Thursday, July 23, 2015

निशाने पर कौन

इन दिनों लगातार एक खास वर्ग के बीजेपी नेता चर्चा में बने हुए हैं। ललित मोदी के नाम साथ पहले सुषमा स्वराज, फिर वसुंधरा राजे और फिर न जाने किस किस का नाम जोड़ा गया पर इस मामले में हकीकत से ज्यादा फसाने हैं। दूसरी ओर पकंजा से लेकर शिवराज तक और रमन से लेकर गडकरी तक किसी न किसी मामले में फंसते दिख रहे हैं। कहीं इसका कारण वह राजनीति तो नहीं जिसके बूते हर बार की तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी नाकामियों का ठींकरा दूसरों के सर फोड़ देते हैं। कहीं आगामी चुनाव में होने वाले हार की फनक तो नहीं लग गई मोदी-शाह जिसके लिए माहौल अभी से तैयार किया जा रहा है।

पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी की चर्चा चहुं ओर है। मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी मोदी आईपीएल का कॉन्सेप्ट लाने के साथ-साथ कई वजहों से सुर्खियों में रहे हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी और बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक उनकी अच्छी पैठ है। फिलहाल भले कांग्रेस उनका नाम वसुंधरा राजे, सुषमा स्वराज और दूसरे भाजपाई नेताओं से जोड़ रही हो पर ललित मोदी की माने तो उनके समर्थक हर दल में। भारतीय जनता पार्टी, केन्द्र या राज्य सरकारों के अंदर जो विभिन्न प्रकार के कथित घोटाले और अनियमित्ताओं के चर्चे हो रहे हैं, इसमें सत्यता चाहे जितनी हो, लेकिन प्रचार के पीछे भाजपा की आंतरिक लड़ाई को भी एक पक्ष माना जा सकता है। गौर से देखेंगे तो ये मामले उन्ही लोगों के खिलाफ उठ रहे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं बिहार में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, जो स्थिति बन रही है उसमें बिहार चुनाव भाजपा के लिए बेहद कठिन चुनाव में से एक है।
सबसे पहले ललित गेट की शिकार बनी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज। यदि पूरी भाजपा में देखा जाए तो स्वराज, मोदी की प्रबल विरोधी रही हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले तक स्वराज ने मोदी का जमकर विरोध किया, आज वो भी ललित मोदी प्रकरण वाले मामले में फंसती हुई बताई जा रही हैं। वसुंधरा राजे में कुछ भाजपाइयों को नरेन्द्र मोदी वाला गुण दिखा और उनकी ओर जैसे ही कुछ लोगों का झुकाव हुआ राजे भी टारगेट में आ गई। इस मामले में कांग्रेस सडक़ पर उतरी तो वसुंधरा को घेरने के लिए कुछ दस्तावेज़ पेश किए। 1954 से 2010 तक के सरकारी रिकॉर्ड को दिखा कांग्रेस ने दावा किया कि धौलपुर पैलेस सरकारी सम्पत्ति है और आरोप लगाया कि वसुंधरा राजे ने इस पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से क़ब्ज़ा कर रखा है। ये भी आरोप लगाया कि राजे के बेटे दुष्यंत की कंपनी नियंता होटल हेरिटेज प्राइवेट लिमिटेड में राजे के साथ-साथ ललित मोदी की कंपनी आनंदा का भी शेयर है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का आरोप है कि राजे-भगोड़ा मोदी के बीच कारोबारी रिश्ते हैं। कांग्रेस ने ललित मोदी पर मारीशस की एक फर्जी कंपनी के जरिये मनी लांड्रिंग का आरोप भी लगाया जिसे दुष्यंत की कंपनी में लगाया गया। जयराम रमेश का आरोप है कि इसके जरिए 22 करोड़ आया जिसमें 11 करोड़ नियंता में लगा। धौलपुर पैलेस की मिल्कियत का, लेकिन विवाद रहा है और मामला कोर्ट तक में गया। दुष्यंत के वकील का दावा है कि धौलपुर हाउस उन्हीं के नाम है। बीजेपी ने भी कांग्रेस के आरोप को बेबुनियाद बताया। इसके बाद यह भी तथ्य सामने आया कि ललित मोदी को पद्म पुरस्कार देने की सिफारिश के मामले में राजस्थान कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घेरा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि वसुंधरा राजे और ललित मोदी के घनिष्ठ संबंध रहे हैं। राजे के पूर्व शासन के दौरान 2007 में ललित मोदी को पद्म पुरस्कार देने की सिफारिश करने का मामला उजागर होने के बाद भाजपा एक बार फिर बचाव की मुद्रा में आ गई है। भाजपा के पूर्व शासन के दौरान भ्रष्टाचार को संस्थागत किया गया था और परदे के पीछे से सरकार के कामों में भ्रष्टाचार को पनपाने में सबसे बड़ी भूमिका ललित मोदी की थी। राजे के खिलाफ उजागर हुए मामलों के बाद भी भाजपा नेतृत्व कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। इससे ही साफ होता है कि राजे के पूर्व शासन के दौरान जितनी भी गड़बडिय़ां हुई थीं उसमें भाजपा नेतृत्व और संगठन की सहमति रही है। ललित मोदी के लिए पद्म पुरस्कार की सिफारिश करना राष्ट्रीय पुरस्कार का अपमान है। ललित मोदी प्रकरण के कारण आरोपों से घिरी मुख्यमंत्री राजे अब इस विवाद में फिर उलझ गई हैं। इस मामले में प्रदेश भाजपा की तरफ से कोई सफाई अभी तक नहीं दी गई है। राजे के पूर्व शासन के दौरान खेल परिषद के जरिए 28 जुलाई 2007 को ललित मोदी के लिए पद्म पुरस्कार के लिए सिफारिश की गई थी। सरकार के निर्देश पर खेल परिषद ने ललित मोदी से आवेदन मंगवाया गया था। पद्म पुरस्कार के लिए ललित मोदी के व्यापार और क्रिकेट के खेल को आधार बनाया गया था।
