोस धरातल मिलने पर कंडारने और जाली बनाने में कोई परेशानी नहीं होती। चांदी का फ्रेम और परत भी इसी उद्देश्य से लगाते हैं ताकि सोने की नाजुक और पतली परत सुरक्षित रहे। कलाकार चित्र बनाने में सारा हुनर लगा देता है, क्योंकि आगे चल कर यही वस्तु के सौंदर्य को सही आकार देता है। जाली का डिजाइन बनने के बाद असली प्रक्रिया शुरू होती है। यहां तक का काम तो कोई भी सोनी आसानी से कर सकता है, परंतु जालीदार सोने की परत को कंाच पर फिट करने का काम बहुत सावधानी का होता है। यह प्रक्रिया भी गुप्त है। अब लकड़ी के तख्ते की राल को गरम करके चंादी-सोने के पतर को उतार लेते हैं। एसिड में डुबो कर सोने की परत का इंप्रेशन कांच पर लिया जाता है। कांच बेल्जियम का होता है। इसके बाद गुप्त पद्धति से कांच को सोने और चंादी के फ्रेम के बीच फिट कर दिया जाता है।
</span><span style="font-weight: bold;font-size:100%;" >पंरपरा सिमटा दायरा</span><span style="font-size:100%;">
थेवा कला एक ही परिवार की धाती है। परिवार के सिर्फ पुरुष सदस्य इसे अति गोपनीयता से बनाते हैं। किसी और को बताना या सिखाना तो दूर की बात है, घर की लड़कियों से भी यह कला गुप्त रखी जाती है ताकि शादी के बाद वे इसे ससुराल में न बता दें। इस कला का उद्भव कैसे और कहां से हुआ? आज के संदर्भ में इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ इतना ही है कि यह कला करीब 500 वर्ष पुरानी हैै । राज सोनी परिवार के पूर्वज नाथू जी इसके आदि पुरुष थे। आज जब परंपरागत कलाकारों की प्रगति के लिए इतने प्रयास किए जा रहे हैं, तो थेवा कलाकार अपनी परंपरा के दायरे में उलझे हैं, ऐसा क्यों है? यह प्रश्न अपनी जगह सही है, पर राजसोनी परिवार का मानना है कि थेवा उनके लिए थाती है, धरोहर है। उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है कि वे परंपरावादी हैं। इसी कला ने तो राजसोनी परिवार को विश्व के नक्शे पर खास पहचान दी है। उनके परिवार के प्राय: सभी लोगों को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिले हैं। उनके लिए यह कम गौरव की बात नहीं है कि लोग प्रतापगढ़ को थेवा या उनके परिवार के नाम से पहचानते हैं।
थेवा से बने सामान में सबसे ज्यादा टाप्स और लॉकेट बिकते हैं। वैसे नेकलेस, टॉप्स और अंगूठी का सेट भी लोग पसंद करते हैं। डिब्बियां भी ज्यादा बिकती हैं। एक सेट में करीब 17 ग्राम सोना लगता है और यह सोने की कीमत के हिसाब से बिक जाता है। थेवा कलाकार जब बेचने के हिसाब से माल बनाते हैं तो छोटे आइटम ज्यादा बनाते हैं। पुरस्कार वगैरा या फिर ऑर्डर पर बड़े आइटम भी बनाते हैं। बड़ी चीजों मे मंजे हुए कलाकारों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए बड़े आइटम खास मौके पर ही बनते हैं।
आज हर क्षेत्र में नई तकनीक और नए औजार आ गए हैं, परंतु थेवा कलाकारों के कामकाज में बदलाव नहीं आया है। औजार वही हैं, चीजें वही हैं, हां, ग्राहक जरूर बदले हैं। पहले राजा-महाराजा ग्राहक थे, अब सेठ-साहूकार या सरकार। पहले माल तौल से बिकता था, अब नग के हिसाब से। झलाई का काम पहले कोयले की सिगड़ी पर होता था अब खास तरीके के स्टोव पर। अब साधारण लोग भी थेवा के जेवर खरीदने लगे हैं, क्योंकि इनमें नाममात्र का सोना होता है। इसलिए हर हाल में कीमत कुछ कम हो जाती है। थेवा कलाकार इसीलिए सारा माल सोने का नहीं बनाते हैं। ऊपर सोना और नीचे चांदी लगाते हैं ताकि आम आदमी ले सके, पर यदि कोई कहे तो सारा कुछ सोने से भी बनाते हैं। सोने की कीमतों में बढ़ोतरी से थेवा कलाकारों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग सकता है, परंतु कलाकारों का मानना है कि भविष्य बहुत अच्छा है। यदि सोना महंगा होता है तो कम सोने में बने होने के कारण थेवा के आभूषण बहुत ही लोकप्रिय होंगे। पहले के मुकाबले थेवा के माल की खपत बहुत बढ़ी है। पर सवाल यही है कि विरासत को क्या सिर्फ एक परिवार का धाती बनाकर रखना सही है। अगर राज सोनी परिवार ऐसा न करता तो शायद यह कला किसी और बुलंदी पर होती।</span><blockquote><blockquote></blockquote></blockquote>नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-42588846089116061072011-06-21T02:47:00.004+05:302011-06-21T03:00:38.703+05:30गोल्ड लोन लेने से पहले<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiW0VyVe0Vt18CbqpbVetEOmHRd8ASe3Yd6GR6KHVmDR1ZtByAwMwQX1eBgY5F2ELCKbazcL-njWtAQoQ80Z6a8zzYjyYcUKThhr1VfqJjmAQ3PAjInakFllptE-HWqE5098UDT0vLQUKi2/s1600/06-anna-hazare-fast-jantar-mantar-060411.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 255px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiW0VyVe0Vt18CbqpbVetEOmHRd8ASe3Yd6GR6KHVmDR1ZtByAwMwQX1eBgY5F2ELCKbazcL-njWtAQoQ80Z6a8zzYjyYcUKThhr1VfqJjmAQ3PAjInakFllptE-HWqE5098UDT0vLQUKi2/s320/06-anna-hazare-fast-jantar-mantar-060411.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5620415995572207202" border="0" /></a>
<span>गोल्ड</span> <span>लोन</span> <span>सोने</span> <span>के</span> <span>गहने</span> <span>या</span> <span>शुद्ध</span> <span>सोना</span> <span>जैसे</span> <span>ईंट</span> <span>आदि</span> <span>के</span> <span>बदले</span> <span>मिलता</span> <span>है।</span> <span>गोल्ड</span> <span>लोन</span> <span>सस्ता</span> <span>नहीं</span> <span>है।</span> <span>यह</span> <span>तभी</span> <span>लेना</span> <span>चाहिए</span> <span>जब</span> <span>आप</span> <span>निश्चित</span> <span>हों</span> <span>कि</span> <span>कर्ज</span> <span>की</span> <span>रकम</span> <span>भर</span> <span>सकते</span> <span>हैं।</span> <span>जरूरी</span> <span>नहीं</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>जिस</span> <span>सोने</span> <span>को</span> <span>गिरवी</span> <span>रखकर</span> <span>लोन</span> <span>लिया</span> <span>जा</span> <span>रहा</span> <span>है</span>, <span>उसे</span> <span>घोषित</span> <span>किया</span> <span>हो</span>, <span>पर</span> <span>अगर</span> <span>सोना</span> <span>और</span> <span>लोन</span> <span>ज्यादा</span> <span>हो</span> <span>तो</span> <span>आयकर</span> <span>वाले</span> <span>आपके</span> <span>पीछे</span> <span>पड़</span> <span>सकते</span> <span>है।</span> <span>साथ</span> <span>ही</span> <span>अगर</span> <span>समय</span> <span>पर</span> <span>लोन</span> <span>न</span> <span>चुकाया</span> <span>जाए</span> <span>तो</span> <span>कम</span> <span>रकम</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>आप</span> <span>महंगे</span> <span>गहनों</span> <span>को</span> <span>गंवा</span> <span>सकते</span> <span>हैं।</span>
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXGjh2qvp4Jn6QZG4iC9cTKOnjXLxC6Cvf-gg5ukCvI7VdgxTB57rXHVGrQ5edxRwpQEESxxzVNvy_89DuK_aKPgaQzXGlTRN4NUlvF7y2MNbv7xbHN9nWqJWVLEu4NCwuEs8T2nIz_tKg/s1600/gold-jewellery.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 298px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXGjh2qvp4Jn6QZG4iC9cTKOnjXLxC6Cvf-gg5ukCvI7VdgxTB57rXHVGrQ5edxRwpQEESxxzVNvy_89DuK_aKPgaQzXGlTRN4NUlvF7y2MNbv7xbHN9nWqJWVLEu4NCwuEs8T2nIz_tKg/s320/gold-jewellery.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5620415869255148322" border="0" /></a>
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‘जब घर में पड़ा है सोना तो काहे का रोना।’ आजकल टीवी और रेडियो पर यह लुभावना विज्ञापन अक्सर सुनाई पड़ता है। इसे देखकर लगता है कि जब भी आपको रुपयों की जरूरत हो तो गोल्ड लोन लेना कितना आसान और साधारण माध्यम है। आप एकदम और कभी भी लोन ले सकते हैं। पर क्या वाकई गोल्ड लोन लेना अच्छा, आसान और सुरक्षित है?
आजकल अभिनेता अक्षय कुमार टीवी और रेडियो के विज्ञापनों में मन्नापुरम फाइनेंस के गोल्ड लोन के लिए यह जुमला कहते हुए नजर आते हैं। जिसे देकर लगता है कि लोन लेना कितना सरल है पर गोल्ड लोन जितना साधारण दिखता है कि बस अपने गोल्ड को गिरवी रखा और उसके बदले में आनुपातिक रूप में फाइनेंस कंपनी लोन दे देती है, यह उतना साधारण भी नहीं है। इसमें बहुत सारे जोखिम और कई कमियां हैं। गोल्ड लोन आपके सोने के गहने या शुद्ध सोना जैसे कि ईंट आदि को गिरवी रखकर दिया जाता है। और यह जरूरी नहीं है कि जिस सोने को आप गिरवी रखकर लोन लेने जा रहे हैं, उसे आपने घोषित किया हो, परंतु अगर सोना ज्यादा कीमत का हो और लोन भी ज्यादा हो तो आयकर महकमा बैंकों और फाइनेंस कंपनियों से जानकारी लेकर आपके पीछे पड़ सकता है।
बहरहाल, गोल्ड लोन एक ऐसा उत्पाद है जो कि बहुत ही जल्दी आपको मिल जाता है। जल्दी से लोन मिलने का एकमात्र कारण है कि यह आपको सोने को गिरवी रखकर मिलता है। इसमें कर्ज लेने के लिए तमाम तरह की दूसरी औपचारिकताएं पूरी नहीं करनी पड़ती हैं। गोल्ड लोन की रकम सोने की मात्रा और शुद्धता के ऊपर निर्धारित की जाती है। लेकिन यहां पर सबसे बड़ी बात यह है कि गोल्ड लोन देने वाली संस्थाएं इस बात का ध्यान नहीं रखती हैं कि कर्ज लेने वाला कर्ज चुका भी पाएगा या नहीं?
