पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी की चर्चा चहुं ओर है। मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी मोदी आईपीएल का कॉन्सेप्ट लाने के साथ-साथ कई वजहों से सुर्खियों में रहे हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी और बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक उनकी अच्छी पैठ है। फिलहाल भले कांग्रेस उनका नाम वसुंधरा राजे, सुषमा स्वराज और दूसरे भाजपाई नेताओं से जोड़ रही हो पर ललित मोदी की माने तो उनके समर्थक हर दल में। भारतीय जनता पार्टी, केन्द्र या राज्य सरकारों के अंदर जो विभिन्न प्रकार के कथित घोटाले और अनियमित्ताओं के चर्चे हो रहे हैं, इसमें सत्यता चाहे जितनी हो, लेकिन प्रचार के पीछे भाजपा की आंतरिक लड़ाई को भी एक पक्ष माना जा सकता है। गौर से देखेंगे तो ये मामले उन्ही लोगों के खिलाफ उठ रहे हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। यही नहीं बिहार में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, जो स्थिति बन रही है उसमें बिहार चुनाव भाजपा के लिए बेहद कठिन चुनाव में से एक है।
सबसे पहले ललित गेट की शिकार बनी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज। यदि पूरी भाजपा में देखा जाए तो स्वराज, मोदी की प्रबल विरोधी रही हैं। प्रधानमंत्री बनने से पहले तक स्वराज ने मोदी का जमकर विरोध किया, आज वो भी ललित मोदी प्रकरण वाले मामले में फंसती हुई बताई जा रही हैं। वसुंधरा राजे में कुछ भाजपाइयों को नरेन्द्र मोदी वाला गुण दिखा और उनकी ओर जैसे ही कुछ लोगों का झुकाव हुआ राजे भी टारगेट में आ गई। इस मामले में कांग्रेस सडक़ पर उतरी तो वसुंधरा को घेरने के लिए कुछ दस्तावेज़ पेश किए। 1954 से 2010 तक के सरकारी रिकॉर्ड को दिखा कांग्रेस ने दावा किया कि धौलपुर पैलेस सरकारी सम्पत्ति है और आरोप लगाया कि वसुंधरा राजे ने इस पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से क़ब्ज़ा कर रखा है। ये भी आरोप लगाया कि राजे के बेटे दुष्यंत की कंपनी नियंता होटल हेरिटेज प्राइवेट लिमिटेड में राजे के साथ-साथ ललित मोदी की कंपनी आनंदा का भी शेयर है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का आरोप है कि राजे-भगोड़ा मोदी के बीच कारोबारी रिश्ते हैं। कांग्रेस ने ललित मोदी पर मारीशस की एक फर्जी कंपनी के जरिये मनी लांड्रिंग का आरोप भी लगाया जिसे दुष्यंत की कंपनी में लगाया गया। जयराम रमेश का आरोप है कि इसके जरिए 22 करोड़ आया जिसमें 11 करोड़ नियंता में लगा। धौलपुर पैलेस की मिल्कियत का, लेकिन विवाद रहा है और मामला कोर्ट तक में गया। दुष्यंत के वकील का दावा है कि धौलपुर हाउस उन्हीं के नाम है। बीजेपी ने भी कांग्रेस के आरोप को बेबुनियाद बताया। इसके बाद यह भी तथ्य सामने आया कि ललित मोदी को पद्म पुरस्कार देने की सिफारिश के मामले में राजस्थान कांग्रेस ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घेरा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि वसुंधरा राजे और ललित मोदी के घनिष्ठ संबंध रहे हैं। राजे के पूर्व शासन के दौरान 2007 में ललित मोदी को पद्म पुरस्कार देने की सिफारिश करने का मामला उजागर होने के बाद भाजपा एक बार फिर बचाव की मुद्रा में आ गई है। भाजपा के पूर्व शासन के दौरान भ्रष्टाचार को संस्थागत किया गया था और परदे के पीछे से सरकार के कामों में भ्रष्टाचार को पनपाने में सबसे बड़ी भूमिका ललित मोदी की थी। राजे के खिलाफ उजागर हुए मामलों के बाद भी भाजपा नेतृत्व कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। इससे ही साफ होता है कि राजे के पूर्व शासन के दौरान जितनी भी गड़बडिय़ां हुई थीं उसमें भाजपा नेतृत्व और संगठन की सहमति रही है। ललित मोदी के लिए पद्म पुरस्कार की सिफारिश करना राष्ट्रीय पुरस्कार का अपमान है। ललित मोदी प्रकरण के कारण आरोपों से घिरी मुख्यमंत्री राजे अब इस विवाद में फिर उलझ गई हैं। इस मामले में प्रदेश भाजपा की तरफ से कोई सफाई अभी तक नहीं दी गई है। राजे के पूर्व शासन के दौरान खेल परिषद के जरिए 28 जुलाई 2007 को ललित मोदी के लिए पद्म पुरस्कार के लिए सिफारिश की गई थी। सरकार के निर्देश पर खेल परिषद ने ललित मोदी से आवेदन मंगवाया गया था। पद्म पुरस्कार के लिए ललित मोदी के व्यापार और क्रिकेट के खेल को आधार बनाया गया था।