इन सब का जवाब दिया समस्याओं से घिरे और घोटालों के आरोपी आईपीएल के पूर्व प्रमुख ललित मोदी ने अपने विरोधियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हुए सनसनीखेज खुलासों की चेतावनी दी है कि अब चीजों को बाहर लाने की उनकी बारी है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों का नाम लेते हुए मोदी ने अपने कई ट्वीट में दावे किए कि खुलासे बम का गोला साबित होंगे और इसके लपेटे में पूर्ववर्ती पीएमओ भी आएगा। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि अब तथ्यों को सामने रखने का वक्त आ गया है। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, दूसरे खूबसूरत जगह के लिए दूसरे विमान पर सवार होने से पहले यह युद्ध है। मैं युद्ध जीतने के लिए एक लड़ाई हारने को चुना है। सुषमा स्वराज के इस्तीफे के लिए विपक्ष की मांग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, गलत लोगों के इस्तीफे की मांग की जा रही है। मैं आपको आश्वस्त करना चाहूंगा कि तूफान आने वाला है।
खैर ललित की बात को दरकिनार करके सोचते हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा के लिए या भाजपा का यह संघर्ष आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। इन दिनों भाजपा के अंदर भौतिक द्वन्द्व भी चल रहा है, जो चरम की ओर बढ़ेगा क्योंकि जहां सबसे ज्यादा व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है, वही वह सबसे ज्यादा असुरक्षित भी होता है। फिलहाल भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को संभवत: भरोसा हो गया है कि बिहार का चुनाव वे हार भी सकते हैं। यदि बिहार के चुनाव में भाजपा की हार हुई तो उसे सीधे प्रधानमंत्री की कार्यशैली और अध्यक्ष के सांगठनिक कौशल से जोडक़र देखा जाने वाला था, लेकिन उससे पहले ही घोटालों और अनियमित्ताओं का प्रचार प्रारंभ हो गया है। निश्चित ही यह भी संभव है कि बिहार चुनाव में भाजपा हार जाए। या परिणाम दिल्ली जैसे हों। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को बचाने वाली कॉरपोरेट मीडिया भाजपा के नेताओं के ऊपर लग रहे दाग को व्यापक तरीके से प्रचारित कर रही है क्योंकि यदि बिहार चुनाव में भाजपा की हार हुई, तो उसका ठीकरा कथित घोटालेबाज और अनियमित्ता करने वालों पर फोड़ा जा सके। हां, एक बात और है कि मोदी समर्थक कॉरपोरेट, मोदी के समकक्ष अन्य किसी भाजपा नेता को खड़ा नहीं होने देना चाहते हैं। लिहाजा मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं। व्यापमं में फस रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बारे में भी कहा जाता है कि वे भी अत्यंत पिछड़ी जाति के हैं और मोदी वाली संभावना भी उनमें दिखती है। अब इन घोटालों और अनियमित्ताओं के प्रचार ने मोदी की कार्यशैली एवं शाह के संगठन कौशल पर प्रश्न खड़ा नहीं होगा। अब प्रचारित यह किया जाएगा कि बिहार एवं बंगाल की हार के लिए घोटाले एवं अनियमित्ता वाले नेता जिम्मेवार हैं, न कि मोदी की जनविरोधी नीतियां और शाह का संगठन कौशल। इसलिए कुल मिलाकर कहा जाए तो नरेन्द्र भाई और अमित भाई, बड़ी बारीकी से भाजपा के खिलाफ हो रहे प्रचार को अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने एवं अपने फायदे के रूप में उपयोग करने में सफल हो रहे हैं, ऐसा कहना गलत नहीं होगा।
फिलहाल कांग्रेस की रणनीति साफ है। मोदी के मंत्रियों और राजस्थान की मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े की मांग को लेकर 20 जुलाई तक वो यूं ही रुक-रुक कर खेलती रहेगी। संसद का सत्र शुरू होते ही लंबे शाट्स खेलेगी। लेकिन इसके लिए कांग्रेस को आम आदमी पार्टी समेत तमाम विपक्षी पार्टियों का साथ चाहिए होगा जो उसको मिल सकता है। यानी कहना गलत न होगा कि चाहे संसद हो या सडक़ जवाब भाजपा को ही देना होगा।