सोने के मूल्यांकन के सभी कंपनियों के पैमाने अलग-अलग होते हैं, अगर आपका सोना हालमार्क है तो उसकी कीमत अच्छी आंकी जाएगी और आपको ज्यादा लोन मिल पाएगा। परंतु अगर सोना हालमार्क नहीं है तो आपको बहुत सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि आपके ज्यादा कीमत वाले सोने का मूल्यांकन बहुत ही कम किया जा सकता है और आपका सोना जो कि कीमत में बहुत ज्यादा है उसे कर्ज देने वाली संस्था गिरवी रख लेगी। गोल्ड लोन केवल सोने के गहनों के बदले ही मिल सकता है। अगर गहने में किसी प्रकार का कोई महंगा रत्न आदि जड़ा हुआ है तो उसकी कीमत नहीं आंकी जाती है, और गहने के तोल में रत्न आदि का भार कम कर दिया जाता है। मूल्यांकन केवल सोने का ही किया जाता है।
आपको लोन में कितनी रकम मिल सकती है यह उस सोने की मात्रा और शुद्धता पर निर्भर करता है, जो कि गिरवी रखा जाना है। कर्ज सोने के मूल्यांकन का 60 से 100 फीसद तक हो सकता है। यह सब तो ठीक है, परंतु यहां सोने के मूल्य के अनुपात में जिस पर लोन दिया जा रहा है, उसके लिए बाजार का अपना एक स्वाभाविक जोखिम है। जैसे कि बाजार में पिछले कुछ दिनों में देखने को मिला कि सोना कभी बहुत ज्यादा ऊपर पहुंच गया और फिर एकदम कम भाव पर आ गया। सोने के भाव में कमी होने पर कर्ज देने वाली कंपनी और कर्ज लेने वाला दोनों जोखिम में आ जाते हैं।
बाजार में आजकल यही सोचा जाता है कि सोने का भाव केवल ऊपर ही जाएगा जो कि बाजार और ऐसी संस्थाओं के लिए बहुत बड़ा जोखिम है। गोल्ड लोन की अवधि साधारणतया एक महीने से लेकर दो बरस तक की होती है और अगर आपको लोन की अवधि बढ़ानी है तो बढ़ा भी सकते हैं, परंतु उसके लिए ये संस्थाएं शुल्क के नाम पर कुछ अतिरिक्तपैसा आपकी जेब से निकाल लेती हैं।
गोल्ड लोन पर ब्याज दर 11 से लेकर 28 फीसद प्रति वर्ष तक हैं। ब्याज दर गोल्ड लोन की रकम पर निर्भर करती है, जितना सोना आपने गिरवी रखा है और उसके बदले में मिलने वाली रकम अगर ज्यादा होगी तो ब्याज ज्यादा ब्याज और रकम कम होगी तो ब्याज भी कम। साथ ही ब्याज की दर निर्भर करती है गोल्ड लोन के अनुपात पर, अगर अनुपात ज्यादा है तो ब्याज ज्यादा होगा और अगर कम अनुपात होगा तो ब्याज करीब 12 फीसद होगा। ज्यादा समय के लिए ज्यादा ब्याज देय होता है और कम समय के लिए कम ब्याज देय होता है। कर्ज देने वाली संस्थाओं और बैंकों को सुनिश्चित करना होता है कि सोना शुद्ध है और नकली नहीं है। अगर वे यह सुनिश्चित नहीं कर पाती हैं तो उनके लिए तो पूरा कर्ज ही घाटे का सदा बन जाता है।
ब्याज दर के अलावा अतिरिक्तशुल्क क्या है? कर्ज लेने वाले को इसका पता भी पहले ही लगा लेना चाहिए। अतिरिक्तशुल्क जैसे कि प्रोसेसिंग चार्जिज, समय के पहले कर्ज अदा करने पर शुल्क जो कि गोल्ड लोन के 0.5 से एक फीसद तक कुछ भी हो सकता है। फिर अगर लोन को रिन्यूवल करवाना है तो लोन की अवधि के अनुसार उसका भी अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है। अगर इसी दौरान कर्ज लेने वाले को कुछ हो जाए तो कर्ज देने वाला उसके लिए बीमा करवाते हैं, जिससे लोन की रकम भरी जा सके और सोना कर्ज लेने वाले के परिवार को लौटा दिया जाता है। बीमे का शुल्क भी अतिरिक्त होता है।
गोल्ड लोन अधिकतर ईएमआई आधारित नहीं होता है। लोन की अवधि में कभी भी भुगतान किया जा सकता है। जैसे कि अगर एक वर्ष के लिए लोन लिया है तो आप एक वर्ष में उस लोन का भुगतान कभी भी कर सकते हैं। गोल्ड लोन में डिफाल्टर दर बहुत ही कम होती है। कर्ज लेने वाले तीस फीसद लोग तो उसी माह में लोन चुकता कर देते हैं। बाजार में गोल्ड लोन में डिफाल्टर दर दो फीसद से भी कम होती है। अगर कोई डिफाल्टर होता भी हैतो कर्जदाता कंपनी या बैंक गिरवी में रखा गया सोना या गहना बेचकर अपनी रकम वसूल कर लेते हैं। लेकिन गिरवी रखे गए सोने की नीलामी की प्रक्रिया बहुत लंबी है। गहने या सोने की नीलामी करने से पहले डिफाल्टर को रजिस्टर्ड पत्र भेजा जाता है, साथ ही उनसे बातचीत करके मामले को सुलझाने की कोशिश की जाती है, उन्हें कहा जाता है कि कम से कम ब्याज तो चुकाएं। फिर उन्हें कर्ज चुकाने के लिए और समय देने की कवायद शुरू की जाती है।
कुल मिलाकर गोल्ड लोन सस्ता लोन नहीं है। और आपकोगोल्ड लोन तभी लेना चाहिए जब आप निश्चित हों कि निश्चित समय के बाद आप कर्ज की रकम वापस भरकर गोल्ड लोन चुका सकते हैं। हां, और किसी लोन से यह लोन लेना बहुत ही सरल है और लोन जल्दी भी मिल जाता है और अगर समय पर लोन नहीं चुकाया जाता है तो आप अपने महंगे सोने के गहनों को कम रकम के लोन के चक्कर में गंवा सकते हैं।नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-79142898698797681402011-04-03T10:07:00.002+05:302011-04-03T10:08:58.671+05:30ये पल वर्षो तक याद रहेंगे<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGw4tLsIzSd5VgLloDPHQ-h2TfUIcXk4cKmhZuIM8I_ExGlcNWUyZRjExF4ExOCQiALfU_HzmQowbU6xzmEKWKR1KaeNIMj5MOncmxBxEQUjIuBjTZLfwvj7aDx2g9gkLz_gDFmj6v_2jB/s1600/131005.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 310px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGw4tLsIzSd5VgLloDPHQ-h2TfUIcXk4cKmhZuIM8I_ExGlcNWUyZRjExF4ExOCQiALfU_HzmQowbU6xzmEKWKR1KaeNIMj5MOncmxBxEQUjIuBjTZLfwvj7aDx2g9gkLz_gDFmj6v_2jB/s400/131005.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5591212173888338018" /></a>
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<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSGxrQHK5gG9yEK7Z5XqaSBP6U6uiPTVA-gTd_2XC1uwW7_08xS7-AxN57FZOpDIdpteLp_IP9s_HyhQdqMkIyIyjr6WytjKJ45nTMdmIdSfM85Qqy3uxLg_w3QHGLW08XUdWJUKF43PhX/s1600/131020.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 326px; height: 400px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSGxrQHK5gG9yEK7Z5XqaSBP6U6uiPTVA-gTd_2XC1uwW7_08xS7-AxN57FZOpDIdpteLp_IP9s_HyhQdqMkIyIyjr6WytjKJ45nTMdmIdSfM85Qqy3uxLg_w3QHGLW08XUdWJUKF43PhX/s400/131020.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5591212164181437106" /></a>सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-49433563139233967492011-03-09T01:36:00.013+05:302011-03-09T01:53:09.357+05:30नई इबारत गढ़ती नाजुक उंगलियां<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLUWrDJkrei8XdmBlAoofmVhdWf7OP4-IeD6-WxubYJexxR1MBZaoe70sZVNM097kqdyB3ursgb3kMp-DdahYFipx0TEkDj_F96iC7f8_no4tEODeOrlqs7SkSoXxPiyoDQDHnXbMQEnOA/s1600/indian-female-woman-women-soldier-army.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 309px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLUWrDJkrei8XdmBlAoofmVhdWf7OP4-IeD6-WxubYJexxR1MBZaoe70sZVNM097kqdyB3ursgb3kMp-DdahYFipx0TEkDj_F96iC7f8_no4tEODeOrlqs7SkSoXxPiyoDQDHnXbMQEnOA/s320/indian-female-woman-women-soldier-army.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581805085706126290" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">सफलता के नए आयाम स्थापित करती नए जमाने की नारी अपनी चिपरिचित अबला और बेचारी वाली छवि को तोड़ हर फील्ड में अपनी पस्थिति दर्ज करवा रही हैं। अब तो आलम यह है कि पुरुषों के तथाकथित पौरूष प्रदर्शन की फील्ड में भी महिलाओं का दबदबा बढ़ा है। महिलाओं की इसी सफलता को सलाम-</span>
पढ़-लिख कर क्या करना है, आगे चलकर तो घर ही संभालना है, शादी करो और बच्चे पालो यह कुछ ऐसे जुमले हैं जो कुछ समय पहले तक लगभग हर लड़की को कभी न कभी सुनने पड़ते थे। लेकिन आज अपनी पुरानी छवि को तोड़ भारतीय महिलाएं घर की चारदीवारी से निकल कर खुले आसमां में उड़ान भर रही हैं। कई ऐसे क्षेत्र जहां पहले महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां कामयाब होकर उन्होंने पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ा है। आज महिलाओं ने बतौर सैनिक, सिक्योरिटी गार्ड, स्टेशन कंट्रोलर, ट्रेन ड्राइवर, कैब ड्राइवर आदि काम करके लोगों चौकाया है। कहना गलत न होगा कि पिछले कुछ सालों में महिलाएं और अधिक सशक्त हो कर उभरी हैं।
<span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"></span><span style="font-weight: bold;"></span>
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivOt7Mg0Fyw8nr_L-cTc8NK_zazS71SQ4VFaNtGkce9Z61RSEFcyo1zQRYMjIXO5GNAl1bjFmBT8PmTh9dsQYnJ3M8ZjEwchECOjM2d66-NUuXAGF_s8E0rzggi4F5_qz4MSkmRusI6zua/s1600/Usha+Thorat.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 288px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivOt7Mg0Fyw8nr_L-cTc8NK_zazS71SQ4VFaNtGkce9Z61RSEFcyo1zQRYMjIXO5GNAl1bjFmBT8PmTh9dsQYnJ3M8ZjEwchECOjM2d66-NUuXAGF_s8E0rzggi4F5_qz4MSkmRusI6zua/s320/Usha+Thorat.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804984840255218" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">आसमान नापतीं पायलट</span>
कुछ वर्ष पहले तक इस चुनौतीपूर्ण प्रोफेशन को कम ही महिलाएं अपनाती थीं, लेकिन अब एयरलाइंस की बढ़ती संख्या और करियर की संभावनाओं को देखते हुए यह महिलाओं के लिए पसंदीदा क्षेत्र बन कर उभरा है। यही कारण है कि महिलाओं के कदम अब आसमान में भी बढऩे लगे हैं। उनके इन बढ़ते कदमों का हौसला तब और बढ़ गया जब भारत की सशस्त्र सेनाओं के इतिहास में पहली बार दो महिला विमान चालकों को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। सब लेफ्टिनेंट सीमा रानी शर्मा तथा अम्बिका हुड्डा को 'विंग्सÓ प्रदान किए गए हैं। नौसैनिक विमानन के 56 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब महिला अधिकारियों को मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट के बेड़े में पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल किया गया है।
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAPlwboDUOaVi2yph8ME_FEOemYPnBNKhUt6YPchTRSfFxhT1a2cSVUAhfYHgSnhieWWTiZkDc5e0CAe2zj0vTs7Dq3WcbC7k1s3rVTiJs-iluoMb2q8nFDrt1p6h6JAjTZ0HAoYgwYnnl/s1600/Ambica-Hooda-Seema-Rani-Sharma.JPG"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 226px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAPlwboDUOaVi2yph8ME_FEOemYPnBNKhUt6YPchTRSfFxhT1a2cSVUAhfYHgSnhieWWTiZkDc5e0CAe2zj0vTs7Dq3WcbC7k1s3rVTiJs-iluoMb2q8nFDrt1p6h6JAjTZ0HAoYgwYnnl/s320/Ambica-Hooda-Seema-Rani-Sharma.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804840261683074" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">ट्रेन की ड्राइविंग सीट का सफर</span>
कुछ साल पहले तक शायद ही कोई इस बात की कल्पना भी कर सकता था कि कोई महिला ट्रेन की ड्राइविंग सीट पर भी सवार हो सकती है लेकिन सन 2000 में एक्सप्रेस ट्रेन की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाली सुरेखा यादव ने कामयाबी का जो रास्ता दिखाया आज उसपर महिलाएं ट्रेन की गति से ही दौड़ती नजर आ रही हैं। सुरेखा के बाद पश्चिम रेलवे की पहली महिला ड्राइवर प्रीति कुमारी, लखनऊ इंडियन रेलवे लोकोमोशन की पहली ट्रेन ड्राइवर शमता, नॉर्थ रेलवे की पहली महिला इंजन ड्राइवर लक्ष्मी, झारखंड की पहली महिला लोको पायलट दीपाली आदि ऐसे नाम है जो पुरुषों के एकाधिकार वाले इस क्षेत्र में उनको चुनौती दे रही हैं और आने वाली पीढ़ी को पे्ररणा भी। अब तो अत्याधुनिक दिल्ली मेट्रो की ड्राइविंग ग्रुप में भी कुछ लड़कियों को शामिल किया गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि महिलाएं इस क्षेत्र में भी तरक्की की राह पर चलने लगी हैं।
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXS-06_tgYc2QzBkVKicmhGKXIimP7-BaYCNy9OBKVtFES_toXXXZEZLzDgns3clImGo4wEZFzOCxppBRHJh7YXFkXO5AgWQ6z7_Ot5R0vQlVvDgDz4i7FUjEPDK0-kap9HQaR9IaMrWQJ/s1600/samtakumari+train+driver.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 185px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXS-06_tgYc2QzBkVKicmhGKXIimP7-BaYCNy9OBKVtFES_toXXXZEZLzDgns3clImGo4wEZFzOCxppBRHJh7YXFkXO5AgWQ6z7_Ot5R0vQlVvDgDz4i7FUjEPDK0-kap9HQaR9IaMrWQJ/s320/samtakumari+train+driver.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804744846752818" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">फिल्म निर्माण एवं निर्देशन</span>
