सियासतदां अभी शेहला मसूद और भंवरी के भंवर से निकल भी नहींपाएं है कि गीतिका और फिजा की मौत ने राजनीतिक हलकों में फिर हडक़ंप मचा दिया है। वैसे भी जब-जब सियासत नंगी हुई है, तब-तब अवाम शर्मिंदा हुआ है। हर बार कीमत लोकतंत्र को चुकानी पड़ी है। पहले भी कई ऐसे कांड हुए हैं जिसने सफेदपोशों के चोहरों पर काली स्याही पोत दी है।
नैना साहनी, मधुमिता शुक्ला, शशि प्रसाद, भंवरी देवी, गीतिका शर्मा और अब फिजा इन सबके जीवन की कहानी लगभग एक जैसी है। सभी ने अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राजनीतिक शख्सियतों का सहारा लिया और अपना सबकुछ उनपर लुटा दिया पर बदले में न सत्ता मिली न ही जिंदगी जीने का हक। इन सबके रातों रात चमकने के सपने ने इनसे इनकी आखिरी सांसे भी छीन ली। किसी को अज्ञात हमलावरों ने गोलियों से भून डाला तो किसी को तंदूर की आग के भेट चढऩा पड़ा। पर ये सिलसिला यहींरुका नहींहै और शायद कभी रुकेगा भी नहीं क्योंकि सत्ता का नशा और सत्ता का उपयोग अपने विलासिता के साधन जुटाने में करना नेताओं के लिए नया ट्रेंड नहीं है। बस हर बार इसको डील करने का तरीका बदल जाता है।
अगर नैना साहनी में राजनीतिक महत्वकांक्षा और समाज में नाम पाने का जुनून न जागता और युवक कांग्रेस का दबंग नेता सुशील शर्मा उसकी इस महत्वकांक्षा को पूरा करने का वादा न करते तो शायद नैना का हश्र इतना दहला देने वाला न होता। मंदिर मार्ग के एक फ्लैट में कांग्रेस का खूबसूरत और तेजतर्रार युवा नेता नैना साहनी के साथ में रहता था। नैना को भले ही सुशील ने अपने घर वालों से कभी नहीं मिलवाया था, लेकिन तेज दिमाग नैना के दबाव के चलते उसको गुपचुप शादी करनी पड़ी थी। नैना के भी पॉलिटिकल रिश्ते थे, जो सुशील को बाद में अखरने लगे थे और यही उसकी हत्या की भी वजह भी बने। 2 जुलाई 1995 की रात कांस्टेबल अब्दुल कादिर कुंजू और होमगार्ड चंद्रपाल को दिल्ली के ओपन एयर रेस्तरां से उठने वाला धुंआ कुछ इतना ज्यादा लगा कि वो चैक करने के लिए अंदर जा पहुंचे। अंदर पहुंचते ही बदबू आना शुरू हो गई। ये दोनों पुलिस वाले अगर अंदर नहीं जाते तो दुनिया कभी भी तंदूर कांड से रूबरू नहीं हो पाती। सुशील ने नैना को ठिकाने लगाने का मन तब बनाया जब किसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हो गई और गुस्से में सुशील ने नैना पर अपने लाइसेंसी रिवॉल्वर से दाग दीं एक-एक करके पूरी तीन गोलियां। जान लेने के बाद भी उसका गुस्सा खत्म नहीं हुआ। उसने रेस्तरां के मैनेजर के साथ मिलकर लाश के टुकड़े-टुकड़े कर उनको जलते तंदूर में झोंक दिया। नैना साहनी की दर्दनाक हत्या ने सरकार को हिलाकर रख दिया। कांग्रेस के नेता का यह रूप देखकर हर कोई हैरत में था। सरकार को न जवाब देते बन रहा था न कार्यवाही करते। मजबूरन लोगों और मीडिया के दबाव के चलते पुलिस और प्रशासन सक्रिय हुआ। पुलिस की बढ़ती गतिविधियों के चलते सुशील को सरेंडर करना पड़ा। लेकिन वह इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था। हर बार वह पुलिस को उलझाता रहा। बयानों के लगातार बदलने और झूठ बोलने के कारण मामला उलझता जा रहा था। सुशील ने फ्लैट से लेकर, उसमें मिले कागजातों तक को अपना मानने से इनकार कर दिया। इसी बीच नैना साहनी की एक डायरी में 3 जुलाई को नैना की लिखावट का लेख भी मिला। सुशील ने बस उसे पहचाना ताकि ये साबित किया जा सके कि नैना 2 जुलाई को मरी ही नहीं। कई वकीलों ने इस केस से हाथ खींचा तो सुशील ने भी तमाम कानूनी दांवपेच भिड़ाए। लेकिन मीडिया के जरिए पब्लिक प्रेशर काम आया, जांच अधिकारियों को सतर्कता बरतनी पड़ी और कोर्ट ने सुशील को फांसी की सजा सुना दी। फिलहाल सुशील जेल में है और सुप्रीम कोर्ट से राहत भरे फैसले की उम्मीद कर रहा है।