निशाना किसका?
सवाल यह है कि भाजपा इस तरह जो आरोपों से घिर रही है उसके पीछे हैं कौन? क्योंकि मामला सुषमा, वसुंधरा, स्मृति और पकंजा पर खत्म नहीं हुआ बल्कि शिवराज और रमन सिंह भी इसकी जद में हैं। तीन बार मुख्यमंत्री रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर भी चावल घाटाले का आरोप लगने लगा है। उन्हें भी प्रधानमंत्री मटेरियल बताया जा रहा है और उन्हें भी कुछ लोग मोदी के विकल्प के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के ऊपर आरोपों की झड़ी लग चुकी है और कई मामले में केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली पर भी निशाना साधा जा रहा है। इधर, महाराष्ट्र के प्रभावशाली नेता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु हो चुकी है और उनकी बेटी पंकजा के ऊपर अनियमित्ता का आरोप है। ऐसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विद्यार्थी शाखा के लोकप्रिय नेता रहे मराठा क्षेत्र के प्रभावशाली नेता विनोद तावडे के खिलाफ भी मामला उछल रहा है। वे भी प्रधानमंत्री मटेरियल के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे थे। इधर, संघ के चहेते भाजपा नेता नितिन गडकरी के खिलाफ कई मामले लंबित हैं। उन्हें भी प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जा रहा था। संघ ने तो डंके की चोट पर महाराष्ट्र से सीधे उन्हें दिल्ली लाकर बिठा दिया, लेकिन कई घोटालों में नाम आने के बाद इन दिनों संघ भी चुप्पी साधे हुए है। अंत में अति ईमानदार छवि वाले गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिर्कर को आनन-फानन में केन्द्रीय प्रतिरक्षा मंत्री बनाया गया और नरेन्द्र मोदी के विकल्प की संभावना उनमें तलाशी जाने लगी। इस बीच सुना है कि उनके खिलाफ भी चुनाव के दौरान अपनी शिक्षा के विषय में चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का आरोप लग रहा है। यानी जिन भाजपा नेताओं में प्रधानमंत्री के विकल्प की छवि दिखाई दे रही है, उन्ही के खिलाफ अनियमित्ता का आरोप प्रचारित हो रहा है। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कई संयोग एक साथ सामने आए तो उसे षड्यंत्र मान लेना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा के अंदर मोदी समर्थकों को बारिकी से बचाया जा रहा है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी के मामले को लगातार मीडिया में दबाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। खुद अमित शाह कई मामलों में फंसे रहे हैं, लेकिन उनको मीडिया बड़ी तसल्ली से बचा रही है। इसका संकेत साफ है कि भाजपा के अंदर सत्ता का संघर्ष बड़ी तेजी से विस्तार प्राप्त कर रहा है। इन दिनों जब भाजपा नेताओं पर घोटालों और अनियमित्ताओं का आरोप प्रचारित हो रहा है, तो साफ-साफ भाजपा के दो गुटों के आपसी द्वन्द्व, जो परोक्ष रूप में था वह प्रत्यक्ष होने लगा है।

