Thursday, March 11, 2010

खत्म हुआ वनवास

इस बार का महिला दिवस भारतीय महिलाओं के लिए नई सौगात लेकर आया है। 14 साल के वनवास के बाद आखिरकार महिला आरक्षण विधेयक संसद में पारित हो गया। इस विधेयक के पारित होने के कवायदें तभी से लगाई जा रही थीं जबसे कांग्रेस सत्ता में आयी थी। इसके पारित होने की संभावना इसलिए भी बढ़ गई थी क्योंकि कांग्रेस के बड़े नेताओं को अक्सर यह कहते सुना गया है कि सोनिया गांधी महिला आरक्षण को लेकर काफी गंभीर हैं और इसे हर हाल में पास करवाना चाहती हैं क्योंकि स्व. राजीव गांधी राजनीति में युवाओं के साथ-साथ महिलाओं की भी भागीदारी चाहते थे। चूंकि कांग्रेस इस बार इतनी ताकतवर है कि अपने बूते पर यह आरक्षण विधेयक पास करवाने का दमखम रखती है। शायद इसीलिए कांग्रेस यह सुनहरा मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। १५ वीं लोकसभा में महिला राजनीतिज्ञों का वह सपना साकार होता दिख रहा है जिसके लिए उन्होंने १4 वर्षों का लंबा इंतजार किया है। इस बार संसद में १० फीसदी का आकड़ा पार करने वाली महिला सांसदों के महिला आरक्षण विधेयक पारित करवाने के सपने को अमली जामा पहनाया है सत्तारूढ़ कांग्रेस ने और इसका बेमन से ही सही, समर्थन किया भाजपा और वामपंथियों ने। 9 मार्च 2010 को 15वीं लोकसभा में मौजूद महिला सांसद अपने लिए रचे जा रहे इस नए इतिहास की साक्षी बनी हैं। एक ओर महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करने का दावा करने वाली कांग्रेस और सोनिया गांधी ने यह साबित कर दिखाया है कि इस बार वह इतनी शक्तिशाली है कि वह अपने बूते बिल पास करवा सकती है यानी यह बिल पास करवाने के लिए कांग्रेस को किसी को बहुत ज्यादा किसी का मोहताज नहीं होना पड़ा। इस विधेयक के पास होने का दूसरा सुखद पहलू यह है कि इस बार संसद में महिलाओं का दबदबा पहले की तुलना में बढ़ा है। साथ ही कांग्रेस की इस विधेयक को पारित करवाने की पीछे जो सबसे अहम बात है वह है कांग्रेस को मिलने वाले इसके दूरगामी फायदे। अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो लगभग १८० पुरूष सांसदों को अपनी सीटें गवांनी पड़ेगी। यानी इसका सीधा सा मतलब होगा कि धर्म और जातिगत आरक्षण जैसे मुद्दों पर राजनीति करने वाले दलों को दूसरे मुद्दे तलाशने होंगे। कांग्रेस चूंकि खुद को धर्म-निरपेक्ष दल के रूप में परिलक्षित करती आयी है अत: उसकी दिली तमन्ना तो यही होगी कि धर्म और जाति के मुद्दे छोटे पड़ जाएं। इससे होगा यह कि अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और भी मजबूत होगी। ज्ञात रहे कि महिला कांग्रेस की मांग पर कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी महिलाओं को सरकारी नौकरी में ३३ प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही है। राजीव गांधी के युवाओं को आगे बढ़ाने के फंडे को अपनाकर कांग्रेस फिर से सत्ता में आई है। अब बारी है राजीव के दूसरे सपने, महिलाओं को सत्ता में भागीदारी देने को, पूरा करने की। संभावना यही है कि भले ही कुछ समय और लगे पर कांग्रेस यह सुनहरा अवसर अपने हाथों से जाने नहीं देगी। यानी अब वह दिन दूर नहीं जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत में भी महिला सांसदों की संख्या उस आकड़ें तक पहुंचेगी जहां से हम अपने सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए गर्व से कह सकेंगे कि हमारी महिलाएं भी किसी अन्य देश की महिलाओं से किसी भी मायने में कमतर नहीं हैं।

2 Comments:

Anonymous said...

neelam ji mahila reservation per aapka lekh achchha laga.lekin ek baat samajh me nahi aati ki mulayam singh is bill ka virodh kyon ker rahe hain. unke vicharak guru lohiya k SAPTAKRANTI me to mahila purush samanata ki baat ki gai hai. phir yeh virodh kyon?

सुभाष चन्द्र said...

chaliye...........mahilon ko vaicharik sukun mila...

नीलम