Saturday, January 23, 2010

तन्हाई

मैं बागों की गलियों से गुजर रहा था
भोर में सूरज निकल रहा था
मिले आज हम-तुम मुझे भी कोई
मेरा दिल मुझसे ये कह रहा था
कि फूलों के रास्ते से किरण एक आई
मैंने भी हंस कर वो गले से लगाई
मेरे प्रिय का संदेशा देकर
चुपके से कुछ मेरे कानों में कहकर
चली गई वापस वो अपने ही रास्ते
मुझे दो पल में तन्हाई देकर।

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नीलम