Tuesday, June 3, 2014

अडानी की नजर अब छत्तीसगढ़ पर


भले ही लाख तर्क दिए जाएं पर सच यही है कि नरेंद्र मोदी और अडानी काफी करीब है और अब मोदी के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अडानी की शक्ति में भी इजाफा हुआ है। गुजरात के बाद अब अडानी की नजर छत्तीसगढ़ पर है यही कारण है कि उनकी पैरवी पर विष्णुदेव साय केंद्र में मंत्री बने हैं।

यूं तो राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ समारोह में शामिल चार हजार लोग खास थे, लेकिन उसमें भी चार परिवार बेहद खास थे। औद्योगिक समूह की पहली पंक्ति में शुमार मुकेश अंबानी-नीता, अनिल अंबानी-टीना, अंबानी बंधुओं की मां कोकिला बेन, गौतम अडानी-प्रीति और वॉलीवुड स्टार सलमान खान। अडानी और अंबानी बंधुओं का इस आयोजन में आना महत्वपूर्ण नहीं था, बल्कि महत्वपूर्ण था देश की बागडोर संभालने वाले महारथियों में अडानी का पलड़ा अंबानी से ज्यादा भारी होना। टीम मोदी में एक ऐसा अनजान चेहरा शपथ लिया था, जिसे सुबह तक पता नहीं था कि इस रेस में अडानी ने उस पर दांव लगा दिया है। वहीं, टीम मोदी से एक ऐसा चेहरा गायब था, जिसे लाने के लिए अंबानी ने सारे घोड़े खोल दिए थे। इसमें सबसे चतुर खिलाड़ी नरेन्द्र मोदी थे, जिन्होंने मुकेश अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का रास्ता निकाल लिए थे।
सूत्र बताते हैं कि विष्णु देव साय को मंत्री बनवाने में अडानी की अहम भूमिका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के सबसे वरिष्ठ नेता रमेश बैस को दरकिनार कर मोदी ने साय को मंत्री बनाया। इससे संदेश ये गया जैसे रमन सिंह की सिफारिश पर साय को लिया गया हो, लेकिन कहानी दूसरी है। साय अडानी की पसंद हैं। वैसे तो मंत्री बनाए गए लगभग नेताओं को पता नहीं था कि वह टीम मोदी का हिस्सा बनने वाले हैं, लेकिन साय को खुद को इससे कोसों दूर मानकर चल रहे थे। शपथ-ग्रहण के दिन यानी 26 मई को साय के पास सुबह आठ बजे गुजरात भवन से फोन आता है। नरेंद्र मोदी से बात होती है। उन्हें गुजरात भवन बुलाया जाता है और शाम को शपथ लेने का न्यौता दिया जाता है। इस फैसले से साय खुद हैरान थे। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने खुद कहा था कि वे मंत्री पद की दौड़ में कहीं नहीं हैं। हालांकि, ये बात हर नेता कहता है, लेकिन साय का कहना इसलिए महत्वपूर्ण है कि साय छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी नेताओं में हैं, जो राजनीति में होते हुए छल-प्रपंच नहीं करते। स्पष्ट बात और सच की स्वीकारोक्ति साय की खासियत है। सूत्र बताते हैं कि साय भी नहीं जानते कि उन्हें ये पद रमन सिंह की मेहरबानी और योग्यता पर नहीं मिला, बल्कि अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। सच की स्वीकारोक्ति विष्णुदेव साय की खासियत है। केंद्र में मंत्री पद मिलना उनकी इस खासियत का ईनाम नहीं, बल्कि अडानी के भरोसे के कारण मिला है। अडानी ने यह पद दिलाकर उन पर बड़ा दांव खेला है। अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, उससे माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। पता चला है कि हाल के दिनों से अडानी की दिलचस्पी छत्तीसगढ़ में कुछ ज्यादा बढ़ गई है। वे छत्तीगसढ़ में कांग्रेस से जुड़े उद्योगपति नवीन जिंदल का किला ध्वस्त कर अपना बर्चस्व बढ़ाना चाहते हैं। इसको लेकर अंदरूनीतौर पर काफी दिनों से ताना-बाना बुना जा रहा है। उद्योगपतियों और सरकार के बीच सेतु का काम करने वाले अडानी द्वारा छत्तीसगढ़ में एक बड़े खेल की योजना बनाई गई है। बताया गया कि गौतम अडानी के लोग करीब एक माह से रायगढ़ क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राज्य