Tuesday, June 3, 2014

अडानी की नजर अब छत्तीसगढ़ पर


भले ही लाख तर्क दिए जाएं पर सच यही है कि नरेंद्र मोदी और अडानी काफी करीब है और अब मोदी के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अडानी की शक्ति में भी इजाफा हुआ है। गुजरात के बाद अब अडानी की नजर छत्तीसगढ़ पर है यही कारण है कि उनकी पैरवी पर विष्णुदेव साय केंद्र में मंत्री बने हैं।

यूं तो राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में शामिल चार हजार लोग खास थे, लेकिन उसमें भी चार परिवार बेहद खास थे। औद्योगिक समूह की पहली पंक्ति में शुमार मुकेश अंबानी-नीता, अनिल अंबानी-टीना, अंबानी बंधुओं की मां कोकिला बेन, गौतम अडानी-प्रीति और वॉलीवुड स्टार सलमान खान। अडानी और अंबानी बंधुओं का इस आयोजन में आना महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि महत्वपूर्ण था देश की बागडोर संभालने वाले महारथियों में अडानी का पलड़ा अंबानी से ज्यादा भारी होना। टीम मोदी में एक ऐसा अनजान चेहरा शपथ लिया था, जिसे सुबह तक पता नहीं था कि इस रेस में अडानी ने उस पर दांव लगा दिया है। वहीं, टीम मोदी से एक ऐसा चेहरा गायब था, जिसे लाने के लिए अंबानी ने सारे घोड़े खोल दिए थे। इसमें सबसे चतुर खिलाड़ी नरेन्द्र मोदी थे, जिन्होंने मुकेश अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का रास्ता निकाल लिए थे।
सूत्र बताते हैं कि विष्णु देव साय को मंत्री बनवाने में अडानी की अहम भूमिका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के सबसे वरिष्ठ नेता रमेश बैस को दरकिनार कर मोदी ने साय को मंत्री बनाया। इससे संदेश ये गया जैसे रमन सिंह की सिफारिश पर साय को लिया गया हो, लेकिन कहानी दूसरी है। साय अडानी की पसंद हैं। वैसे तो मंत्री बनाए गए लगभग नेताओं को पता नहीं था कि वह टीम मोदी का हिस्सा बनने वाले हैं, लेकिन साय को खुद को इससे कोसों दूर मानकर चल रहे थे। शपथ-ग्रहण के दिन यानी 26 मई को साय के पास सुबह आठ बजे गुजरात भवन से फोन आता है। नरेंद्र मोदी से बात होती है। उन्हें गुजरात भवन बुलाया जाता है और शाम को शपथ लेने का न्यौता दिया जाता है। इस फैसले से साय खुद हैरान थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने खुद कहा था कि वे मंत्री पद की दौड़ में कहीं नहीं हैं। हालांकि, ये बात हर नेता कहता है, लेकिन साय का कहना इसलिए महत्वपूर्ण है कि साय छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी नेताओं में हैं, जो राजनीति में होते हुए छल-प्रपंच नहीं करते। स्पष्ट बात और सच की स्वीकारोक्ति साय की खासियत है। सूत्र बताते हैं कि साय भी नहीं जानते कि उन्हें ये पद रमन सिंह की मेहरबानी और योग्यता पर नहीं मिला, बल्कि अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। सच की स्वीकारोक्ति विष्णुदेव साय की खासियत है। केंद्र में मंत्री पद मिलना उनकी इस खासियत का ईनाम नहीं, बल्कि अडानी के भरोसे के कारण मिला है। अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, उससे माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। पता चला है कि हाल के दिनों से अडानी की दिलचस्पी छत्तीसगढ़ में कुछ ज्यादा बढ़ गई है। वे छत्तीगसढ़ में कांग्रेस से जुड़े उद्योगपति नवीन जिंदल का किला ध्वस्त कर अपना बर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं। इसको लेकर अंदरूनीतौर पर काफी दिनों से ताना-बाना बुना जा रहा है। उद्योगपतियों और सरकार के बीच सेतु का काम करने वाले अडानी द्वारा छत्तीसगढ़ में एक बड़े खेल की योजना बनाई गई है। बताया गया कि गौतम अडानी के लोग करीब एक माह से रायगढ़ क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राज्य