Thursday, May 20, 2010

खाप पंचायतों का तानाशाही का सफर

एक समय था जब हरियाणा, पश्चिमी उप्र और राजस्थान की विवादित फैसले करने में माहिर खाप पंचायतों ने समाज की कई बुराईयों को खत्म करने का काम किया था। समय के साथ इनके समाज निर्माणक कार्य समाज विरोधी होते गए और इन पंचायतों ने तानाशाही रुख अख्तियार कर लिया। क्यों और कैसे इनके समाज सुधारक काम समाज विरोधी हो गए उसी की पड़ताल करता है आलेख- हरियाणा, पश्चिमी उप्र और राजस्थान में खाप पंचायतें अपने विवादास्पद सामंती फैसलों के चलते हमेशा से सुर्खियों में रही है। जब भी समाज में इनके खिलाफ विद्रोह की आवाज उठती है तो ये खाप पंचायतें अपने फैसलों को सहीं ठहराते के लिए समाज और संस्कृति को बचाने की दुहाई दे दिया करती थीं। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में जातीय खापों का, पंचायतों और समाज में दबदबा कायम है। हरियाणा, पंजाब और पश्चिम उप्र में इन खापों की तूती बोलती है। इनमें सदियों से जनता के इकरार की मोहर लगती आई है। खापों के फैसले बिना जनसमर्थन के नहीं होते। प्राचीन होने के साथ ही ये सर्वखाप पंचायते समाज का सुरक्षा चक्र बन गई। जिसके कारण इनका वर्चस्व सदियों से आज भी उसी तरह बरकरार है। हालांकि अधिकारिक तौर पर ये मान्यता प्राप्त पंचायतें नहीं है मगर इसके अनुयायियों ने इसे देश की किसी न्यायिक संस्था के समकक्ष बना दिया है। इसे इन पंचायतों का दबदबा ही कहेंगे कि हरियाणा के झज्जर की खाप पंचायत ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय को धत्ता बताते हुए एक प्रेमी युगल को गांव से बाहर रहने को मजबूर कर दिया। इसी तरह पिछले दिनों हरियाणा के करनाल की एक खाप पंचायत सुर्खियों में थी। कारण था वह ऐतिहासिक फैसला जो करनाल की एक अदालत ने इससपंचायत के खिलाफ सुनाया था। मामला तीन वर्ष पहले का है। कैथल जिले में खाप पंचायत ने एक खूनी फैसला किया था जिसके तहत वर्ष 2007 में करौंरा गांव निवासी 23 वर्षीय मनोज और 19 वर्षीय बबली को प्रेम विवाह करने पर मौत की सजा सुनाई गई थी और दोनों को बेरहमी से मार दिया गया था। तीन वर्ष के इंतजार के बाद खाप पंचायत के खिलाफ अदालत का यह फैसला एतिहासिक है। ऐतिहौसिक इसलिए क्योंकि आज तक किसी भी खाप पंचायत को किसी अदालत ने सजा नहीं सुनाई हैं। आज भी खाप, कानून और समाज में आए बदलाव और तमाम विकासवादी विचारधाराओं को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। खाप पंचायतों का इतिहास हरियाणा, पश्चिमी उप्र और राजस्थान के बड़े हिस्से में खापें किसी जाति के अलग-अलग गोत्र की पंचायतें होती हैं। ये एक ही गोत्र के भीतर होने वाले किसी विवाद के निपटारा करती हैं। खाप पंचायतों का स्वरूप आज का नहीं, वरन सैकड़ों साल पुराना है। इस समय देश भर में 465 खापें हैं। जिनमें सर्वाधिक हरियाणा में 69 खाप और दूसरे नम्बर पर पश्चिमी उप्र है जहां करीब 30 खाप अपने पुराने स्वरूप में जीवंत हैं। इन खापों का इतिहास भी बड़ा रोचक रहा है। सर्वखाप का अस्तित्व महाराजा हर्षवर्धन के काल से (सन् 643) है। पश्चिम उप्र में इस महापंचायत का मंत्री मुजफ्फरनगर जिले के सोरम गांव का हुआ करता था। कुछ वर्ष पूर्व तक चौधरी कबूल सिंह इसके मंत्री रहे। मुगल बादशाह बाबर ने सर्वखाप पंचायत का लोहा मानकर सोरम गांव के चौधरी को 1528 में वहां जाकर एक रुपए सम्मान का और 125 रुपए पगड़ी के लिए जीवन भर देते रहे। पहली सर्वखाप पंचायत 1199 में टीकरी मेरठ में हुई थी। इसके बाद दूसरी पंचायत 1248 में नसीरूद्दीन शाह के विरूद्ध। 1255 में भोकरहेडी में, 1266 में सोरम में, 1297 में शिकारपुर में, 1490 में बडौत में और इसके बाद 1517 में बावली में सबसे बड़ी पंचायतें हुई। वह दौर विदेशी अक्रमणकारियों का दौर हुआ करता था और पंचायतों में मुल्क की हिफाजत, गांव-खेड़े की रक्षा आदि विषयों पर गहन मंथन हुआ करता था। काफी समय तक सर्वखाप पंचायतों का आयोजन विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेने के लिए होता रहा। जब भी बाहरी अक्रांताओं के आक्रमण हुए सर्वखाप ने उनकों खदेडने के लिए बादशाहों और राजाओं की सहायता की। 