Thursday, August 26, 2010

हां-ना के बाद हो ही गया हाँ...

आखिरकार संसद में सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज बिल अथवा परमाणु दायित्व विधेयक का संशोधित प्रारूप पारित हो ही गया। काफी राजनीतिक ना-नुकुर के बाद सरकार ने मुख्य विपक्षी दल भाजपा को विश्वास में लेकर इसे पारित करा लिया। जानकारों की रायशुमारी तो यही रही कि इस विधेयक का मसौदा खराब ही नहीं था बल्कि सरकार ने इसे ठीक से पेश भी नहीं किया था। मसौदा तैयार करने के लिए जिन अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने अगर अपना काम बेहतर ढंग से किया होता और कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी से पहले ही सलाह मशविरा कर लिया होता तो बाद में बदलाव किए गए , उनमें से कई को मूल मसौदे में ही शामिल कर लिया गया होता। अब सरकार एकमात्र यही दावा कर सकती है कि उसने मसौदा तैयार ही ऐसा किया था कि विपक्ष उसमें सुधार करने के बाद समर्थन घोषित कर सके। दरअसल, कुछ समय से लगातार चर्चा में रहे परमाणु दायित्व बिल को कुछ संशोधनों के साथ लोकसभा में पारित कर दिया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने लोकसभा के पटल पर परमाणु दायित्व बिल का मसौदा रखा। सरकार की ओर से इसमें अठारह संशोधन लाए गए, जिन्हें सदन ने मंजूरी दे दी। विधेयक में यह व्यवस्था है कि दुर्घटना की स्थिति में संचालक को प्रभावित लोंगों को 1500 करोड़ रूपए तक का मुआवजा देना होगा। इसमें परमाणु उपकरण आपूर्तिकर्ता को घटिया माल या सेवा देने के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रावधान किया गया है। काबिलेगौर है कि परमाणु दायित्व विधेयक में ताजा संशोधन के तहत किए गए प्रावधानों को किसी दुर्घटना की स्थिति में ऑपरेटर की जवाबदेही कम करने वाला बताया जा रहा है। केबिनेट ने बिल में उस प्रस्ताव को भी शामिल किया था जिसके अंतर्गत रिएक्टर ऑपरेटर क्षतिपूर्ति का दावा तभी कर सकता है जब हादसे को जानबूझकर अंजाम दिया गया हो। बिल के क्लॉज 17 मे संशोधन के मुताबिक परमाणु रिएक्टर में हादसे की क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी न्यूक्लियर ऑपरेटर की होगी और क्षतिपूर्ति का भुगतान नियम 6 के अनुसार ही किया जाएगा। क्षतिपूर्ति भुगतान का अधिकार तीन उपबंधों पर निर्भर होगा। हालांकि अपने स्तर पर सरकार ने परमाणु दायित्व विधेयक में किए गए संशोधन को उचित ठहराने की कोशिश की, जिनकी वजह से सरकार को आलोचना सहनी पड़ी है। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि सरकार ने विधेयक में बदलावों के लिए अपने दिमाग खुले रखे और किसी भी ठोस सुझाव को स्वीकार करने के लिए तैयार रहेगी। इसी संदर्भ में चव्हाण ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली से भी मुलाकात की थी। तब चव्हाण ने कहा था, ''मैं बदलावों को स्वीकार करने को तैयार हूं।ÓÓ उन्होंने कहा कि हम, मूल विधेयक, संसदीय स्थायी समिति द्वारा दिए गए सुझाव या कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए सुधार या किसी उपयुक्त सुधार के बारे में चर्चा करने को तैयार हैं। सरकार अनुच्छेद 17 में किसी भी सुधार के लिए वार्ता करने को तैयार है। दरअसल, अनुच्छेद 17 (बी) का विवादास्पद संशोधन इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी परमाणु संयंत्र का परिचालक हर्जाने की मांग तभी कर सकता है, जब आपूर्तिकर्ता या उसके किसी कर्मचारी के कारण इरादतन दुर्घटना हुई हो। विधेयक में आपूर्तिकर्ता के दायित्व वाले अनुच्छेद में बदलावों को लेकर नाराज भाजपा और वाम दलों ने सरकार के 'इरादतनÓ शब्द पर अंदेशा जताया और सप्ताह के अंत में संसद में विचार के लिए रखे जाने पर विधेयक का विरोध करने की धमकी भी दी थी। गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि वाम दलों का कहना था कि दो उपबंधों के बीच शब्द 'एंडÓ का जि़क्र होने से हादसा होने की स्थिति में परमाणु उपकरण के विदेशी आपूर्तिकर्ताओं का दायित्व कुछ कम हो जाता है। वहीं दूसरा विवाद मुआवज़े की