शशि थरूर के जाने के बाद ललित मोदी का पत्ता भी आईपीएल से कट ही गया और अब वह और भी फंसते नज़र आ रहे हैं। शशि थरूर का मंत्रिपद तो चला गया पर साथ में लेकर आया है एक बवंडर जो हो सकता है मोदी के साथ आईपीएल को ले डूबेगा शशि थरूर के इस्तीफे के बाद मोदी मामले में केन्द्र सरकार की स्थिति मजबूत हुई है। शायद थरूर ने इस्तीफा दिया भी इसीलिए है ताकि मोदी को नेस्तनाबूद किया जा सके। अब कंाग्रेस अपने प्रिय मंत्री के जाने का बदला तो लेगी ही और कोई परवाह किए बिना मोदी पर शिकंजा कसेगी। बीसीसीआई की ओर से भी यही संकेत मिल रहे हैं। बोर्ड के पास कोई विकल्प है भी नहीं। ललित मोदी पर जिस तरह के और जितनी संख्या में आरोप लग रहे हैं, उन ओरोपों से मोदी का बचना नामुमकिन लग रहा है। बीसीसीआई में भी सभी पदाधिकारी मोदी के खिलाफ मोर्चा ले चुके हैं। दूसरी ओर मोदी को न चाहते हुए भी आईपीएल छोडऩा होगा। वैसे इंडियन प्रीमियर लीग के कमिश्नर ललित मोदी की कार्यशैली, फैसलों और गतिविधियों शुरुआत से ही काफी विवादित रही हैं या यूं कह लें कि मोदी पाक साफ छवि वाले कभी रहे ही नहीं। राजस्थान में वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान अनेक बार ललित मोदी का नाम राजनीति के गलियारों में उछला और अनेक पर्यवेक्षकों ने तो उन्हें उस समय सियासत की धुरी बताया। राजस्थान के ललित मोदी का नाम वर्ष 2005 में सामने आया था जब भाजपा के राजस्थान में सता में आने के बाद वे यकायक राजस्थान क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बन बैठे। तब उनके विरोधियों का आरोप था कि तत्कालीन भाजपा सरकार ने क्रिकेट संघ में मोदी की ‘ताजपोशी’ के लिए स्पोर्ट्स कानून बदला है। बावजूद इसके मोदी वर्षों से स्थापित रुंगटा गुट को हटाकर क्रिकेट संघ में अपना प्रभुत्व कायम करने में कामयाब हुए। संवैधानिक सत्ता का हिस्सा न होते हुए भी मोदी को विपक्ष ने हमेशा अपने निशाने पर रखा। जंग इतनी बढ़ी कि मोदी का नाम महज क्रिकेट के प्रशासक के तौर पर ही नहीं, बल्कि क्रिकेट में प्रभावशाली लोगों के कामकाज की शैली का मुहावरा बन गया। यहां तक कि मोदी के राजस्थान के निवासी होने पर भी विवाद हुआ और इस पर सवाल उठाया गया। उनके गृहनगर नागौर में मोदी के विरुद्ध एक प्राथमिकी दर्ज करवाई गई। ये मामला अब तक पुलिस के पास विचाराधीन है। क्रिकेट संघ का अधिकारी बनने के लिए मोदी को राजस्थान का मूल निवासी होना जरूरी था। लेकिन उनके विरोधियों ने उनके नागौर का बाशिंदा होने के दावे पर सवाल उठाए। खेल के मैदान या स्टेडियम परिसर में कोई व्यापारिक गतिविधि नहीं हो सकती है पर मोदी के कार्यकाल के दौरान स्टेडियम में एक होटल बनाकर खड़ा कर दिया गया। वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल के दौरान राजस्थान क्रिकेट संघ के कर्ताधर्ता रहे ललित मोदी यह पद वंसुधरा की सरकार से कितना प्रभावित था इसका अंदाजा इसी बाज से लगाया जा सकता है कि वंसुधरा की सरकार जाने के बाद मोदी का यह पद भी उनके हाथ से जाता रहा। साथ ही उन्हें तीन मामलों में पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी का सामना भी करना पड़ सो अलग। मोदी को एक और पुलिस जाँच का सामना करना पड़ रहा है जिसमें आरोप है कि वर्ष 2007 में एक क्रिकेट मैच के दौरान जयपुर के एसएमएस स्टेडियम में शराब परोसी गई। ये भी आरोप लगा है कि एक अतिथि को तिरेंगे को मेजपोश की तरह इस्तेमाल करते देखा गया। इसके अलावा मोदी पर वंसुधरा सरकार के शासनकाल के दौरान जमीन के सौदों और पर्यटन स्थल आमेर में संपत्तियों की कथित खरीद का आरोप भी है। खैर मोदी के इन सारे कर्मो को बीती ताहि बिसार दई की तर्ज पर लोग और बीसीसीआई भूल चुका था। मोदी की ही बदौलत बीसीसीआई ने आईपीएल जैसी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का ईजाद कर सका और इसके लिए बोर्ड को मोदी का शुक्रगुजार भी था। सरकार भी आईपीएल के तह में जाकर जांच करने के मूड में नहीं थी पर थरूर पर हाथ डालकर मोदी ने सीधे-सीधे कांग्रेस को ललकारा है। अब तक कई तहों के बीच ढके छुपे टीम मालिकों को सामने लाने की