Tuesday, June 3, 2014

अडानी की नजर अब छत्तीसगढ़ पर


भले ही लाख तर्क दिए जाएं पर सच यही है कि नरेंद्र मोदी और अडानी काफी करीब है और अब मोदी के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अडानी की शक्ति में भी इजाफा हुआ है। गुजरात के बाद अब अडानी की नजर छत्तीसगढ़ पर है यही कारण है कि उनकी पैरवी पर विष्णुदेव साय केंद्र में मंत्री बने हैं।

यूं तो राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में शामिल चार हजार लोग खास थे, लेकिन उसमें भी चार परिवार बेहद खास थे। औद्योगिक समूह की पहली पंक्ति में शुमार मुकेश अंबानी-नीता, अनिल अंबानी-टीना, अंबानी बंधुओं की मां कोकिला बेन, गौतम अडानी-प्रीति और वॉलीवुड स्टार सलमान खान। अडानी और अंबानी बंधुओं का इस आयोजन में आना महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि महत्वपूर्ण था देश की बागडोर संभालने वाले महारथियों में अडानी का पलड़ा अंबानी से ज्यादा भारी होना। टीम मोदी में एक ऐसा अनजान चेहरा शपथ लिया था, जिसे सुबह तक पता नहीं था कि इस रेस में अडानी ने उस पर दांव लगा दिया है। वहीं, टीम मोदी से एक ऐसा चेहरा गायब था, जिसे लाने के लिए अंबानी ने सारे घोड़े खोल दिए थे। इसमें सबसे चतुर खिलाड़ी नरेन्द्र मोदी थे, जिन्होंने मुकेश अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का रास्ता निकाल लिए थे।
सूत्र बताते हैं कि विष्णु देव साय को मंत्री बनवाने में अडानी की अहम भूमिका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के सबसे वरिष्ठ नेता रमेश बैस को दरकिनार कर मोदी ने साय को मंत्री बनाया। इससे संदेश ये गया जैसे रमन सिंह की सिफारिश पर साय को लिया गया हो, लेकिन कहानी दूसरी है। साय अडानी की पसंद हैं। वैसे तो मंत्री बनाए गए लगभग नेताओं को पता नहीं था कि वह टीम मोदी का हिस्सा बनने वाले हैं, लेकिन साय को खुद को इससे कोसों दूर मानकर चल रहे थे। शपथ-ग्रहण के दिन यानी 26 मई को साय के पास सुबह आठ बजे गुजरात भवन से फोन आता है। नरेंद्र मोदी से बात होती है। उन्हें गुजरात भवन बुलाया जाता है और शाम को शपथ लेने का न्यौता दिया जाता है। इस फैसले से साय खुद हैरान थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने खुद कहा था कि वे मंत्री पद की दौड़ में कहीं नहीं हैं। हालांकि, ये बात हर नेता कहता है, लेकिन साय का कहना इसलिए महत्वपूर्ण है कि साय छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी नेताओं में हैं, जो राजनीति में होते हुए छल-प्रपंच नहीं करते। स्पष्ट बात और सच की स्वीकारोक्ति साय की खासियत है। सूत्र बताते हैं कि साय भी नहीं जानते कि उन्हें ये पद रमन सिंह की मेहरबानी और योग्यता पर नहीं मिला, बल्कि अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। सच की स्वीकारोक्ति विष्णुदेव साय की खासियत है। केंद्र में मंत्री पद मिलना उनकी इस खासियत का ईनाम नहीं, बल्कि अडानी के भरोसे के कारण मिला है। अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, उससे माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। पता चला है कि हाल के दिनों से अडानी की दिलचस्पी छत्तीसगढ़ में कुछ ज्यादा बढ़ गई है। वे छत्तीगसढ़ में कांग्रेस से जुड़े उद्योगपति नवीन जिंदल का किला ध्वस्त कर अपना बर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं। इसको लेकर अंदरूनीतौर पर काफी दिनों से ताना-बाना बुना जा रहा है। उद्योगपतियों और सरकार के बीच सेतु का काम करने वाले अडानी द्वारा छत्तीसगढ़ में एक बड़े खेल की योजना बनाई गई है। बताया गया कि गौतम अडानी के लोग करीब एक माह से रायगढ़ क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राज्य के चार आदिवासी नेताओं के साध कर राज्य में बड़े राजनीतिक उलटफेर का रास्ता तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में दो विपरीत मिजाज वाले आदिवासी नेताओं को साधकर अडानी कैंप की योजना राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तक कराने की है। सूत्र बताते हैं कि अडानी जिस रणनीति से चल रहे हैं, उसमें मोदी का साथ मिलना तय है। हालांकि मोदी चतुर खिलाड़ी हैं, लेकिन अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, मोदी भी उसे नहीं समझ पा रहे। लिहाजा, माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। सूत्रों ने बताया कि अडानी के इस गोपनीय मिशन में राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, रामविचार नेताम, नंद कुमार साय और विष्णुदेव साय को टारगेट किया जा रहा है। अडानी गुट के लोग इन चारों नेताओं को अलग-अलग तरीके से ग्रिप में लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें दो नेता सीएम रमन सिंह के काफी करीबी हैं - रामसेवक पैकरा और विष्णुदेव साय। वहीं, नंद कुमार साय-रामविचार नेताम जैसे रमन सिंह विरोधी नेताओं के जरिए वहां आदिवासी नेतृत्व की मांग को बुलंद कराया जाएगा।
दरअसल, अडानी राज्य में अपने मनमाफिक सीएम को बिठाकर छत्तीसगढ़ का अकेला सम्राट बनने की योजना लेकर चल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सरकारी मशीनरी को सेट करने के साथ छत्तीसगढ़ में स्थापित जिंदल ग्रुप को उखाड़ने की कोशिश में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि जिंदल ग्रुप किसी समय पर भाजपा नेताओं के करीबियों में शुमार था, लेकिन बाद में सत्ता से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के कारण बाहर खड़े होकर भाजपा सरकार के लिए परेशानी पैदा करने लगे। उधर, कोल ब्लॉक घोटाले में भाजपा नेता अजय संचेती और अडानी के ब्लॉक निरस्त कराने में जिंदल की अहम भूमिका मानी जाती है। कहा जाता है कि तभी से अडानी ने मिशन छत्तीसगढ़ की योजना बनाकर वहां अपने दूतों को भेजा और वे दूत पूरी शिद्दत से काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
कहा तो यह भी जा रहा है कि गौतम अडानी को छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच मतभेद का भी लाभ मिल रहा है। सीएम रमन सिंह दोहरी आस्था के कारण संदिग्ध हैं। मोदी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देते। अडानी के मोदी से नजदीकी रिश्ते हैं। अडानी जहां मोदी के साथ मिलकर खेल जमाने में सफल रहे, वहीं मुकेश अंबानी अपना खेल नहीं जमा पाए। सूत्र बताते हैं कि मुकेश अंबानी अरुण शौरी को वित्तमंत्री बनवाना चाहते थे। शौरी उनकी पसंद थे और मोदी को यह बात बताकर उन्हें राजी करने का हरसंभव प्रयास किया गया। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में पहला मौका है, जब मुकेश अंबानी की पसंद को नजरअंदाज कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि मोदी शौरी को कहीं और भले समायोजित कर लें, लेकिन वह ये संदेश देने से बचना चाहते थे कि उनकी टीम में अंबानी के लोग हैं। इसलिए वित्तमंत्री का पद किसी और को देने की बजाय अपने सिपहसालार अरुण जेटली को दिया। हालांकि, अंबानी के लिए ये एक बड़ा झटका कहा जाएगा, क्योंकि इसके पहले हर वित्तमंत्री उनके इशारे पर बनता था। इसमें मजेदार बात ये है कि मोदी ने सारा काम इतनी चतुराई से किया है कि न अडानी को अंबानी की मंशा की भनक लगने दी और न अंबानी को अडानी का खेल पता चलने दिया। मतलब मोदी ने अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का कूटनीतिक रास्ता निकाल जता दिया कि राजनीति में वह कितने उस्ताद हैं।  

