Friday, January 29, 2010

आधी दुनिया पर पूरी पाबंदी

विदेशों में लोग खुले विचारों के होते हैं, अधिसंख्य लोगों की यही मान्यता है। मगर, यूरोपीय देशों को छोड़कर मध्य एशिया, अफ्रीका और मुस्लिम बहुल देशों में महिलाओं की स्थिति बद से बदत्तर है। वह क्या पहनती है, कहां जाती है, किससे बात करती है - हरेक क्रियाकलाप पर पैनी निगाह रखी जाती है। यहां तक स्कूल जाने वाली छात्रा तक को नहीं छोड़ा जाता।
सऊदी अरब में एक किशोरी को स्कूल में मोबाइल फोन ले जाने के कारण 90 कोड़े लगाने और 2 महीने की जेल की सजा दी गई । यह फैसला जुबैल सहर की एक अदालत ने दिया है। लड़की महज 13 साल की । उसे उसके सहपाठी के सामने कोड़े लगाए गए। सऊदी अरब में लड़कियों के स्कूल में मोबाइल फोन पर प्रतिबंध है। यह सजा चोर और लुटेरों को दी जाने वाली सजा से भी कड़ी है।
इसी प्रकार इंडोनेशिया में मुस्लिम महिलाओं के लिए टाइट जींस पहनना अब मुश्किल हो गया है। अधिकारियों के मुताबिक, नए कानून के तहत महिलाएं अगर टाइट जींस पहने दिखीं तो वहीं पर तुरंत उन्हें स्कर्ट पहनवाई जाएगी। इन स्कर्ट का आकार-प्रकार सरकार द्वारा तय मानदंड के मुताबिक रहेगा। इस स्कर्ट को सरकार मुफ्त में उपलब्ध कराएगी। साथ ही उनके आपत्तिजनक कपड़ों को तुरंत काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाएगा। अगर उन्हें जींस पहननी ही है तो लॉन्ग स्कर्ट के नीचे पहनें जिसमें टखने तक ढका हुआ हो। अधिकारियों के मुताबिक, यह नियम सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं बल्कि पुरुषों पर भी लागू होगा। हालांकि उनके मामले में शॉर्ट्स पहनने की मनाही होगी। ये नियम स्थानीय धार्मिक नेताओं के सुझाव पर लागू किए गए। ये सिर्फ बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या पर ही लागू होंगे। चूंकि हम गैर मुस्लिमों की भावनाओं की कद्र करते हैं, इसलिए उन्हें घबराने की जरूरत नहीं। दूसरी तरफ, सूडान की एक ईसाई किशोरी को घुटने की लंबाई तक की स्कर्ट पहनने को एक जज ने अभद्र करार देते हुए उसे 50 बार कोड़ा मारने की सजा सुनाई । किशोरी के नाबालिग होने का हवाला देते हुए उसकी सजा को सूडानी कानून के विरूद्ध बताते हुए वकील अजहरी अल हज ने कहा कि सिल्वा कासिफ (16)के परिवार ने पुलिस और जज पर मुकदमा दायर करने की योजना तैयार की । हज ने कहा कि सिल्वा नाबालिग है। वह मुस्लिम नहीं है और जब उसके खिलाफ फैसला सुनाया गया तो उसे अपने अभिभावक तक से संपर्क साधने का मौका नहीं दिया गया। सूडान में ही एक महिला पत्रकार को 40 कोड़े मारने की सजा दी गई है, क्योंकि उसने पतलून पहन रखी थी और इस्लाम में महिलाओं के पतलून पहनने पर पाबन्दी है। संयुक्त राष्ट्र की सूचना अधिकारी लुबना अहमद हुसैन को यह सजा दी गई । लुबना के साथ पकड़ी गई अन्य महिलाओं को 10-10 कोड़े मारे गये, लेकिन लुबना ने अपने लिये वकील की मांग कर डाली इसलिये उन्हें 40 कोड़े मारे गए।
वहीं, ईरान में औरतों को मेकअप कर टीवी पर आने की मनाही कर दी गई है। क्योंकि यह इस्लामी कानून या शरीयत के खिलाफ है। सुधारवादी अखबार ने सरकारी टेलिविजन के प्रमुख एजातुल्ला जरगामी के हवाले से कहा कि कार्यक्रमों के दौरान महिलाओं द्वारा मेकअप गैरकानूनी और इस्लामी शरीयत के खिलाफ है। ऐसा कोई मामला नजर नहीं आना चाहिए, जिसमें किसी महिला ने टीवी पर किसी कार्यक्रम के दौरान मेकअप किया हो। देश के शीर्ष नेता अयातुल्ला अली खमेनई द्वारा प्रतिष्ठित रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के दोबारा नियुक्त किए गए पूर्व सदस्य जरगामी ने यह आदेश भी दिया है कि महिला मेहमानों की खातिरदारी भी महिलाओं द्वारा की जाए।
इस्लाम में महिलाओं की स्थिति क्या है किसी से छिपी नहीं है किसी को बताने की जरूरत भी नहीं है। शाहवानो से लेकर तस्लीमा तक सभी इस्लाम में आपकी स्थिति को बयां कर रही है। भारत से अधिक पाबंदी तो विदेशों में है। किसी को महिला को आपने शौहर के सम्पत्ति में जगह नहीं मिल पा रही है तो कोई महिला कठमुल्लाओं से आपने अबरू और प्राण की रक्षा के लिये जूझ रही है। इस्लाम में नारी की आबरू को नंगा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है, कुछ कठमुल्ले नारी के पति को उनकी औलाद तो कभी उसके स्वसुर को उसका पति घोषित कर देता है।
मुस्लिम महिला कहती है, इस्लाम में औरतों की हालत किसी मुस्लिम लड़की के बाप या भाई से पूछो। हमारी जि़ंदगी से तो मौत अच्छी। हर बात पर हमारी औकात बता दी जाती है. मेरा भाई एक ईसाई लड़की से शादी करना चाहता था, वो एक बार मुझसे बाहर मिली और जब मैने उसे अपने तौर तरीके बताए तो उसके चेहरे का रंग उतर गया. उसके मां बाप ने इसके बाद मेरे भाईजान को अपने घर बुलाकर बात चीत की। मुझे पता चला कि मेरा भाई उनके सवालों का कोई जवाब नहीं दे सका। उस दिन के बाद वो मेरे भाई से दुबारा नहीं मिली. मेरा भाई, मेरे अब्बा से बहुत ज़्यादा उखड़ चुका है. अब ये हाल है कि मेरा भाई जो पाँच वक़्त का नमाज़ी था, मज़हब के नाम से ही चिढऩे लगा है. बड़ी बात नहीं अगर मुझे पता चले कि उसने अपना मज़हब बदल लिया है। सच पूछो तो मुझे अपने भाई से बहुत हमदर्दी है मगर मुस्लिम लड़कियों की जि़ंदगी अख़बार में छपने वाली बातें नहीं हक़ीकत होती है, जो ना तो रंगीन है और ना ही सपनीली।