इन सब का जवाब दिया समस्याओं से घिरे और घोटालों के आरोपी आईपीएल के पूर्व प्रमुख ललित मोदी ने अपने विरोधियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हुए सनसनीखेज खुलासों की चेतावनी दी है कि अब चीजों को बाहर लाने की उनकी बारी है। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के कई वरिष्ठ मंत्रियों का नाम लेते हुए मोदी ने अपने कई ट्वीट में दावे किए कि खुलासे बम का गोला साबित होंगे और इसके लपेटे में पूर्ववर्ती पीएमओ भी आएगा। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि अब तथ्यों को सामने रखने का वक्त आ गया है। एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, दूसरे खूबसूरत जगह के लिए दूसरे विमान पर सवार होने से पहले यह युद्ध है। मैं युद्ध जीतने के लिए एक लड़ाई हारने को चुना है। सुषमा स्वराज के इस्तीफे के लिए विपक्ष की मांग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, गलत लोगों के इस्तीफे की मांग की जा रही है। मैं आपको आश्वस्त करना चाहूंगा कि तूफान आने वाला है।
खैर ललित की बात को दरकिनार करके सोचते हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा के लिए या भाजपा का यह संघर्ष आने वाले दिनों में और बढ़ेगा। इन दिनों भाजपा के अंदर भौतिक द्वन्द्व भी चल रहा है, जो चरम की ओर बढ़ेगा क्योंकि जहां सबसे ज्यादा व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है, वही वह सबसे ज्यादा असुरक्षित भी होता है। फिलहाल भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को संभवत: भरोसा हो गया है कि बिहार का चुनाव वे हार भी सकते हैं। यदि बिहार के चुनाव में भाजपा की हार हुई तो उसे सीधे प्रधानमंत्री की कार्यशैली और अध्यक्ष के सांगठनिक कौशल से जोडक़र देखा जाने वाला था, लेकिन उससे पहले ही घोटालों और अनियमित्ताओं का प्रचार प्रारंभ हो गया है। निश्चित ही यह भी संभव है कि बिहार चुनाव में भाजपा हार जाए। या परिणाम दिल्ली जैसे हों। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को बचाने वाली कॉरपोरेट मीडिया भाजपा के नेताओं के ऊपर लग रहे दाग को व्यापक तरीके से प्रचारित कर रही है क्योंकि यदि बिहार चुनाव में भाजपा की हार हुई, तो उसका ठीकरा कथित घोटालेबाज और अनियमित्ता करने वालों पर फोड़ा जा सके। हां, एक बात और है कि मोदी समर्थक कॉरपोरेट, मोदी के समकक्ष अन्य किसी भाजपा नेता को खड़ा नहीं होने देना चाहते हैं। लिहाजा मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं। व्यापमं में फस रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के बारे में भी कहा जाता है कि वे भी अत्यंत पिछड़ी जाति के हैं और मोदी वाली संभावना भी उनमें दिखती है। अब इन घोटालों और अनियमित्ताओं के प्रचार ने मोदी की कार्यशैली एवं शाह के संगठन कौशल पर प्रश्न खड़ा नहीं होगा। अब प्रचारित यह किया जाएगा कि बिहार एवं बंगाल की हार के लिए घोटाले एवं अनियमित्ता वाले नेता जिम्मेवार हैं, न कि मोदी की जनविरोधी नीतियां और शाह का संगठन कौशल। इसलिए कुल मिलाकर कहा जाए तो नरेन्द्र भाई और अमित भाई, बड़ी बारीकी से भाजपा के खिलाफ हो रहे प्रचार को अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने एवं अपने फायदे के रूप में उपयोग करने में सफल हो रहे हैं, ऐसा कहना गलत नहीं होगा।
फिलहाल कांग्रेस की रणनीति साफ है। मोदी के मंत्रियों और राजस्थान की मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े की मांग को लेकर 20 जुलाई तक वो यूं ही रुक-रुक कर खेलती रहेगी। संसद का सत्र शुरू होते ही लंबे शाट्स खेलेगी। लेकिन इसके लिए कांग्रेस को आम आदमी पार्टी समेत तमाम विपक्षी पार्टियों का साथ चाहिए होगा जो उसको मिल सकता है। यानी कहना गलत न होगा कि चाहे संसद हो या सडक़ जवाब भाजपा को ही देना होगा।
निशाना किसका?
