Tuesday, December 22, 2009

अपनी ढपली अपना राग

भले ही वित्तमंत्री ने जीएसटी लागू करने की तिथि 1 अप्रैल 2010 घोषित की हो पर राज्यों के इस व्यवस्था पर जगजाहिर कड़े ऐतराज और इससे संबंधित संविधान संशोधन में हो रही देरी के चलते इसे तयशुदा तिथि में लागू कर पाना असंभव है। हाल ही में दिल्ली में विभिन्न राज्यों के वित्तमंत्रियों ने एक बैठक में शिरकत की जिसका मकसद जीएसटी यानी वस्तुएं एवं सेवा कर के सभी पहलुओं पर गहन विचार विमर्श करना था। एक अप्रेल, 2010 से पूरे देश में जीएसटी लागू किया जाना प्रस्तावित है। जीएसटी पर चर्चा करना जरूरी है पर अब जबकि इसे लागू करने की तिथि इतने करीब है ऐसे में इसकी रूपरेखा पर अब विचार करना समझ से परे है। जीएसटी की प्रस्तावना 2006-2007 के बजट के दौरान वित्त मंत्री ने रखी थी जिसके तहत जीएसटी को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का पर विचार विमर्श करना था। तीन साल पहले से शुरू हुई यह कवायद अब तक वैसी की वैसी है। विभिन्न राज्यों के वित्त मंत्री इसपर केवल कागज़ी कार्यवाही करते रहे हैं पर अब तक इसे अमली जामा पहनाने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। इसमें हो रही देरी का मुख्य कारण है इसपर राज्यों औक केन्द्र का एकमत न होना। इसके लागू होने में सबसे बड़ी रुकावट बन रहे हैं राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश जो अब भी इसी बहस में जुटे हैं कि इसके अंर्तगत किन वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया जाना चाहिए और किसे नहीं।
दूसरी ओर भले ही वित्त मंत्रालय इसे लागू करवाने में तत्परता दिखा रहा हो पर अब तक इसे लागू करने के लिए सबसे संविधान संशोधन की सबसे अहम कार्यवाही के लिए उसने कोई भी कदम नहीं उठाया है। संविधान संशोधन के बिना न तो केन्द्र के पास वस्तुओं का निमार्ण करने वाले राज्यों पर कर लगाने का और न ही राज्यों के पास सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार है। ऐसे में जीएसटी के लागू होने के बाद भी इसकी उपयोगिता शून्य ही होगी। संविधान लागू करने से लेकर इसकी सूचना व्यवस्था को सुचारु बनाने का ढांचा तैयार करने में काफी समय लगेगा। इसके साथ ही राज्यों को यह रूपरेखा भी बनानी होगी कि वे अब तक केन्द्र के अधीन आने वाले रेल, दूरसंचार जैसी देशव्यापी सेवाओं से राजस्व वसूलने के लिए क्या रूपरेखा बनाएंगे क्योंकि यह ऐसी सेवाएं हैं जो राज्यों के सीमा से बाहर भी इस्तेमाल होती हैं।
राज्य इसके मॉडल को लेकर भी एकमत नहीं हैं। कुछ राज्य जिनमें गुजरात प्रमुख है, सामान्य जीएसटी की पक्षधर है जिसमें सभी वस्तुओं पर समान जीएसटी देनी होगी, जबकि कई राज्यों के वित्तमंत्रियों वाली अधिकार समिति, जीएसटी के लिए दोहरी व्यवस्था के पक्षधर हैं जिसके तहत व्यापक उपभोग की वस्तु पर कम जीएसटी, दूसरी वस्तुओं पर सामान्य दर तथा मंहगी वस्तुओं पर सबसे ज्यादा जीएसटी देना होगा। राज्यों के अलावा उद्योग जगत में भी जीएसटी के ढांचे को लेकर आम सहमति नहीं है। उद्योग जगत के लोग दोहरी कर प्रणाली का समर्थन नहीं करते।
जब तीन साल पहले वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जीएसटी लागू करने का प्रस्ताव केन्द्र में रखा था तब इसे आर्थिक सुधार के एक अहम कदम के रूप में देखा जा रहा था। एक ऐसा आर्थिक सुधार जिसकी शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंम्हाराव ने की थी। अगर जीएसटी लागू हो जाती है तो इसका सबसे बड़ा फायदा उन उद्योगों को मिलेगा जो अब तक विभिन्न स्तरों पर कर चुकाने को बाध्य हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर के उत्पाद शुल्क, सेवा कर, राज्य स्तर के वैट और स्थानीय स्तर के ऑक्ट्राय व परचेज टैक्स के स्थान पर सिर्फ एक कर देना होगा जो राष्ट्रीय स्तर का होगा। यूपीए सरकार कोशिश कर रही है कि वैट लागू करने के बाद जो विसंगतियां और व्यावहारिक कठिनाइयाँ सामने आई थीं उसकी जीएसटी के संदर्भ मेें पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। इसीलिए राज्यों को भी अपनी राय रखने का व राज्य की कतिपय समस्याओं के साथ ही जनसाधारण की सुविधाओं को भी ध्यान में रखने की स्वतंत्रता है। तमाम कठिनाईयों के बावजूद यूपीए सरकार जीएसटी लागू करने का हर संभव प्रयास कर रही है। इसके लिए वह इसके लागू होने से राज्यों के होने वाले राजस्व घाटे की भरपाई करने को भी राजी है और राज्यों को 14,000 करोड़ देने का वादा भी कर रही है। बावजूद इसके जीएसटी के लिए सबसे अहम संविधान संशोधन, इसके लिए गठित वित्तमंत्रियों की समिति, राज्यों की आनाकानी और उद्योगों से आमराय न बन पाने के चलते इसके 1 अप्रेल 2010 से लागू होने की संभावना न के बराबर है। हो सकता है कि यूपीए सरकार की कोशिशों से 2011 तक यह व्यवस्था लागू हो जाए।
क्या है जीएसटी
जीएसटी एक दोहरी कर प्रणाली व्यवस्था होगी जिसमें राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय क रों की जगह एक व्यापक कराधान व्यवस्था होगी। यह देश में लागू राजस्व वसूली के प्रबंधन में एक आमूल चूल परिवर्तन साबित होगी। इसके विभिन्न मुद्दों पर विचार करने के लिए एक अधिकार प्राप्त समिति बनाई गई है जिसके अध्यक्ष पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री डॉ. असीम दासगुप्ता हैं।

0 Comments:

नीलम