Wednesday, December 12, 2012

छाया नशा 12-12 12 का


12-12-12 का आंकड़ा सौ साल बाद आएगा इसलिए इस दिन को युवावर्ग भाग्यशाली मान रहा है। फिर चाहे हो वो आम लोग हो या ज्योतिष सभी के अनुसार 12-12-12 का ये आंकड़ा अपने आप में अदभुत है। यही कारण कारण है कि शादी से लेकर बच्चे के जन्म और नई नौकरी ज्वाइन करने से लेकर कोई भी नया काम करने के लिए लोग इस दिन का बेकरारी से इंतजार कर रहे हैं।

जिस तरह पिछले साल 11-11-11 की तारीख को लेकर लोग खासकर युवा पागल थे उसी तरह इस साल 12-12-12 के जादुई तारीख को लेकर भी युवाओं का जुनून देखते ही बन रहा है। इस तारीख का जादू हर किसी के सिर चढ़ कर बोल रहा है। देश भर में लोग इस दिन को यादगार बनाने का मन बना रहे है, जिन के घरो में नवजात आने वाला है वो लोग किसी भी तरह अपने घरो के चिराग को इसी अदभुत योग नक्षत्र की घड़ी में जन्म देना चाहते है, कुछ माएं तो असहनीय प्रसव पीड़ा को 24 घंटे ओर सहने को तैयार है। साथ ही युवा जोड़े इस दिन शादी करने के लिए जहां अदालतों में रजिस्ट्री करवा चुके हैं वहींइस दिन के लिए पंडितों व ज्योतिषाचर्यो से खास मुहूर्त भी निकलवाया जा रहा है।

यादगार बनाने की होड़
इस महीने 12-12-12 की खास तिथि को कई लोग अपने-अपने तरीके से यादगार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कोई इस दिन विवाह, तो कोई नन्हे मेहमान को घर लाने की तैयारी में है। वहीं युवा इस दिन को पार्टी के साथ सेलिब्रेट कर रहे हैं। 12 दिसंबर यानी 12-12-12 को शहर के कई लोग खास तिथि के रूप में देख रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं कि उस दिन उनकी जिंदगी में कोई ऐसी चीज हो, जो हमेशा के लिए यादगार बन जाये। यही वजह है कि लोग अपने घर में नया मेहमान लाने के लिए भी इस तारीख को चुन रहे हैं। कई बड़े अस्पतालों के डॉक्टर्स के अनुसार जिन महिलाओं की डिलीवरी डेट दिसंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में है, वे अपना ऑपरेशन 12 दिसंबर को कराने की इच्छा जता रही हैं। वैसे तो इस दिन हिंदुओं में पारंपरिक रीति-रिवाज से शादी का कोई मुहूर्त नहीं है। पर कई जोडिय़ां इस खास दिन पर कोर्ट मैरिज या फेरों के साथ शादी करने के लिए तैयार हैं। कई लोग अपने नए शाप को इसी दिन इसे लांच करने की योजना बना चुके हैं। वो सभी 12 दिसंबर को ही अपने शॉप की शुरुआत करना चाहते हैं ताकि सभी के लिए ये दिन यादगार बन जाए। जिनका जन्मदिन 12 दिसंबर को आता है वो भी इस खास तारीख को यादगार बनाना चाहते हैं। कुछ युवा इस खास दिन को पार्टी करके सेलिब्रेट करने की तैयारी की है। कुल मिलाकर कोई भी इस तारीख को यूं ही नहींजाने देना चाहता है।

गूंजेगी शादी की शहनाई
हर जोड़ें का बस यही सपना होता है कि उनकी शादी इतनी यादगार बने कि सालों तक लोग इसे याद रखें। अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए इस साल सैकड़ों जोड़ों ने एक अनोखी तारीख के दिन सात जन्मों के इस बंधन में बंधने की प्लैनिंग की है। ये तारीख है इस साल दिसंबर के महीने में 12 तारीख जो एक अनोखा योग बना रही है। इस बेहद अनोखी तारीख को कई कपल अपने जीवन का सबसे यादगार दिन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। भले ही हिंदू धर्म के अनुसार इस तारीख को कोई शादी का साया नहीं पड़ रहा है। लेकिन कई जोड़े इस डेट को शादी करने के लिए पंडित जी के पंचांग को छोड़ न्यूमेरोलॉजिस्ट की सहायता ले रहे हैं। जो लोग इस दिन शादी करने वाले हैं उनका मानना है कि शादी जीवन का एक ऐसा उत्सव है जो हमेशा यादगार रहता है। ऐसे में ये तारीख एक स्पेशल दिन को और भी स्पेशल बना देगी।  हालांकि इस तारीख को कोई शुभ मुहूर्त तो नहीं हैं, पर अंक विज्ञान के अनुसार 12-12-12 यानी 3 3 3= 9 होता है। ये तारीख मंगल कार्य के लिए उत्तम है। लेकिन ज्योतिष की माने तो ये भी देखना पड़ेगा कि जिन कपल का आपसी तालमेल मंगल के कारण बिगड़ रहा है, उनको ये तारीख नहीं अपनानी चाहिए।