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक के विरूद्ध, सन् 1197 में जजिया कर के विरूद्ध, सनड्ढ् 1759 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में सदाशिव राव भाऊ के साथ पश्चिम उप्र और हरियाणा की सर्वखापों ने युद्ध लड़े जीते। सर्वखापों ने गुलामी का वह दौर भी देखा जब देशभक्तों को सरेआम फांसी पर लटका दिया जाता था। आजादी के बाद सर्वखाप पंचायतों का स्वरूप बदला और एक सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत 8 मार्च 1950 को सोरम में आयोजित हुई। तीन दिन तक चली इस पंचायत में पूरे देश की सर्वखाप पंचायतों के मुखियाओं ने भाग लिया। इस पंचायत के बाद दूसरी सबसे बड़ी सर्वखाप पंचायत 19 अक्टूबर 1956 को सोरम में ही आयोजित हुई। पंचायत की अध्यक्षता जगदेश सिंह शास्त्री ने की थी। इस महापंचायत में चौधरी रामस्नेही प्रधान काकड़ा, चौधरी बलवीर सिंह, चौधरी लालसिंह पहलवान, शोरो खान साहब मोहम्मद हसन शाहपुर आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे। पंचायत के मुख्य रूप से तत्कालीन आर्य पेशवा राजा महेन्द्र प्रताप सिंह उपस्थित रहे। मुख्य खाड़े, शस्त्र और बाजे प्राचीन काल में खापों के अखाड़े और अपने अस्त्र-शस्त्र हुआ करते थे। अखाड़ों में मुख्य रूप में इस्सोपुर टील, कुरूक्षेत्र, कुटबा, गढ़मुक्तेश्वर, बदायु, मेरठ, मथुरा, दिल्ली, रोहतक, सिसौली, शुक्रताल थे। इन अखाड़ों में सभी प्रमुख खापों की बैठक हुआ करती थी। परंपरागत शस्त्र की बात करे तो उनमें मुख्य रूप से खुकरी, कटारी, तीरकमान, ढाल, तलवार, पेशकब्ज, फरसा, बरछी, बन्दूक और भाला आदि था। बाजों में ढपली, ढोल, तासे, नागफणी, रणसिंघा, शंख और तुरही थे जिसमें रणसिंघा और तुरही आज भी अपने स्वरूप में विद्यमान है और पंचायत के समय बजाई जाती है। देशहित के फैसले आज जो खाप पंचायतों का रुख है वह हमेशा से ऐसा नहीं था। एक समय था जब आज के विवादित निर्णयों के लिए पहचानी जाने वाली ये पंचायतें देश हित के कई बड़े गंभीर-महत्वपूर्ण निर्णयों लिए जानी जाती थीं। पंचायत में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। जिसमें दहेज लेने और देने पर दोनों पक्षों को बिरादरी से बाहर करने की बात सर्वसम्मति से पास की गई। इसके अतिरिक्त शादी-ब्याह में कम से कम बराती ले जाने और अनाप-शनाप खर्चे पर रोक लगाने का फरमान भी पास किया गया। सर्वखाप पंचायत के सुधार कार्यों का इतिहास एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। खापों की सामाजिक क्रांति आंदोलन ने ग्रामीण समाज के दृष्टिड्ढकोण को बिल्कुल बदल कर रख दिया। जहां लोग बड़ी-बड़ी बारात ले जाना अपनी शान समझते थे वहां पंचायत के इस फरमान से इस पर प्रतिबंध लग गया। मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, अलीगढ़, बदायुं, बिजनौर, मथुरा, रोहतक, गुडगांवा, करनाल जिलों के अतिरिक्त राजस्थान के कई जिलों में इनका विस्तार हुआ और समाज सुधार के आंदोलन की बयार तेज हुई। सर्वखाप पंचायतों में पर्दा प्रथा और जेवर प्रथा भी खत्म करने की बात कही गई। विवादित फैसलों ने बिगाड़ा स्वरूप पंचायतों का दौर जारी रहा। निर्णय लिए जाते रहे। जिनमें कुछ विवादित रहे तो कुछ सामज को हित पहुंचाने वाले। बदलते समय के साथ वर्तमान में सर्वखाप पंचायतों का पूरा स्वरूप ही बदल गया। बावली की वर्ष 2002 और शोरम की 2006 की सर्वखाप पंचायतों के असफल होने के पश्चात ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वखाप पंचायतों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्नड्ढ लग गया। भारतीय ग्रामीण परिवेश में तेजी से आए बदलाव और नई पीढ़ी की युवा सोच के आगे पंचायतों के आदेश बेमानी सिद्ध होने लगे। पढ़ाई और युवाओं में आए क्रांतिकारी बदलाव ने पंचायती फैसलों के खिलाफ बगावती सुर उठाने शुरू कर