Thursday, January 28, 2010

पहले महंगाई, अब मौसम मार गई

देश की जनता पहले से ही महंगाई की मार से त्रस्त थी। अब प्रकृति की मार से उसका जीना मुहाल हो गया है। चारों तरफ अस्त-व्यस्तता। विशेषकर उत्तर भारत में। आम जनता को दैनिक क्रियाकलापों में परेशानी तो सरकार को रेल और हवाई यातायात को लेकर करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ रहा है। आम आदमी यह सोचकर दुबला हुआ जा रहा है कि आने वाले समय में इस आर्थिक हानि की भरपाई भी तो उसी से होगी।
बहरहाल, पूरे उत्तर भारत में घने कोहरे और ठंड का कोहराम जारी है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर घने कोहरे की चादर में लिपटा है। दिल्ली और नोएडा में विजिबिलिटी शून्य है। कोहरे का सबसे ज्यादा असर यातायात पर पड़ा है। सड़क, रेल और हवाई यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है। इस कारण यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कोहरे की वजह से कई रेलगाडिय़ां रद्द कर दी गयी हैं, तो कई घंटों देरी से चल रही हैं। कोहरे के कहर से हवाई यातायात भी प्रभावित है। दिल्ली और एनसीआर में विजिबिलिटी शून्य होने के कारण सड़कों पर गाडिय़ों की रफ्तार भी धीमी है। मौसम विभाग के मुताबिक 2003 के बाद पहली बार इस तरह का घना कोहरा पड़ रहा है। मौसम विभाग ने साफ कर दिया है कि अगले कुछ दिनों तक कोहरे से निजात मिलने की संभावना कम ही है। कोहरे की सबसे ज्यादा मार रेल यातायात पर पड़ रही है। अब तक रेलवे को करीब 65 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है। हवाई यात्रा का नुकसान अलग है।
इतना ही नहीं, कोहरे का लंबा खिंचता दौर फल और सब्जियों की फसल पर बुरा असर डाल रहा है। इसने गेहूं की पत्ती का रंग भी बदल दिया है लेकिन जानकारों का मानना है कि इसको लेकर चिंता की कोई बात नहीं है और यह तात्कालिक प्रभाव है जो मौसम में सुधार होते ही सही हो जाएगा। देश का उत्तरी इलाका इन दिनों कोहरे की चपेट में है। कई उत्तरी राज्यों से मिली जानकारी के मुताबिक कोहरे की सफेद चादर फल, सब्जियों और फूलों की फसल पर जरबदस्त मार करती दिख रही है। खासतौर से नर्सरियों पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ती नजर आ रही है। अगर मौसम में जल्द ही सुधार नहीं होता तो फल और सब्जियों की पैदावार पर बेहद बुरा असर पड़ सकता है।
गंगा के मैदानी इलाके में सबसे ज्यादा कोहरा छाया हुआ है और यहां से खबर आ रही है कि गेहूं की खड़ी फसल में गेहूं की पत्ती का ऊपरी हिस्सा पीला पड़ गया है। बहरहाल लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ। एम एस गिल का कहना है कि इसे लेकर बेवजह घबराने की जरूरत नहीं है। विश्वविद्यालय के प्लांट क्लिनिक में इस पत्ती का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आई है कि यह केवल मौसम का प्रभाव है और किसी तरह की बीमार नहीं है। दरअसल कई किसान इसे या तो कोई बीमार मान रहे थे या फिर किसी तरह के पोषण की कमी। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि इसको देखते हुए किसी तरह के अनावश्यक स्प्रे, कीटनाशक या फिर पोषक तत्व देने की जरूरत नहीं है। गेहूं की पीबीडब्ल्यू-343 किस्म में इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिल रहा है। पंजाब में बड़े पैमाने पर यह किस्म उगाई जाती है जो देश का प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य भी है। वैसे ठंडा मौसम गेहूं की फसल के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस साल रबी की फसल में गेहूं का रकबा पिछले साल के मुकाबले एक लाख हेक्टेयर बढ़ा है। खासतौर से बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड में ज्यादा गेहूं बोया गया है। इन दिनों दालों की कीमतें आसमान छू रही हैं और रबी में फसलों की बुआई भी इस बात पर मुहर लगाती दिख रही है। इस साल चना, उड़द और मूंग जैसी दालों की बुआई काफी बड़े पैमाने पर की गई है। हालांकि तिलहनों का रकबा सिकुड़ा है। विशेषकर सरसों और सूरजमुखी कम जमीन पर बोया गया है। केवल मूंगफली का रकबा बढ़ा है। रबी की फसल में तिलहनों की बुआई का काम पूरा हो चुका है। मोटे अनाजों में भी किसानों ने कम रुचि दिखाई है।

Wednesday, January 27, 2010

रानीतिक घोटाले

इतना होने के बाद आज भी तो घोटाले कम हुई है और ही जनता के पैसो का हेर फेर करने वाले घोटालेबाज आगे पढ़िए राजनितिक घोटालेबाजों की आखिरी किस्त इसी तरह 2003 उत्तर प्रदेश में ताज हेरिटेज कॉरिडोर घोटाले की परतें खुली जिसमें प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को विवादों के घेरे में ले लिया। मायावती पर आरोप है कि उन्होंने इतिहास के साथ खिलवाड़ किया है ताजमहल और लाल किले के बीच की जमीन बिल्डरों को बेच दी है। जबकि ताजमहल से लाल किले को साफ साफ देखने का उल्लेख इतिहास में भी है। ऐसे में इसके बीच को भूमि को बेचकर मायावती ने निजी स्वार्थो की पूर्ति की है। 175 करोड़ के इस घोटाले का मामला अब भी सुप्रीमकोर्ट में लंबित है। इसके बाद 2003 में वह घोटाला हुआ जिसे घोटालों की मदर कहा जाता है। यह था अब्दुल करीम तेलगी के फर्जी स्टांप पेपर घोटाला। एक वाणिज्य स्नातक होने के नाते तेलगी को मांग और आपूर्ति का नियम समझने में जरा भी देर नहीं लगी और वह समझ गया कि देश में स्टांप पेपर की आपूर्ति की भारी कमी थी। 1994 में एक विधायक और राजस्व मंत्री की मदद से एक स्टांप विक्रेता का लाइसेंस प्राप्त कर तेलगी ने इस घोटाले को अंजाम दिया। उसके इस कांड में कई नेताओं और नौकरशालों के शामिल होने का शक है। लोगों को तेलगी के बयान का इंतजार है पर तेलगी की इस मामले में चुप्पी मामले की गंभीरता को और भी बढ़ाती है। फिलहाल तेलगी का मामला मुंबई हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इसी तरह 2006 में जस्टिस पाठक समिति ने आरोप लगाया है कि 2001 में नटवर सिंह ने अपने पुत्र जगत सिंह के एक मित्र अंदलीब सहगल और आदित्य खन्ना को सद्दाम हुसैन के माध्यम से तेल का ठेका दिलवाया था जिसके बदले इन दोनों ने नटवर सिंह को कमीशन दिया था। आइल फॉर फूड के नाम से जाना जाने वाले इस घोटाले के चलते पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनके विधायक पुत्र जगत सिंह भी विवादों के घेरे में है। 2008 जांच में तमिलनाडू का 60,000 करोड़ रु स्पेक्ट्रम घोटाला भी लोगों के लिए चर्चा का विषय है इस घोटाले में द्रमुक परिवार के कई सदस्यों के संलिप्त होने का शक है। इनपर दूरसंचार के क्षेत्र विस्तार के लिए 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में गड़बड़ी का आरोप है। लोगों में 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले के तौर पर रेखांकित इस घोटाले में हजारों करोड़ की सरकारी खजाने क्षति हुई है। इस मामले में सीबीआई की जांच और छापे अब भी जारी हैं। और अब कोड़ा का 40 अरब का यह ताजा घोटाला जिसमें कई बड़े भारतीय नेताओं के शामिल होने का अंदाज़ा है। देश के अब तक के सबसे बड़े राजनीतिक घोटाले में कोडा साम्राज्य ने मुंबई से लेकर अफ्रीका के कई हिस्सों में लक्जरी होटल, मुंबई में तीन कंपनियों, थाईलैंड में एक होटल और एक कोयला खान अपने नाम करने के साथ दक्षिण अफ्रीका और लाइबेरिया में अवैध विदेशी मुद्रा के लेनदेन और संपत्ति खरीदी है जिसका कथित तौर पर मूल्य लगभग 40 अरब है। अभी तक कोड़ा ने अपना मुंह नहीं खोला है और हो सकता है खोले भी न पर इतने बड़े कांड को अकेले कोड़ा या बिहार के चंद लोगों के बलबूते अंजाम देना संभव नहीं है यह सभी जानते हैं। अब रहा सवाल किसी नाम जग जाहिर न करने का तो यह बात मधु भी अच्छी तरह जानते हैं कि करोड़ों के घोटाले की सजा के तौर पर उन्हें अधिक से अधिक कुछ वर्षों की ही सजा मिलेगी। जेल छूटने का बाद भी उनका राजनैतिक कैरियर बदस्तूर जारी रहेगा। यह भारत का जनता की विडंबना ही है कि जनता के पैसे का इतना बड़ा हेरफेर करने वालों को फिर से संसद तक पहुंचाना जनता की मजबूरी है उनके सामने कोई विकल्प ही नहीं होता। भारत जैसे देश में जहां भ्रष्टाचार और घोटालें के मुद्दे पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बात तक को अनदेखा कर दिया जाता है और सज़ा के तौर पर मात्र औपचारिकता पूरी की जाती है ऐसे देश में अगर हर दिन एक कोड़ा पैदा हों तो इसमें आश्चर्य कैसा?