नन्हे मेहमान को लाने का जुनून
पटेल अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. शमा बत्रा कहती हैं कि कभी गाडिय़ों के वीआईपी नंबर के लिए मारामारी होती थी। इसके बाद मोबाइल नंबर की बारी आई लेकिन अब एक तय तारीख पर बच्चा पैदा करने की तैयारी जोरों पर है। फिलहाल हर जगह बच्चों की पैदाइश इस तय तारीख पर कराने के लिए बुकिंग की लाइन लग रही है और ये तारीख है 12-12-12। तय तारीख पर डिलीवरी कराने की ये प्रकिया मुश्किल ही नहीं कभी कभी खतरनाक भी साबित हो सकता है। जिन महिलाओं की पहली डिलीवरी है, उनको तों खास तौर पर इस तरह की तारीखों पर बच्चे पैदा कराने पर डॉक्टर साफ मना भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं यदि उनके परिजनों की भी काउंसलिंग की जा रही है। डॉक्टर इस बात पर खास गौर कर रहे हैं कि मां ने कम से कम 38 हफ्ते पूरे कर लिए हों। कई डॉक्टर इस तरह के ऑफरेशन से साफ मना कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रकृति को उसका काम करने दिया जाना चाहिए। ऐसी मांग करने वाली कुछ माओं को तो सख्त हिदायत दी गई है कि वो अपना जुनून छोड़ दें क्योंकि वक्त से पहले या बाद में बच्चे की पैदाइश में जच्चा-बच्चा के साथ ऑपरेशन के दौरान भी और बाद में भी पैदा बच्चे में गड़बड़ी की आशंका रहती है। पर फिर भी बच्चों की किस्मत को चार चांद लगाने के लिए लोग तारीखों का चुनाव खुद कर रहे हैं। कोशिशे ये हैं कि बच्चा तय शुदा तारीख पर ही पैदा हो इसके लिए इस बार 12 के तिलिस्म को तरजीह दी गई है। इसे शुभ माना जा रहा है। मानना है कि ये बच्चे के लिए शुभ होगा। अंक ज्योतिष के अनुसार बच्चे का इस तारीख को जन्म उसके पुरे जीवन के लए शुभ होगा। उसके व्यवहार से लेकर कैरियर की कामयाबियों तक उसकी जन्म तारीख उसके लिए भाग्यशाली साबित होगा।

ऐसी दीवानगी ठीक नहीं
मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख कहते हैं कि 12-12-12 जैसी अनोखी तारीख देखने में ये संख्या जितनी रोचक और आकर्षक लग रही है, उतना ही युवाओं को भटकाने वाली भी है। इस संख्या का प्रभाव इतना है कि जिन युवाओं का विवाह निर्धारित हो चुका है वो इसी दिन विवाह करना चाह रहे हैं। इस तिथि के प्रति लोग इतने उत्सुक हैं कि पंडितों या शुभ मुहूर्त का भी ख्याल नहीं कर रहे हैं। अगर 12-12-12 के प्रति आकर्षण का कारण सिर्फ रोचकता होता तो फिर भी इसे हम उत्सुक युवाओं की सोच कह सकते थे लेकिन हैरानी वाली बात ये है कि युवाओं के मस्तिष्क में ये सोच भी अपनेआप ही अवतरित नहीं हुई बल्कि इस मानसिकता पर भी न्यूमरोलॉजी का पूरा प्रभाव है। इस रोचकता को भी ज्योतिषीय कोण के आधार पर देखा जाए तो समझ में आ जाएगा कि हमारे युवा कितने फ्री माइंडेड और अंध-विश्वास के दूर रहने वाले हैं। कथनों से प्रभावित होकर ही युवा 12-12-12 को विवाह करने या फिर संतान को दुनियां में लाने के लिए बहुत जागरुक और उत्सुक हो गए हैं। कई महीनों पहले ही लोगों ने विवाह के लिए स्थान सहित सभी जरूरी प्रबंध कर लिए हैं। वहीं महिलाओं ने इसी दिन अपने बच्चे को जन्म देने के लिए डॉक्टरों से समय ले लिया है लेकिन क्या किसी विशेष तारीख पर विवाह करने या जन्म लेने वाले व्यक्तियों के सफल और खुशहाल जीवन की गारंटी ली जा सकती है? कुल मिलाकर इसे एक तरह का अंधविश्वास ही कहेगे जिसके रौ में बहुतायत में युवा बह रहे हैं।