के चार आदिवासी नेताओं के साध कर राज्य में बड़े राजनीतिक उलटफेर का रास्ता तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में दो विपरीत मिजाज वाले आदिवासी नेताओं को साधकर अडानी कैंप की योजना राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तक कराने की है। सूत्र बताते हैं कि अडानी जिस रणनीति से चल रहे हैं, उसमें मोदी का साथ मिलना तय है। हालांकि मोदी चतुर खिलाड़ी हैं, लेकिन अडानी जिस तरह की गोटी बिछा रहे हैं, मोदी भी उसे नहीं समझ पा रहे। लिहाजा, माना जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में छत्तीगसढ़ में चेहरा बदल सकता है। सूत्रों ने बताया कि अडानी के इस गोपनीय मिशन में राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, रामविचार नेताम, नंद कुमार साय और विष्णुदेव साय को टारगेट किया जा रहा है। अडानी गुट के लोग इन चारों नेताओं को अलग-अलग तरीके से ग्रिप में लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें दो नेता सीएम रमन सिंह के काफी करीबी हैं - रामसेवक पैकरा और विष्णुदेव साय। वहीं, नंद कुमार साय-रामविचार नेताम जैसे रमन सिंह विरोधी नेताओं के जरिए वहां आदिवासी नेतृत्व की मांग को बुलंद कराया जाएगा।
दरअसल, अडानी राज्य में अपने मनमाफिक सीएम को बिठाकर छत्तीसगढ़ का अकेला सम्राट बनने की योजना लेकर चल रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सरकारी मशीनरी को सेट करने के साथ छत्तीसगढ़ में स्थापित जिंदल ग्रुप को उखाड़ने की कोशिश में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि जिंदल ग्रुप किसी समय पर भाजपा नेताओं के करीबियों में शुमार था, लेकिन बाद में सत्ता से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के कारण बाहर खड़े होकर भाजपा सरकार के लिए परेशानी पैदा करने लगे। उधर, कोल ब्लॉक घोटाले में भाजपा नेता अजय संचेती और अडानी के ब्लॉक निरस्त कराने में जिंदल की अहम भूमिका मानी जाती है। कहा जाता है कि तभी से अडानी ने मिशन छत्तीसगढ़ की योजना बनाकर वहां अपने दूतों को भेजा और वे दूत पूरी शिद्दत से काम को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
कहा तो यह भी जा रहा है कि गौतम अडानी को छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और नरेंद्र मोदी के बीच मतभेद का भी लाभ मिल रहा है। सीएम रमन सिंह दोहरी आस्था के कारण संदिग्ध हैं। मोदी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देते। अडानी के मोदी से नजदीकी रिश्ते हैं। अडानी जहां मोदी के साथ मिलकर खेल जमाने में सफल रहे, वहीं मुकेश अंबानी अपना खेल नहीं जमा पाए। सूत्र बताते हैं कि मुकेश अंबानी अरुण शौरी को वित्तमंत्री बनवाना चाहते थे। शौरी उनकी पसंद थे और मोदी को यह बात बताकर उन्हें राजी करने का हरसंभव प्रयास किया गया। लेकिन पिछले डेढ़ दशक में पहला मौका है, जब मुकेश अंबानी की पसंद को नजरअंदाज कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि मोदी शौरी को कहीं और भले समायोजित कर लें, लेकिन वह ये संदेश देने से बचना चाहते थे कि उनकी टीम में अंबानी के लोग हैं। इसलिए वित्तमंत्री का पद किसी और को देने की बजाय अपने सिपहसालार अरुण जेटली को दिया। हालांकि, अंबानी के लिए ये एक बड़ा झटका कहा जाएगा, क्योंकि इसके पहले हर वित्तमंत्री उनके इशारे पर बनता था। इसमें मजेदार बात ये है कि मोदी ने सारा काम इतनी चतुराई से किया है कि न अडानी को अंबानी की मंशा की भनक लगने दी और न अंबानी को अडानी का खेल पता चलने दिया। मतलब मोदी ने अंबानी को नाराज किए बिना अडानी को खुश करने का कूटनीतिक रास्ता निकाल जता दिया कि राजनीति में वह कितने उस्ताद हैं।  