भारतीय महिला डायरेक्टर्स पुरुष डायरेक्टरों से हर मायने में काफी आगे दिखती हैं। इसका सबूत है नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स और फिल्म फेयर अवॉर्ड्स जिनको वे दशकों से अपने नाम करती आ रही हैं। अवार्ड पाने वाली महिला निर्देशकों की लंबी कतार है जो अपना रास्ता खुद बना रही हैं। कथा, चश्मे बद्दूर, स्पर्श और दिशा जैसी फिल्में बनाने वालीं सई परांजपे, बांग्ला फिल्मों की चर्चित अभिनेत्री, स्क्रिप्ट राइटर और फिल्मकार अपर्णा सेन, सलाम बॉम्बे के लिए विदेशों में तमाम अवॉर्ड जीतने वाली मीरा नायर, मलयालम फिल्मों की हीरोइन रच चुकीं रेवती सहित कल्पना लाजमी, दीपा मेहता, तनूजा चंद्रा, किरण राव आदि चंद वह नाम हैं जिन्होंने डायरेक्शन की फील्ड में भी अपना कमाल दिखाया है।
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIJ2fuS422dWfi3q6ynXuwRXzyd3RNrv6IMrTbnO5akWZvpiVSSJipy1R_e8MsAfslJdsiqi1hN0-jy9DKxuUpDAAal368oq5upC7NfEzl3ieRn0EPd7lumhj9cpXPjMmiIeQIEoasS_gb/s1600/meera+nair.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 214px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIJ2fuS422dWfi3q6ynXuwRXzyd3RNrv6IMrTbnO5akWZvpiVSSJipy1R_e8MsAfslJdsiqi1hN0-jy9DKxuUpDAAal368oq5upC7NfEzl3ieRn0EPd7lumhj9cpXPjMmiIeQIEoasS_gb/s320/meera+nair.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804630814282786" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">कॉरपोरेट और फाइनेंस में मिली कामयाबी</span>
पहले जहां कारपोरेट और फाइनेंस की फील्ड्स को पुरुषों के एकाधिकार वाला क्षेत्र माना जाता था, वहीं अब महिलाओं ने अपनी मेहनत से न सिर्फ अपना स्थान बनाया है बल्कि अपनी उपयोगिता को भी साबित किया है। यही वजह है कि पिछले एक दशक में इन फील्ड्स में महिलाओं की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है और उन्होंने बड़े पदों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। इसका उदाहरण है आईसीआईसीआई बैंक की हेड चंदा कोचर, बायोकॉन लि. की चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर किरण मजुमदार शॉ, ब्रिटानिया की एमडी विनीता बाली, रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर उषा थरोट, श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ की प्रेसिडेंट ज्योति नाइक, एसोचैम की प्रेजिडेंट स्वाति पीरामल, काइनेटिक फाइनेंस की मैनेजिंग डायरेक्टर सुलाजा फिलाडिआ मोटवानी और एचएसबीसी इंडिया की सीईओ नैना लाल किदवई आदि जिनकी सफलता ने कॉरपोरेट और फाइनेंस फील्ड में महिलाओं को नई राह दिखाई है। आज आलम यह है कि तमाम कॉरपोरेट कंपनियों में उच्च पदों पर बैठी महिलाएं अपनी सफलता की कहानी खुद कह रही हैं। भले ही पुरुषों को उनकी सफलता को पचाने में थोड़ा वक्त लग रहा है, लेकिन महिलाओं की सफलता की यह यात्रा निरंतर जारी है।
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEho-Bv_P7JxSf0hBZGR1QoJGDUqpMFJksI15MAQR2OWRa67UQ7T-dZrIysaJLUQxBXYXBCxtONrXc4GjRIF6O6J8FXnq-yJxBTjh2Id8FljMZgjmMv9PTue0Td2TQsMNRQecg6v-la_kUt4/s1600/tessy-thomas-20609313.jpg"><img style="margin: 0pt 0pt 10px 10px; float: right; cursor: pointer; width: 313px; height: 234px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEho-Bv_P7JxSf0hBZGR1QoJGDUqpMFJksI15MAQR2OWRa67UQ7T-dZrIysaJLUQxBXYXBCxtONrXc4GjRIF6O6J8FXnq-yJxBTjh2Id8FljMZgjmMv9PTue0Td2TQsMNRQecg6v-la_kUt4/s320/tessy-thomas-20609313.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804457265693170" border="0" /></a>
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvztnwg3OA2XxRaF6E-9zZh6uuoQcMn7SjmXX1IdF3u9oFF9KE0V03z1xMTWT6EhWXPbwX-IzYwBUYGceBBJzHEAOitLoMWWOvb9LsbgUxlkM5U0vsO2TdCeXI1MiYD0hjHrEO0FRRal2j/s1600/kochhar_chandra_a006.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 320px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvztnwg3OA2XxRaF6E-9zZh6uuoQcMn7SjmXX1IdF3u9oFF9KE0V03z1xMTWT6EhWXPbwX-IzYwBUYGceBBJzHEAOitLoMWWOvb9LsbgUxlkM5U0vsO2TdCeXI1MiYD0hjHrEO0FRRal2j/s320/kochhar_chandra_a006.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804275411731330" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">मिसाइल व परमाणु प्रोजेक्ट</span>
स्पेस पर जाने वाली कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स् से तो हम भलीभांति परिचित हैं। पर इनके अलावा भी ऐसी कई भारतीय मूल की महिलाएं है जो अंतरिक्ष संबंधि कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। इन्हींमें एक टेसी थॉमस पहली भारतीय महिला हैं, जो देश की मिसाइल प्रोजेक्ट (डिआरडिओ में) को हैंडिल कर रही थीं। टेसी को मिसाइल वूमेन के नाम से पहचाना जाता है। टेसी उन भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जो देश के मिसाइल प्रोजेक्ट में काम करने की इच्छा रखती हैं। अग्नि-2 मिसाइल प्रोजेक्ट की हेड रही टेसी को अग्नि-5 मिसाइल प्रोजेक्ट की कमान भी सौंपी गई है। टेसी के अलावा भी कई भारतीय मूल की महिलाएं नासा के अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी हुई हैं जो समय-समय पर अपने प्रयोगों में उन्हें भागीदार बनाता रहता है।
<span style="font-weight: bold;">मोर्चा संभालती नाजुक कलाईयां </span>
पिछले साल जारी किए आंकड़ों के मुताबिक इंडियन फोर्सेज में करीब 2000 लेडी ऑफिसर्स काम कर रही थीं। करीब दो दशक पहले जब पहली बार इंडियन आर्म्ड फोर्सेज में महिलाओं से नौकरी के लिए आवेदन मांगा था, तो माना यह जा रहा था कि शायद ही कोई लड़की यह जॉब चुनेगी। लेकिन उम्मीद से कहीं ज्यादा आईं ऐप्लिकेशंस ने सबकी आशंकाओं को गलत साबित कर दिया। सेना में चुनी गईं महिलाओं ने बेहतरीन परफॉर्मेंस से अपने चयन को सही साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह उनकी मेहनत ही है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय सेना के तीनों अंगों में महिलाओं को पर्मानेंट कमीशन यानी पक्की और पूरी नौकरी देने का फैसला किया। इसके तहत अब महिलाओं को भी पुरुषों की तरह पांच साल बाद स्थायी कमीशन, पेंशन और दूसरी सुविधाएं मिलेंगी। मोर्चे पर महिलाओं की सफलता का एक और इतिहास तब बना जब पिछले दिनों बीएसएफ ने अपनी वुमन विंग को बॉर्डर पर भी तैनात किया है। घर संभालने वाली नाजुक कलाइयां आज दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दे रही हैं।
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXnY9cmQkGRvgvbH7MhUXqCvClwgUV_UfVbtpApqWdVmD_Hq68qjLQrIoIo0gjQYzmB3GEed_qHZudt-rr8oQbttjo7UMSY7NSG6gV65BEiRBAE7RdE61A7GdMJzZAAGuTdrIRw67wxXl3/s1600/fapjro.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 211px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgXnY9cmQkGRvgvbH7MhUXqCvClwgUV_UfVbtpApqWdVmD_Hq68qjLQrIoIo0gjQYzmB3GEed_qHZudt-rr8oQbttjo7UMSY7NSG6gV65BEiRBAE7RdE61A7GdMJzZAAGuTdrIRw67wxXl3/s320/fapjro.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581804034726303762" border="0" /></a>
<span style="font-weight: bold;">आईटी में बढ़ा अट्रेक्शन</span>
अगर नए जमाने की नई नौकरियों की बात करें, तो महिलाओं को आईटी फील्ड ने सबसे ज्यादा अट्रैक्ट किया है। देखा जाए तो पिछले एक दशक में आईटी ने भारतीय युवाओं को रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध कराए हैं। ऐसे में लड़कियों ने भी इस मौके को हाथोंहाथ लिया और इस फील्ड में अपनी अलग पहचान बनाई। नैसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल आईटी सेक्टर में करीब 25 पर्सेंट महिलाएं काम कर रही हैं जिनमें से 8 पर्सेंट आईटी कंपनियों में टॉप पोजिशन पर हैं। महिलाओं ने आईटी फील्ड में सबसे ज्यादा तरक्की की है और एक हालिया रिपोर्ट की माने तो यह संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है।
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAD0lkw8Tt27LttPwjwmbb0KQ28xkT5x4YDt6XBrqKVfzvyMuNES5FJvOSfu44vWIEXiNyW6WSI0f_JUT15TV1rih-ls8Eh2QiJIGemrp9t9RiQ1GzDvB4ALbpMIDOlGgPD17H_x8dN46f/s1600/Cover-6_1887.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 174px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAD0lkw8Tt27LttPwjwmbb0KQ28xkT5x4YDt6XBrqKVfzvyMuNES5FJvOSfu44vWIEXiNyW6WSI0f_JUT15TV1rih-ls8Eh2QiJIGemrp9t9RiQ1GzDvB4ALbpMIDOlGgPD17H_x8dN46f/s320/Cover-6_1887.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581803942412661970" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">मनपसंद काम है हॉस्पिटैलिटी का</span>
एयरलाइंस और फाइव स्टार होटलों की संख्या में दिनोंदिन होती बढ़ोतरी की वजह से महिलाओं के लिए लगातार रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी हो रही है। महिलाएं हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के नए चेहरे के रूप में सामने आई हैं। महिलाओं के ज्यादा केयरिंग होने की वजह से इस सेक्टर ने महिलाओं को हाथोंहाथ लिया है। इससे महिलाएं पहले के मुकाबले ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई हैं। हॉस्पिटैलिटी सेक्टर ने महिलाओं को सुरक्षित वातावरण और अच्छी सैलरी पर काम करने का मौका उपलब्ध कराया है।
सफलता के इन पड़ावों पर परचम लहराने के बावजूद अभी भी कई ऐसे पद हैं जिन पर महिलाएं फिलहाल आसीन नहीं हुई हैं। जैसे स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के तीनों अंगों के सर्वोच्च पद, फाइटर पायलट, नौ सेना में युद्ध पोत चालक, चुनाव आयुक्त, केबिनेट सेक्रेटरी और योजना आयोग की उपाध्यक्ष,, भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, रॉ, आईबी और सीबीआई जैसी सरकारी खुफिया एजेंसियों के शीर्ष पद व इसरो और इयूका जैसे प्रमुख वैज्ञानिक केंद्रों के उच्च पदों को महिलाओं का अभी भी इंतजार है। इनपर अभी तक कोई महिला आसीन नहीं हुई है। इनमें से कुछ पदों से दूरी का कारण वर्तमान नियम हैं, जो शारीरिक और मानसिक योग्यता के आधार पर महिलाओं को उन भूमिकाओं को निभाने से रोकते हैं तो कई पदों का खाली होना महिला विकास की धीमी प्रगति और देर से शुरु हुई प्रक्रिया से जुड़ा है। आशा है कि कदम दर कदम कामयाबी हासिल करने वाले कदमों से यह दूरी भी जल्द ही नप जाएगी।नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-83603915715168725732011-03-08T03:07:00.003+05:302011-03-08T03:14:11.437+05:30महिला दिवस<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFbvAvawcUnfxM_Rb-ggtrqVpXDz1J6X2xyLEPDEEbPUxg9C4Ch-oCL70SMbBf0iosL1RavaVC5OAkWv3d998LkM05cvlU6I7xMzWEShEFa5w3E90AsD5cSekgz2kYHfF5f5LXqKxFMu3Y/s1600/DSC_0190.JPG"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 213px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFbvAvawcUnfxM_Rb-ggtrqVpXDz1J6X2xyLEPDEEbPUxg9C4Ch-oCL70SMbBf0iosL1RavaVC5OAkWv3d998LkM05cvlU6I7xMzWEShEFa5w3E90AsD5cSekgz2kYHfF5f5LXqKxFMu3Y/s320/DSC_0190.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581456495508565922" border="0" /><span>महिला</span> <span>दिवस</span> <span>पर</span> <span>नारी</span> <span>को</span> <span>सम्मान</span> दैनिक भास्कर ने किया नारी का सम्मान </a>
<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMTBuIK7FhSwRjdaB0NRnKtBNbwcF4LXOo2ZdF_v_8BayoiWj5NRkyjv80ATIdFRAqM4cu1lDHFw0zWEyJBt9w9MvMewZFFL1Bh2mzzMlLQtKTNvRXPPmAgGx2ekwgCT6gtkzmucHg6hyphenhyphenF/s1600/DSC_0083.JPG"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 213px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMTBuIK7FhSwRjdaB0NRnKtBNbwcF4LXOo2ZdF_v_8BayoiWj5NRkyjv80ATIdFRAqM4cu1lDHFw0zWEyJBt9w9MvMewZFFL1Bh2mzzMlLQtKTNvRXPPmAgGx2ekwgCT6gtkzmucHg6hyphenhyphenF/s320/DSC_0083.JPG" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5581456041606947618" border="0" /></a>पुरस्कार लेती डॉ उर्मिला शुक्ल