ज्योतिषी मान रहे हैं शुभ
ज्योतिषाचार्य पं. संजीव शर्मा की माने तो 12-12-12 का ये आंकड़ा अपने आप में अदभुत है और ज्योतिष के हर अंग के अनुसार ये तिथि चमत्कारी है। इस दिन का नक्षत्र, योग अपने आप में अदभुत है और 12-12-12 साल का आखिरी अनूठा संयोग है। अगला अनूठा संयोग 100 साल बाद आयेगा। इस दिन जन्म लेनेवाले बच्चे भविष्य में कभी असफल नहीं होंगे। इन बच्चों का मूलांक तीन और भाग्यांक दो रहेगा। ये किसी भी विषम परिस्थिति में सामना आसानी से कर सकेंगे क्योंकि ये हर बात पर अडिग रहनेवाले होंगे। इसलिए जो भी लक्ष्य निर्धारित करेंगे, उसे वे हासिल भी करेंगे। 12 में एक और दो है। इसलिए इसका मूलांक एक जोड़ दो यानी तीन होता है। तीन मूलांक का कारक बृहस्पति होता है। बृहस्पति के प्रभाव से ये संयोग बहुत ही शुभ साबित होता है। ऐसे अंक वाले जातक अलग पहचान, अलग व्यक्तिव रखते हैं। वे उच्च आकांक्षावाले होते हैं। इस योग में अब्राहम लिंकन, चर्चिल, चाल्र्स रॉबर्ट जैसे महान लोगों का जन्म हुआ था। पर विवाह के लिए इस दिन कोई मुहूर्त नहींहै। अंकशास्त्री पं. रूपेश जैन कहते हैं कि 12-12-12 की तिकड़ी व्यक्ति के जीवन में ठहराव और सामंजस्य ला सकती है। हिंदू नक्षत्रों के आधार पर न्यूमरोलॉजी को अध्यात्म से जोडक़र भी देखा जा रहा है। ये दिन आपके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकता है। वे जोड़े जो इस दिन विवाह बंधन में बंधेंगे या जो जन्म लेंगे उनको दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होगा और वे एक खुशहाल जीवन जी पाएंगे।

Saturday, August 18, 2012

लव सेक्स और सत्ता


सियासतदां अभी शेहला मसूद और भंवरी के भंवर से निकल भी नहींपाएं है कि गीतिका और फिजा की मौत ने राजनीतिक हलकों में फिर हडक़ंप मचा दिया है। वैसे भी जब-जब सियासत नंगी हुई है, तब-तब अवाम शर्मिंदा हुआ है। हर बार कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ी है। पहले भी कई ऐसे कांड हुए हैं जिसने सफेदपोशों के चोहरों पर  काली स्याही पोत दी है।



नैना साहनी, मधुमिता शुक्ला, शशि प्रसाद, भंवरी देवी, गीतिका शर्मा और अब फिजा इन सबके जीवन की कहानी लगभग एक जैसी है। सभी ने अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राजनीतिक शख्सियतों का सहारा लिया और अपना सबकुछ उनपर लुटा दिया पर बदले में न सत्ता मिली न ही जिंदगी जीने का हक। इन सबके रातों रात चमकने के सपने ने इनसे इनकी आखिरी सांसे भी छीन ली। किसी को अज्ञात हमलावरों ने गोलियों से भून डाला तो किसी को तंदूर की आग के भेट चढऩा पड़ा। पर ये सिलसिला यहींरुका नहींहै और शायद कभी रुकेगा भी नहीं क्योंकि सत्ता का नशा और सत्ता का उपयोग अपने विलासिता के साधन जुटाने में करना नेताओं के लिए नया ट्रेंड नहीं है। बस हर बार इसको डील करने का तरीका बदल जाता है।