Wednesday, December 12, 2012

छाया नशा 12-12 12 का


12-12-12 का आंकड़ा सौ साल बाद आएगा इसलिए इस दिन को युवावर्ग भाग्यशाली मान रहा है। फिर चाहे हो वो आम लोग हो या ज्योतिष सभी के अनुसार 12-12-12 का ये आंकड़ा अपने आप में अदभुत है। यही कारण कारण है कि शादी से लेकर बच्चे के जन्म और नई नौकरी ज्वाइन करने से लेकर कोई भी नया काम करने के लिए लोग इस दिन का बेकरारी से इंतजार कर रहे हैं।

जिस तरह पिछले साल 11-11-11 की तारीख को लेकर लोग खासकर युवा पागल थे उसी तरह इस साल 12-12-12 के जादुई तारीख को लेकर भी युवाओं का जुनून देखते ही बन रहा है। इस तारीख का जादू हर किसी के सिर चढ़ कर बोल रहा है। देश भर में लोग इस दिन को यादगार बनाने का मन बना रहे है, जिन के घरो में नवजात आने वाला है वो लोग किसी भी तरह अपने घरो के चिराग को इसी अदभुत योग नक्षत्र की घड़ी में जन्म देना चाहते है, कुछ माएं तो असहनीय प्रसव पीड़ा को 24 घंटे ओर सहने को तैयार है। साथ ही युवा जोड़े इस दिन शादी करने के लिए जहां अदालतों में रजिस्ट्री करवा चुके हैं वहींइस दिन के लिए पंडितों व ज्योतिषाचर्यो से खास मुहूर्त भी निकलवाया जा रहा है।

यादगार बनाने की होड़
इस महीने 12-12-12 की खास तिथि को कई लोग अपने-अपने तरीके से यादगार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कोई इस दिन विवाह, तो कोई नन्हे मेहमान को घर लाने की तैयारी में है। वहीं युवा इस दिन को पार्टी के साथ सेलिब्रेट कर रहे हैं। 12 दिसंबर यानी 12-12-12 को शहर के कई लोग खास तिथि के रूप में देख रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं कि उस दिन उनकी जिंदगी में कोई ऐसी चीज हो, जो हमेशा के लिए यादगार बन जाये। यही वजह है कि लोग अपने घर में नया मेहमान लाने के लिए भी इस तारीख को चुन रहे हैं। कई बड़े अस्पतालों के डॉक्टर्स के अनुसार जिन महिलाओं की डिलीवरी डेट दिसंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में है, वे अपना ऑपरेशन 12 दिसंबर को कराने की इच्छा जता रही हैं। वैसे तो इस दिन हिंदुओं में पारंपरिक रीति-रिवाज से शादी का कोई मुहूर्त नहीं है। पर कई जोडिय़ां इस खास दिन पर कोर्ट मैरिज या फेरों के साथ शादी करने के लिए तैयार हैं। कई लोग अपने नए शाप को इसी दिन इसे लांच करने की योजना बना चुके हैं। वो सभी 12 दिसंबर को ही अपने शॉप की शुरुआत करना चाहते हैं ताकि सभी के लिए ये दिन यादगार बन जाए। जिनका जन्मदिन 12 दिसंबर को आता है वो भी इस खास तारीख को यादगार बनाना चाहते हैं। कुछ युवा इस खास दिन को पार्टी करके सेलिब्रेट करने की तैयारी की है। कुल मिलाकर कोई भी इस तारीख को यूं ही नहींजाने देना चाहता है।