Saturday, January 23, 2010

तन्हाई

मैं बागों की गलियों से गुजर रहा था
भोर में सूरज निकल रहा था
मिले आज हम-तुम मुझे भी कोई
मेरा दिल मुझसे ये कह रहा था
कि फूलों के रास्ते से किरण एक आई
मैंने भी हंस कर वो गले से लगाई
मेरे प्रिय का संदेशा देकर
चुपके से कुछ मेरे कानों में कहकर
चली गई वापस वो अपने ही रास्ते
मुझे दो पल में तन्हाई देकर।

Friday, January 22, 2010

मुद्दे हैं बेशुमार, विपक्ष है बीमार

अमूमन भारत में चुनावों के शंखनाद के साथ ही दलों के पास अपने अपने मुद्दे होते जाते हैं। उन्हीं मुद्दों के सहारे जनता का ध्यान अपनी ओर आकृष्टï करने की भरसक कोशिश की जाती है। सत्ता में आने के बाद उसका पालन किया जाए अथवा नहीं, यह अलग विषय हो जाता है। तभी तो गत आम चुनाव में महंगाई, बेरोजगार, सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों को बड़े जोरशोर से उठाया गया और करीब छह महीने बीतने के बाद उस पर चर्चा नहीं के बराबर होती है।
जमीनी हकीकत यह है कि महंगाई क्रमानगुत तरीके से बढ़ रही है, नए रोजगारों का सृजन नहीं हो पा रहा है और सरकार प्रोपगण्डा कर रही है कि मंदी समाप्ति की ओर है और हम विकास कर रहे हैं। हैरत तो तब होती है जब संसद में बजट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सार्थक विपक्ष के अभाव में समुचित बहस-मुहाबिसे नहीं हो पाती है। ऐसा भी नहीं है कि सत्तारूढ़ दल तीन-चौथाई वाली बहुमत के साथ सदन में अपनी धाक रखता है। बल्कि विपक्ष में एका का अभाव है। भाजपा हो या वामदल - अपने घर को ही दुरूस्त करने में लगे हुए हैं। राजद और सपा-बसपा सरीखें दलों की स्थिति इस आमचुनाव में निर्णायक रही नहीं है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोई मुद्दा है भी? क्या ऐसा तो नहीं कि ये एक मुद्दा विहीन समाज होता जा रहा है। क्या ये ऐसे मुद्दे हैं जिनसे जनता को कोई सीधा सरोकार है। इस हिसाब से देखा जाए तो उसके लिए तो हमेशा से अपनी रोज़ी रोटी की फि़क्र और सामाजिक सुरक्षा ही बड़े मुद्दे हैं। और इन्ही मुद्दों के भीतर आते हैं जाति और क्षेत्र और स्थानीय अपेक्षाओं से जुड़े मुद्दे मसलन बिजली पानी सड़क। महंगाई जैसे चिर परिचित या यू कहें सनातन मुद्दे। अतीत के कड़वे अनुभव इस बात के गवाह हैं कि चुनावी घोषणापत्रों के महा अंबार के बीच और सरकारों की अपार आवाजाही के बीच ये मुद्दे तो जैसे सख्त चट्टान की तरह वहीं पड़े हैं। ये हिलते नहीं और नेता गण जब वोट मांगने जाते हैं तो इन मुद्दो का ख़ास ख्याल रखते हैं। ऐसा भी नहीं है कि बिजली पानी सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं को लेकर सरकारें काम भी करती हैं लेकिन ये इतना बिखरा हुआ और बहुत सारा है कि हर बार इनकी कमी का रोना रहता ही है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी, मंहगी होती उपभोक्ता सामग्री और खाद्यान्न। महंगाई की दर आंकड़ों के हिसाब से तो दुरुस्त है लेकिन आम आदमी की जेब तो तेज़ी से खाली हो ही रही है।
दरअसल, भूमडंलीय मंदी के इस दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था गतिशील है। इसके बावजूद सात दशमलव एक फीसदी की विकास दर पिछले छह साल में सबसे कम है। निर्यात में कमी आयी है। लेकिन क्या इस मुद्दे से उन लाखों किसान परिवारों का कुछ लेना देना है जहां तक सरकार की आर्थिक मदद गयी है। गौर करने योग्य यह भी है कि भारत में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि इस देश के वामपंथी तथा विपक्षी दलों के व्यापक विरोध का कारण बनी है। विपक्ष के सांसदों ने मूल्यों में सात दश्मलव चार एक प्रतिशत की वृद्धि को यूपीए सरकार की अक्षमता का कारण बताया है। विपक्षी सांसदों ने कल लोकसभा तथा राज्यसभा का बहिष्कार किया। विपक्षी तथा वामपंथी दल आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि को अभूतपूर्व मान रहे हैं। भारत में लोकसभा के चुनावों का समय निकट आने के साथ ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की नीतियों तथा क्रियाकलापों की आलोचना में बढ़ोत्तरी हो रही है। यह दल हाल ही में भारत तथा अमरीका के बीच परमाणु सहयोग समझौते की आलोचना करते हुए इस समझौते के बारे में कांग्रेस को घेरने का प्रयास कर रहे हैं। यही विषय इस बात का कारण बना है कि भारत की केन्द्र सरकार अमरीका के साथ परमाणु सहयोग समझौते कें संबन्ध में बड़ी सावधानी से कार्य ले। इसी सावधानी ने समझौते के व्यावहारिक होने को असमंजस में डाल दिया है। वर्तमान समय में भारत के विपक्षी दल इस बात के प्रयास मे व्यस्त हैं कि आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में तेज़ी से वृद्धि के विषय से, जिससे मध्यम तथा निचले वर्ग के लोग बहुत अधिक आर्थिक दबाव में हैं, सरकार की आर्थिक नीतियों पर प्रश्न चिन्ह लगाकर आम जनमत को अपने ओर आक्रष्ट करें। भारत के प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि पर प्रतिक्रिया स्वरुप कहा है कि मंहगाई पर नियंत्रण उनकी सरकार के कार्यक्रमों में प्राथमिक्ता पर है। भारत के कुछ आर्थिक हल्क़ों का यह मानना है कि देश में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि का संबन्ध सरकार की आर्थिक नीतियों से कम बल्कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य पदार्थों के बढ़ते मूल्यों से है। इन हल्क़ों के अनुसार यह प्रक्रिया अभी भी जारी है जो विश्व स्तर पर गंभीर चिंता का कारण बनी हुई है। यह आर्थिक हल्क़े पिछले दो वर्षों के दौरान राजग सरकार की आर्थिक नीतियों पर विपक्ष तथा वामपंभी दलों की ओर से विरोध न करने को अपने तर्क की पुष्टि में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि डाक्टर मनमोहन सिंह ने इस दौरान मूल्यों में वृद्धि पर नियंत्रण रखा है। इसी आधार पर भारत सरकार से निकट का संबन्ध रखने वाले आर्थिक हल्क़े, मंहगाई के विषय पर विपक्ष द्वारा हो हल्ला मचाए जाने को उनके द्वारा आर्थिक विषय से राजनैतिक लाभ उठाने के परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं। क्योंकि वामपंथी दलों तथा विपक्ष के दृष्टिकोण अलग अलग हैं इसी आधार पर कहा जा सकता है कि लोक सभा तथा राज्य सभा में इन दलों से संबन्धित सांसद विदित रुप से समन्वित कार्यवाही के अन्तर्गत व्यापक स्तर पर यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध कर रहे हैं।
सच तो यह भी है कि ऐन चुनाव से पहले राजनैतिक दल अपने मुद्दे भी जनता के बीच उछालते हैं। सभी राजनैतिक दल अपने मुद्दे बनाते हैं। और उन्हें ऐसे पेश करने की कोशिश करते हैं कि मतदाता का सबसे बड़ा सरोकार तो वही है। लेकिन भारत में मतदाता बहुत रोचक ढंग से और बहुत सोच समझकर वोट करता है। यह भी कहा जा रहा है कि हमारे देश में लोकतंत्र परिपक्व हुआ ही नहीं है, ऐसा लगता है। विपक्ष में चाहे कोंग्रेस हो या भाजपा, वजह बेवजह एक दुसरे को नाहक ही कोसना उन्हें विपक्ष का धर्म लगता है। कुछ दिन पूर्व जब अमेरिकी संसद में राष्टï्रपति बुश का सम्बोधन चल रहा था तो उनके भाषण के दौरान अनेकों बार डेमोक्रेटिक सांसद भी खडे होकर तालीयाँ बजाते दिखे। हमारी संसद में तो ऐसे दृश्य की कल्पना भी नहीं कि जा सकती। अगर मनमोहनसिंह बोलेंगे तो सिर्फ कोंग्रेसी ही मेज पीटेंगे, और अडवाणी बोलेंगे तो भाजपा वाले। यहाँ तक कि राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर भी एकता नहीं दिखाते। चाहे वो पोटा हो या परमाणु सन्धि। क्या पक्ष और विपक्ष में रहने का मतलब सिर्फ एक दुसरे के खिलाफ तलवारे भांजना होता है। हमारे यहाँ तो नेता बनते ही चेहरा छत की तरफ घुम जाता है, नजरें इतनी उँची चढ जाती है कि नीचे खड़ा आम आदमी तो दिखता ही नहीं! सरकार तो बस कभी मेरा भारत महान कहते हैं कभी अतुल्य भारत! हम अपने लोकतंत्र और संस्कृति का बखान करते थकते नहीं हैं, पर क्या हम कभी अपनी गिरहबान में झांककर देखते हैं?