बात से लेकर मैच फिक्सिंग और कई अनामी कंपंनी के मालिक के तौर पर मोदी का नाम खींचा जा चुका है। थरूर और सुनंदा कोचर के संबंधों पर उंगली उठाने वाले मोदी की रंगीन मिजाजी के किस्से भी अब आम हो चले हैं। पिछले आईपीएल के दौरान दक्षिण अफ्रीका की मॉडल गैब्रिएला से मोदी के संबंधों के किस्से सुने सुनाए जा रहे हैं। यह वही मॉडल है जिसे भारत का वीजा न देने की मोदी ने सिफारिश की थी। इसके अलावा राजस्थान रायल्स में अपने साढू सुरेश चेलाराम को सबसे बड़ी हिस्सेदारी, अपने रिश्तेदार किंग्स इलेवन पंजाब के सह-मालिक मोहित बर्मन को हिस्सेदारी देने के भी आरोप मोदी पर लगे हैं। हैरानी की बात यह नहीं कि ललित मोदी ने बीसीसीआई के पदाधिकारियों और आईपीएल गवर्निंग काउंसिल को बिना बताए अपनी मर्जी से कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट किए-तोड़े और अपने रिश्तेदारों को फाइनेंशल फायदा पहुंचाया बल्कि हैरानी इस पर है कि बीसीसीआई और गवर्निंग काउंसिल को क्यों नहीं मोदी के करतूतों की भनक लगी? यह जाहिर करता है कि बोर्ड वास्तव में किस तरह काम करता रहा है। मोदी अगर ट्वीट करके कोच्चि टीम के शेयरधारकों के नाम नहीं उजागर करते और उन नामों में से एक नाम शशि थरूर की कथित प्रेमिका का नहीं होता, तो चीजें आज भी अपने ढंग और गति से चल रही होतीं। बोर्ड के सदस्य अपने में उसी तरह मशगूल रहते और आईपीएल की छवि भी साफ सुथरी बनी रहती। पर अब ऐसा नहीं है। खबरों के अनुसार आईपीएल ने इस टूर्नामेंट के दौरान कितना कमाया, क्या बेचा, टीमों के पर्दानशीं मालिक अब सभी को ढूढ़ा जा रहा है। अरबों का यह खेल टीवी पर दिखाने के अधिकार, इंटरनेट पर दिखाने के अधिकार, मोबाइल पर दिखाने के अधिकार और न जाने क्या-क्या सामने रहे हैं। वैसे भी ‘ट्वेंटी 20’ क्रिकेट बहुत बड़े व्यवसाय में तब्दील हो गया है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को टीमों व प्रसारण के अधिकारों से होने वाली अरबों रुपए की आमदनी इसे दुनिया के सबसे महंगे टूर्नामेंटों की जमात में खड़ा करने के लिए काफी है। बॉलीवुड की शीर्ष हस्तियों से लेकर बड़े कारोबारी दिग्गज इससे जुड़ रहे हैं। टूर्नामेंट के लेन देन में लगी अघोषित रकम इससे कई गुना ज्यादा है जो मोदी थरूर विवाद के कारण निशाने पर आ गई है। अनुमान यह है कि आईपीएल में लगा सारा पैसा सफेद नहीं है। इसीलिए प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग और डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस ने सभी टीमों के मालिकों के खातों की जांच शुरू कर दी है। जांच में देखा जा रहा है कि कौन-कौन हैं हिस्सेदार और वह कहां से लाया इतना पैसा? सारे मामले को देखते हुए कहा जा सकता है कि ललित मोदी और शशि थरूर के बीच विवाद की जड़ में राजनीति है, पैसा है और हैं दो महिलाएं भी और इनके बीच फंस सकते हैं कई मंत्री। एनसीपी सांसद और कृषि मंत्री शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के पति सदानंद सुले, केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल का नाम तो आईपीएल के हिस्सेदार के तौर पर सामने आ ही रहा है। अभी इस जद में और भी मंत्री व नेता फंसेंगे बशर्ते जांच की कार्यवाही मोदी के इस्तीफे के बाद खत्म न कर दी जाए तो। मोदी हटाए गए ये चर्चा तो गर्म है मगर क्या इतने भर से बात खत्म हो सकती है? क्या आईपीएल के पहले सीजन से लेकर अब तक जो भी सौदे हुए हैं सबकी गहन छानबीन नहीं होनी चाहिए? और बात वहाँ भी क्यों रुके, बात आगे बीसीसीआई तक जानी चाहिए। जिस तरह दुनिया भर में बीसीसीआई सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है उसमें पारदर्शिता का तो नामोनिशान ही नहीं है जो होना चाहिए। ...वैसे होना तो बहुत कुछ चाहिए मगर जिस तरह से नेताओं के नाम क्रिकेट से जुड़े हुए हैं लगता तो नहीं कि ये जो बात निकली है वो दूर तलक जाएगी।
Monday, April 26, 2010
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1 Comment:
नीलम जी, आपने बहुत सही लिखा है कि "खेल अभी बाकी है…"
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