<span></span>नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-66499096534381129322011-02-16T19:25:00.000+05:302011-02-16T19:26:46.338+05:30नौकरियां ही नौकरियां<p> आकर्षक नौकरी तलाशने वाले युवाओं के लिए खुशखबरी है। भारतीय कंपनियों सहित तमाम सरकारी संस्थान और प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों की बहार आने वाली है। विशेषज्ञों का मानना है कि आईटी, दूरसंचार, बैंकिंग और स्वास्थ्य जैसे चार क्षेत्रों में ही मार्च तक पांच लाख नई नौकरियों के अवसर मिलेंगे। </p><p>पहले भारतीयों को रोजगार के लिए विदेशों का रुख करना पड़ता था, मगर अब विदेशी यहां आ रहे हैं। तमाम जानकार कह रहे हैं कि अगले कुछ महीनों में भारत में नौकरियों की बाढ़ आने वाली है। नौकरी दिलाने वाली देश की सबसे बड़ी 'एच आर कंसल्टेंसी मैनपावरÓ ने देश में नौकरी के अवसर पर अपने सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा किया है कि आने वाले दिनों में भारत में हर क्षेत्र में नौकरी के अनेक अवसर होंगे। सर्वेक्षण के मुताबिक जुलाई से सितंबर तिमाही में नौकरियों की तादाद काफी तेजी से बढ़ेगी। 36 देशों में हुए इस सर्वेक्षण में भारत का रोजगार दृष्टिकोण बाकी देशों से ज्यादा है। देश की ज्यादातर कंपनियों के मुताबिक जुलाई से सितंबर की बीच उनके ऑफिस में कर्मचारियों की संख्या बढ़ेगी। सबसे ज्यादा मौके होंगे माइनिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में। वहीं, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज में भी नौकरियों के जमकर मौके होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्तवर्ष में 8.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर सकती है, जो वर्ष 2009-10 के 7.4 प्रतिशत से अधिक होगी। वैश्विक परामर्शक फर्मों के विशेषज्ञों के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में विभिन्न क्षेत्रों और कंपनियों के विभिन्न स्तरों पर नौकरियों की बरसात होगी। कहा जा रहा है कि दक्षता के साथ-साथ आधारभूत ढांचा में निवेश के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के 8.7 प्रतिशत सालाना की दर से बढऩे की संभावना है और वर्ष 2020 तक यहां 3.75 करोड़ रोजगारों का भी सृजन होगा। हाल ही में परामर्शक फर्म एक्सेंचर ने विश्व आर्थिक मंच में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन जैसी चार प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं कुल मिलाकर विश्व अर्थव्यवस्था के करीब 40 प्रतिशत के बराबर है। इसमें कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था मौजूदा समय में आठ प्रतिशत की विकास दर की उम्मीद के मुकाबले 8.7 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ेगी तथा वर्ष 2020 तक मौजूदा उम्मीद के मुकाबले 3.75 करोड़ अधिक रोजगार सृजित होने की संभावना है।
तमाम विदेशी संस्थाएं भी अब इस सच को अब जान चुकी हैं कि भारत में दक्षता और कर्मठता की कमी नहीं है। तभी तो दक्ष पेशेवरों की उपलब्धता तथा कम लागत के चलते वैश्विक कामकाजी भूमिका वाले बड़े रोजगार भारत आने लगे हैं। विश्व की नामी-गिरामी कंपनियां यहां निवेश करने के लिए लालायित हैं। अंतरराष्टï्रीय सर्वे की संस्था ग्लोबल हंट का मानना है कि बीते दो-तीन वर्ष में भारत आने वाले वैश्विक भूमिका वाले रोजगारों में 25-35 प्रतिशत वृद्धि हुई है। भारत को बड़ी संख्या में दक्ष पेशेवर बहुत ही प्रतिस्पर्धी लागत पर उपलब्ध होने का लाभ मिल रहा है। उनकी दक्षता वैश्विक है और प्रौद्योगिकी एवं विश्लेषण के लिहाज से उनका जोड़ नहीं है। लगभग 20 प्रतिशत कंपनियों ने भारत को क्षेत्रीय दर्जा दिया है और भारत उनके लिए अब एशिया प्रशांत का हिस्सा नहीं रह गया है। 15-20 प्रतिशत वैश्विक कर्मचारी अपने पदानुक्रम के लिहाज से भारतीय अधिकारियों के अधीन आ रहे हैं। मिलिट्री तथा न्यूक्लियर हार्डवेयर और सिविलियन एयरक्राफ्ट व इन्फ्रास्ट्रक्चर इक्विपमेंट अकेले ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें अमेरिका के साथ भारतीय व्यापारिक संबंधों के चलते भविष्य में रोजगार के करीब सात लाख नए अवसर पैदा होंगे। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री की रिपोर्ट 'इंडिया - ए ग्रोथ पार्टनर इन द यूएस इकोनॉमीÓ के अनुसार भारतीय बिजनेस अब अमरीका के दूसरे कई क्षेत्रों में पैर पसार रहा है, जबकि पहले वह केवल इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और आईटी संबंधित सेवाओं तक ही सीमित था। अमेरिका में व्यापार कर रहीं भारतीय कंपनियां ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी नागरिकों को नौकरियां दे रही हैं और कम्यूनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम में भी सक्रिय रूप से भागीदारी निभा रही हैं। अनुमान है कि अमेरिका में भारतीय कंपनियां लंबी पारी खेलेंगी। गौरतलब है कि अपने भारत दौरे के समय अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय और अमेरिकी कंपनियों के बीच करोड़ों डॉलर की डील की है, जिसमें कई इक्विपमेंट और दर्जनों एयरक्राफ्ट के ऑर्डर शामिल हैं। सूत्र बताते हैं कि कंज्यूमर ड्यूरेबल निर्माता एलजी ने भी अगले वित्त वर्ष में 10 हजार सेल्स पेशेवर नियुक्त करने की योजना बनाई है। निजी कंपनियों के अलावा, सरकारी बिजली उपकरण निर्माता भेल ने आठ हजार लोगों को भर्ती करने का ऐलान किया है। भेल के सीएमडी बीपी. राव के अनुसार, कंपनी बीते दो वर्ष के दौरान भी आठ हजार कर्मचारी भर्ती कर चुकी है।अपने कामकाज को गति देने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अब थोक में भर्तियां करने जा रहा है और 90 वरिष्ठ पद के अधिकारियों की नियुक्तियों के लिए आवेदन मांगे हैं। ये अधिकारी विधि, अनुसंधान और सामान्य प्रशासन कार्य के लिए भर्ती किए जाएंगे।सेबी ने नई नियुक्तियों की शुरुआत ऐसे समय की है, जबकि संस्था में नए चेयरमैन की तलाश चल रही है। सेबी के चेयरमैन सीबी भावे का कार्यकाल फरवरी, 2011 को पूरा हो रहा है। इसी तरह अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस लाइफ अपनी विस्तार योजना के तहत चालू आगामी वित्त वर्ष में 3,000 बिक्री प्रबंधकों की नियुक्ति करेगी। साथ ही, कंपनी ने 1.5 लाख बीमा एजेंटों की नियुक्ति की भी योजना बनाई है। रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस के अध्यक्ष एवं कार्यकारी निदेशक मलय घोष के अनुसार, हम अपने कर्मचारियों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि करने जा रहे हैं। देश का दिग्गज निजी बैंक आईसीआईसीआई आने वाले समय में सात हजार कर्मचारियों की भर्ती करने की योजना पर काम कर रहा है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने कार्यक्षमता बढ़ाने और बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए करीब 38,000 लोगों की नियुक्ति करने की योजना बनाई है। टीसीएस के एचआर प्रमुख अजय मुखर्जी के अनुसार, हम करीब 38,000 लोगों की नियुक्तियां करने जा रहे हैं। इनमें 20,000 लोग ट्रेनी लेवल पर और 10,000 मिड-लेवल पर लिए जाएंगे।मंदी ने सबसे ज्यादा किसी एक सेक्टर को मारा था, तो वह है टेक्सटाइल एवं गारमेंट सेक्टर, लेकिन अब यह बीते जमाने की बात हो गई है। अब टेक्सटाइल कंपनियां काबिल लोगों की तलाश कर रही हैं। इस सेक्टर में लाखों रोजगार के मौके बन रहे हैं। टेक्सटाइल एक्सपोर्ट कंपनियों में छंटनी के शिकार हुए करीब 80 फीसदी लोगों को फिर से नौकरियों पर रख लिया गया है। वहीं, देश में टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने लगभग 21 फीसदी लोगों को रोजगार मुहैया कराया है, जो अगले पांच वर्षों में में 27-28 फीसदी तक बढ़ सकती है। एक आकलन के मुताबिक, बंगलुरू में 5,000 से 7,000 टेलरों की जरूरत है। वहीं, तिरुपुर में करीब एक लाख लोगों की जरूरत है। फिलहाल, तिरुपुर में करीब 4.5 लाख लोग अपैरल इंडस्ट्री से जुड़े हैं। हालांकि, बंगलुरू में हालात थोड़े अलग हैं। यहां करीब 50,000 लोगों को नौकरी से हटाया गया था, फिर भी इनमें से करीब 80 फीसदी लोगों ने फिर से ज्वाइन कर लिया है। वहीं, पिछले वर्ष मांग कमजोर रहने की वजह से कई यूनिटों को बंद कर दिया था। एक बार फिर से मांग बढऩे लगी है और उन बंद यूनिटों को फिर से खोलने का फैसला किया है। जानकारों की राय में भारतीय टेक्सटाइल उद्योग इस समय सनसेट इंडस्ट्री से सनराइज इंडस्ट्री के रूप में तब्दील हो रहा है। सरकार ने कुल 30 टेक्सटाइल पार्क मंजूर किए गए हैं, जिनमें करीब 16,953 करोड़ रुपये का निवेश होगा। इससे 5.75 लाख रोजगार उपलब्ध होंगे। साथ ही, 1140 करोड़ रुपये तकनीक के अपग्रेडेशन पर खर्च होंगे। कहा जा सकता है कि टेक्सटाइल उद्योग के पुराने दिन लौट रहे हैं। विभिन्न औद्योगिक विकास कार्यक्रमों एवं निर्यात संवद्र्धन गतिविधियों के साथ तथा अतीत के प्रदर्शन एवं इस उद्योग की ताकत के मद्देनजर भारतीय चमड़ा उद्योग ने अपना उत्पादन बढ़ाने, 2013-14 तक निर्यात 7.03 अरब अमेरिकी डॉलर तक ले जाने और 10 लाख लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। आक्रामक निर्यात रणनीति ने समाज के कमजोर तबके के लिए आर्थिक वृद्धि एवं आर्थिक सशक्तिरण के युग का सूत्रपात किया है। ऑटो इंडस्ट्री का तो हर नया माह बिक्री के मामले में रिकॉर्ड बना रहा है। इस रफ्तार को बनाए रखने के लिए कंपनियों को चाहिए काबिल लोग। सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल एसोसिएशन के मुताबिक, देश की ऑटो कंपनियों को 2012 तक छह लाख कुशल लोगों की जरूरत है। देश की तीन बड़ी ऑटो कंपनियों ने करीब छह हजार नई नौकरियां देने का ऐलान किया है। मारुति इस साल साढ़े नौ सौ लोगों को नौकरी देगी। कंपनी मानेसर में नया प्लांट लगा रही है। अपनी क्षमता में बढ़ोतरी करने के साथ एक नया रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर बना रही है, जो 2012 तक बनकर तैयार होगा। इसके लिए मारुति को बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की जरूरत है। मारुति के अलावा जनरल मोटर्स भी भारत में अपने कर्मचारियों की क्षमता में 20 फीसदी की बढ़ोतरी करने जा रही है। कंपनी के हलोल और तालेगांव में प्रोडक्शन बढ़ाने के अलावा रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी अपनी बंगलुरू इकाई में इंजीनियरों की भर्ती भी करेगी। पैसेंजर के साथ कॉमर्शियल वाहन बनाने वाली महिंद्रा एंड महिंद्रा को अपने नए प्लांट के लिए तीन से चार हजार लोगों की जरूरत है। कंपनी ये भर्तियां अगले दो वर्ष में पूरी कर लेगी। इसके अलावा, ह्युंदई भी चेन्नई में अपने रिसर्च सेंटर के लिए डेढ़ से दो हजार नए कर्मचारियों की भर्ती कर रही है। साथ ही, कई विदेशी कंपनियां भी भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू कर रही हैं। इसके चलते नए कर्मचारियों की जरूरत भी बढ़ रही है। इंडस्ट्री के मानकों के मुताबिक, एक कार की मैन्युफैक्चरिंग के लिए पांच कर्मचारियों की जरूरत होती है, जबकि एक कॉमर्शियल व्हीकल के उत्पादन में 13 लोग लगते हैं। ऐसे में मौजूदा क्षमता और विस्तार योजनाओं के मुताबिक अगले डेढ़ से दो साल में ऑटो इंडस्ट्री को करीब दस लाख नए कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी।बताया जा रहा है कि डेलॉयट टाउच तोहमात्सू इंडिया लि. की भारत में अगले तीन वर्ष में 10 करोड़ डॉलर निवेश की योजना है और वह अपने विस्तार कार्य में तेजी लाने के लिए यहां 3000 लोगों की भर्ती करेगी। कंपनी ने एक बयान में कहा है कि उसकी योजना अपने कर्मचारियों की संख्या 2012 तक 20 प्रतिशत बढ़कर 18000 करने की है। कंपनी के देश में फिलहाल 15000 कर्मचारी हैं और उसके कार्यालय 13 स्थानों पर हैं।बेशक, सरकार की पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा रोजगार उपलब्धता में विस्तार के शुरू से ही प्रयास किए गए। आज बैंको की उदार नीतियों, स्कॉलरशिप्स, एजुकेशन लोन जैसी सुविधाओं से युवाओं के पास आगे बढऩे के काफी मौके उपलब्ध हैं। मेडिकल और इंजीनियरिंग सेक्टर में अभी भी योग्य लोगों की काफी कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार गंभीरता से काम कर रही है। सरकार ने हाल ही में टॉप तकनीकी संस्थानों व मेडिकल संस्थानों में सीटों की संख्या बढ़ाने का फैसला लिया है। वे लोग, जो इस दायरे में नही आते हैं, उनके लिए भी सरकार प्रयासरत है। इसमें नेशनल काउंसिल फॅार वोकेशनल ट्रेनिंग की भूमिका महत्वपूर्ण है। जिसके तहत सन 2020 तक करीब पांच करोड़ लोगों को दक्ष बनाया जाएगा। निश्चित तौर पर आने वाला समय युवाओं के लिए आशाओं से भरा है और जल्द ही निराशा का दौर समाप्त होने वाला है।</p>नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-13001900127069932492011-02-16T02:25:00.001+05:302011-02-16T02:27:56.566+05:30वेलेनटाइन डे के है रूप अनेकऐसा नहीं है कि 14 फरवरी को ही प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व के अलग-अलग भागों में फरवरी के अलग-अलग तारीखों के प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहीं इसे ड्रैगोबेटे के तौर पर मनाया जाता है तो कहीं सिपंदरमजगन के रूप में। यही नहीं कहीं-कहीं तो इसे अलग अलग महीनों की अलग-अलग तारीखों में भी मनाया जाता है।
भारतीय संस्कृति में वसंतोत्सव ही प्रेमोत्सव हैं। फरवरी और मार्च का पूरा महीना ही भारतीय वसंतोत्सव रूप में मनाते हैं। इस समय प्रकृति भी मानो प्रेममय हो जाती है और रंग-बिरंगे फूलों के रूप में अपने प्रेम का इजहार करती है। कहते हैं इस दिन प्रेम के देवता कामदेव अपने पुष्प बाणों से प्रेमियों को घायल करते हैं। भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र माना गया है और यही कारण है कि इस पर्व के साथ पवित्रता का भाव भी समाहित है।
फनलैंड का फ्रेंडस डे