Friday, January 15, 2010

ककहरे को तलाशते गडकरी

कहा तो यही जा रहा है कि भाजपा ने पांच सितारा संस्कृति से तौबा करने के साथ ही अपने हिन्दुत्व मुद्दे को प्रखर करने का निर्णय किया है। इसके लिए नए अध्यक्ष नितिन गडकरी संघ से बराबर संपर्क में हैं। नए टीम की तलाश भी जारी है। लेकिन, इसे संयोग कहें अथवा कुछ और कि पार्टी नेताओं का जमावड़ा एक बार फिर मध्यप्रदेश की औद्योगिक नगरी इंदौर के एक नामचीन होटल में हो रहा है। तो भला पंच सितारा संस्कृति से कैसे तौबा माना जाए? संभवत: यही राजनीतिक विद्रूपता है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो पिसी फूट, अविश्वास, षड्यंत्र, अनुशासनहीनता, ऊर्जाहीनता, बिखराव और कार्यकर्ताओं में घनघोर निराशा के बीच चुनाव दर चुनाव हार का सामना, वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की यही फितरत बन गई है। 52 साल की उम्र वाले लोगों को अगर युवा कहा जा सकता है तो नया अध्यक्ष युवा है। उम्र न सही, लेकिन वह अपने बयानों, तेवर और राष्ट्रीय राजनीति के अनुभव के नज़रिए से युवा मालूम पड़ते हैं। नई दिल्ली में राष्ट्रीय पदाधिकारियों की पहली बैठक में जो तेवर दिखाए उससे साफ है कि वह पार्टी की शिथिल पड़ती जा रही छवि को सुधारना चाहते हैं लेकिन उनकी राह इतनी आसान नहीं है। उनके साथ यह संबल जरूर है कि वह संघ की पसंद हैं और संघ का पूरा समर्थन उन्हें हासिल है। लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि संघ की ओर से पार्टी में पहले भी कई धुरंधर नेता भेजे जा चुके हैं जो कि इतने मजबूर कर दिए गए कि वह आज या तो राजनीति से आजिज आ चुके हैं या उन्हें पार्टी के दिग्गजों द्वारा नेपथ्य में भेजा जा चुका है।
संघ द्वारा पार्टी में भेजे गए कुछ धुरंधरों में गोविंदाचार्य प्रमुख हैं जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मुखौटा कहने की कीमत चुकानी पड़ी इसके बाद न सिर्फ उन्हें पार्टी में साइड लाइन कर दिया गया बल्कि उन्हें राजनीति से इतर अपने लिए नई राह ढूंढने पर मजबूर होना पड़ा। इसके बाद बारी आई संजय जोशी की जोकि एक अश्लील सीडी कांड में ऐसे उलझे कि राजनीति से दूर हो गये और अब पार्टी और राजनीति में दोबारा आने के लिए काफी हाथ पांव मार रहे हैं। संघ की ओर से पार्टी के महासचिव बना कर भेजे गए राम लाल की भी पार्टी के दिग्गजों ने चलने नहीं दी। इस प्रकार गडकरी को भी पूर्व के उदाहरणों को देखते हुए सावधानी से आगे बढऩा होगा। सिर्फ संघ का सिर पर हाथ होने से कुछ नहीं होने वाला। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में बने और जमे रहने के लिए खुद का राजनीतिक रूप से कुशल होना भी जरूरी है।
काबिलेगौर है कि नए अध्यक्ष की ओर से कहा गया है कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और परिषद की बैठक भी इस बार किसी पांच या सात सितारा होटल में नहीं होकर साधारण तरीके से होगी। पार्टी के तमाम दिग्गज बैठक के दौरान तंबुओं में ठहरेंगे। पार्टी में ऐसा पहले भी होता था लेकिन तथाकथित महाजन संस्कृति के दौरान पार्टी की बैठकें पांच सितारा होटलों में होने लगी थीं। लोगों को सर्वाधिक आश्चर्य तब हुआ था जब 2004 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा ने बात तो मूल जड़ों की ओर लौटने की कि लेकिन इस पर विचार के लिए बैठक सात सितारा होटल में बुलाई। संघ भाजपा को इस पांच सितारा संस्कृति से दूर करना चाहता है और शुरुआत गडकरी ने कर दी है लेकिन वह इसे आगे भी कायम रख पाएंगे या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
अब सभी निगाहें गडकरी की घोषित होने वाली पदाधिकारियों की टीम की ओर हैं। माना जा रहा है कि अगले माह यह टीम घोषित हो जाएगी। पार्टी में इस समय अधिकांश नेता गडकरी से वरिष्ठ हैं। इनमें से कुछ तो इतने वरिष्ठ हैं कि वह गडकरी की टीम में नहीं आना चाहेंगे लेकिन कुछ को इस पर आपत्ति नहीं होगी क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। पार्टी सूत्रों की मानें तो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारीकर और पार्टी के मुस्लिम सांसद शाहनवाज हुसैन को महासचिव बनाया जा सकता है जबकि रविशंकर प्रसाद को बिहार भाजपा अध्यक्ष या पार्टी उपाध्यक्ष पद पर रखा जा सकता है। मुख्तार अब्बास नकवी का उपाध्यक्ष पद बने रहने के आसार हैं। चर्चा तो यह भी है कि मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राधामोहन सिंह को भी दिल्ली लाया जा सकता है। साथ ही राष्टï्रीय सचिव की भूमिका निभा रहे प्रभात झा को मध्यप्रदेश भेजकर संगठन में मजबूती लाने का काम दिया जा सकता है। इसके अलावा दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ। हर्षवर्धन का भी पार्टी उपाध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। विजय गोयल अपना महासचिव पद बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं यदि वह यह पद नहीं बचा पाए तो दिल्ली में अध्यक्ष पद पर उनका आना तय माना जा रहा है। राजीव प्रताप रूडी और प्रकाश जावडेकर पहले की तरह प्रवक्ता बने रहे सकते हैं जबकि किरीट सौमेया को पार्टी का सचिव बनाया जा सकता है। गडकरी की नई टीम में संभवत: सबसे चैंकाने वाला नाम वरुण गांधी का हो सकता है। उन्हें संघ की रणनीति के मुताबिक, पार्टी की युवा शाखा का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। संघ चाहता हैै कि कांग्रेस के युवा चेहरे राहुल गांधी को टक्कर देने के लिए पार्टी के युवा इकाई अध्यक्ष पद पर वरुण को लाया जाए जिससे उन्हें घेरने में आसानी हो। इसके अलावा वरुण का नाम भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के लिए भी चल रहा है । यदि वरुण उत्तर प्रदेश भेजे गए तो पार्टी की युवा शाखा के अध्यक्ष का पद पार्टी सांसद और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर को यह पद दिया जा सकता है। इसके अलावा राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम भी केंद्रीय संगठन के लिए चल रहा है। पार्टी के कुछ पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता भी अपने-अपने सिपहसालारों को पार्टी के नए बनने वाले संगठन में फिट करवाने के प्रयास में लगे हुए हैं जिससे गडकरी पर नियंत्रण बनाए रखा जा सके। इसके अलावा कुछ ने अपने ही स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए हैं जिनमें महासचिव विनय कटियार प्रमुख हैं। उन्होंने कहा है कि वर्तमान राजनीतिक दौर में संन्यास ही बेहतर है। उन्होंने यह शिगूफा इसलिए छोड़ा है ताकि नई टीम में उनकी जगह पक्की हो सके।
भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में आजकल हलचल है। नितिन गडकरी की टीम में कौन-कौन लोग होंगे? किन-किन लोगों को दरकिनार किया जाएगा? नए अध्यक्ष के रास्ते कौन कांटे बिछाएगा? कुछ कहते हैं कि गडकरी में दम है और कुछ लोगों को लगता है कि अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के मुक़ाबले गडकरी का क़द काफ़ी छोटा है। बहरहाल, भाजपा में नई टीम के गठन की जद्दोजहद चल रही है। फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह में यह पता चल पाएगा कि भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष की टीम में कौन-कौन शामिल हैं। स्वयं पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि पार्टी की नयी कार्यकारिणी का गठन फरवरी तक कर दिया जाएगा। पार्टी के कार्यकारिणी की नियुक्ति पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन के पूर्व हो जायेगी1 सम्मेलन संभवत: फरवरी के अंतिम सप्ताह में हो सकती है। सच तो यही है कि नई टीम तो राष्ट्रीय परिषद के अनुमोदन के बाद गठित होगी। कहा जा रहा है कि फरवरी में वेलेंटाइन डे से पहले आठ, नौ, दस तारीख को अध्यक्ष का चुनाव। फिर 17 को इंदौर में एकदिनी वर्किंग कमेटी और 18-19 को परिषद की मीटिंग। उसके बाद जब गडकरी नई टीम बनाएंगे। तो उसमें अपनी छाप तो छोड़ेंगे ही।