अगर नैना साहनी में राजनीतिक महत्वकांक्षा और समाज में नाम पाने का जुनून न जागता और युवक कांग्रेस का दबंग नेता सुशील शर्मा उसकी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने का वादा न करते तो शायद नैना का हश्र इतना दहला देने वाला न होता। मंदिर मार्ग के एक फ्लैट में कांग्रेस का खूबसूरत और तेजतर्रार युवा नेता नैना साहनी के साथ में रहता था। नैना को भले ही सुशील ने अपने घर वालों से कभी नहीं मिलवाया था, लेकिन तेज दिमाग नैना के दबाव के चलते उसको गुपचुप शादी करनी पड़ी थी। नैना के भी पॉलिटिकल रिश्ते थे, जो सुशील को बाद में अखरने लगे थे और यही उसकी हत्या की भी वजह भी बने। 2 जुलाई 1995 की रात कांस्टेबल अब्दुल कादिर कुंजू और होमगार्ड चंद्रपाल को दिल्ली के ओपन एयर रेस्तरां से उठने वाला धुंआ कुछ इतना ज्यादा लगा कि वो चैक करने के लिए अंदर जा पहुंचे। अंदर पहुंचते ही बदबू आना शुरू हो गई। ये दोनों पुलिस वाले अगर अंदर नहीं जाते तो दुनिया कभी भी तंदूर कांड से रूबरू नहीं हो पाती। सुशील ने नैना को ठिकाने लगाने का मन तब बनाया जब किसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हो गई और गुस्से में सुशील ने नैना पर अपने लाइसेंसी रिवॉल्वर से दाग दीं एक-एक करके पूरी तीन गोलियां। जान लेने के बाद भी उसका गुस्सा खत्म नहीं हुआ। उसने रेस्तरां के मैनेजर के साथ मिलकर लाश के टुकड़े-टुकड़े कर उनको जलते तंदूर में झोंक दिया। नैना साहनी की दर्दनाक हत्या ने सरकार को हिलाकर रख दिया। कांग्रेस के नेता का यह रूप देखकर हर कोई हैरत में था। सरकार को न जवाब देते बन रहा था न कार्यवाही करते। मजबूरन लोगों और मीडिया के दबाव के चलते पुलिस और प्रशासन सक्रिय हुआ। पुलिस की बढ़ती गतिविधियों के चलते सुशील को सरेंडर करना पड़ा। लेकिन वह इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था। हर बार वह पुलिस को उलझाता रहा। बयानों के लगातार बदलने और झूठ बोलने के कारण मामला उलझता जा रहा था। सुशील ने फ्लैट से लेकर, उसमें मिले कागजातों तक को अपना मानने से इनकार कर दिया। इसी बीच नैना साहनी की एक डायरी में 3 जुलाई को नैना की लिखावट का लेख भी मिला। सुशील ने बस उसे पहचाना ताकि ये साबित किया जा सके कि नैना 2 जुलाई को मरी ही नहीं। कई वकीलों ने इस केस से हाथ खींचा तो सुशील ने भी तमाम कानूनी दांवपेच भिड़ाए। लेकिन मीडिया के जरिए पब्लिक प्रेशर काम आया, जांच अधिकारियों को सतर्कता बरतनी पड़ी और कोर्ट ने सुशील को फांसी की सजा सुना दी। फिलहाल सुशील जेल में है और सुप्रीम कोर्ट से राहत भरे फैसले की उम्मीद कर रहा है।
राजनीतिक मुहब्बत की एक और खूनी दास्तां है युवा कवयित्री मधुमिता शुक्ला और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की जहां मधु को अपनी जान गवां कर एक नेता से प्रेम करने का कर्ज चुकाना पड़ा। कम उम्र का जोश, वीर रस की कविताएं, दबंग राजनेता की मोहब्बत, सियासत का रसूख इस कॉकटेल के नशे में मधुमिता जिंदगी और प्रेम की अपनी इबारत गढऩे लगी। जिस समय अमरमणि से उसकी मुलाकात हुई थी, तब उसकी उम्र महज 18 साल थी, जबकि 45 साल के अमर मणि न केवल शादीशुदा थे, बल्कि बच्चों के बाप भी थे। एक नवोदित कवयित्री मधुमिता शुक्ला और अमरमणि की प्रेम कहानी बदस्तूर चलती रहती अगर मधुमिता ने अमरमणि पर विवाह करने का जोर ना