Saturday, February 27, 2010

अमर की हुई जया

जब से समाजवादी पार्टी ने अमर सिंह को पार्टी से निकाला है, वह अपने मित्राणी जया प्रदा के साथ कभी गुपचुप तो कभी खुलेआम नजर आते हैं। होलियाड सूत्रों ने जानकारी दी है कि जया अमर की हो गई है। हालांकि यह नहीं कहा जा रहा है कि यह स्थायी है अथवा होली के लिए।
हालचाल जानने के लिए जब होलियाड संवाददाता ने उनके घर का रूख किया तो पता चला कि अब इनदिनों आँगन में होली का धूम मचा था लेकिन अमर भाई की लुगाई ओसारे पर से गुम-सुम देख रही थी। लोग सब उनके तरफ इशारा कर के गाए, 'जियरा उदास भौजी सोचन लागी ! आँगन टिकुली हेराय हो..... जियरा.... !!Ó हमको लगा कि भौजी इहो गीत पर आयेगी अंगना में। लेकिन ई का...... भौजी तो नहिए आयी, ऊ का इशारा पाय के अमर भाई अन्दर चले गए। हमलोग समझे कि अच्छा कौनो बात नहीं। भौजी का पहिल-पहिल होली है, सो सरमा रही हैं। कुछ ऐसा ही हाल है इस बार जयप्रदा का। सपा में कितना देवर था, लेकिन अबकी बार अमर सिंह का ही साथ रहा। मुलायम, आजम सरीखें तो बाहर हैं। न कोई मेल, न कोई एसएमएस...एगो गीत पास हुआ। दू गो हुआ। फिर जोगीरा सा...रा....रा....रा....रा.... !! लेकिन न भाई आये ना भौजी। हमलोग सोचे कि का बात है? तभी अन्दर से टेप-रेकट पर फिलमी होली बजे का आवाज़ आया....... 'चाभे गोरी का यार बालम तरसे.... रंग बरसे....!Ó अब तो लोग यही बात पर कहते हैं, 'देखो रे बाबू नया जमाना के ..... ! इसी को कहते हैं 'घर भर देवर, पति से ठ_ा !!Ó
इससे पहले तो कल तक जो पार्टी के हरेक निर्णय के सूत्रधार होते थे, उन्हें अब कोई पहचानता तक नहीं। लेकिन राजनीतिक जुगाड़बाजी के महारथी अमर सिंह को लेकर दूसरे राजनीतिक दलों ने अपने पत्ते खुले रख छोड़े हैं। सियासी हलकों में ऐसी खबरें आ रही हैं कि शरद पवार की राकांपा की ओर उनका झुकाव बढ़ा है। वहीं, भाजपा और बसपा के मित्रों ने भी संपर्क साधा। लेकिन, अमर सिंह ने किसी और के घर में जाने के बजाय अपना ही नया ठौर बना लिया, 'लोकमंचÓ के नाम से। अपने विश्वासी विधायकों और सांसद जयाप्रदा के माध्यम से सपा पर लगातार दबाव की राजनीति भी कर रहे थे। इसके दूसरे पहलू की बात करें तो यह भी विचार करना होगा कि जब अमर सिंह स्वयं कह रहे हैं कि वे 'फिटÓ नहीं हैं, तब अविश्वास का कोई कारण नहीं। हां, यह जरूर पूछा जाएगा कि वे किस रूप में फिट नहीं हैं। शारीरिक, मानसिक, राजनीतिक, व्यावसायिक या फिर समाजवादी पार्टी व मुलायम यादव के आस-पास रोज पैदा हो रहे नए समीकरण में 'विसर्गÓ। सभी जानते हैं कि अमर सिंह राजनीति से अधिक अपने व्यावसायिक हित को ज्यादा तरजीह देते रहे हैं। दूसरे शब्दों में वे राजनीति करते हैं, अपना व्यावसायिक हित साधने के लिए। सन् 2006 के उन दिनों को याद करें जब अमर सिंह की एक सीडी को लेकर पूरे देश में हंगामा बरपा था। भारतीय राजनीति, पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार, उद्योग, न्यायिक प्रणाली पर उस सीडी में की गई टिप्पणियों में वर्तमान सरोकारों का एक अकल्पनीय खाका खींचा गया है। मूल्य, आदर्श, सिद्धांत, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, समर्पण आदि उक्त सीडी की बातचीत में नग्न और सिर्फ नग्न किए गए थे। अमर सिंह की बातचीत चाहे मुलायम यादव से हो या फिर उद्योगपति अनिल अंबानी, बिपाशा बसु, जयाप्रदा, पत्रकार प्रभु चावला सहित कोलकाता के व्यवसायी और कुछ अन्य लोगों के साथ हो, सभी में देश के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और दलाली की बेशर्म मौजूदगी थी। गनीमत है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उस सीडी का प्रसार रोक दिया गया, अन्यथा वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था से पूरे देश का विश्वास उठ जाता। सभी जानते हैं कि मुलायम व समाजवादी आंदोलन पर ग्रहण लगा तो अमर के कारण।
हम भी लगले दुहरा दिए, "घर भर देवर, पति से ठ_ा !" फिर पूछे, "लेकिन काकी ! ई कहावत का अरथ का होता है ? काकी देहाती भाषा में जो ई का अरथ कहिन उ आपके समझ में आयेगा कि नहि सो पता नहीं। मगर हम अपने तरफ से समझाने का कोशिश करते हैं। "घर भर देवर, पति से ठ_ा" का मतलब हुआ, 'हंसुआ का ब्याह में खुरपी का गीत'। अवसर है कुछ का और कर रहे हैं कुछ। दूसरा, गाँव घर में आज भी रिश्तों में काफी अनुशासन बरता जाता है। वहाँ पर हर रिश्ते के लिए अलग-अलग भाव, स्नेह, प्रेम और सम्मान है। हंसी मजाक का रिश्ता है देवर से। मान लिया कि कहीं देवर नहीं रहे तो कोई बात नहीं। जब देवर की प्रचुरता है, तब कोई पति से ही ठ_ा मतलब मजाक करे तो कहाबत सही ही है, "घर भर देवर, पति से ठ_ा !"
अब इसका भावार्थ ये हुआ कि 'उचित संसाधन की उपलब्धता के बावजूद जब कोई व्यक्ति, वस्तु या संबंधों का दुरूपयोग करे तो काकी की कहावत याद रहे, "घर भर देवर, पति से ठ_ा !" तो यही था आज का देसिल बयना........ पसंद आया तो दे ढोलक पर ताल....... और बोल, जोगीरा सा....रा.....रा.....रा.....रा............ !!!!
ये है होली स्पेशल

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नीलम