Thursday, January 14, 2010

मकर संक्रांति की ढेरों शुभकामनायें

मकर संक्रांति का सूरज एक नए सवेरे का प्रतीक माना जाता है सूरज की रोशनी धरती पर पड़ते ही लोग पवित्र नदियों में स्नान कर दान पुण्य में लग जाते है बाज़ार पतंग और मंजों से भर जाते है । बच्चे बूढ़े सभी लोग जोश के साथ पतंग उड़ाते है। आप सभी को मकर संक्रांति की ढेरो शुभकामनाए

Wednesday, January 13, 2010

सामूहिक पर्व लोहड़ी

हड्‍डियां कँपा देने वाली सर्दी के बीच वसंत आने की खुशी में पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में मनाया जाने वाला लोहड़ी पर्व रात में आग जलाकर सामूहिक नाच-गाना तथा मूँगफली, पॉपकार्न और रेवड़ी खाने-खिलाने का त्यौहार है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार लोहड़ी पौष मास के अंत में मना‌ई जाती है। प्रायः यह पर्व सूर्य के उत्तरायण में होने के साथ मकर संक्रांति के आसपास पड़ता है। सूर्य के उत्तरायण होने का अर्थ है जाड़े में कमी। दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारे रकाबगंज के मुख्य ग्रंथी गुरुचरण सिंह ने बताया कि लोहड़ी मुख्यतः न‌ई फसल के आने और वसंत की शुरु‌आत का पर्व है। उन्होंने बताया कि सिख धर्म में को‌ई भी पर्व सोग (शोक) में नहीं मनाया जाता। लोहड़ी तो खैर नाच-गाने का पर्व है ही। उन्होंने बताया कि इस दिन लोग विभिन्न सरोवरों और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान करते हैं। इसके अलावा वे गुरुद्वारों में जाकर मत्था टेकते हैं। दिल्ली के शीशगंज गुरुद्वारे के वरिष्ठ ग्रंथी ज्ञानी हेमसिंह ने बताया कि लोहड़ी शब्द दर‌असल तिल और गुड़ से निर्मित रोड़ी से बना था। मूल में यह शब्द तिलोड़ी था और बाद में यह शब्द बदलकर लोहड़ी हो गया। उन्होंने कहा कि लोहड़ी एक सामुदायिक त्यौहार है जिसे सब लोग मिलकर मनाते हैं लिहाजा इसका धर्म से बहुत लेना-देना नहीं है। सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही सर्द हवा‌ओं में गर्मी आने लगती है। ये हवा‌एँ शिरा‌ओं में रक्त संचार बढ़ा देती हैं। इस वजह से मनुष्यों में स्वाभाविक खुशी और मस्ती बढ़ने लगती है। लोहड़ी दर‌असल इसी मस्ती की शुरु‌आत का पर्व है। पंजाब की लोककथा‌ओं के अनुसार मुगल शासनकाल के दौरान एक मुसलमान डाकू था दुल्ले भट्टी। उसका काम था राहगीरों को लूटना, लेकिन उसने हिन्दू लड़कियों का विवाह करवाया। इसके बाद से दुल्ला भट्टी जननायक बन गया। लोहड़ी के अवसर पर लड़के-लड़कियाँ आग के सामने नाचते समय जो लोकगीत गाते हैं उनमें इसी दुल्ले भट्टी का जिक्र बार-बार आता है। ग्रामीण जीवन के इस सामूहिक पर्व लोहड़ी पर बच्चे घर-घर जाकर माँगते हैं। इस दौरान लोकगीत गाने वाले बच्चों को लोग आग जलाने के लि‌ए लकड़ियाँ, रेवड़ी, मूँगफली और पॉपकार्न आदि देते हैं।

रात्रि के समय आग जला‌ई जाती है तथा सभी लोग इस अग्नि की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करते समय सभी लोग आदर-सम्मान पाने और दरिद्रता एवं गरीबी दूर होने की प्रार्थना करते हैं। लोहड़ी पर जलती आग के समक्ष महिला‌एँ और बच्चे लोकगीत गाते हैं और नाचते हैं। इसके बाद लोगों को लोहड़ी के प्रसाद के रूप में गजक, मूँगफली और रेवड़ियाँ बाँटी जाती हैं। पंजाबी एवं सिख परिवारों में नवविवाहित जोड़े के लि‌ए पहली लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इस दिन न‌ए परिधान पहनकर नवविवाहित दंपति लोहड़ी की आग की पूजा करते हैं तथा परिवार एवं बुजुर्ग लोगों का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। नवजात बच्चे की पहली लोहड़ी को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन नवजात बच्चे की माँ उसे गोद में लेती है तथा घर के सभी सदस्य उसे उपहार देते हैं। रात में बच्चा और माँ को अग्नि के पास ले जाया जाता है और उसकी पूजा करवा‌ई जाती है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचलप्रदेश के कुछ हिस्सों एवं दिल्ली में मनाया जाने वाला लोहड़ी पर्व दर‌असल ग्रामीण भारत एवं लोकजीवन की उत्सव प्रियता की एक झलक है। सर्दी के मौसम में आग के समक्ष नाचना-गाना भला किसको अच्छा नहीं लगेगा और यह मौका अगर लोहड़ी के रूप में मिले तो मजा दुगना हो जाता है।

सारा आकाश

उसकी आखों में है सपना सुनहरे भविष्य का खुद को संवार कर अपने अपनों को संवारने का वह जान चुकी है कि अब सारा आकाश उसका है इसीलिए जो कभी तोड़ा करती थी पत्थर अब करती है अंतरिक्ष में चहल कदमी