डाला होता। यूपी के स्टांप और रजिस्ट्रेशन राज्य मंत्री (तत्कालीन मायावती सरकार में) अमरमणि त्रिपाठी के प्यार में पागल यह कवयित्री उसके अवैध अंश को जन्म देना चाहती थी। लेकिन मंत्री साहब को यह गवारा नहीं था। मई 2003 को अचानक मधुमिता की उनके लखनऊ स्थित पेपर मिल कालोनी के घर में हत्या कर दी जाती है। शक की सुई मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर उठीं। मधुमिता की मौत के बाद डायरी और पत्रों से इस बात का साफ खुलासा हो गया कि त्रिपाठी के दबाव में मधुमिता दो बार गर्भपात करवा चुकी थी। जिस समय हत्या हुई, उस समय भी वे छह माह की गर्भवती थी। मधुमिता की हत्या ने उत्तरप्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। मीडिया के दबाव चलते अंत्येष्टि से चंद घंटे पहले मधुमिता के शव से भ्रूण निकालने के लिए पुलिस को मजबूर कर दिया। अजन्मे बच्चे का डीएनए टेस्ट से मधुमिता और त्रिपाठी के रिश्तों की पुष्टि हो गई। मीडिया का साथ मिला तो लखीमपुर में रह रही मधुमिता की बड़ी बहन निधि में भी हिम्मत दिखाई। दबाव बढऩे लगा, जांच में तेजी आई और राजफाश होने लगे। पता चला मधुमिता की हत्या में अमरमणि और उसकी पत्नी मधुमणि दोनों का हाथ था। खतरनाक प्रेम की भेंट में जहां मधुमिता को जान से हाथ धोना पड़ा वहीं त्रिपाठी भी उम्रकैद की सजा भी काट रहा है। अमरमणि को 21 सितंबर 2003 को में गिरफ्तार कर लिया जाता है और उनकी जमानत की अर्जी भी ठुकरा दी जाती है। 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून में एक विशेष अदालत ने मंत्री अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, उनके चचेरा भाई रोहित चतुर्वेदी और उनके सहयोगी संतोष राय को मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में दोषी पाया। अदालत ने अमरमणि को आजीवन कारावस की सजा सुनाई।
फैजाबाद की रहने वाली शशि प्रसाद लॉ की स्टूडेंट थी। वह राजनीति में आना चाहती थी। इसलिए शार्टकट के रूप में उसने मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री आनंद सेन को चुना। आनंद सेन ने भी उसकी आंखों में बसे इस ख्बाव को देख लिया था। फिर शुरू हुआ वायदों का सिलसिला। वायदे बढ़ते गए, जिस्मानी दूरियां मिटती गईं। बीएसपी कार्यकर्ता राजेंद्र प्रसाद की बेटी शशि प्रसाद के आनंद सेन के साथ संबंध बने पर इस संबंध से उसे सत्ता सुख तो नहींमिला पर मौत जरूर मिली। 22 अक्टूबर 2007 को शशि अचानक गायब हो गई। गुमशुदगी की सूचना 23 अक्टूबर 2007 को दर्ज कराई गई। एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी जब शशि का कुछ पता नहीं चला तो शशि के पिता ने आनंद पर अपहरण और हत्या का आरोप लगाया। मामले में आनंद और उनके ड्राइवर विजय को आरोपी बनाया गया। लंबी छानबीन और धड़पकड़ के बाद पता चला कि वह इस दुनिया से जा चुकी थी। उसकी हत्या हो गई थी। फैजाबाद की अदालत ने आनंद सेन और उसके ड्राइवर को उम्रकैद की सजा सुनाई।
हाल ही राजस्थान की गवर्नमेंट को हिलाने वाली भंवरी देवी का केस पिछले कई दिनों से सुर्खियों में है। सत्ता का नशा और सत्ता का उपयोग अपने विलासिता के साधन जुटाने में करना नेताओं के लिए नया ट्रेंड नहीं है। पर जब उनकी विलासिता की वस्तु पलटकर उनका गिरहबान पकड़ लेती है और उनको ब्लैकमेल करने लगती है तो उसका हश्र सिर्फ मौत ही होता है।

