राजधानी बनने के अपने स्थापना काल से लेकर आज तक दिल्ली की विकास के कई मसौदे बने लेकिन आज तक वह मुकम्मल मुकाम हासिल नहीं हो सका, जिसका इंतजार दिल्लीवासियों को है। विकास के लिए प्रसिद्घ शहर नियोजनकत्र्ता एडवर्ड लुटियन्स व हर्बट बेकर के योजना के बाद तीन मास्टर प्लान दिल्ली देख चुकी है, मगर मास्टर प्लाज-2021 के आगाज को देखकर इसके अंजाम को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कुछ साल पूर्व तक दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित इसे पेरिस सरीखा वल्र्ड क्लास सिटी बनाने की बात करती थीं लेकिन बीते दिनों उनके हवाले से कहा गया कि दिल्ली को दिल्ली ही रहने दें! मुख्यमंत्री का यह बयान काफी कुछ बयां कर जाता है। इसके प्रमुख कारणों में आमतौर पर राजधानी में बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या और सरकारी योजनाओं की खामियों को गिनाया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय दिल्ली की जनसंख्या जहां 7 लाख के करीब थीं, वहीं आज यह डेढ़ करोड़ के करीब पहुंच चुकी है। दिल्ली के विकास के लिए एक के बाद एक तीन मास्टर प्लान आ गये। पहले मास्टर प्लान 1962, फिर 2001 और अब मास्टर प्लान 2021। पहला प्लान वर्ष 1981 तक की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया। उसके बाद वर्ष 2001 तक के विकास के मद्देनजर योजनाएं बनीं और नया मास्टर प्लान भी अगले 20 वर्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया। बावजूद इसके, शहर अपनी विकासात्मक लय को प्राप्त नहीं कर पाया। शहर योजनाकारों की बात पर गौर फरमाया जाए तो उनका कहना है कि राजनीतिक दखल की वजह से तकनीकी विशेषज्ञता मात खा रही है। दिल्ली में बसी अनधिकृत कालोनियों ने तमाम योजनओं पर पानी फेर दिया। बढ़ती आबादी के कारण ही विगत की दो योजनाओं विफल हुईं। देश की आजादी के बाद यहां बड़े पैमाने पर प्रवासी आ गए और 1947 के 7 लाख से बढ़कर 1951 में जनसंख्या 17 लाख हो गईं। उसके बाद यह क्रम आगे बढ़ता ही गया। इस संबंध में केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री और दिल्ली की कांग्रेसी राजनीति में खासा दखल रखने वाले अजय माकन कहते हैं कि एक लोकतांत्रिक सरकार न तो अवैध कालोनियों में बसे 40 लाख लोगों को बेघर कर सकती है न ही लाखों व्यापारियों के जीविकोपार्जन का सहारा छीन सकती है। इसके अलावा, सरकार दूसरे प्रदेशों से यहां आने वाले पर रोक भी नहीं लगा सकती। लिहाजा, उचित यही है कि जो लोग यहां हैं या आ रहे हैं, उनकी संख्या का सही आकलन कर इन्हें बेहतर सुविधाएं दी जाएं। दिल्ली की विकास के मुतल्लिक जब बात होती है तो कहा जाता है कि पहले मास्टर प्लान में लचीलेपन का अभाव था। खासकर भूमि उपयोग के मामले में। लेकिन आबादी की बाढ़ के आगे कानूनी प्रावधान धरे के धरे रह गये। यही वजह रही कि जब दूसरा मास्टर प्लान आया तो उसमें भूमि उपयोग की छूट दी गई। लेकिन बात उससे बनी नहीं। कानून को ताक पर रखकर मनमर्जी जगहों पर दुकानें खुलती रहीं। यही वजह रही कि अंतिम मास्टर प्लान-2021 आने से पहले शहर में बड़े पैमाने पर तोडफ़ोड़ भी हुई और सीलिंग की कार्रवाई आज भी जारी है। इसकी सफलता की गारंटी की बात करते हुए सरकारी नुमांइदें कहते हैं कि यह मास्टर प्लान केवल नौकरशाहों व विशेषज्ञों द्वारा नहीं बनाया गया। इसको तैयार करते समय समाज के हर तबके की राय ली गई, यहां तक कि दिल्ली विधानसभा में भी इस पर चर्चा हुई। इसे राजधानी की जमीनी हकीकतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। हाल ही में दिल्ली सरकार ने बीआरटी कॉरिडोर का निर्माण करके परिवहन व्यवस्था दुरूस्त करने की पहल की थी, लेकिन यह पहल पहले ही चरण में चरमरा गई और सरकार के मुख्य सचिव ने स्वयं स्वीकार किया कि कॉरिडोर के निर्माण में कुछ खामियां रहीं। सरकार की मंशा थी कि सार्वजनिक परिवहन सेवा को दुरूस्त किया जाए, सड़क यात्रा सुगम हो, लेकिन मंशा के ठीक उलट बीआरटी कॉरिडोर बनने के बाद घंटे भर की यात्रा करने में लोगों को तीन-चार घंटे तक गंवाने पड़े। पानी और बिजली जैसी मूलभूत चीजों के मामलें में राज्य सरकार को दूसरे प्रदेशों के रहमोकरम पर रहना होता है। भूमि दिल्ली सरकार के पास है नहीं और न ही वह कोई आवास का निर्माण कर सकती है। इस कार्य के लिए इसे दिल्ली विकास प्राधिकरण पर निर्भर होना पड़ता है। अव्व्ल तो यह है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण पर सदा से ही यह आरोप लगता है कि उसने रिहाइश व व्यावसायिक , दोनों की इस्तेमाल के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किये। यही वजह रही कि अवैध कॉलोनियों का विकास हुआ और रिहाइशी इलाकों में बड़ी तादाद में दुकानें भी खुल गईं। बहरहाल, इसमें दो राय नहीं है कि नियोजनकर्ताओं ने गत दोनों मास्टर प्लान से सबक लेते हुए नये मास्टर का प्रारूप तैयार किया। मिश्रित भूमि उपयोग को इजाजत दी गईं, आवास, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के मामलों में वास्तविक बातें भरसक की गईं। मगर, शहर की दिन दूनी- रात चौगुनी की दर से बढ़ती आबादी और अपेक्षाकृत सरकारी सुविधाओं की कमी को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि यह मास्टर प्लान भी राजधानी की जरूरतों को पूरा कर पाने में सफल हो पाएगा। दिल्ली के विकास की गड्डी उबड़-खाबड़ सड़कों पर फिलहाल हिचकोंले खा रही हैं और इंतजार कर रही है सपाट और सुंदर सड़क का...। हालांकि, सरकार की ओर से व्यापक तौर संशोधनों का प्रावधान कर यह व्यवस्था जरूर कर दी गई है कि समय के साथ इसे नये संाचे में ढ़ाला जा सके। केंद्रीय शहरी विकास राज्य मंत्री अजय माकन का कहना है कि 'मास्टर प्लान 2021 में आवास, बिजली,ा पानी, परिवहन आदि मूलभूत सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा गया है। मैं यह विश्वास करता हूं कि नया मास्टर प्लान दिल्ली की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा।Ó कहा जा रहा है कि दिल्ली का यह तीसरा और शायद अंतिम मास्टर प्लान हो, वर्ष 2021 के बाद दिल्ली में इतनी जमीन नहीं बचेगी, जिससे शहरीकरण की योजना बनाई जाए। इस प्लान के अनुसार वर्ष 2021 तक दिल्ली की आबादी 2 करोड़ 30 लाख तक पहुंच जाए।
Tuesday, October 5, 2010
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