राजनेता यदि सही मायने में दिल्ली का विकास करना चाहें तो इसका विकास हो जाएगा, बशर्ते सियासतदान उसमें दखल अंदाजी नहीं करें। दिल्ली में 22 किलोमीटर लंबी गंदा नाला बन चुकी यमुना नदी के सफाई के नाम पर जिस प्रकार से करोड़ो रुपये बर्बाद किये जा चुके हैैं, वह दुखद स्थिति है। दुखद इस बात को लेकर नहीं कि करोड़ो रुपये जो किसी न किसी रूप में जनता का था, बर्बाद किया जा चुका हैै बल्कि इसलिए कि करोड़ो रुपये बहाने के बाद भी यमुना का कायाकल्प नहीं हो पाया। आज की तारीख में भी यदि सरकार चाहे और लीडर लोग अपनी वोट बैंक की राजनीति न घुसाएं तो एक भी पैसे की सरकारी मदद लिए बिना पौराणिक यमुना नदी का लंदन की टेम्स नदी की तरह कायाकल्प हो सकता है। दिल्लीवासियों का अपने शहर क ो विश्वस्तरीय बनाने का सपना तब तक हक ीकत में नहीं बदल सकता जबतक यहां वोट की राजनीति होती रहेगी। दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर जैसा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री बार-बार कहती है कि दिल्ली को पेरिस सरीखाा शहर बनाना हैै, बनाने के लिए लीडर और सरकार को दलगत राजनीति से ऊपर उठना होगा और मिलकर काम करना होगा। अनधिकृत कालोनियों और एनक्र ोचमेंट से छुटकारा पाना होगा। मेरी समझ में यमुना को साफ करना बहुत ही आसान काम है। शुद्घि के काम में एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। मेेरी समझ में यमुना के तीन सौ मीटर के आस-पास किसी भी तरह के निर्माण की कोर्ट की बंदिश का औचित्य समझ में नहीं आ रहा है। अहमदाबाद में साबरमती नदी मामले में जैसी पहल गुजरात सरकार ने की हैै, उसी तर्ज पर यमुना के लिए भी दिल्ली में प्रयास होने चाहिए। सिर्फ करोड़ों रुपये बहाने से विकास नहीं होने वाला हैै। एक तरफ सरकारी नीतियां और दूसरी तरफ कई एजेंसियों के घालमेल के कारण यमुना की सफाई उलझ कर रह गई हैै। कितनी हैरत की बात है कि सरकार ने कोर्ट में भी माना है कि पिछले वर्षो के भीतर यमुना की सफाई के लिए उसने तकरीबन 1700 करोड़ रुपये खर्च कर दिये हैं। इसका परिणाम आज तक क्या निकला है ? यह मेरे सामने भी है और आपके सामने भी। बीते दिनों मैंने भी एक अखबार में खबर पढ़ा था कि यमुना नदी की सफाई के नाम पर और 3150 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बन गई हैै। जबकि इस मद में पहले ही करीब 1200 करोड़ रुपये बहाए जा चुके हैं और नतीजा सिफर रहा है। हमारी-आपकी मेहनत की कमाई से जुटाई सरकारी राशि को किस प्रकार से खर्च किया जा रहा हैै, यह आप भी सोंचे और मैं भी। यमुना में प्रदूषण के स्तर की बात की जाए तो दिल्ली के 18 बड़े नाले 3296 मिलियन गैलन मीटर सीवर प्रतिदिन सीधे नदी में गिरते हैं। दिल्ली में यमुना के पानी को ई श्रेणी में रखा गया है, जिसमें नहाना भी बिमारियों को न्यौता देना है। सीवर के अलावा शहर की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला प्रदूषित पानी भी नदी में गिरता है। यह जानना दिलचस्प है कि वर्ष 1994 से 1999 के बीच दिल्ली सरकार ने सीवर ट्रीटमेंट सुविधा को मजबूत करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड को 284.98 करोड़ रुपये का ऋण मुहैया कराया। इसके बाद वर्ष 1999 से 2004 के बीच सरकार ने इसी काम के लिए 598.84 करोड़ रुपये जारी किये लेकिन जल बोर्ड इसमें से 439.60 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया। जबकि दिल्ली राज्य औद्योगिक व बुनियादी विकास ढांचा निगम ने 147.09 करोड़ रुपये खर्च किए। उधर यमुना एक्शन प्लान के तहत दिल्ली को करीब 170 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराई गई। इसके अलावा भी अलग-अलग मदों में काफी राशि खर्च की गई। इतना कुछ खर्च करने के बाद भी यदि सरकार यमुना को साफ नहीं बना पाती तो मैं क्या कहूं।
Tuesday, July 26, 2011
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