पेशे से नर्स भंवरी देवी कोई साधारण महिला नहीं थी, बल्कि सत्ता के गलियारों में जहां उसकी ऊंची पहुंच थी, वहीं इस पहुंच को बरकरार रखने के लिए उसने शार्टकट का इस्तेमाल करने तक से गुरेज नहीं किया। जैसलमेर सरकारी अस्पताल में नर्स भंवरी देवी 2001 में कॉग्रेस एमएलए मल्खान सिंह बिश्नोई के संपर्क में आईं और बाद में राजस्थान के वॉटर रिसोर्स मिनिस्टर महिपाल मदेरणा के संपर्क में। बिश्नोई को मंत्री बनाने के लिए मदेरणा के साथ अश्लील सीडी बनाई ताकि गहलोत कैबिनेट में उन्हें बदनाम कर हटाया जा सके। भंवरी ने मदेरणा और बिश्नोई दोनों के साथ अश्लील सीडी तैयार की और दोनों को ब्लैकमेल करती रहीं। 1 सितंबर 2011 में भंवरी लापता हो गई। 2 दिसंबर को मदेरणा कैबिनेट से बाहर हुए और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। भंवरी देवी का अपहरण हुआ है, वह बंधक है या फिर उसकी हत्या कर उसे जला दिया गया है, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है, लेकिन इस मामले ने फिर एक बार कांग्रेसी नेताओं की इज्जत उतार कर जरूर रख दी है।