सवाल यह है कि भाजपा इस तरह जो आरोपों से घिर रही है उसके पीछे हैं कौन? क्योंकि मामला सुषमा, वसुंधरा, स्मृति और पकंजा पर खत्म नहीं हुआ बल्कि शिवराज और रमन सिंह भी इसकी जद में हैं। तीन बार मुख्यमंत्री रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह पर भी चावल घाटाले का आरोप लगने लगा है। उन्हें भी प्रधानमंत्री मटेरियल बताया जा रहा है और उन्हें भी कुछ लोग मोदी के विकल्प के रूप में उभारने की कोशिश कर रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के ऊपर आरोपों की झड़ी लग चुकी है और कई मामले में केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली पर भी निशाना साधा जा रहा है। इधर, महाराष्ट्र के प्रभावशाली नेता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु हो चुकी है और उनकी बेटी पंकजा के ऊपर अनियमित्ता का आरोप है। ऐसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विद्यार्थी शाखा के लोकप्रिय नेता रहे मराठा क्षेत्र के प्रभावशाली नेता विनोद तावडे के खिलाफ भी मामला उछल रहा है। वे भी प्रधानमंत्री मटेरियल के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे थे। इधर, संघ के चहेते भाजपा नेता नितिन गडकरी के खिलाफ कई मामले लंबित हैं। उन्हें भी प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जा रहा था। संघ ने तो डंके की चोट पर महाराष्ट्र से सीधे उन्हें दिल्ली लाकर बिठा दिया, लेकिन कई घोटालों में नाम आने के बाद इन दिनों संघ भी चुप्पी साधे हुए है। अंत में अति ईमानदार छवि वाले गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिर्कर को आनन-फानन में केन्द्रीय प्रतिरक्षा मंत्री बनाया गया और नरेन्द्र मोदी के विकल्प की संभावना उनमें तलाशी जाने लगी। इस बीच सुना है कि उनके खिलाफ भी चुनाव के दौरान अपनी शिक्षा के विषय में चुनाव आयोग को गलत जानकारी देने का आरोप लग रहा है। यानी जिन भाजपा नेताओं में प्रधानमंत्री के विकल्प की छवि दिखाई दे रही है, उन्ही के खिलाफ अनियमित्ता का आरोप प्रचारित हो रहा है। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कई संयोग एक साथ सामने आए तो उसे षड्यंत्र मान लेना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा के अंदर मोदी समर्थकों को बारिकी से बचाया जा रहा है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी के मामले को लगातार मीडिया में दबाए जाने का प्रयास किया जा रहा है। खुद अमित शाह कई मामलों में फंसे रहे हैं, लेकिन उनको मीडिया बड़ी तसल्ली से बचा रही है। इसका संकेत साफ है कि भाजपा के अंदर सत्ता का संघर्ष बड़ी तेजी से विस्तार प्राप्त कर रहा है। इन दिनों जब भाजपा नेताओं पर घोटालों और अनियमित्ताओं का आरोप प्रचारित हो रहा है, तो साफ-साफ भाजपा के दो गुटों के आपसी द्वन्द्व, जो परोक्ष रूप में था वह प्रत्यक्ष होने लगा है।