वैसे तो फ्रैंडशिफ डे अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है पर फनलैंड में वेलेंटाइन डे के दिन को फ्रेंड्स डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां प्रेमी या प्रेयसी के बजाय मित्रों को याद किया जाता है।
स्लोवेनिया का फारमर डे
स्लोवेनिया में एक कहावत है कि सेंट वेलेंटाइन जड़ों की कुंजियां लाते हैं इसलिए 14 फरवरी को पौधे और फूल उगना शुरू करते हैं। वेलेंटाइन डे के अवसर पर यहां खेतों में काम की शुरुआत का मुहूर्त किया जाता है और इसे इसी रूप में मनाया भी जाता है। स्लोवेनिया में यह भी विश्वास है कि पक्षियां इसी दिन आपस में प्रणय निवेदन और शादी भी करती हैं।
रोमानिया का ड्रैगोबेटे
रोमानिया में प्रेमियों का परंपरागत पर्व है ड्रैगोबेटे, जो 24 फरवरी को मनाया जाता है। इसका नामकरण रोमानियाई लोकगीतों के एक लोकप्रिय पात्र के आधार पर किया गया है। माना जाता है कि ड्रैगोबेटे बाबा डोकिया का पुत्र था। उसके नाम के पहले शब्द ड्रैग का अर्थ रोमानियाई भाषा में प्रिय होता है और ड्रैगोस्ट का अर्थ वहां है प्रेम। भले ही हाल के वर्षो में वहां वेलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत हो गई है पर इसके साथ-साथ ड्रैगोबेटे भी वहां के एक परंपरागत पर्व के रूप में मनाया जाता है। भारत की तरह परंपरावादी लोग वहां भी वेलेंटाइन डे को पश्चिम से आयातित, अंधविश्वास को बढ़ावा देनेवाला पर्व मानते हैं और उसका उग्र विरोध भी करते हैं।
इजरायल का हैग हाहावा
यहूदी परंपरा के अनुसार अव तू बाव महीने (जो आम तौर पर अगस्त में होता है) की 15वीं तिथि को हैग हाहावा पर्व मनाया जाता है। यह उनकी परंपरा के तहत प्रेम का पर्व है। इस अवसर पर लड़कियां सफेद कपड़े पहन कर अंगूर के बागान में नृत्य करती हैं और लडक़ों से अपने प्रेम का इडहार करती हैं। आधुनिक इजरायली संस्कृति में इसे प्रेम की अभिव्यक्ति करने और विवाह के प्रस्ताव भेजने के लिए जाना जाता है। इस अवसर पर प्रेमी जोड़ें फूलों, कार्ड्स और उपहारों का आदान-प्रदान भी करते हैं।
ईरान का सिपंदरमजगन
ईरान की पर्शियन संस्कृति में एक पर्व है सिपंदरमजगन। प्रेम के प्रतीक पर्व के रूप में मान्य यह त्योहार यहां जलाली कैलेंडर के अनुसार बहमन महीने की 29 तारीख को मनाया जाता है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार यह तारीख सामान्यतया 17 फरवरी होती है। यह पर्व यहां 20वीं शताब्दी ईसा पूर्व से मनाया जा रहा है।
ब्राजील का नैमोराडॉस
ब्राजील में एक पर्व मनाया जाता है डिया डॉस नैमोराडॉस। इसका अर्थ है प्रणय दिवस। नए संदर्भो में इसे ब्वॉय फ्रेंड्स या गर्लफ्रेंड्स डे के तौर पर भी मनाते हैं। 12 जून को मनाए जाने वाले इस पर्व के अवसर पर लडक़े-लड़कियां अपने प्रिय साथी से चॉकलेट, कार्ड और फूल आदि उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। प्रणय निवेदन के लिए इस दिन का चयन वहां शायद इसीलिए किया गया है क्योंकि यह सेंट अंथोनी के दिन के ठीक पहले पड़ता है। सेंट अंथोनी को यहां विवाह के संत के रूप में जाना जाता है।
कोलंबिया का डिया डेल एमॉर य ला एमिस्टाड
कोलंबिया में सितंबर माह के तीसरे शुक्रवार और शनिवार को डिया डेल एमॉर य ला एमिस्टाड नामक त्योहार मनाया जाता है। इस देश में एमिगो सीक्रेटो यानी गोपनीय मित्रता का प्रचलन अभी भी काफी लोकप्रिय है। इस मौके पर यहां सामूहिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जहां हर किसी के नाम से पुर्जियां डाली जाती हैं और जिसे जिसके नाम की पुर्जी मिल जाए, वह उसका मित्र होता है।
जापान का चॉकलेट डे व कावाबात्ता
जापान और कोरिया में वेलेंटाइन डे को ऐसे दिन के रूप में मनाया जाता है जब लड़कियां लडक़ों को चॉकलेट, कैंडी या फूल भेंट करती हैं। जापान में तो लड़कियों के लिए यह अनिवार्य समझा जाता है कि वे अपने सभी पुरुष सहकर्मियों को चॉकलेट भेंट करेंगी। जापानी में इसे गिरिचोको कहा जाता है। इसमें गिरि का अर्थ है अनिवार्यता और चोको का चॉकलेट। यह होनमेई चोको के विपरीत है, जिसका अर्थ प्रियतम को चॉकलेट देना होता है। इस अवसर पर यहां मित्र भी आपस में चॉकलेटों का आदान-प्रदान करते हैं। इनमें लड़कियां भी आपस में चॉकलेटों का आदान-प्रदान करती हैं और लडक़े भी ऐसा करते हैं। इसे टोमो चोको कहते हैं। टोमो का अर्थ मित्र होता है। यह 14 मार्च को मनाया जाता है। इसके अलावा एक और प्रेमोत्सव भी जापान में मनाया जाता है। इसे कावाबात्ता कहते हैं।
दक्षिण कोरिया का पेपेरो दिवस
दक्षिण कोरिया में हर साल 11 नवंबर को पेपेरो दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर युवा जोड़े एक-दूसरे को रूमानी चीजें भेंट करते हैं।
चीन का द नाइट ऑफ सेवेंस
चीनी संस्कृति में वेलेंटाइन डे के समानांतर एक पर्व है द नाइट ऑफ सेवेंस। लोककथा है कि चीन के चंद्र कैलेंडर के अनुसार सातवें महीने के सातवें दिन कॉउहर्ड और वीवर मेड की मुलाकात स्वर्ग में हुई थी। उनकी याद में यहां प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को बधाई देते हैं। वैसे यहां प्रेमी जोड़ों के लिए एक और त्योहार लैंटर्न फेस्टिवल भी है। यह पर्व चीनी नववर्ष समारोह के अंतिम दिन होता है, जो अकसर मार्च के पहले हफ्ते में ही पड़ता है। पुराने जमाने में यही एक दिन होता था जब कोई अविवाहित स्त्री अपने घर से अकेले बाहर निकल सकती थी। हालांकि उस वक्त भी वह परदे में होती थी और उसे कोई एक व्यक्ति ही देख सकता था। अब ये सब पाबंदियां तो नहीं रहीं, अलबत्ता रोमांस जरूर इस दिन पूरे देश में उछाल मारता दिखता है।नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-89796008574750554192011-02-13T11:16:00.000+05:302011-02-13T11:18:11.670+05:30अजब प्रेम की गजब कहानीसत्ता, सेक्स और संपत्ति का घालमेल किस हद तक हो सकता है, इसकी एक बानगी एनडी तिवारी, डॉ. उज्ज्वला शर्मा और रोहित शेखर है। तीनों के अपने-अपने दावे और उसी के अनुरूप अपने-अपने तर्क। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, इसे अच्छे से अच्छा मनोविज्ञानी भी न समझ पाए। बड़ी असमंजस की स्थिति है। सच जानने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि एनडी तिवारी को डीएनए टेस्ट कराना होगा। टेस्ट अभी हुआ नहीं है, सो कानून की पेचीदगियों से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, मगर इस सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता है कि ऊंचे और शीशे के मकानों में रहने वालों के किस्से भी अजब-गजब होते हैं। जीवन के ढाई दशक बीत जाने के बाद रोहित शेखर नामक युवक कहता है कि आठ दशक पार कर चुके वृद्ध एनडी तिवारी उसके जैविक पिता हैं। शुरुआती दिनों में सुनने में यह अजीब लगता था, लेकिन जब पांच दशक से अधिक की जिंदगी जी चुकी रोहित शेखर की मां डॉ. उज्ज्वला शर्मा भी अपने बेटे के साथ खड़े होकर कहती है- 'हां, तिवारी ही रोहित के जैविक पिता हैं। सरकारी कागजों में पिता के रूप में जिस बीपी शर्मा का नाम है, वह तो उसके पालन-पोषण करने वाले हैंÓ तो मामला और पेचीदा हो जाता है।
आमलोगों की रायशुमारी में यह मामला सत्ता, शोहरत और दौलत का है। आखिर, क्यों एक बेटा अपने को नाजायज कहलाने पर तुला हुआ है, वह भी इतने सालों के बाद? लेकिन, इस बारे में रोहित का अपना तर्क है- 'मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूं कि आगे से किसी बच्चे का हक नहीं मारा जाए। जब संविधान ने जीने का अधिकार दिया है तो हर बच्चे का हक बनता है कि उसे उसका पिता का नाम मिले।Ó
मामले को सरसरी तौर पर देखा जाए तो विवादित वीडियो टेप के चलते आंध्रप्रदेश का गवर्नर पद गंवाने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 साल के युवक रोहित शेखर की याचिका पर तिवारी को नोटिस जारी किया है। रोहित का आरोप है कि तिवारी उसके पिता हैं और इसे साबित कराने के लिए उनका डीएनए टेस्ट कराया जाए। कहा जा सकता है कि नारायण दत्त तिवारी अपने लंबे राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। पहले एक विवादित वीडियो टेप के कारण उन्हें आंध्र प्रदेश के गवर्नर पद से इस्तीफा देना पड़ा और अब रोहित शेखर की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट का नोटिस। रोहित शेखर पिछले साल भर से यह मांग कर रहा था कि उसकी बात को साबित करने के लिए नारायण दत्त तिवारी का डीएनए टेस्ट कराया जाए।
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट की एक सदस्यीय बेंच ने पिछले साल रोहित शेखर की याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट का कहना था कि रोहित को 18 साल का होने के तीन साल के अंदर ये याचिका दाखिल करनी चाहिए थी। इस आदेश को चुनौती देते हुए रोहित ने अपना पक्ष रखा कि नारायण दत्त तिवारी लगातार उन्हें और उनकी मां को झांसा देते रहे कि जल्द ही वे उन्हें अपना लेंगे।
मामला अदालत कैसे पहुंचा, इसका भी खुलासा रोहित ने किया। रोहित के अनुसार, '7 दिसंबर, 2005 को एनडी तिवारी नई दिल्ली में सैम पित्रोदा से मिलने आए थे। यहां के ताजमान सिंह होटल में ठहरे थे। उस समय उनके साथ कई बड़े अधिकारी भी थे। मैं भी तिवारी से मिलने के लिए होटल पहुंचा। उनके सहायक को पर्ची दी कि मैं मिलना चाहता हूं। मैं बाहर इंतजार करता रहा और तिवारी ने मिलने का समय नहीं दिया। जब मैं खुद अंदर गया तो देखा कि तिवारी मेरी पर्ची को फाड़ चुके थे। मुझे काफी गुस्सा आया। उन्होंने मुझसे बात तक करने से इनकार कर दिया। वहीं से मैंने ठान लिया कि मैं अब अपना हक लेकर रहूंगा।... ऐसी ही उपेक्षा तिवारी ने हम लोगों के साथ अपने 80वें जन्मदिन पर भी की। मां के कहने पर हम उनके आवास पर केक लेकर पहुंचे थे। हजारों की संख्या में उनके चाहने वाले थे। हमने सबके सामने उन्हें केक काटने के लिए कहा, मगर हमारी तरफ से भेंट किए गए केक को उन्होंने बंद कमरे में काटा। साथ ही, उनके निकट के सहयोगियों ने कमरे से बाहर जाने से मना कर दिया। इन घटनाओं के बाद करीब दो वर्ष तक मैंने यह कोशिश की कि मामला आपसी बातचीत के जरिए सुलझ जाए, लेकिन तिवारी को यह मंजूर नहीं हुआ। नतीजन, मामला पिछले तीन वर्ष से कोर्ट में है और अब मुझे पूरा भरोसा है कि कोर्ट के हस्तक्षेप से मुझे मेरा हक मिल जाएगा।Ó
बहरहाल, मामला जितना दिख रहा है, पर्दे के पीछे इसके कई अनछुए पहलू भी हैं। दरअसल, सत्ता और सेक्स का घालमेल भारतीय राजनीति में दशकों पुराना है। यह मामला भी कुछ उसी तर्ज पर है। सत्तर के दशक के उत्तराद्र्ध में शेर सिंह हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा नाम होते थे। केंद्र में राज्यमंत्री भी रह चुके थे। वर्ष 1967 से 1979 तक वह सांसद भी रहे। उन्हीं शेर सिंह की पुत्री हैं डॉ. उज्ज्वला शर्मा। राजनीतिक लोगों के बीच उठना-बैठना उज्ज्वला शर्मा का भी था। घर आने वाले अतिथियों की आवभगत भी कभी-कभार वह किया करती थीं। उस समय एनडी तिवारी यूथ कांग्रेस में थे। एक सरपरस्ती के चलते उनका शेर सिंह के यहां आना-जाना लगा रहा। हालंाकि, उस समय उज्ज्वला शर्मा विवाहित थीं। उनके पति बीपी. शर्मा एक व्यवसायी थे। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का दामाद होने का लाभ भी उन्हें कारोबार में मिलने लगा था और 'कारोबारÓ चल निकला।
उस समय के कुछ लोगों से जब इस बाबत चर्चा की गई तो पता चला कि विवाह के कुछ दिनों बाद ही उज्ज्वला की अपने पति बीपी शर्मा से नहीं बनती थी। दोनों के स्वभाव में कई असमानताएं थी। बेशक, लोकलाज के कारण दोनों एक छत के नीचे रहते थे, मगर अलगाव की स्थिति थी। बीपी शर्मा नई दिल्ली से बार-बार बिहार भी जाते थे। चूंकि, बीपी शर्मा का ताल्लुक बिहार से था, इसलिए वह कभी पारिवारिक कारणों से, तो कभी कारोबार के कारण बिहार जाते-आते रहते थे। अलगाव की स्थिति बढ़ती जा रही थी। उसी दरम्यान एनडी तिवारी को इस बात की जानकारी हुई। बताया यह भी जाता है कि उस समय एनडी तिवारी दांपत्य जीवन में वर्षों गुजारने के बाद भी संतान सुख प्राप्त नहीं कर सके थे। इसलिए उज्ज्वला और तिवारी की नजदीकियां बढ़ती गईं। पहले भौतिक रूप से निकट आने के बाद कब दोनों दैहिक स्तर पर भी एक-दूजे के हो गए, किसी को पता ही नहीं चला। आज डॉ. उज्ज्वला शर्मा बेहिचक के कहती हैं, 'जब से तिवारी को यह पता चला कि मेरे और बीपी शर्मा के संबंध मधुर नहीं हैं तो वह स्नेह के जरिए मेरे निकट आए। करीब सात वर्षों तक स्नेहपूर्ण संबंध रहा। वर्ष 1977 में जब मैंने देखा कि एनडी तिवारी जैसे योग्य और भद्र पुरुष की ओर से पिछले सात वर्षों से एक निकट मैत्री संबंध का प्रस्ताव है तो मैं खुद को रोक नहीं पाई। कई बातों के होने के बावजूद मेरे और तिवारी के शारीरिक संबंध बने। फलस्वरूप 15 फरवरी, 1979 को रोहित का नई दिल्ली में जन्म हुआ।Ó