Monday, January 11, 2010

केन्द्रिय मंत्रियों की तू-तू, मैं-मैं

मनमोहन सिंह ने जबसे दूसरी बार सत्ता की कमान संभाली है, तब से चैन नहीं मिल रहा है। कभी महंगाई के मुद्ïदे पर जनता के सवालों से बचते वित्त मंत्री और उनको घेरते विपक्षी, तो कभी चीनी के बढ़ते दाम पर कृषि मंत्रि का अटपटा बयान। हद तो तब हो जाती है, जब कांग्रेस के ही कुछ मंत्री आपस में लड़ बैठते हैं। इनको समझाने-बुझाने में फेर में मनमोहन जी ज्यादा परेशान नजर आते हैं। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में किये गये फेर-बदल से कुछ मंत्रियों की नाराजगी ऐसी जगजाहिर हुई कि पूछिये मत! बाकायदा सोनिया गांधी व मनमोहन सिंह को हस्तक्षेप कर मामला शांत करना पड़ा। तब से लेकर अब तक ये मंत्री नेता आपसे में लड़ते रहते हैं और बेचारे बड़े नेता इन्हें समझाते रहते हैं। कांग्रेसी गलियारों में आजकल कुछ किस्से चटखारे ले-लेकर सुने जा रहे हैं। जैसा कि पुरातन सत्य है कि पर निन्दा में लोगों को बड़ा रस मिलता है और यह निंदा रसूखदार मंत्रियों की हो, तो क्या कहने। सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने मंत्रियों के बीच बढ़ती अनबन से काफी परेशान हैं। मामला शुरु होता है दो कैबिनेट मंत्रियों के बीच, खबर है कि हाल ही में दोनों मंत्रियों के बीच टेलीफोन पर काफी गर्मा-गर्म बहस हुई। जिसकी चर्चा कांग्रेसी नेताओं में आम है। पिछली यूपीए सरकार के एक वरिष्ठï मंत्री इस बात पर नाराज हैं कि उनका विभाग उनको दे दिया गया जो पिछली बार राज्य मंत्री थे। इन मंत्री महाशय का यह दावा है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान उस विभाग को राष्टï्रीय से अंतर्राष्टï्रीय स्तर का बना दिया था। जबकि विभाग के मौजूदा मंत्री राजनीति में भी उनसे कम अनुभव वाले हैं। हाल ही में एक अंग्रेजी पत्रिका द्वारा मंत्रीजी के पुराने विभाग में हुये एक घोटाले का पर्दाफाश किया गया, जिसे लेकर विपक्ष ने खूब हंगामा मचाया। इस बात से कैबिनेट मंत्री जी खासे नाराज हो गये, उन्होंने यह भी पता लगा लिया पत्रिका को यह खबर लीक किसने की। मंत्री जी के करीबी लोगों ने इसका ठीकरा उनके पुराने विभाग के मौजूदा मंत्री के सिर फोड़ दिया। इसके बाद तेज-तर्रार मंत्री जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। फिर क्या था पुराने व नये मंत्री जी के बीच खूब कहा-सुनी हो गयी। इस तरह का मामला सिर्फ इन मंत्रियों तक ही सीमित नहीं है, इनके अलावा भी कई ऐसे मंत्री हैं, जो अपने विभागों को लेकर ज्यादा खुश नहीं हैं और अपने दबदबे का पूरा प्रयोग कर विभाग को बदलवाने की जोर-आजमाईश कर रहे हैं। कर्ई ऐसे भी कांग्रेसी मंत्री हैं, जो एक ही राज्य से आते हैं और एक ही विभाग में कैबिनेट व राज्य मंत्री बने हैं, ये नेता राज्य स्तर पर एक दूसरे के धुर-विरोधी हैं और केन्द्र में इनकी स्थिति ऐसी बनी कि साथ रहना ही पड़ता है। पर जैसे-जैसे गर्मी का पारा बढ़ता जाता है, इनके बीच तकरार व अनबन का माहौल भी गरम होने लगता है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं अपने मंत्रियों के इस कारनामे से बेहद क्षुब्ध हैं। लेकिन क्या करें, सत्ता है तो मंत्री हैं और मंत्री हैं तो दबदबा बनाना इनका काम है।

Saturday, January 9, 2010

सभ्यता की पोल

सहमी हुई सुबह
सूरज की रोशनी से
भयाक्रांत थी
कौन जाने किस पल
एक धमाका हो
जो कई जिस्मानी साबूत के साथ
प्रगतिशील सभ्यता की पोल खोल दे
और चांद पर चढऩेवाले
इनसानी मंसूबों को
अंदर तक नंगा कर दे।

Friday, January 8, 2010

एक नज़र इधर भी

Thursday, January 7, 2010

स्वायत्तता पर हल्ला बोल

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्य और केंद्र के बीच संबंधों को अधिक मजबूत करने के लिए गठित कार्य समूह की रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी, जिसमें संविधान का अनुच्छेद 370 पर भी विचार करने की बात की गई है। इसको लेकर विपक्षी दल भाजपा विरोध कर रहा है। भाजपा का कहना है कि रिपोर्ट की आड़ में केंद्र सरकार अतंरराष्ट्रीय समुदाय के एक खास वर्ग को यह दिखाने की कोशिश कर सकती है कि जम्मू-कश्मीर पर भारत का रुख कुछ नरम हुआ है।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एस। सगीर अहमद की अध्यक्षता में गठित पांचवे कार्य समूह ने राज्य को स्वायत्तता देने की सिफारिश की है और कहा है कि इस संबंध में नेशनल कांफ्रेंस ने जो प्रस्ताव रखा है केंद्र उस पर विचार कर सकता है। इस समूह ने हाल ही में मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी । रिपोर्ट में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 370 कितने समय तक अपने मौजूदा रूप में राज्य में लागू रहेगा इस पर ध्यान देने की जरूरत है। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है । कार्य समूह ने भारतीय संघ के भीतर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा, लोकतंत्र को मजबूत करने के तरीके, धर्मनिरपेक्षता तथा राज्य में कानून राज के संबंध में विचार किया था। रिपोर्ट के अनुसार स्वायत्तता के प्रश्न और कश्मीर समझौते (1975) के मद्देनजर या कुछ अन्य उपायों या कुछ अन्य फार्मूले के आधार पर वर्तमान प्रधानमंत्री जहां तक उचित समझें स्वायत्तता के मामले में विचार कर सकते हैं।
सच तो यह भी है कि सत्ता के अधिक विकेंद्रीकरण और राज्य सरकार को अधिक अधिकार सहित नेशनल कांफ्रेंस जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता देने की मांग कर रही है। पार्टी का कहना है कि केवल तीन विभाग रक्षा, विदेश मामले और मुद्रा भारत सरकार के पास रहने चाहिए। पार्टी का कहना है कि 1953 से पहले राज्य को स्वायत्तता प्राप्त थी और इसे बहाल किया जाना चाहिए। सियासी हलकों में यह कहा जा रहा है कि रिपोर्ट का संबंध नेशनल कांफ्रेंस के स्वायत्तता प्रस्ताव से ही है, जिसमें केंद्र सरकार को इस पर विचार करना है। अनुच्छेद 370 पर रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा रूप में इसके जारी रहने के संबंध में या इसे स्थायी करने या निरस्त करने के संबंध में राज्य के लोगों को फैसला करना है। यह मामला साठ वर्ष पुराना है, इसलिए एक बार हमेशा के लिए इसका हल निकालने की जरूरत है।
भाजपा को सबसे ज्यादा आपत्ति इसी पर है। चूंकि यह कार्य समूह प्रधानमंत्री की पहल पर बना था, इसलिए राज्यसभा में भाजपा नेता अरूण जेटली ने उन्हें पत्र लिखकर कड़ी आपत्ति जताई है। भाजपा से इसमें अरुण जेटली शामिल हुए। अपने पत्र में जेटली ने कहा कि केंद्र व राज्य संबंधों को लेकर बनाए गए इस कार्य दल की 12 दिसंबर 2006 से तीन सितंबर 2007 के बीच पांच बैठकें हुई। इसके बाद कोई बैठक नहीं हुई है। अब अचानक उसकी रिपोर्ट सामने आई है। इसके बारे में किसी से कोई चर्चा नहीं हुई है। वैसे भी 2007 से यह कार्यदल पूरी तरह से निष्क्रिय रहा है। जेटली ने यह सवाल भी उठाया कि अवकाश प्राप्त जजों का सरकार का राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए रबड़ स्टैंप के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बहुत अनुचित है कि देश की संप्रभुता से जुड़े संवदेनशील राजनीतिक मुद्दे पर अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एकतरफा तौर पर रिपोर्ट तैयार करे। कहा जा रहा है कि सगीर अहमद ने पिछले 28 महीनों में कुछ नहीं किया और अब एक ऐसी रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए जो स्वायत्तता और 1953 के पूर्व के मुद्दों पर सिफारिश दे रही है।