के चार आदिवासी नेताओं के साध कर राज्य में बड़े राजनीतिक उलटफेर का रास्ता तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में दो विपरीत मिजाज वाले आदिवासी नेताओं को साधकर अडानी कैंप की योजना राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तक कराने की है। सूत्र बताते हैं कि अडानी जिस रणनीति से चल रहे हैं, उसमें मोदी का साथ मिलना तय है। हालांकि मोदी चतुर खिलाड़ी हैं, लेकिन अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, मोदी भी उसे नहीं समझ पा रहे। लिहाजा, माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। सूत्रों ने बताया कि अडानी के इस गोपनीय मिशन में राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, रामविचार नेताम, नंद कुमार साय और विष्णुदेव साय को टारगेट किया जा रहा है। अडानी गुट के लोग इन चारों नेताओं को अलग-अलग तरीके से ग्रिप में लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें दो नेता सीएम रमन सिंह के काफी करीबी हैं - रामसेवक पैकरा और विष्णुदेव साय। वहीं, नंद कुमार साय-रामविचार नेताम जैसे रमन सिंह विरोधी नेताओं के जरिए वहां आदिवासी नेतृत्व की मांग को बुलंद कराया जाएगा।
दरअसल, अडानी राज्य में अपने मनमाफिक सीएम को बिठाकर छत्तीसगढ़ का अकेला सम्राट बनने की योजना लेकर चल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सरकारी मशीनरी को सेट करने के साथ छत्तीसगढ़ में स्थापित जिंदल ग्रुप को उखाड़ने की कोशिश में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि जिंदल ग्रुप किसी समय पर भाजपा नेताओं के करीबियों में शुमार था, लेकिन बाद में सत्ता से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के कारण बाहर खड़े होकर भाजपा सरकार के लिए परेशानी पैदा करने लगे। उधर, कोल ब्लॉक घोटाले में भाजपा नेता अजय संचेती और अडानी के ब्लॉक निरस्त कराने में जिंदल की अहम भूमिका मानी जाती है। कहा जाता है कि तभी से अडानी ने मिशन छत्तीसगढ़ की योजना बनाकर वहां अपने दूतों को भेजा और वे दूत पूरी शिद्दत से काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
कहा तो यह भी जा रहा है कि गौतम अडानी को छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच मतभेद का भी लाभ मिल रहा है। सीएम रमन सिंह दोहरी आस्था के कारण संदिग्ध हैं। मोदी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देते। अडानी के मोदी से नजदीकी रिश्ते हैं। अडानी जहां मोदी के साथ मिलकर खेल जमाने में सफल रहे, वहीं मुकेश अंबानी अपना खेल नहीं जमा पाए। सूत्र बताते हैं कि मुकेश अंबानी अरुण शौरी को वित्तमंत्री बनवाना चाहते थे। शौरी उनकी पसंद थे और मोदी को यह बात बताकर उन्हें राजी करने का हरसंभव प्रयास किया गया। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में पहला मौका है, जब मुकेश अंबानी की पसंद को नजरअंदाज कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि मोदी शौरी को कहीं और भले समायोजित कर लें, लेकिन वह ये संदेश देने से बचना चाहते थे कि उनकी टीम में अंबानी के लोग हैं। इसलिए वित्तमंत्री का पद किसी और को देने की बजाय अपने सिपहसालार अरुण जेटली को दिया। हालांकि, अंबानी के लिए ये एक बड़ा झटका कहा जाएगा, क्योंकि इसके पहले हर वित्तमंत्री उनके इशारे पर बनता था। इसमें मजेदार बात ये है कि मोदी ने सारा काम इतनी चतुराई से किया है कि न अडानी को अंबानी की मंशा की भनक लगने दी और न अंबानी को अडानी का खेल पता चलने दिया। मतलब मोदी ने अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का कूटनीतिक रास्ता निकाल जता दिया कि राजनीति में वह कितने उस्ताद हैं।  

नीलम