गूंजेगी शादी की शहनाई
हर जोड़ें का बस यही सपना होता है कि उनकी शादी इतनी यादगार बने कि सालों तक लोग इसे याद रखें। अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए इस साल सैकड़ों जोड़ों ने एक अनोखी तारीख के दिन सात जन्मों के इस बंधन में बंधने की प्लैनिंग की है। ये तारीख है इस साल दिसंबर के महीने में 12 तारीख जो एक अनोखा योग बना रही है। इस बेहद अनोखी तारीख को कई कपल अपने जीवन का सबसे यादगार दिन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। भले ही हिंदू धर्म के अनुसार इस तारीख को कोई शादी का साया नहीं पड़ रहा है। लेकिन कई जोड़े इस डेट को शादी करने के लिए पंडित जी के पंचांग को छोड़ न्यूमेरोलॉजिस्ट की सहायता ले रहे हैं। जो लोग इस दिन शादी करने वाले हैं उनका मानना है कि शादी जीवन का एक ऐसा उत्सव है जो हमेशा यादगार रहता है। ऐसे में ये तारीख एक स्पेशल दिन को और भी स्पेशल बना देगी।  हालांकि इस तारीख को कोई शुभ मुहूर्त तो नहीं हैं, पर अंक विज्ञान के अनुसार 12-12-12 यानी 3 3 3= 9 होता है। ये तारीख मंगल कार्य के लिए उत्तम है। लेकिन ज्योतिष की माने तो ये भी देखना पड़ेगा कि जिन कपल का आपसी तालमेल मंगल के कारण बिगड़ रहा है, उनको ये तारीख नहीं अपनानी चाहिए।

नन्हे मेहमान को लाने का जुनून
पटेल अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. शमा बत्रा कहती हैं कि कभी गाडिय़ों के वीआईपी नंबर के लिए मारामारी होती थी। इसके बाद मोबाइल नंबर की बारी आई लेकिन अब एक तय तारीख पर बच्चा पैदा करने की तैयारी जोरों पर है। फिलहाल हर जगह बच्चों की पैदाइश इस तय तारीख पर कराने के लिए बुकिंग की लाइन लग रही है और ये तारीख है 12-12-12। तय तारीख पर डिलीवरी कराने की ये प्रकिया मुश्किल ही नहीं कभी कभी खतरनाक भी साबित हो सकता है। जिन महिलाओं की पहली डिलीवरी है, उनको तों खास तौर पर इस तरह की तारीखों पर बच्चे पैदा कराने पर डॉक्टर साफ मना भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं यदि उनके परिजनों की भी काउंसलिंग की जा रही है। डॉक्टर इस बात पर खास गौर कर रहे हैं कि मां ने कम से कम 38 हफ्ते पूरे कर लिए हों। कई डॉक्टर इस तरह के ऑफरेशन से साफ मना कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रकृति को उसका काम करने दिया जाना चाहिए। ऐसी मांग करने वाली कुछ माओं को तो सख्त हिदायत दी गई है कि वो अपना जुनून छोड़ दें क्योंकि वक्त से पहले या बाद में बच्चे की पैदाइश में जच्चा-बच्चा के साथ ऑपरेशन के दौरान भी और बाद में भी पैदा बच्चे में गड़बड़ी की आशंका रहती है। पर फिर भी बच्चों की किस्मत को चार चांद लगाने के लिए लोग तारीखों का चुनाव खुद कर रहे हैं। कोशिशे ये हैं कि बच्चा तय शुदा तारीख पर ही पैदा हो इसके लिए इस बार 12 के तिलिस्म को तरजीह दी गई है। इसे शुभ माना जा रहा है। मानना है कि ये बच्चे के लिए शुभ होगा। अंक ज्योतिष के अनुसार बच्चे का इस तारीख को जन्म उसके पुरे जीवन के लए शुभ होगा। उसके व्यवहार से लेकर कैरियर की कामयाबियों तक उसकी जन्म तारीख उसके लिए भाग्यशाली साबित होगा।