Monday, January 4, 2010

मंत्रियों के बोल, गोल मोल

आमतौर पर यही माना जाता है कि मंत्री जी ने जो कह दिया वही सत्य है। क्योंकि सरकार के काम-काज का जवाब उनके बयानों से ही मिलता है। मगर यूपीए सरकार के कुछ मंत्री ऐसे भी हैं, जो बयान तो दे रहे हैं, पर शायद उन्हें पता नहीं होता कि वे सच कह रहे हैं या गलत। इसका कुछ नजारा यहां देखा जा सकता है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की दूसरी पारी में कुछ ऐसे नेता, मंत्री भी हैं, जो अपने मंत्रालय की बाबत की कुछ ऐसे बयान दे देते हैं, जो सत्य से परे ही नहीं सत्य के पार भी होता है। इन मंत्रियों में रेल मंत्री ममता बनर्जी जैसी खास सख्सियत वाली नेता ही नहीं, सचिन पायलट जैसे नौजवान पीढ़ी के नेता भी शामिल हैं। बुर्जग और अनुभव नेता के बिना यह मामला पूरा नहीं होता, सो हिमाचल के तपे-तपाये नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी इस फेहरिस्त में शामिल हो गये। वीरभद्र सिंह इस्पात मंत्री बयान- लौह अयस्क पर के निर्यात पर सरकार पाबंदी लगा सकती है। सच्चाई- निर्यात के लिये कंपनियों से लंबी अवधि की डील होती है, उसका क्या होगा? वर्तमान में इस्पात मंत्री बने वीरभद्र सिंह ने इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के कार्यक्रम में कहा कि लौह अयस्क निर्यात पर पाबंदी लग सकती है। उनके अनुसार ऐसा इसलिये संभव है क्योंकि आने वाले दो सालों में देश में स्टील का उत्पादन 10 करोड़ टन प्राति वर्ष का हो जायेगा, ऐसे में घरेलू बाजार की मांग को पूरा करने के लिये हमें लौह अयस्क पर प्रतिबंध लगाना चाहिये। एक बारगी तो यह बयान सही लगता है, पर ऐसा करना क्या संभव है? यह बात मंत्री जी ने या तो नजरअंदाज कर दी, या इसे समझ ही नहीं पाये। जबकि असली कहानी यह है कि यह मांग बहुत पुरानी है। देश में करीब 20 टन करोड़ लौह अयस्क का उत्पादन होता है। जिसमें से लगभग 10 करोड़ टन का वित्त वर्ष 2008-09 में निर्यात किया गया। इसके साथ ही इस्पात मंत्रालय के आकड़े यह तस्वीर दिखाते हैं कि देश में लौह अयस्क के आपूर्ति की समस्या नहीं होने वाली है। इसके अलावा निर्यात के लिये कंपनियों के साथ लंबी अवधि का समझौता होता है। उसे कोई भी सरकार कैसे नजरअंदाज कर सकती है? सचिन पायलट दूरसंचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री बयान- वाईमैक्स पद्धति से गांवों और दूर-दराज के इलाकों में ब्राडबैंड सेवा पहुंचाना मुश्किल है। इसके लिये 3जी चाहिये। सच्चाई- वाईमैक्स तकनीक की मदद से ब्राडबैंड सेवा देश के कोने-कोने तक पहुंचायी जा सकती है। इसके लिये 3 जी की विशेष आवश्यकता नहीं है। नौजवान नेता व राहुल गांधी युवा ब्रिगेड के सिपहसालार सचिन पायलट की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। सचिन वर्तमान में दूरसंचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्य मंत्री हैं। इसलिये इनकी कही एक-एक बात का गहरा अर्थ निकाला जाता है। लेकिन शायद सचिन जी भी जुदा बयानबाजी की राह पर चल पड़े हैं। हुआ यूं कि एक दिन पत्रकारों के साथ प्रेसवार्ता में वे बोले कि वाईमैक्स तकनीकी से गांवों व दूर-दराज के इलाकों में ब्राडबैंड सेवा पहुंचाना मुश्किल है। इसलिये गांवों में ब्राडबैंड पहुंचाने के लिये 3जी का इस्तेमाल करना पड़ेगा। जबकि हकीकत यह है कि वाईमैक्स ऐसी तकनीक है, जिससे ब्राडबैंड को देश के किसी भी कोने में आसानी से पहुंचाया जा सकता है। शायद मंत्रीजी को सच्चाई पता नहीं थी, या 3जी का इतना इस्तेमाल करने लगे हैं कि हर वक्त जुबान पर बस यही छाया रहता है। खैर जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है कि मंत्रियों के बोल कितने निराले होते जा रहे हैं। ममता बनर्जी रेल मंत्री बयान- तूरंतो भारतीय रेल इतिहास की पहली नॉनस्टॉप ट्रेन होगी। सच्चाई- संपूर्ण क्रांति व श्रमशक्ति पहले सेे ही नॉनस्टॉप ट्रेनें हैं, जो चल रही हैं। इस कड़ी में तीसरा व सबसे कद्ïदावर नाम दूसरी बार रेलमंत्री बनीं ममता बनर्जी का जुड़ गया है। इस साल के रेल बजट से चारों ओर से प्रसंशा की पात्र बनीं ममता जी ने रेल बजट के दौरान कुछ ऐसी जानकारियां दी, जो सच्चाई से कोसों दूर हैं। उनके बजट भाषण में पेज संख्या 24 पर नॉनस्टाप ट्रेन तूरंतो चलाने की बात कही गयी है और आगे लिखा है कि यह भारतीय रेल इतिहास की पहली नॉनस्टाप ट्रेन होगी। पर शायद उन्हें याद नहीं है कि पूर्व रेलमंत्री नीतीश कुमार ने पटना और नईदिल्ली के बीच नॉनस्टाप ट्रेन शुरु की थी, जो आज भी चल रही है। बीच के स्टेशनों पर इसका कर्मशियल स्टापेज नहीं है। इसी तरह दिल्ली से कानपुर के बीच भी श्रमशक्ति नामक नॉनस्टाप ट्रेन चलती है। इस ट्रेन का कर्मशियल तो दूर ऑपरेशनल स्टॉपेज भी नहीं है। बात यही थम जाती तो ठीक थी, पर पेज संख्या 22 पर प्रेस संवाददाताओं को रियायतें शीर्षक से लिखा गया है कि रियायत को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जायेगा। जबकि सच्चाई यह है कि राजधानी व शताब्दी को छोड़कर अन्य सभी ट्रेनों में पत्रकारों को पहले से ही 50 प्रातिशत रियायत जारी है। अब ममता जी किसे क्या देना चाहती हैं ये तो वहीं जान सकती है। हां पर यह बात जरुर है कि अपनी जानकारियों हमें यह जानकारी तो दे ही दी है कि उनकी जानकारी कितनी है। गुलाम नवी आजाद स्वास्थ्य मंत्री बयान- लोगों के घर में टीवी होगा तो जनसंख्या कम बढ़ेगी। सच्चाई- ऐसा कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है, जिससे इनकी बात साबित हो सके। अपने नये-नये स्वास्थ्य मंत्री तो भाई गजब के हैं और इनकी बातें तो माशाअल्ला और भी गजब की होती हैं। अभी कुछ दिन पहले ही आजाद जी ने बयान दिया कि भारत में जनसंख्या बढऩे का एक कारण यह भी है कि लोगों के पास टेलीविजन नहीं है। इसके पीछे इनका तर्क यह था कि जब लोगों के पास टेलीविजन होगा, तब लोग देर रात तक टीवी कार्यक्रमों में व्यस्त रहेंगे और फिर थक कर सो जायेंगे। इससे जनसंख्या नहीं बढ़ेगी, मसलन मियां-बीबी टीवी में व्यस्त होकर सो जायेंगे और आपस में संबंध कम बना पायेंगे, जिससे तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण लगाया जा सकता है। कुछ हद तक इनकी बात में दम हो सकता है, मगर ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिससे यह साबित हो सके टीवी वाले घरों की जनसंख्या कम होती है। चलिये इनके कहे लोग टीवी ले भी आयें तो इसे चलाने के लिये बिजली कौन देगा? मेट्रो शहरों की चकाचौंध में रहने वाले नेताजी शायद यह भूल रहे हैं कि आधी से ज्यादा आबादी वाले हमारे गांवों में 24 घंटे में से बमुश्किल 4 घंटे ही बिजली नसीब हो पाती है। यदि बिजली गुल हो गयी तो कभी-कभी महीनों इसके दर्शन नहीं होते। कुछ इलाके तो आज भी ऐसे हैं जहां बिजली तो दूर बिजली के खंभे और तार भी सरकारी भ्रष्टïाचार का शिकार हो गये हैं और आजतक नहीं लग पाये। ऐसे में मंत्रीजी के बयान का कोई अर्थ नहीं रह जाता। खैर यह तो सरकार है और सरकार का कहा भला कौन टाल सकता है? मनोज द्विवेदी manragini.blogspot.com

Saturday, January 2, 2010

आगे क्या होगा रामा ...