दिए। मीडिया के माध्यम से ग्रामीण युवाओं ने पंचायती फैसलों का विरोध करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप युवाओं के इन फैसलों के विरूद्ध पंचायते हिंसक फैसले देने लगी। इस तरह के विवादित फैसले पश्चिम उप्र में तो कम हुए लेकिन हरियाणा खासकर दिल्ली से सटे एनसीआर में अधिक सुनाई दिए। हरियाणा में तो बीते पांच सालों के दौरान खाप पंचायतों ने संविधानोत्तर संस्था की छवि बना ली। वर्ष 2009, 23 जुलाई में हरियाणा के जींद में सर्वखाप पंचायत के आदेश पर भीड़ ने एक युवक की नृशंस हत्या कर दी। उसका गुनाह था उसने अपने ही गोत्र की एक लडकी से शादी कर ली थी। गैर सरकारी संगठनों और मीडिया रिपोर्ट की माने तो हरियाणा में वर्ष 2009 में सैकड़ों जोड़ों को समान गोत्र में शादी करने पर मौत की सजा सुनाई गई। हरियाणा की बनवाला खाप ने जून 2007 में कैथल में करौंरा गांव के रहने वाले 23 वर्षीय मनोज और 19 वर्षीय बबली को मौत की सजा सुनाई। वर्ष 2004 में उप्र के मुरादाबाद के भवानीपुर गांव में एक युवक ने दूसरी जाति की लडकी से शादी कर ली। लडकी इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति की पुत्री थी। खाप पंचायत ने फैसला सुनाया कि लडके की मां के साथ बलात्कार किया जाए। ऐसा ही हुआ लडके की मां के साथ बलात्कार हुआ और सबूत मिटाने के तौर पर उसे जिंदा जला दिया गया। वर्ष 2007 में हरियाणा के रोहतक में डीजे बजाने पर पाबंदी लगा दी गई। रूहल खाप द्वार लगाई गई यह पाबंदी का कारण तेज आवाज से दुधारू पशुओं पर असर पडना बताया गया। 2007 में ही ददन खाप ने जींद में क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया। खाप पंचायत का तर्क था कि इससे लडके बर्बाद होते हैं, वे लड़ाई करते हैं और मैच पर सट्टा लगाते हैं। हरियाणा के सोनीपत की गोहना तहसील के नूरनखेड़ा गांव निवासी 70 वर्षीय बलराज ने छपरा (बिहार) निवासी 14 वर्षीय आरती से विवाह कर लिया। नूरनखेड़ा गांव की खाप पंचायत ने इस बेमेल फैसले को जायज ठहरा दिया। करीब दो साल पहले मुुजफ्फनगर जिले के हथछोया गांव में सगोत्री प्रेम विवाह करने पर युवक-युवती की हत्या कर दी गई थी। लगभग पांच वर्ष पूर्व लखावटी के पास हुई एक पंचायत में प्रेमी युगल को बिटौडे में जला दिया गया था। इस हत्याकांड की गूंज तत्कालीन सरकार के मुखिया मुलायम सिंह के पास तक पहुंची, लेकिन कार्रवाई के नाम पर महज खानापूर्ति ही हो पाई। इतना सब होने के बाद भी ये पंचायतें बदस्तूर अपने ठर्रें पर चसती रहीं क्योंकि इन खापों को राजनीति संरक्षण प्राप्त हैं। चुनावों के दौरान खाप अपने पंसदीदा उम्मीदवार का चयन करती है और पूरी बिरादरी उसी को वोट देती है। यय जानकार कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि बीते लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम उप्र में चुनाव लडने वाले चाहे रालोद के चौधरी अजित सिंह रहे हो या फिर भाजपा के हुकुम सिंह। दोनों ही खापों के आगे नतमस्तक नजर आए। हरियाणा के नरवाना जिले की 46 खापों ने एक सुर से बिना किस झिझक हिंदू विवाह अधिनियम को खारिज कर दिया। उन्होंने ऐलान कर दिया कि जो भी नेता वोट मांगने आएगा पहले उसे नए कानून का वादा करना होगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री भुपिंदर सिंह हुड्डा भी इसे एक सामाजिक मसला बताकर इसके दिए फैसले में हस्ताक्षेप से इंकार कर दिया। यह पहला मौका है जब अदालत ने किसी खप के खिलाफ फैसला सुनाया है। हो सकता है यह फैसला भविष्य में इन खापों को अपना रुख नरम करने के लिए प्रेरित करें पर इसकी संभावना कम ही दिखती है क्योंकि सजा पाने वालों को सजा के बाद ही अपने किए का कोई मलाल नहीं हैं।

1 Comment:

Anonymous said...

subhash ki kavitayen batati hain ki aaj ka manushy itna bhramjivi.amanviy aur jahreela ho gaya hai ki'gadha'.kutta awam sanp ke durgun bhi sharma jayen.agyey ji ki kavita 'sanp tum shahar to nahin gaye....' yaad aagayi.

नीलम