यहां तक की कहानी के बाद तो यही लगता है कि मामला सब कुछ क्लियर है। फिर ये अदालती चक्कर क्यों? दरअसल, नारायण दत्त तिवारी इन बातों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। तिवारी का साफ तौर पर कहना है कि वह संतान पैदा करने के काबिल ही नहीं हैं। अगर कुदरतन ऐसा होता तो उनके दांपत्य जीवन में भी संतान की किलकरियां सुनने को मिलतीं। यह बात अलग है कि तिवारी के रंगीन मिजाजी के किस्से उत्तराखंड की पहाडिय़ों से लेकर पूरे देश में चाव लेकर सुने और सुनाए जाते हंै। दरअसल, दो बार कांग्रेस के खिलाफ चुनाव जीतने वाले तिवारी ने 1963 में जब कांग्रेस का दामन थामा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी इस कामयाबी ने अच्छे-अच्छों को कायल बना दिया। वे हेमवतीनंदन बहुगुणा के खास रहे, पर जब आपातकाल में संजय गांधी की चरणपादुकाओं ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया तब उन्होंने बहुगुणा की तरफ देखा तक नहीं। वह चार बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कितने ही केंद्रीय मंत्रालयों के मंत्री रहे। पुराने लाल टोपीधारी तिवारी हर समय उद्योपगतियों की आंखों के तारे और दुलारे रहे। उनकी इस अदा का कांग्रेस आलाकमान भी कायल रहा। राजनीति के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच तिवारी आधी सदी तक कांग्रेस राजवंश के वफादार बने रहे। कहा जाता है कि अपना प्रशस्तिवाचन सुनना उनका प्रिय शगल रहा है और इस पर वह मुग्ध भी होते रहे हैं। जिसने भी उनका प्रशस्ति गान किया उसे उन्होंने निहाल कर दिया। उनका यही कौशल था, जिसके चलते 2002 में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने मीडिया के दिग्विजयी धुरंधरों को मुख्यमंत्री आवास के पिछवाड़े में खूंटे से बांध दिया था। इसके उलट, तिवारी के राजनीतिक जीवन की त्रासदी रही है कि सार्वजनिक कार्यों से ज्यादा उनकी चर्चा यौन संबंधों को लेकर हुई। पता नहीं कितनी ही स्त्रियों का नाम उनसे जोड़ा गया। वे चाहे यूपी के मुख्यमंत्री रहे हों या केंद्रीय मंत्री, राजनीति की बार बालाएं यात्रा से लेकर घर तक उनके जीवन पर छाई रहीं। जब वे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री थे तब एक कमसिन और हसीन लड़की को राज्य की सबसे ताकतवर महिला माना जाता था। इसे लेकर पूरे राज्य में चटखारेदार किस्से सुनाकर लोग अपनी यौन कुंठाओं को आवाज देते रहे। इसे संयोग कहें या उनके अंदाज की बानगी कि मुख्यमंत्री के उनके उस कार्यकाल में भी पहले दस सर्वाधिक ताकतवर लोगों में भी सात महिलाएं ही थीं। यह अकारण नहीं था कि सनसनीखेज वीडियो के खुलासे के बाद आंध्र प्रदेश के अखबार भी राजभवन को 'ब्रोथल हाउसÓ नाम दे रहे थे। इन सारी महिलाओं की तादाद को अगर जोड़ा जाए तो इसके मुकाबले बड़े से बड़ा मुगल बादशाह भी बौना दिखता है। इसी कड़ी में एक नाम डॉ. उज्ज्वला शर्मा का भी है। उन्होंने पहले तो कभी सार्वजनिक मंचों पर यह नहीं कहा कि मेरे तिवारी के बीच शारीरिक संंबंध हैं, जो कई वर्षों तक चले। मगर, उसी उज्ज्वला शर्मा का पुत्र रोहित शेखर सैकड़ों फोटो और अन्य सबूत लेकर कानूनी दावे के साथ बार-बार कह रहा है कि मेरे नाजायज बाप एनडी तिवारी हैं। मुझे मेरे बाप का नाम चाहिए।
यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या अभी तक रोहित शेखर को बाप का नाम नहीं मिला था? जबाव मिलता है, सरकारी कागजों में उसके बाप का नाम बीपी शर्मा है, जो उसकी मां के पति हैं। कानूनी किताबों के आधार पर यह कहा जा रहा है कि बीपी शर्मा स्वभाविक पिता हैं, क्योंकि वह उसके मां के पति हैं और उन्होंने रोहित का लालन-पालन किया है। चूंकि, बीपी शर्मा का डीएनए और रोहित शेखर का डीएन आपस में मेल नहीं खाता है, इसलिए वह उसके जैविक पिता नहीं हैं यानी पिता भी हुए दो- स्वाभाविक और जैविक।
इससे पहले भी हाईकोर्ट ने पुत्र विवाद मामले में एनडी तिवारी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपने पुत्र का दावा करने वाले रोहित शेखर की याचिका से संशोधित अंशों को हटाने की मांग की थी। इतना ही नहीं, अदालत ने तिवारी पर लगाए 75 हजार रुपये के जुर्माने को खारिज करने से भी इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति विक्रम जीत सेन और न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की खंडपीठ ने तिवारी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि रोहित ने संशोधित याचिका में ऐसे कोई भी नए तथ्य नहीं जोड़े जिनका केस पर प्रभाव पड़ता हो। एकल जज का फैसला पूरी तरह उचित है और उन पर मामले को बेवजह लटकाने पर लगाया गया 75 हजार रुपये का जुर्माना भी उचित है। अदालत ने एकल जज के फैसले के निर्देशानुसार जुर्माने की राशि रोहित शेखर को देने का निर्देश दिया है। रोहित शेखर एनडी तिवारी का का पुत्र है या नहीं, इस मुद्दे पर अब भी सुनवाई जारी है।
करीब तीन वर्षो से चल रहे रोहित शेखर और एनडी तिवारी के प्रकरण में आखिरकार अदालत को भी मानना पड़ा कि रोहित की बातों में दम है। कुछ तो है, जो यह युवक एनडी तिवारी को अपना बाप बता रहा है। खास बात यह है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने तिवारी को डीएनए संबंधी मामले में नोटिस भी भेजा है। न्यायालय ने यह नोटिस रोहित शेखर की याचिका पर जारी किया है। याचिका में शेखर ने दावा किया है कि तिवारी उनके पिता हैं। मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह और न्यायमूर्ति राजीव सहाय की खंडपीठ ने रोहित की याचिका के आधार पर तिवारी को नोटिस जारी करते हुए उनसे 9 फरवरी तक न्यायालय में अपना पक्ष रखने को कहा है। अपनी याचिका में रोहित ने तमाम तरह के सबूत संलग्न किए हैं, जो यह साबित करते हैं कि एनडी तिवारी, उज्ज्वला और रोहित के कितने करीब रहे हैं। अब यह मामला डीएनए टेस्ट की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि इस राज पर से पर्दा हटे कि एनडी तिवारी ही रोहित शेखर के पिता हैं और अगर पिता हैं तो फिर रोहित शेखर को उसका हक मिलना चाहिए। इस दिशा में अब सब कुछ हाईकोर्ट पर निर्भर करता है।सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-25332532877570701822011-02-11T17:28:00.000+05:302011-02-11T17:30:54.123+05:30हमारी धरोहर हमारे बुज़ुर्गदुनिया में आज 60 साल की आयु से उम्र के लोगों की संख्या 60 करोड़ तक पहुंच चुकी है जिसमें से साढे सात करोड संख्या भारत में है। दुनिया भर में वृद्घों की बढती संख्या को देखते हुए उन्हें बेहतर ्र समृद्घ एवं संतोषपूर्ण जीवन प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है और इस दिशा में कई अहम कदम उठाए जा रहे हैं।
भारत की 1991 की जनगणना के अनुसार देश में वृद्घजन की संख्या साढे पांच करोड से अधिक है जो आज बढकर साढे सात करोड पहुंच गई है। सरकारी आंकड़ों में 60 साल से अधिक आयु के लोगों को ही वृद्घजनों की श्रेणी में गिना जाता है। देश में वृद्घजनों की 80 प्रतिशत आबादी आज ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही है इसमें से 30 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा स नीचे जीवन व्यतीत कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वृद्घजन से संबंधित एक रिपोर्ट के अनुसार वृद्घजन स्वैच्छिक कार्य अपने अनुभव और ज्ञान भंडार तथा जिम्मेदारियां लेकर एवं सक्रिय भागीदारी के माध्यम से अपने परिवार एवं समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। वृद्घजनों के कल्याण कार्यो में लगे हैल्पेज इंडिया संगठन का कहना है कि वर्तमान समय में वृद्घों की सबसे बडी समस्या उनके एकाकीपन और भावानात्मक अधूरेपन की है। ऐसी स्थितियों में सरकार की वृद्घजनों के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाओं को सही ढंग से और उचित समय पर लागू करने में गैर सरकारी संगठन और मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सामाजिक और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में आज वृद्घों की संख्या करीब 60 करोड है जिसमें से करीब 30 करोड विकासशील देशों में है। दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय वृद्घजन दिवस मनाया जा रहा है और इस साल की विषय वस्तु वृद्घजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार संयुक्त राष्ट्र वैश्विक रणनीतियों को समुन्नत करना है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों को बनाना है जिससे वृद्घजन स्वस्थ्य और चुस्त..दुरस्त रह सकें। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी अन्नान ने इस अवसर पर अपने संदेश में आह्वान किया है कि वे उन नीतियों तथा कार्यक्रमों के लिए कार्य करें जिनसे वृद्घजन ऐसे परिवेश में रह सकें जो उनकी क्षमताओं को बढा सके उनकी स्वाधीनता घोषित कर सके और उनकी बढती आयु के साथ उन्हें सहारा दे सकें। दुनिया में आज 60 साल की आयु से अधिक उम्र के लोगों की संख्या जिस रफ्तार से बढ रही है उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक यह संख्या दो गुना हो जाएगी और इसमें आधी संख्या विकासशील देशों में होगी। अन्नान ने कहा कि आज ऐसे समाज की रचना की जानी चाहिए जिसमें वृद्घजन सहित सभी आयु के लोगों के लिए समान स्थान हो जैसा कि वृद्घावस्था से संबंधित मैड्रिक अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई योजना में प्रतिपादित किया गया है और इसका प्र्रतिपा दन ही सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य में वर्णित है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम सब मिलकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं और इसे सुनिश्चित भी जरूर करना चाहिए कि लोग न केवल दीर्घजीवी हो बल्कि बेहतर और संतोषपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें। इस बात में दो राय नहीं हो सकती है कि यदि हम वृद्घजनों का उपयोग विकास प्रक्रिया अधिक उत्पादनशील शांतिपूर्ण और स्थिर समाज के निर्माण में करें तो निश्चित रूप से पूरा समाज उससे लाभान्वित हो सकता है। वृद्घजन की संख्या बढने के साथ साथ उनकी समस्याएं भी तेजी से बढती जा रही है। इस बात को ध्यान में रखते हुए उनकी आवास व्यवस्था परिवहन सुविधा तथा रहन सहन की अन्य व्यवस्था सुनिश्चित करके एक ओर जहां हम उन्हें अधिक से अधिक समय तक स्वावलंबी बनाए रखने में मदद कर सकते है वहीं दूसरी ओर वृद्घजन बढती उम्र के बावजूद अपने समुदाय में सक्रिय रह सकते है।
इनके लिए सरकार द्वारा जो कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाती है वे केवल कागजों तक ही सीमित रह जाती है। उनको इनका लाभ नहीं मिल पाता जिसके कारण आज वे गरीबी लाचारी और बेबस जिंदगी व्यतीत कर रहे है। केंद्र सरकार ने वृद्घजन के लिए पेंशन बीमा योजना शुरू की है। इस योजना की विशेषता यह है कि कोई भी पालिसीधारक 15 साल के बाद योजना से बाहर निकल सकता है जबकि पहले ऐसा नहीं था। इसके अलावा तीन साल के बाद जमा राशि का 75 प्रतिशत रिण भी लिया जा सकता है। जाने माने मनोरोग विशेषज्ञ प्रो जे एस बापना ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देते हुए कहा कि भारत और विकासशील देशों में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वृद्घजन की संख्या बढती जा रही है। उन्होंने कहा कि भविष्य में वृद्घजनों में बीमारियों और दुर्घटनाओं की संख्या तेजी से बढेगी और इसे ध्यान में रखते हुए अभी से कदम उठाए जाने चाहिए। प्रो बापना का कहना है कि दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में से पांच का सीधा संबंध मानसिक बीमारियों से होता है। ऐसी परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए नई मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाने की आवश्यकता है।नीलमhttp://www.blogger.com/profile/15255303201917785462noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-51495570947237658422011-02-07T17:04:00.000+05:302011-02-07T17:09:00.653+05:30तुम और मैं<strong>तुम तुंग - हिमालय - श्रृंग
और मैं चंचल-गति सुर-सरिता।
तुम विमल हृदय उच्छवास
और मैं कांत-कामिनी-कविता।
तुम प्रेम और मैं शान्ति,
तुम सुरा - पान - घन अन्धकार,
मैं हूँ मतवाली भ्रान्ति।
तुम दिनकर के खर किरण-जाल,
मैं सरसिज की मुस्कान,
तुम वर्षों के बीते वियोग,
मैं हूँ पिछली पहचान।
तुम योग और मैं सिद्धि,
तुम हो रागानुग के निश्छल तप,
मैं शुचिता सरल समृद्धि।
तुम मृदु मानस के भाव
और मैं मनोरंजिनी भाषा,
तुम नन्दन - वन - घन विटप
और मैं सुख -शीतल-तल शाखा।
तुम प्राण और मैं काया,
तुम शुद्ध सच्चिदानन्द ब्रह्म
मैं मनोमोहिनी माया।
तुम प्रेममयी के कण्ठहार,
मैं वेणी काल-नागिनी,
तुम कर-पल्लव-झंकृत सितार,
मैं व्याकुल विरह - रागिनी।
तुम पथ हो, मैं हूँ रेणु,
तुम हो राधा के मनमोहन,
मैं उन अधरों की वेणु।
तुम पथिक दूर के श्रान्त
और मैं बाट - जोहती आशा,
तुम भवसागर दुस्तर
पार जाने की मैं अभिलाषा।
तुम नभ हो, मैं नीलिमा,
तुम शरत - काल के बाल-इन्दु
मैं हूँ निशीथ - मधुरिमा।
तुम गन्ध-कुसुम-कोमल पराग,
मैं मृदुगति मलय-समीर,
तुम स्वेच्छाचारी मुक्त पुरुष,
मैं प्रकृति, प्रेम - जंजीर।
तुम शिव हो, मैं हूँ शक्ति,
तुम रघुकुल - गौरव रामचन्द्र,
मैं सीता अचला भक्ति।
तुम आशा के मधुमास,
और मैं पिक-कल-कूजन तान,
तुम मदन - पंच - शर - हस्त
और मैं हूँ मुग्धा अनजान !