मोटे तौर पर कहा जाए तो झारखंड चुनाव में राष्टï्रीय राजनीति विफल हुई है और क्षेत्रीय राजनीति ऊपर आई है। क्षेत्रीय दलों को बेहतरी दिखाने वाले जनादेश ने यह साबित कर दिया है कि चुनाव में तमाम प्रत्याशा फलित नहीं हुए औ क्षेत्रीय अस्मिता का वर्चस्व रहा। अब अहम सवाल यह कि झारखंड के विकास और स्थायित्व में शिबू सोरेन और उनका सरकारी कुनबा कितना सफल होगा।
सवाल अहम है। विशेषकर तब जब समान विचारधाराओं के लोगों ने एक साथ सामजंस्य नहीं बिठाया। नतीजन शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने तो भाजपा के रघुवर दास और आजसू के सुदेश महतो को प्रदेश का उप-मुख्यमंत्री बनाया गया। भौगोलिक और राजनीतिक स्तर पर झारखण्ड उतना बड़ा नहीं है कि प्रदेश को मुख्यमंत्री के स्तर के तीन लोग चाहिए। कारण साफ हैै। गठबंधन की मजबूरी। अपने गठन के नौ वर्ष के अंदर ही प्रदेश ने आधा दर्जन से अधिक मुख्यमंत्री देखे हैं, फिर भी विकास की हवा नहीं बही। अव्वल तो यह कि शिबू सोरेन बिना विधायक बने हुए तीसरे बार सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठे हैं। इससे पहले भी दो बार मुख्यमंत्री बनने के बाद विधायक नहीं बन पाए और कुर्सी छोडऩी पड़ी। इस दफा भी स्थिति वही है। ऐसी स्थिति में एक बार फिर उन्हें छह महीने के अंदर विधायक बनने की औपचारिकता पूरी करनी होगी। यदि विधायक नहीं बन पाते हैं तो जनादेश का अपमान ही माना जाएगा और सरकार का क्या होगा, कहना मुश्किल है।
आमतौर पर यही कहा जाता है कि भाजपाई नैतिकता के पैमाने में फिट नहीं होते शिबू सोरेन। फिर भी सत्ता के स्वार्थ के चलते उसी के पाले में चली गई है। यह वाकई हैरत की बात है कि भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की बात तो करती है लेकिन जब दागी छवि वाले व्यक्तियों के सहारे सत्ता की उम्मीद दिखती है तो उसे कुछ गलत नजर नहीं आता। लोग ऐसा उदाहरण पूर्व में हिमाचल प्रदेश में देख चुके हैं जहां भाजपा ने सुखराम की पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर सरकार बनाई थी जबकि चुनावों में वह सुखराम के कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर उतरी थी। ऐसे में भाजपा-झामुमो की सरकार के स्थायित्व को लेकर संशय है। वह भी तब, जब तीसरे दल के रूप में आजसू अपनी बात मनवाने की भरसक कोशिश करेगा। गठबंधन के युग में जब मान-मनौव्वल का दौर चलता है तो विकास की बात धरी रह जाती है। लोकहित के मुद्दे हाशिए पर चले जाते हैं। मधु कोड़ा प्रसंग अभी सामने है।
सच तो यही है सोरेन की लाख आलोचना हो, लेकिन वे झारखंड में आदिवासी भावना का नेतृत्व करते हैं। आदिवासियों के बीच उनका गौरवशाली इतिहास रहा है। झारखंड को जब छोटा नागपुर कहा जाता था और वह बिहार का हिस्सा था, तब वहां सोरेन के नाम का सिक्का चला करता था। पर्चा नहीं होता था, पोस्टर नहीं होते थे, गाडी-घोडे नहीं होते थे, किसी भी पेड की टहनी काटकर इलाके में घुमा दी जाती थी, तो लोग समझ जाते थे, आज गुरूजी की सभा है।
दरअसल, वर्तमान में झारखंड की राजनीति को समझने की जरूरत है। जब संयुक्त बिहार था, तब झारखंड के नेताओं को तीसरी-चौथी पंक्ति में स्थान मिलता था, वे पिछलग्गू होते थे। अब झारखंड की राजनीति अपने पैरों पर खडी हो रही है। झारखंड बनने के बाद भी कुछ समय तक यहां के नेता पिछलग्गू की मानसिकता से ग्रस्त थे। इस चुनाव से झारखंड में यह भावना पैदा हुई कि हमें अपना नेतृत्व देना है। तो आदिवासियों के बीच से नेतृत्व धीरे-धीरे उभरने लगा है। जैसे ही झारखंड बना है, आदिवासियों को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। हालांकि इसका एक बुरा पक्ष यह रहा कि पहले झारखंड के विधायकों पर बिकने के आरोप लगते थे और अब मुख्यमंत्री पद के बिकने की बातें हो रही हैं। आदिवासियों में नेतृत्व की आकांक्षा पैदा हुई है, लेकिन कांग्रेस व भाजपा ने इस बात को समझा नहीं। कांग्रेस और भाजपा एक ही धरातल पर खडी थी, दोनों की रणनीति भी एक थी। झारखंड में कांग्रेस और भाजपा, दोनों का ही नेतृत्व गैर-आदिवासी है। भाजपा में बडे खेमे का नेतृत्व यशवंत सिन्हा करते हैं, तो छोटे खेमे का नेतृत्व रघुवर दास, दोनों को ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था। किसी समय भाजपा में बाबूलाल मरांडी अच्छे आदिवासी नेता रहे थे, लेकिन गैर-आदिवासी नेताओं ने उन्हें बाहर करने के लिए दबाव बनाया। इसके अलावा मरांडी पार्टी को ज्यादा पैसे नहीं दे सकते थे। दूसरी ओर, कांग्रेस में सुबोधकांत सहाय मुख्यमंत्री पद की दौड में थे। इसकी प्रतिक्रिया आदिवासियों में हुई।
इन सियासी हालातों के बावजूद प्रदेश के नवनियुक्त उपमुख्यमंत्री रघुवर दास कहते हैं, 'प्रदेश के अंदर सुशासन कायम करते हुए गरीबों का कल्याण हमारी पहली प्राथमिकता होगी। झारखंड की जनता ने राज्य के विकास का जो गुरुत्तर भार हमारे कंधे पर डाला है, हम पूरी निष्ठा के साथ इसका निर्वहन करेंगे।Ó वहीं उनके साथ ही शपथ लेने वाले उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो शासन की धार से विकास की धारा बहाने की बात करते हैं। वे कहते हैं, 'शासन की धार से विकास की धारा को झोपड़ी तक पहुंचाने की कवायद ही उनकी प्राथमिकता है। गरीबों का कल्याण तभी हो सकता है, जब सरकार योजनाओं को लेकर उनके प्रति संवेदनशील होगी। युवाओं व महिलाओं का विकास भी उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है।Ó
हालांकि, प्रदेश की जनता को विकास की बातों से अधिक विकास कार्यों की प्रतीक्षा है। ऐसे में तो यही कहा जाएगा कि मतदाता पूरे राज्य से अधिक अपने क्षेत्र-विशेष के संबंध में चिंतित है। हमारी राष्ट्रीय और जातीय चिंताएं स्थानीय चिंताओं के समक्ष कमजोर हो रही हैं। शिबू सोरेन की भूमिका बड़ी है। सरकार अपने लाभ और जनता के नुकसान के लिए नहीं बननी चाहिए। झारखंड में केवल समस्याएं हैं, जिनके समाधान के लिए पूरी ईमानदारी के साथ कांग्रेस, झाविमो और झामुमो को आगे बढऩा होगा।

नीलम