ऐसी दीवानगी ठीक नहीं
मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख कहते हैं कि 12-12-12 जैसी अनोखी तारीख देखने में ये संख्या जितनी रोचक और आकर्षक लग रही है, उतना ही युवाओं को भटकाने वाली भी है। इस संख्या का प्रभाव इतना है कि जिन युवाओं का विवाह निर्धारित हो चुका है वो इसी दिन विवाह करना चाह रहे हैं। इस तिथि के प्रति लोग इतने उत्सुक हैं कि पंडितों या शुभ मुहूर्त का भी ख्याल नहीं कर रहे हैं। अगर 12-12-12 के प्रति आकर्षण का कारण सिर्फ रोचकता होता तो फिर भी इसे हम उत्सुक युवाओं की सोच कह सकते थे लेकिन हैरानी वाली बात ये है कि युवाओं के मस्तिष्क में ये सोच भी अपनेआप ही अवतरित नहीं हुई बल्कि इस मानसिकता पर भी न्यूमरोलॉजी का पूरा प्रभाव है। इस रोचकता को भी ज्योतिषीय कोण के आधार पर देखा जाए तो समझ में आ जाएगा कि हमारे युवा कितने फ्री माइंडेड और अंध-विश्वास के दूर रहने वाले हैं। कथनों से प्रभावित होकर ही युवा 12-12-12 को विवाह करने या फिर संतान को दुनियां में लाने के लिए बहुत जागरुक और उत्सुक हो गए हैं। कई महीनों पहले ही लोगों ने विवाह के लिए स्थान सहित सभी जरूरी प्रबंध कर लिए हैं। वहीं महिलाओं ने इसी दिन अपने बच्चे को जन्म देने के लिए डॉक्टरों से समय ले लिया है लेकिन क्या किसी विशेष तारीख पर विवाह करने या जन्म लेने वाले व्यक्तियों के सफल और खुशहाल जीवन की गारंटी ली जा सकती है? कुल मिलाकर इसे एक तरह का अंधविश्वास ही कहेगे जिसके रौ में बहुतायत में युवा बह रहे हैं।

ज्योतिषी मान रहे हैं शुभ
ज्योतिषाचार्य पं. संजीव शर्मा की माने तो 12-12-12 का ये आंकड़ा अपने आप में अदभुत है और ज्योतिष के हर अंग के अनुसार ये तिथि चमत्कारी है। इस दिन का नक्षत्र, योग अपने आप में अदभुत है और 12-12-12 साल का आखिरी अनूठा संयोग है। अगला अनूठा संयोग 100 साल बाद आयेगा। इस दिन जन्म लेनेवाले बच्चे भविष्य में कभी असफल नहीं होंगे। इन बच्चों का मूलांक तीन और भाग्यांक दो रहेगा। ये किसी भी विषम परिस्थिति में सामना आसानी से कर सकेंगे क्योंकि ये हर बात पर अडिग रहनेवाले होंगे। इसलिए जो भी लक्ष्य निर्धारित करेंगे, उसे वे हासिल भी करेंगे। 12 में एक और दो है। इसलिए इसका मूलांक एक जोड़ दो यानी तीन होता है। तीन मूलांक का कारक बृहस्पति होता है। बृहस्पति के प्रभाव से ये संयोग बहुत ही शुभ साबित होता है। ऐसे अंक वाले जातक अलग पहचान, अलग व्यक्तिव रखते हैं। वे उच्च आकांक्षावाले होते हैं। इस योग में अब्राहम लिंकन, चर्चिल, चाल्र्स रॉबर्ट जैसे महान लोगों का जन्म हुआ था। पर विवाह के लिए इस दिन कोई मुहूर्त नहींहै। अंकशास्त्री पं. रूपेश जैन कहते हैं कि 12-12-12 की तिकड़ी व्यक्ति के जीवन में ठहराव और सामंजस्य ला सकती है। हिंदू नक्षत्रों के आधार पर न्यूमरोलॉजी को अध्यात्म से जोडक़र भी देखा जा रहा है। ये दिन आपके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकता है। वे जोड़े जो इस दिन विवाह बंधन में बंधेंगे या जो जन्म लेंगे उनको दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होगा और वे एक खुशहाल जीवन जी पाएंगे।

नीलम