क्षितिज पर सूरज बनकर बाँटना अपनी किरणें उन बीहड़ अन्धकारों में जहाँ कुलबुलाती हैं ढ़ेरों परछाइयाँ कोटर से बाहर आने को एक किरण की तलाश है उन्हें निश्चित ही तुम्हारी किरण उजाले में आने को उन्हें विवश करेगी खोलेंगी पलकें तो पाएँगी एक समूचा आकाश उनकी प्रतीक्षा में तना है, ब्रह्मïाण्ड के शीश पर पूरी की पूरी चटटान खड़ी है शिखर बनकर, सूरज की लालिमा में दमक रहे हैं उनके मस्तक, परछाइयाँ बाँहें उठाकर अपनी माँगेंगी उनसे मन्नत कुलाँचे भरेंगी हवाएँ गगन में तुम्हारी विजय पताका यशगाथा लेकर रू-ब-रू होगी तब तुमसे तुम्हारी ही शै। - डा. वाजदा खान
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