उसकी आखों में है सपना सुनहरे भविष्य का खुद को संवार कर अपने अपनों को संवारने का वह जान चुकी है कि अब सारा आकाश उसका है इसीलिए जो कभी तोड़ा करती थी पत्थर अब करती है अंतरिक्ष में चहल कदमी
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सामाजिक चेतना, मानवीय संवेदना और इंसानी जटिल प्रवृतियों की अभिव्यक्ति
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सरल सहज शिल्प में बड़े सरोकार दिख रहे हैं आपकी रचना में... इसे बरक़रार रखे...
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