तुम अम्बर, मैं दिग्वसना,
तुम चित्रकार, घन-पटल-श्याम,
मैं तड़ित् तूलिका रचना।
तुम रण-ताण्डव-उन्माद नृत्य
मैं मुखर मधुर नूपुर-ध्वनि,
तुम नाद - वेद ओंकार - सार,
मैं कवि - श्रृंगार शिरोमणि।
तुम यश हो, मैं हूँ प्राप्ति,
तुम कुन्द - इन्दु - अरविन्द-शुभ्र
तो मैं हूँ निर्मल व्याप्ति।</strong>
नोट - यह कविता निराला की लिखी हुई है... उनके जन्मदिन के अवसर पर....वसंत पंचमी..के दिन..सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-26825161356855707642011-02-05T13:12:00.001+05:302011-02-05T13:12:29.978+05:30बोली और भाषावैसे तो बोली और भाषा में कोई खास मौलिक अंतर नहीं है, क्योंकि में अंतर दोनों के व्यवहार-क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर करता है। वैयक्तिक विविधता के चलते एक समाज में बोली जाने वाली एक ही भाषा के कई रूप दिखाई देते हैं। दरअसल, बोली भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इसका संबंध ग्राम या मंडल से रहता है। इसके बोलने वालों का क्षेत्र काफी कम होता है यानी बोली बोलने वालों की संख्या कम होती है। इसमें प्रधानता व्यक्तिगत बोली की रहती है तथा देशज शब्दों की भरमार होती है। यह मुख्य रूप से बोलचाल की भाषा है, इसलिए व्याकरणिक दृष्टि से भी बोली बहुत ज्यादा परिष्कृत नहीं होती है और यही वजह है कि इसमें साहित्यिक रचनाओं का प्राय: अभाव रहता है।
भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम जिस सवाक, पारिभाषित ध्वनियों का उपयोग करते हैं वे सभी मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं । प्राय: भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है, और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है । उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है।
भाषा अथवा कहें परिनिष्ठित भाषा बोली की विकसित अवस्था है। बोली की अपेक्षा भाषा का क्षेत्र विस्तृत होता है। यह एक प्रांत या उपप्रांत में प्रचलित होती है। अक्सर यह देखने में आता है कि भाषाओं में से कोई-कोई अपने गुण-गौरव, साहित्यिक अभिवृद्धि, जन-सामान्य में अधिक प्रचलन की वजह से राजकीय कार्य के लिए चुन भी ली जाती है और उसे राजभाषा घोषित कर दिया जाता है। पंजाबी, मराठी, तमिल या तेलुगु जैसी भाषाएं इसका उदाहरण हैं, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि हर भाषा राजकीय भाषा ही हो। उदाहरण के लिए मैथिली कभी बोली थी। मैथिली बोलने वालों की तादाद और इस बोली में रचित साहित्य को देखते हुए इसे भाषा का दर्जा दे दिया गया, मगर मैथिली राजभाषा नहीं है। इसी तरह और भी कई भाषाएं हैं। कहने का आशय यह है कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारतीय भाषाओं को शामिल करने के पीछे भी तर्क यही होता है कि किसी भी भाषा का फैलाव कितना है, उसको बोलने वाले लोग कितने हैं।
किसी प्रदेश की राज्य सरकार के द्वारा उस राज्य के अंतर्गत प्रशासनिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे राज्यभाषा कहते हैं। यह भाषा सम्पूर्ण प्रदेश के अधिकांश जन-समुदाय द्वारा बोली और समझी जाती है। प्रशासनिक दृष्टि से सम्पूर्ण राज्य में सर्वत्र इस भाषा को महत्त्व प्राप्त रहता है। भारतीय संविधान में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए हिन्दी के अतिरिक्त 21 अन्य भाषाएं राजभाषा स्वीकार की गई हैं। राज्यों की विधानसभाएं बहुमत के आधार पर किसी एक भाषा को अथवा चाहें तो एक से अधिक भाषाओं को अपने राज्य की राज्यभाषा घोषित कर सकती हैं। राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। प्राय: वह अधिकाधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा होती है। प्राय: राष्ट्रभाषा ही किसी देश की राजभाषा होती है।सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-73097315233982526632011-01-08T15:20:00.001+05:302011-01-08T15:23:45.980+05:30संस्कृति का गुत्थम-गुथ<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEja9RRTbvoBEJGWIgDlK555Z0ayP-dACk7DmoPqcAsCuH3i5VBJ8G0_Wsl6w3XQfJzgIs2Bn4BmwF3E7JXjARb1dYrzrWuaaeqIWBf6ixScZAxOaZwuzY7RxrgozZJQ957WBJTpAAMkcBxP/s1600/ganga+se+golma+1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 263px; height: 400px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEja9RRTbvoBEJGWIgDlK555Z0ayP-dACk7DmoPqcAsCuH3i5VBJ8G0_Wsl6w3XQfJzgIs2Bn4BmwF3E7JXjARb1dYrzrWuaaeqIWBf6ixScZAxOaZwuzY7RxrgozZJQ957WBJTpAAMkcBxP/s400/ganga+se+golma+1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5559750904528766978" /></a>
अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर साहित्य के माध्यम से जो कुछ लोग संबंधों में प्रगाढ़ता लाने का काम कर रहे हैं, उनमें एक नाम सुरेश चंद्र शुक्ल का भी है जो भारत और नार्वे के मध्य सांस्कृतिक संबंधों को सघन करने में सतत प्रयत्नशील हैं। इसी कड़ी में शुक्ल जी की नई काव्य संग्रह 'गंगा से ग्लोमा तकÓ है। लेखक की दृष्टिï में 'गंगाÓ भारत की पावन पयस्विनी है और 'ग्लोमाÓ नार्वे की पुनीत सरिता। गंगा जहां भारत की सांस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है और ग्लोमा नार्वे की संस्कृति का प्रतीक है। इस काव्य संग्रह में कवि ने भरसक प्रयास किया है कि वह दोनों संस्कृतियों के संगम-स्थल के रूप में लोगों के सामने आए।
अपनी कविताओं को भी शुक्ल जी ने दो खण्डों में विभाजित किया है - 'गंगाÓ और 'ग्लोमाÓ। भारत के वसंत की बात करते हुए कहते हैं,
'महुआ महके / फूल उठे आमों के बीर / खिलते हैं कचनार और कनेर...Ó
तो नार्वे की वसंत छटा का वर्णन करते हुए लिखते हैं,
'यहां बरफबारी / क्रिसमस वृक्ष हरे / अमावस की रात / बरफ ने तम हरे...Ó
इस काव्य संग्रह में कवि ने लखनऊ, उज्जैन, अमृतसर हैं तो किसान मजदूर, मशाले हैं। वीर क्रांतिकारी हैं तो शांति के विश्वदूत गांधी भी है। 'दूर देश से आई चि_ïी हैÓ, 'उधव के पत्र हैंÓ, 'हिंदी है तो कर्मभूमि ओस्लो हैÓ, 'ग्लोमा हैÓ, 'आकेर नदी हैÓ जैसे कविता विचार को एक नई ऊर्जा प्रदान करती है। साथ ही हृदय को संवेदना से झकझोरती है तो इतिहास की बोधगम्यता भी कराती है।
अपने रचनाकर्म के बारे में स्वयं कवि कहते हैं कि मातृभूमि भारत तो मेरी हर सांस में है परंतु नार्वे को भुला पाना मेरे बस की बात नहीं है। इस संग्रह की पूरी कविता पढऩे के बाद यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि शुक्ल जी की कविताओं में वैविध्य है, अपने देश की स्मृति है, नार्वे के प्राकृतिक सौन्दर्य और उनकी यायावरी वृत्ति के कारण विश्व भ्रमण के अनेक प्रसंगों के कलात्मक चित्रण हैं। भाषा और अभिव्यक्ति प्रवाहमान और प्रांजल है।
पुस्तक - गंगा से ग्लोमा तक
लेखक - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोकÓ
प्रकाशक - विश्व पुस्तक प्रकाशन
पश्चिम विहार, नई दिल्ली - 63
मूल्य - 125 रुपएसुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-74853947384981882702011-01-06T15:06:00.001+05:302011-01-06T15:06:59.432+05:30गहलोत को गुर्जर न भाएआराम से दिन कट रहे थे अशोक गहलोत के। दिल्लीवाले उन्हें परेशान नहीं कर रहे थे। काफी दिनों तक दिल्ली में जो अपनी सेवाएं दी है गहलोत ने। लेकिन अपने ही प्रदेश के गुर्जरों ने नाक में दम कर दिया है। गुर्जर आंदोलनकारियों से सीधे टकराव के मूड में नहीं है गहलोत। अभी तक आंदोलन हिंसा से अछूता है। लेकिन इसके कारण सूबे सहित देश का जनजीवन भी प्रभावित हो रहा है। गहलोत आंदोलनकारियों को गांधीवादी अंदाज में समझा भी रहे हैं कि यह भरोसा पाले हैं कि उनकी बात को देर-सवेर मान लेंगे गुर्जर। तभी तो कुछ भरोसेमंद अफसरों को भी लगा दिया है। कई दौर की बातें भी गुर्जर नेता बैंसला से बात हो चुकी है। गृहमंत्री शांति धारीवाला ने शुरू से ही गुर्जरों के आंदोलन पर पैनी नजर टिकाई हुई है। गुर्जर नेता होने के नाते प्रदेश के बिजली मंत्री जितेंद्र सिंह को भी गहलोत भेज चुके हैं। लेकिन, गुर्जर हैं कि मानने को तैयार नहीं। इस आंदोलन ने सूबे के कारोबार को चौपट कर दिया है। प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों कामकाज बंद है। रेलवे को करोड़ों की नुकसान हो रही है, सो अलग। आखिर, आज नहीं तो कल इस आंदोलन का ठीकरा तो गहलोत के ही सिर फूटेगा न...सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-14603357987024979322011-01-05T12:02:00.000+05:302011-01-05T12:04:33.776+05:30समय पूर्व भंग होगी संसद !लोकतांत्रिक राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता है। न तो जनमत के आधार पर बनी सरकार की अवधि और न ही राजनीति का चरित्र। भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में, जहां की राजनीति गठबंधन के युग में हैं और क्षेत्रीय दलों के झंझावातों से दो-चार होती है, वहां कुछ भी संभव है।
वर्तमान का सच यह भी है कि जब देश के मौसम को सर्दी ने अपने आगोश में लिया हुआ है तो रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो रही है, उन परिस्थितियों में सियासी गलियारों मध्यावधि चुनावों की अटकलों पर भी विचार-विमर्श होने लगा है। कौन किसको किस बिना पर पटकनी दे सकता है, जनता के बीच कौन से सवाल मौजूं होंगे - राजनीतिक दलों के थिंक टैंकरों की टीम इस पर गहन चिंतन करने में जुट गई है। हालांकि, एक पखवाड़े पूर्व तक इसकी कोई संभावना नहीं थी। लेकिन, जैसे ही बिना कोई काम किए संसद सत्र का समापन हुआ और उसके बाद नई दिल्ली के बुराड़ी में कांग्रेस का महाधिवेशन हुआ तो मध्यावधि चुनाव के कयास लगने शुरू हो गए। जिस प्रकार से कांग्रेस महाधिवेशन में कांग्रेस के अंदर और बाहर चर्चाओं का बाजार गर्म हुआ। सरकार के कामकाज और संगठन में कुछेक मुद्दों पर मतभिन्नता दिखी, उसी ने इस संभावना का सूत्रपात किया। अव्वल तो यह कि कांग्रेस महाधिवेशन के महज दो दिन बाद ही राजग के बैनर तले कई दलों ने नेताओं ने जिस प्रकार से सरकार पर हमला बोला, मध्यावधि चुनाव की आहट धीमे से सुनाई पडऩे लगी। गौरतलब है कि अखिल भारतीय कांग्रेस के महाधिवेशन की योजना वर्ष 2009 में लोकसभा चुनावों में मिली विजय का झंडा गाडऩे के लिए एक साल पहले ही बन गई थी, लेकिन तब और अब के बीच परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। कांग्रेस के पैरों के नीचे से धरती खिसकने लगी है। कांग्रेस के ही नेताओं के बीच अन्तर्कलह और नाराजगी से मध्यावधि चुनाव की आशंका और बड़े घोटालों की छाया तले यह महाधिवेशन हो रहा है और लगता कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि महज सवा-डेढ़ साल पुरानी एक ऐसी सरकार जिसको जरूरत से ज्यादा बहुमत है, को उखाड़ फेंकने की बातें अनायास नहीं है। जिन लोगों ने दिल्ली में ही संपन्न हुए कांग्रेस के महाधिवेशन को नजदीक से देखा है वे भी यही बता रहे हैं कि आमचुनाव की आहट वहां भी सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह की दूसरी पारी कांग्रेस में कईयों को खटक रही है। फिर राहुल गांधी के राजनीतिक रहनुमाओं के प्रचार अभियान भी अनोखे हैं जो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का हौसला प्रदान कर रहे हैं। ऐसा ही एक अभियान यह चल रहा है कि किसी ज्योतिषी ने भविष्यवाणी कर दी है कि 2011 में राहुल न केवल शादीशुदा हो जाएगा बल्कि वह देश का प्रधानमंत्री भी बन सकता है। बस, चाटुकारों की एक टोली राहुल की माँ सोनिया गांधी को इसी बिना पर उत्साहित करने का भरसरक प्रयास कर रहा है।
राजनीतिक जानकारों की रायशुमारी में इस दफा मनमोहन सिंह बुरी तरह फंसे दिखाई दे रहे है। भ्रष्टïाचार और घोटालो ने मनमोहन की इस सरकार की कलाई खोल दी है। उदारीकरण के बाद सबसे ज्यादा घोटाला नरसिम्हा राव के समय में हुआ था । उसके बाद घोटालो की यही सरकार दिख रही है। बेशक, मिस्टर क्लीन की छवि लिए उन्होंने अपने कुछ मंत्रियों और मुख्यमंत्री की बलि दी हो, लेकिन भ्रष्टïाचार तो हुआ है। भला, उस कलंक को कैसे धो पाएंगे? यह बात और है की तमाम जन विरोधी नीतिओं के बावजूद इस सरकार में आर्थिक विकास दर बढती जा रही है , लेकिन घोटालो ने यह सावित कर दिया है की मनमोहन अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री है। आलम यह है की आज की तारीख में आम चुनाव हो जाय तो इस सरकार और इस में शामिल डालो की खटिया खड़ी हो जाएगी। मामला एक-दो भ्रष्टाचार तक ही सिमित नहीं है, पूरा सिस्टम ही करप्ट जान पड़ता है।
