Friday, February 11, 2011

हमारी धरोहर हमारे बुज़ुर्ग

दुनिया में आज 60 साल की आयु से उम्र के लोगों की संख्या 60 करोड़ तक पहुंच चुकी है जिसमें से साढे सात करोड संख्या भारत में है। दुनिया भर में वृद्घों की बढती संख्या को देखते हुए उन्हें बेहतर ्र समृद्घ एवं संतोषपूर्ण जीवन प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है और इस दिशा में कई अहम कदम उठाए जा रहे हैं। भारत की 1991 की जनगणना के अनुसार देश में वृद्घजन की संख्या साढे पांच करोड से अधिक है जो आज बढकर साढे सात करोड पहुंच गई है। सरकारी आंकड़ों में 60 साल से अधिक आयु के लोगों को ही वृद्घजनों की श्रेणी में गिना जाता है। देश में वृद्घजनों की 80 प्रतिशत आबादी आज ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही है इसमें से 30 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा स नीचे जीवन व्यतीत कर रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वृद्घजन से संबंधित एक रिपोर्ट के अनुसार वृद्घजन स्वैच्छिक कार्य अपने अनुभव और ज्ञान भंडार तथा जिम्मेदारियां लेकर एवं सक्रिय भागीदारी के माध्यम से अपने परिवार एवं समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। वृद्घजनों के कल्याण कार्यो में लगे हैल्पेज इंडिया संगठन का कहना है कि वर्तमान समय में वृद्घों की सबसे बडी समस्या उनके एकाकीपन और भावानात्मक अधूरेपन की है। ऐसी स्थितियों में सरकार की वृद्घजनों के कल्याण के लिए बनाई गई योजनाओं को सही ढंग से और उचित समय पर लागू करने में गैर सरकारी संगठन और मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सामाजिक और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में आज वृद्घों की संख्या करीब 60 करोड है जिसमें से करीब 30 करोड विकासशील देशों में है। दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय वृद्घजन दिवस मनाया जा रहा है और इस साल की विषय वस्तु वृद्घजनों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार संयुक्त राष्ट्र वैश्विक रणनीतियों को समुन्नत करना है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों को बनाना है जिससे वृद्घजन स्वस्थ्य और चुस्त..दुरस्त रह सकें। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी अन्नान ने इस अवसर पर अपने संदेश में आह्वान किया है कि वे उन नीतियों तथा कार्यक्रमों के लिए कार्य करें जिनसे वृद्घजन ऐसे परिवेश में रह सकें जो उनकी क्षमताओं को बढा सके उनकी स्वाधीनता घोषित कर सके और उनकी बढती आयु के साथ उन्हें सहारा दे सकें। दुनिया में आज 60 साल की आयु से अधिक उम्र के लोगों की संख्या जिस रफ्तार से बढ रही है उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 तक यह संख्या दो गुना हो जाएगी और इसमें आधी संख्या विकासशील देशों में होगी। अन्नान ने कहा कि आज ऐसे समाज की रचना की जानी चाहिए जिसमें वृद्घजन सहित सभी आयु के लोगों के लिए समान स्थान हो जैसा कि वृद्घावस्था से संबंधित मैड्रिक अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई योजना में प्रतिपादित किया गया है और इसका प्र्रतिपा दन ही सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य में वर्णित है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम सब मिलकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं और इसे सुनिश्चित भी जरूर करना चाहिए कि लोग न केवल दीर्घजीवी हो बल्कि बेहतर और संतोषपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें। इस बात में दो राय नहीं हो सकती है कि यदि हम वृद्घजनों का उपयोग विकास प्रक्रिया अधिक उत्पादनशील शांतिपूर्ण और स्थिर समाज के निर्माण में करें तो निश्चित रूप से पूरा समाज उससे लाभान्वित हो सकता है। वृद्घजन की संख्या बढने के साथ साथ उनकी समस्याएं भी तेजी से बढती जा रही है। इस बात को ध्यान में रखते हुए उनकी आवास व्यवस्था परिवहन सुविधा तथा रहन सहन की अन्य व्यवस्था सुनिश्चित करके एक ओर जहां हम उन्हें अधिक से अधिक समय तक स्वावलंबी बनाए रखने में मदद कर सकते है वहीं दूसरी ओर वृद्घजन बढती उम्र के बावजूद अपने समुदाय में सक्रिय रह सकते है। इनके लिए सरकार द्वारा जो कल्याणकारी योजनाएं बनाई जाती है वे केवल कागजों तक ही सीमित रह जाती है। उनको इनका लाभ नहीं मिल पाता जिसके कारण आज वे गरीबी लाचारी और बेबस जिंदगी व्यतीत कर रहे है। केंद्र सरकार ने वृद्घजन के लिए पेंशन बीमा योजना शुरू की है। इस योजना की विशेषता यह है कि कोई भी पालिसीधारक 15 साल के बाद योजना से बाहर निकल सकता है जबकि पहले ऐसा नहीं था। इसके अलावा तीन साल के बाद जमा राशि का 75 प्रतिशत रिण भी लिया जा सकता है। जाने माने मनोरोग विशेषज्ञ प्रो जे एस बापना ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देते हुए कहा कि भारत और विकासशील देशों में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वृद्घजन की संख्या बढती जा रही है। उन्होंने कहा कि भविष्य में वृद्घजनों में बीमारियों और दुर्घटनाओं की संख्या तेजी से बढेगी और इसे ध्यान में रखते हुए अभी से कदम उठाए जाने चाहिए। प्रो बापना का कहना है कि दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में से पांच का सीधा संबंध मानसिक बीमारियों से होता है। ऐसी परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए नई मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाने की आवश्यकता है।

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नीलम