 एमडीएलआर की पूर्व एयर होस्टेस गीतिका शर्मा ने 4 अगस्त की देर रात अशोक विहार फेज-3 स्थित अपने फ्लैट में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी। उनका शव रविवार सुबह उनके परिजनों ने पंखे से उतारा। 2 पेज के सूइसाइड नोट में गीतिका ने हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा और उसी कंपनी की मैनेजर अरुणा चड्ढा पर मानसिक प्रताडऩा का आरोप लगाया था। पुलिस ने दोनों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया। सूइसाइड नोट के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटों बाद कांडा ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि यह उनके खिलाफ कोई राजनैतिक षड्यंत्र का हिस्सा है जबकि गीतिका ने सुसाइड नोट में लिखा है कि कांडा उसका पायाद उठाना चाहते थे।

अनुराधा बाली यानी फिजा की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। फिजा 2008 में उस समय सुर्खियों में आई थीं जब उन्होंने हरियाणा के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री चंद्रमोहन से शादी की थी। दिसंबर 2008 में जब पूरा देश मुंबई के आतंकवादी हमलों से जूझ रहा था ऐसे में हरियाणा की जमीं पर कुछ नया और अनोखा ही पक रहा था। जन्म से हिन्दू चंदर मोहन और अनुराधा ने देश के 2.3 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं पर चोट करते हुए यह घोषणा की कि उन्होंने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है और चांद मोहम्मद और फिजा बन एक दूसरे के साथ निकाह पढ़ लिया है। 43 साल के इस अधेड़ ने इस्लाम कबूलकर दूसरा विवाह रचा लिया क्योंकि उसकी पहली पत्नी जिंदा है उससे उन्हें दो बच्चे भी हैं। पर चंदर उर्फ चांद ने जितने जोर-शोर से अपने निकाह का ऐलान किया था उतनी ही तेजी से वह इससे दूर भी हो गए। इसका कारण था कि उनके पिता ने उनसे सारे अधिकार छीन लिए थे।

चंदर के प्यार में अपनी नौकरी तक दांव पर लगाने वाली फिजा फिर से सुश्री बाली बन अपनी मां के साथ बेरोजगारी में दिन बिताने लगी। उसपर कर्ज बढ़ते जा रहे थे और प्यार की नाकामी का गम भी। इस गम को मिटाने के लिए वह शराब पीने लगी और लोगों से बात बेबात झगडऩे भी लगी। जितना खूबसूरत इस कहानी का आगाज था उतना ही दर्दनाक फिजा यानी अनुराधा का अंत है। अपने 41वें जन्मदिन के 10 दिन बाद 6 अगस्त 2012 को फिजा मरी हुई पाई गईं। उनका शव उनकी मौत के तीसरे दिन बरामद हुआ। उनका खूबसूरत शरीर सड़ चुका था और उसमें कीड़े रेंग रहे थे। शुरूआती जांच के बाद पुलिस ने कहा कि अनुराधा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। पुलिस की यह बात सच मानी जा सकती थी क्योंकि अनुराधा पहले भी आत्महत्या करने की कोशिश कर चुकी है। वह जीवन से निराश भी थी पर फांसी लगाने का बाद उसका शव बिस्तर पर कैसे आया, उसके घर में ढेर सारी शराब की बोतले क्या कर रही थीं और क्यों चद्रमोहन उसका जिक्र तक नहींकरना चाहते जैसे सवाल उसकी मौत को संदिग्ध बनाते हैं।

अपनी भूख शांत करने के बाद हमारे देश के पॉलिटिशियंस ने अपनी इन तथाकथित ‘प्रेमिकाओं’ को ही ठिकाने लगा दिया। उसका न तो इन्हें कभी कोई पछतावा रहा और न ही इनके परविार के सदस्यों को। आज भी इस तरह के गुनाह करने वालों को कोई मुक्कमल सजा नहींमिली है। इनके केस अदालत दर अदालत चल रहे हैं और ये बेशर्मकी तरह जी रहे हैं। इन्हें तो कभी शर्म आएगी नहीं, लेकिन हम जैसे लोगों को भी इनके कारनामे सामने आने के बावजूद शर्म नहीं आती और जब यह वोट की भीख मांगते हुए हमारी चौखट पर आते हैं तो समाज-नैतिकता के नाम पर दुहाई देने वाले हम लोग ही इन्हें चुनकर सत्ता में भेज देते हैं। जब तक लड़कियां अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शार्टकट अपनाती रहेंगी और सियासतदां अपने शरीर की भूख मिटाने के लिए ऐसी महिलाओं और लड़कियों को अपना शिकार बनाते रहेंगे तब तक इस तरह की घटनाएं घटती रहेंगी और सियासत शर्मसार होती रहेगी।

नीलम