भ्रष्टïाचार के इस पूरे खेल में जनता लगातार लुट की शिकार होत जा रही है। महंगाई अपने चरम पर है और उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। लोगो के बीच में सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है। जनता के इस मूड को राजग जान चुका है, तभी तो वह 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में जेपीसी की मांग पर अड़ी है। बेशक, जेपीसी को लेकर भाजपा और राजग में आंतरिक विरोध हो, लेकिन रणनीतिकार इस मौका को छोडऩा नहीं चाहते। राजग को लगने लगा है कि देश मध्यावदी चुनाव की तरफ बढ़ रहा है और संभावना बन रही है की 2011 कें मध्यतक ऐसी स्थिति आ भी जाए। और यदि ऐसा होता है तो इसके लिए जिम्मेदार यही सरकार होगी । बहरहाल, राहुल गांधी की राह में पहली बाधा तो बिहार ने पैदा कर दी है। उनका जो कद बढ़ता नजर आ रहा था, वह न केवल रूक गया, बल्कि उलट गया। बिहार में उन्होंने तूफानी दौरे किए, लेकिन वे जहां-जहां गए, कांग्रेस हार गई। सदानंद सिंह अपवाद हैं, वे अपने कारणों से जीते। यह कांग्रेस की मुश्किल है, जिन राज्यों को वह ज्यादा महत्व दे रही है, वहां उसका संगठन खड़ा नहीं हो पा रहा है। यह कहा जा रहा था कि उत्तर भारत के आठ राज्यों में अल्पसंख्यक कांग्रेस की ओर मुड़ गए हैं। इस दावे पर अभी प्रश्नचिन्ह है। इसके लक्षण उत्तरप्रदेश में दिखाई पडऩा चाहिए, लेकिन वहां विपरीत परिस्थितियां खड़ी होने लगी हैं। सपा और बसपा उत्तरप्रदेश की राजनीति के केन्द्र में हैं। उधर, आंध्रप्रदेश में कांग्रेस में जगन के विद्रोह के बाद लोकसभा चुनावों की आहट लगने लगी है। जगन केन्द्र की सरकार गिराने की कोशिश में लग गए हैं। ए. राजा यदि गिरफ्तार कराए जाते हंै तो उसकी आँच कनिमोझी से होती हुई करूणानिधि तक भी पहुंचेगी। ऐसे में करूणानिधि वर्तमान यूपीए सरकार को समर्थन देने तक का विचार कर सकते हैं। पहले ही समर्थन की बात कर चुकी अन्नाद्रमुक नेता जयललिता पर भाजपा के रणनीतिकार नजर गड़ाए हुए हैं। हालिया चर्चा यह भी है कि एनडीएक के मैनेजरनुमा राजनेता तृणमूल कांग्रेस की नेत्री व केंद्रीय रेल मंत्री ममता बनर्जी से भी संपर्क में है। आखिर, वह अटल जी के मंत्रिमण्डल में भी सहयोगी रह चुकी है।
इन्हीं परिस्थितियों के बीच राजग ने रामलीला मैदान में रैली आयोजित कर अपनी एकजुटतका का एहसास दिलाया। काबिलेगौर यह भी है कि रामलीला मैदान में पहले की तरह इस बार न गडकरी गश खाकर गिरे और न आडवाणी को रैली आधे रास्ते रोकनी पड़ी। साथ में भाजपा के वे सभी मैनेजरनुमा नेता महासंग्राम का ऐलान करते नजर आ रहे थे जो आम आदमी की राजनीति के नाम पर खास लोगों के बीच जगह बनाने को ही अपना कौशल समझते हैं। यह कहने में कोई अतियोक्ति नहीं है कि आज की जो भाजपा दिखती है वह करीब-करीब अटल बिहारी वाजपेयी की देन है। कुर्सियों के चयन से लेकर पार्टियों के साथ तालमेल तक अटल बिहारी की छाप हर जगह दिखाई देती है। अटल का अंश दिखने की कोशिश कर रहे लालकृष्ण आडवाणी उन्हीं के नक्शेकदम पर अब एनडीए के अध्यक्ष हो चले। अटल ने जिस प्रकार से जॉर्ज फर्नांडीस का साथ लिया था, उसी तर्ज पर आडवाणी ने एक समाजवादी शरद यादव को अपना सेकुलर सिपहसालार नियुक्त कर दिया है जो एनडीए के बतौर संयोजक काम कर रहे हैं। अटल ने अगर सत्रह पार्टियों का कुनबा जोड़कर सरकार बनायी और चलायी तो आडवाणी के पास कम से कम चार पांच पार्टियों का समर्थन तो है ही। एनडीएक के महासंग्राम रैली में शरद यादव, शिवसेना और अकाली दल के नेताओं ने जो भाषण दिये वह सरकार उखाडऩे का संकेत देते हैं। आखिर में आडवाणी ने इस बात की पुष्टि भी कर दी। आडवाणी के कहने का लबो-लुबाब यही था कि अगले संसद सत्र तक यह महासंग्राम जारी रहेगा। देशभर में ऐसी 12 रैलियां आयोजित की जाएंगी जिसमें तीन तय हो गयी हैं और तय की जा रही हैं। वास्तव में यह लक्ष्य है आमचुनाव का। शरद यादव बोले भी कि इस सरकार को उखाड़ फेंकने की जरूरत है।
यह अनायास नहीं है कि आडवाणी कह रहे हों कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी तो जेपीसी देना चाहते हैं लेकिन न जाने उनकी ऐसी क्या मजबूरी है कि वे चाहकर भी जेपीसी नहीं दे पा रहे हैं। इसका मतलब तो यही निकाला जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर भी जेपीसी न देने का घनघोर घमासान है। अपना विपक्ष खुद रहनेवाली कांग्रेस के अंदर इस हवा को गर्म किया जा रहा है कि जेपीसी देने से अच्छा है सरकार को बदनाम हो जाने दो। कांग्रेस के वे तुर्रमखां जो संकट के समय बैरमखां बन जाते थे, इस वक्त थोड़े आरामतलब हो गये हैं। नतीजन, सारा संकट पीएमओ और डीएमके की ओर मोड़ दिया गया है। राजा राडिया और प्रधानमंत्री ही घिर रहे हैं और घेरे जा रहे हैं। उल्टे कांग्रेस ने तो महाधिवेशन में भ्रष्टाचार से लडऩे का भी संकल्प ले लिया। सो, जाहिर है कांग्रेस भी जानती है कि एनडीए इस मुद्दे को जितना अधिक हवा देगी पीएम उतने अधिक कमजोर साबित होंगे और उधर पीएम पर दबाव यह कि किसी भी हाल में वे जेपीसी की घोषणा नहीं कर सकते। ऐसे में स्थिति थोड़ी स्पष्ट हो जाती है कि अगर स्पेक्ट्रम घोटाले के नाम पर जेपीसी दी जाती है तो प्रधानमंत्री फंसते हैं और उन्हें कहा जा सकता है कि अब आप आराम करें और अगर जेपीसी नहीं दी जाती है तो रास्ता आम चुनाव की ओर आगे निकलता है जिस पर चलने के लिए सिवाय मनमोहन के पूरी कांग्रेस तैयार है।
यदि ऐसी स्थिति बनती है तो लालकृष्ण आडवाणी की महात्वाकांक्षा एक बार फिर से कुलांचे मारने को बेताब है। तभी तो जीवन के सबसे बड़े पद की लालसा लिए आनन फानन में वे एक बार फिर बतौर पीएम इन वेटिंग मैदान में आ डटे हैं। महासंग्राम रैलियों का सिलसिला शुरू करने की योजना भी उन्हीं की है और जेपीसी से कम पर समझौता न करने का विचार भी। वरना इधर मुरली मनोहर जोशी और उधर मनमोहन सिंह दोनों ही पीएसी के जरिए मामला सुलटा लेना चाहते हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि न इधर जोशी की भी वही हैसियत है जो उधर मनमोहन सिंह की। दोनों ही ईमानदार और विद्वान हैं लेकिन दोनों का राजनीतिक बटखरे से तौलनेलायक भी नहीं है। सो, बात जेपीसी पर अटकी है और वहीं अटका दी गयी है। इससे चाटुकार कांग्रेसी राहुल को बतौर पीएम प्रोजेक्ट करके अपना महत्व बढ़ाना चाहते हैं तो इधर आडवाणी जी को पांच साल तक इंतजार किये बिना जीवन के अंतिम पहर में जंग का एक और मैदान साफ नजर आने लगता है।सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4857774234359791723.post-49281882094815587432011-01-04T15:08:00.000+05:302011-01-04T15:09:53.976+05:30कारगर होगी महिलाओं की फौज?बिहार की पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की राज्यव्यापी नीतीश-पहल को पूरे देश ने देखा और उसका गुणात्मक परिणाम भी जाना। गत विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार से महिलाओं का मतदान प्रतिशत बढ़ा, वह कहीं न कहीं इस महिला आरक्षण का ही प्रतिफल है। तभी तो प्रदेश में अगले वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में ही करीब 3800 महिला मुखिया निर्वाचित होने के लिए तैयार हैं।
दरअसल, बिहार में अगले वर्ष अप्रैल महीने में ग्राम पंचायतों के लिए चुनाव होने हैं। राज्य में कुल 8,463 ग्राम पंचायतों में होने वाले चुनाव में 3,784 ग्राम पंचायतों में मुखिया का पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया गया है। राज्य निर्वाचन विभाग के अधिकारी के अनुसार, इन 3,784 महिला मुखियाओं में से सामान्य वर्ग की 2,611 मुखिया होंगी, जबकि 595 मुखिया पिछड़े वर्ग से आएंगी। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति की महिलाओं को 561 सीटों पर और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को 17 सीटों पर चुना जाना तय है। निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में स्थानीय निकाय के सभी पदों पर आरक्षण की वही स्थिति रहेगी जो वर्ष 2006के स्थानीय निकाय के चुनाव में थी।
एक अधिकारी के अनुसार पूर्वी चम्पारण में सबसे ज्यादा महिला मुखिया चुनी जाएंगी। वहीं शेखपुरा में सबसे कम मुखिया महिला होंगी। पूर्वी चम्पारण जिले के 27 प्रखंडों में मुखिया के कुल 410 पद हैं, जिनमें 184 पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह पटना जिले में जहां 147 महिला मुखिया होंगी, वहीं भोजपुर में 104, बक्सर में 63, नालंदा और गोपालगंज में 108-108, कैमूर में 66, गया में 145, जहांनाबाद में 42, अरवल में 29, औरंगाबाद में 94 महिला मुखिया होंगी। शेखपुरा जिले में सबसे कम मात्र 20 महिला मुखिया होंगी।
जानकारों की राय में बिहार में विकास पुरूष के नाम से अवतरित नीतीश कुमार ने महिलाओं को पंचायत में आरक्षण देकर देर से ही सही लेकिन एक सधा हुआ कदम उठाया। महिलाएं पंचायत प्रमुख, मुखिया, प्रधान, सरपंच और पंचायत से संबंधित कई पदों पर पहुंच गईं। लोगों को लगा बिहार में नारी शक्ति मजबूत हो गई है। कई जगहों पर यह सच साबित हुआ भी, लेकिन कई स्थानों पर ऐसा नहीं हुआ। सैकड़ों ऐसे मामले हैं जहां लोग-बाग जब महिला मुखिया से मिलने जाते हैं, तो मिलने आते हैं -मुखिया पति। कई दफा तो सरकारी बैठकों में महिलाओं के जगह उनके पति पहुंचते हैं। ऐसे में सामाजिक विकास की बात करने वाले यह सवाल भी खड़ा करने लगे हैं कि क्या इस पुरुष प्रधान समाज में महिला अपने फैसले लेने के लिए आजाद है? क्या यह सच नहीं है राबड़ी के फैसले लालू लेते रहे हैं?
राजनीति प्रेक्षकों के अनुसार, पंचायतों में महिला आरक्षण वाली वोट-नीति से राज्य स्तर पर नीतीश कुमार ने की तो और राष्टï्रीय स्तर पर सोनिया गांधी ने अपने लिए महिला पक्षधरता का झंडा बनाया। जहाँ तक पंचायती संस्थाओं में इस आरक्षण व्यवस्था के ज़रिए महिलाओं के सशक्तिकरण की बात है, तो इस बाबत बिहार का अनुभव बहुत निराशाजनक है। आरक्षित पदों पर निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों में से अधिकतर को उनके पारिवारिक पुरुषों ने कठपुतली या रबड़ स्टांप बनाकर महिला सशक्तीकरण की ज़मीन ही खिसका दी है। कहीं-कहीं तो बड़ी हास्यास्पद स्थिति है। बिहार में पंचायत में महिलाओं को आरक्षण मिलने के बाद भी उनका काम-काज पुरुष ही करते हैं। मुखिया-पति या सरपंच-पति का ऐसा बोलबाला है कि गाँव के लोगों में वहां के महिला प्रतिनिधियों की कोई पहचान तक नहीं रह गई है, और कहीं-कहीं ऐसा भी हुआ है कि जो सीधी-सादी और कुछ पढ़ी-लिखी घरेलू महिला थीं, उन्हें उनके घर वालों ने मुखिया या और कोई प्रतिनिधि बनवाकर पंचायती संस्थाओं में चल रहे भ्रष्टाचार के खेल में माहिर बना दिया है।
इसके साथ ही यह भी सच है कि बिहार के हालिया विधानसभा चुनाव में 1962 के बाद सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला है। इस दफा 32 महिलाएं विधायक बनी। खास बात यह है कि चुनाव में उतारे गए उम्मीदवारों में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 8.74 प्रतिशत ही थी। साढे पांच करोड़ मतदाताओं के बीच पचास प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाली बिहार की महिलाओं में से बहुत कम ही पुरूषों के दबदबे वाली राज्य की राजनीति में जगह बना पाई हैं। अगर पांच मुख्य पार्टियों सत्ताधारी जेडीयू और बीजेपी, विपक्षी आरजेडी, एलजेपी और कांग्रेस के साथ वामपंथियों के उम्मीदवारों की फेहरिस्त पर नजर डाले तो कुल 90 महिलाओं को टिकट दिया गया। इससे जाहिर होता है कि महिलाओं की तरक्की की राह में कितने रोड़े हैं।सुभाष चन्द्रhttp://www.blogger.com/profile/00163673662608636927noreply@blogger.com0