भारत में गरीबी रेखा को लेकर जहां काफी बहस हुई और योजना आयोग की रपट की छीछालेदर हुई, वहीं पड़ोसी देश चीन में स्वयं राष्टï्रपति ने ही इसकी नई परिभाषा दी। देश के ग्रामीण इलाकों में गुजर-बसर कर रहे लोगों को अत्यावश्यक जीवन-यापन को प्रतिबद्घ राष्टï्रपति हू जिंतओ ने गरीबी रेखा का स्तर बढ़ा दिया। हालांकि कहा जा रहा है कि हू जिंतओ ने ऐसा अपनी लोक्िरपयता बचाए रखने के लिए किया है, जिससे आने वाले समय में कोई भी उनके लोकप्रियता पर सवाल न खड़ा कर सके। अब चीन में प्रतिदिन एक डॉलर यानी करीब 50 रुपए से कम कमाने वाले व्यक्ति को गरीब माना जाएगा। अभी तक यह रेखा सीमा 55 सेंट पर थी, लेकिन जिसे चीनी सरकार ने 92 फीसदी बढ़ा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब चार गुना अधिक लोग सरकारी सब्सिडी और प्रशिक्षण के दायरे में आएँगे। हू जिंताओ का कहना है कि लोगों के वेतन में बढ़ती असमानता को रोकने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है, वर्ष 2020 तक चीन में किसी को खाने या कपड़ों के बारे में चिंता नहीं करनी पड़ेगी। जानकारों का कहना है कि गरीबों के लिए इस हितकारी फैसले के पीछे चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है। अगले दो वर्षों में हू जिंताओ के राष्ट्रपति पद से हटने के आसार बताए जा रहे हैं। गद्दी छोडऩे के बाद भी हू जिंताओ चाहते हैं कि उनकी और उनके नज़दीकी राजनेताओं की पैठ बनी रही, वो अब भी चीन में वर्चस्व रखने वाली सेन्ट्रल मिलिट्री कमिशन के अध्यक्ष हैं और इस फैसले से जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते हैं। राजनीतिक प्रेक्षक यह भी कहते हैं कि हू जिंताओ ने अपने वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए ही इस समय यह फैसला लिया है। साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की वजह से चीनी सरकार स्थानीय बाज़ार में मांग को बढ़ावा देना चाहती है। गरीब लोगों को सरकारी मदद मिलेगी तो उनके पास आमदनी बढ़ेगी और बाजार में निचले स्तर के सामानों के लिए मांग बढ़ेगी। एक बात और ध्यान रखने लायक है कि चीन की कुल आबादी का 40 फीसदी शहरों में रहता है और 60 फीसदी ग्रामीण इलाकों में। गरीबी रेखा का यह फैसला सिर्फ ग्रामीण इलाकों पर लागू होता है। चीन के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में गरीबी और बेरोजगारी एक बड़ी परेशानी है। हू जिंताओ के सत्ता में आने से पहले चीनी सरकार की नीति दक्षिणी इलाकों पर केन्द्रित थी। गौर करने योग्य बात यह भी है कि गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों को चीन में सब्सिडी, रोजगार के लिए प्रशिक्षण, सस्ती दरों पर कर्ज और ग्रामीण इलाकों में सरकारी मदद से चलनेवाली ढांचागत परियोजनाओं में नौकरी के अवसर मिलेंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले दिनों में शहरों की ओर लोगों को आना घटेगा। अगर दूर भविष्य पर नजर डालें तो कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो चीन के आर्थिक विकास को धीमा कर सकते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि चीन के तेज आर्थिक विकास की वजह से गाँवों में अपेक्षाकृत कम उत्पादक काम को छोड़कर शहरों की ओर आ रहे थे। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बेरी आशनग्रीन चेतावनी देते हैं कि हर तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के विकास की दर का धीमा होना अपरिहार्य है और उन देशों में ये स्थिति जल्दी आ जाती है जहां उम्रदराज लोगों की आबादी बहुत अधिक है। चीन की एक बच्चे की नीति और लोगों औसत उम्र का बढऩा जल्दी ही चीन को इस श्रेणी में ला खड़ा करेगी। वे इस बात से सहमत हैं कि चीन के विकास की दर अब धीमी होगी। ये कहना जरुरी है कि चीन एक बड़ा निर्यातक भी है जो ट्रेड सरप्लस में है। ट्रेड सरप्लस यानी निर्यात से होने वाली उसकी आय आयात में उसके खर्च से अधिक है। लेकिन चीन का आयात लगातार बढ़ रहा है इसलिए ख़ुद वह कई देशों के लिए एक बड़ा बाज़ार बनता जा रहा है। कुछ लोगों को चीन को लेकर संशय भी होता है। भारत की तरह चीन में भी लोग बढ़ती महंगाई से लोग परेशान हैं। चीन के अधिकारी महंगाई को लेकर असुविधाजनक स्थित में जाते जा रहे हैं। हाल ही में कर्ज कम करने के लिए चीन के केंद्रीय बैंक ने कई कदम उठाए हैं। वर्तमान में दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाएं घायल अवस्था में कराह रही हैं और महामंदी के बाद धीरे-धीरे अपने आपको अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही हैं। पश्चिमी देशों के उपभोक्ता और सरकारें अपने आपको कर्ज से मुक्त करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। ये दोनों ही आने वाले समय में उपभोक्ता सामग्रियों और सेवाओं के बड़े शक्ति होंगे, ठीक उसी तरह जैसे वे पिछले दशक में थे। दूसरी ओर इसके बिल्कुल विपरीत चीन में मंदी के दौर में गति थोड़ी धीमी पड़ी उसके बाद अर्थव्यवस्था अपनी पूरी रफ्तार से चल पड़ी। वर्ष 2007 से 2011 तक चीन ने इतनी वैश्विक आर्थिक उन्नति की है जितनी जी-7 देशों ने मिलकर भी नहीं की।
Thursday, December 8, 2011
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