राशि को लेकर भी था। पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम 500 करोड़ रुपयों का मुआवज़ा देने का प्रावधान था लेकिन भाजपा की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके 1500 करोड़ रुपए करने को मंज़ूरी दे दी। सरकार की ओर से भरोसा दिलाते हुए कहा गया कि वह समय समय पर इस राशि की समीक्षा करेगी और इस तरह से मुआवज़े की कोई अधिकतम सीमा स्थाई रुप से तय नहीं होगी। काबिलेगौर है कि भारत और अमरीका के बीच हुए असैन्य परमाणु समझौते को लागू करने के लिए इस विधेयक का पारित होना ज़रूरी था। इस विधेयक में किसी परमाणु दुर्घटना की स्थति में मुआवज़ा देने का प्रावधान है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता वासुदेव आचार्या और रामचंद्र डोम, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गुरुदास दासगुप्ता और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा ने इस विधेयक का विरोध किया था। उनका कहना था कि ये विधेयक से संविधान के अनुच्छेद 21 का उलंघन होगा, जिसके तहत जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकार आते हैं। साथ ही इस विधेयक से पीडि़तों को मुआवज़े की राशि बढ़ाने के लिए अदालत जाने के अधिकार से भी वंचित होना पड़ेगा। भाजपा के वरिष्ठ सांसद यशवंत सिंहा ने तो यहां तक आरोप लगाया था कि सरकार ये विधेयक अमरीका के दवाब में पास कर रही है। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इसी वर्ष के मार्च महीने में जब इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की गई थी तब समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने इसका विरोध किया था, लेकिन इस बार ये दोनों सरकार के साथ दिखाई दिए। अलबत्ता, इस समूचे प्रकरण में विधेयक के मसौदे पर हुई बहस से निश्चित तौर पर बेहतर विधेयक तैयार करने और इस पर राजनीतिक आमसहमति बनाने में मदद मिली है। वाम दलों ने तो तथ्यों पर शुतुरमुर्ग जैसी भाव-भंगिमा अख्तियार कर ली और इस मुद्दे पर मनगढंत तथ्यों को लेकर लच्छेदार भाषण दिया है। यह आरोप कि विधेयक अमेरिका को उपहार है, खरा नहीं उतरता है क्योंकि रूस, फ्रांस, कोरिया और परमाणु ऊर्जा के उपकरणों की आपूर्ति करने वाले देश भी आपूर्तिकर्ताओं को ऐसे संरक्षण की मांग कर चुके हैं और भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग ने खुद ऑपरेटर को संरक्षण की मांग की थी! वाम दलों की विकृत राय इनकी पुरानी पड़ चुकी राजनीति का हिस्सा है, लेकिन भाजपा की निकट दृष्टि और कांग्रेस पार्टी की दोनों पक्षों की हां में हां मिलाने की नीति के कारण एक अच्छी पहल बदनाम में तब्दील हो गई। जी. बालाचंद्रन सहित परमाणु नीति के कई विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि परमाणु ऊर्जा के असैनिक इस्तेमाल के लिए सितंबर 2009 में हस्ताक्षरित भारत-फ्रांस समझौते में भी कहा गया है कि हर पक्षकार को स्थापित अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के मुताबिक असैनिक परमाणु दायित्व की व्यवस्था करनी चाहिए। यह मोटे तौर पर वही है जो भारत सरकार ने किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबद्ध संसद की स्थायी समिति के सदस्यों ने जिन संशोधनों का सुझाव दिया था, वे उसी ढर्रे पर हैं जिनकी उम्मीद विशेषज्ञों ने की थी। विधेयक के मसौदे में ऑपरेटर का दायित्व 500 करोड़ रुपये तक सीमित किया गया था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1500 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। ऑपरेटर के दायित्व की बाबत वियना संधि में ऊपरी सीमा तय नहीं की गई है और भारत पेरिस संधि पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता क्योंकि यह केवल आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी )के सदस्यों तक सीमित है। इस तरह से भारत ऑपरेटर का दायित्व किसी भी स्तर पर तय कर सकता है और परमाणु दायित्व पर अंतरराष्ट्रीय परंपरा के मुताबिक चल सकता है।

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नीलम