जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्य और केंद्र के बीच संबंधों को अधिक मजबूत करने के लिए गठित कार्य समूह की रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी, जिसमें संविधान का अनुच्छेद 370 पर भी विचार करने की बात की गई है। इसको लेकर विपक्षी दल भाजपा विरोध कर रहा है। भाजपा का कहना है कि रिपोर्ट की आड़ में केंद्र सरकार अतंरराष्ट्रीय समुदाय के एक खास वर्ग को यह दिखाने की कोशिश कर सकती है कि जम्मू-कश्मीर पर भारत का रुख कुछ नरम हुआ है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एस। सगीर अहमद की अध्यक्षता में गठित पांचवे कार्य समूह ने राज्य को स्वायत्तता देने की सिफारिश की है और कहा है कि इस संबंध में नेशनल कांफ्रेंस ने जो प्रस्ताव रखा है केंद्र उस पर विचार कर सकता है। इस समूह ने हाल ही में मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी । रिपोर्ट में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 370 कितने समय तक अपने मौजूदा रूप में राज्य में लागू रहेगा इस पर ध्यान देने की जरूरत है। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है । कार्य समूह ने भारतीय संघ के भीतर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा, लोकतंत्र को मजबूत करने के तरीके, धर्मनिरपेक्षता तथा राज्य में कानून राज के संबंध में विचार किया था। रिपोर्ट के अनुसार स्वायत्तता के प्रश्न और कश्मीर समझौते (1975) के मद्देनजर या कुछ अन्य उपायों या कुछ अन्य फार्मूले के आधार पर वर्तमान प्रधानमंत्री जहां तक उचित समझें स्वायत्तता के मामले में विचार कर सकते हैं।
सच तो यह भी है कि सत्ता के अधिक विकेंद्रीकरण और राज्य सरकार को अधिक अधिकार सहित नेशनल कांफ्रेंस जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता देने की मांग कर रही है। पार्टी का कहना है कि केवल तीन विभाग रक्षा, विदेश मामले और मुद्रा भारत सरकार के पास रहने चाहिए। पार्टी का कहना है कि 1953 से पहले राज्य को स्वायत्तता प्राप्त थी और इसे बहाल किया जाना चाहिए। सियासी हलकों में यह कहा जा रहा है कि रिपोर्ट का संबंध नेशनल कांफ्रेंस के स्वायत्तता प्रस्ताव से ही है, जिसमें केंद्र सरकार को इस पर विचार करना है। अनुच्छेद 370 पर रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा रूप में इसके जारी रहने के संबंध में या इसे स्थायी करने या निरस्त करने के संबंध में राज्य के लोगों को फैसला करना है। यह मामला साठ वर्ष पुराना है, इसलिए एक बार हमेशा के लिए इसका हल निकालने की जरूरत है।
भाजपा को सबसे ज्यादा आपत्ति इसी पर है। चूंकि यह कार्य समूह प्रधानमंत्री की पहल पर बना था, इसलिए राज्यसभा में भाजपा नेता अरूण जेटली ने उन्हें पत्र लिखकर कड़ी आपत्ति जताई है। भाजपा से इसमें अरुण जेटली शामिल हुए। अपने पत्र में जेटली ने कहा कि केंद्र व राज्य संबंधों को लेकर बनाए गए इस कार्य दल की 12 दिसंबर 2006 से तीन सितंबर 2007 के बीच पांच बैठकें हुई। इसके बाद कोई बैठक नहीं हुई है। अब अचानक उसकी रिपोर्ट सामने आई है। इसके बारे में किसी से कोई चर्चा नहीं हुई है। वैसे भी 2007 से यह कार्यदल पूरी तरह से निष्क्रिय रहा है। जेटली ने यह सवाल भी उठाया कि अवकाश प्राप्त जजों का सरकार का राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए रबड़ स्टैंप के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बहुत अनुचित है कि देश की संप्रभुता से जुड़े संवदेनशील राजनीतिक मुद्दे पर अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एकतरफा तौर पर रिपोर्ट तैयार करे। कहा जा रहा है कि सगीर अहमद ने पिछले 28 महीनों में कुछ नहीं किया और अब एक ऐसी रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए जो स्वायत्तता और 1953 के पूर्व के मुद्दों पर सिफारिश दे रही है।
0 Comments:
Post a Comment