राजनीतिक मुहब्बत की एक और खूनी दास्तां है युवा कवयित्री मधुमिता शुक्ला और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की जहां मधु को अपनी जान गवां कर एक नेता से प्रेम करने का कर्ज चुकाना पड़ा। कम उम्र का जोश, वीर रस की कविताएं, दबंग राजनेता की मोहब्बत, सियासत का रसूख इस कॉकटेल के नशे में मधुमिता जिंदगी और प्रेम की अपनी इबारत गढऩे लगी। जिस समय अमरमणि से उसकी मुलाकात हुई थी, तब उसकी उम्र महज 18 साल थी, जबकि 45 साल के अमर मणि न केवल शादीशुदा थे, बल्कि बच्चों के बाप भी थे। एक नवोदित कवयित्री मधुमिता शुक्ला और अमरमणि की प्रेम कहानी बदस्तूर चलती रहती अगर मधुमिता ने अमरमणि पर विवाह करने का जोर ना डाला होता। यूपी के स्टांप और रजिस्ट्रेशन राज्य मंत्री (तत्कालीन मायावती सरकार में) अमरमणि त्रिपाठी के प्यार में पागल यह कवयित्री उसके अवैध अंश को जन्म देना चाहती थी। लेकिन मंत्री साहब को यह गवारा नहीं था। मई 2003 को अचानक मधुमिता की उनके लखनऊ स्थित पेपर मिल कालोनी के घर में हत्या कर दी जाती है। शक की सुई मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर उठीं। मधुमिता की मौत के बाद डायरी और पत्रों से इस बात का साफ खुलासा हो गया कि त्रिपाठी के दबाव में मधुमिता दो बार गर्भपात करवा चुकी थी। जिस समय हत्या हुई, उस समय भी वे छह माह की गर्भवती थी। मधुमिता की हत्या ने उत्तरप्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। मीडिया के दबाव चलते अंत्येष्टि से चंद घंटे पहले मधुमिता के शव से भ्रूण निकालने के लिए पुलिस को मजबूर कर दिया। अजन्मे बच्चे का डीएनए टेस्ट से मधुमिता और त्रिपाठी के रिश्तों की पुष्टि हो गई। मीडिया का साथ मिला तो लखीमपुर में रह रही मधुमिता की बड़ी बहन निधि में भी हिम्मत दिखाई। दबाव बढऩे लगा, जांच में तेजी आई और राजफाश होने लगे। पता चला मधुमिता की हत्या में अमरमणि और उसकी पत्नी मधुमणि दोनों का हाथ था। खतरनाक प्रेम की भेंट में जहां मधुमिता को जान से हाथ धोना पड़ा वहीं त्रिपाठी भी उम्रकैद की सजा भी काट रहा है। अमरमणि को 21 सितंबर 2003 को में गिरफ्तार कर लिया जाता है और उनकी जमानत की अर्जी भी ठुकरा दी जाती है। 24 अक्टूबर 2007 को देहरादून में एक विशेष अदालत ने मंत्री अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, उनके चचेरा भाई रोहित चतुर्वेदी और उनके सहयोगी संतोष राय को मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में दोषी पाया। अदालत ने अमरमणि को आजीवन कारावस की सजा सुनाई।
फैजाबाद की रहने वाली शशि प्रसाद लॉ की स्टूडेंट थी। वह राजनीति में आना चाहती थी। इसलिए शार्टकट के रूप में उसने मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री आनंद सेन को चुना। आनंद सेन ने भी उसकी आंखों में बसे इस ख्बाव को देख लिया था। फिर शुरू हुआ वायदों का सिलसिला। वायदे बढ़ते गए, जिस्मानी दूरियां मिटती गईं। बीएसपी कार्यकर्ता राजेंद्र प्रसाद की बेटी शशि प्रसाद के आनंद सेन के साथ संबंध बने पर इस संबंध से उसे सत्ता सुख तो नहींमिला पर मौत जरूर मिली। 22 अक्टूबर 2007 को शशि अचानक गायब हो गई। गुमशुदगी की सूचना 23 अक्टूबर 2007 को दर्ज कराई गई। एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी जब शशि का कुछ पता नहीं चला तो शशि के पिता ने आनंद पर अपहरण और हत्या का आरोप लगाया। मामले में आनंद और उनके ड्राइवर विजय को आरोपी बनाया गया। लंबी छानबीन और धड़पकड़ के बाद पता चला कि वह इस दुनिया से जा चुकी थी। उसकी हत्या हो गई थी। फैजाबाद की अदालत ने आनंद सेन और उसके ड्राइवर को उम्रकैद की सजा सुनाई।
हाल ही राजस्थान की गवर्नमेंट को हिलाने वाली भंवरी देवी का केस पिछले कई दिनों से सुर्खियों में है। सत्ता का नशा और सत्ता का उपयोग अपने विलासिता के साधन जुटाने में करना नेताओं के लिए नया ट्रेंड नहीं है। पर जब उनकी विलासिता की वस्तु पलटकर उनका गिरहबान पकड़ लेती है और उनको ब्लैकमेल करने लगती है तो उसका हश्र सिर्फ मौत ही होता है।
पेशे से नर्स भंवरी देवी कोई साधारण महिला नहीं थी, बल्कि सत्ता के गलियारों में जहां उसकी ऊंची पहुंच थी, वहीं इस पहुंच को बरकरार रखने के लिए उसने शार्टकट का इस्तेमाल करने तक से गुरेज नहीं किया। जैसलमेर सरकारी अस्पताल में नर्स भंवरी देवी 2001 में कॉग्रेस एमएलए मल्खान सिंह बिश्नोई के संपर्क में आईं और बाद में राजस्थान के वॉटर रिसोर्स मिनिस्टर महिपाल मदेरणा के संपर्क में। बिश्नोई को मंत्री बनाने के लिए मदेरणा के साथ अश्लील सीडी बनाई ताकि गहलोत कैबिनेट में उन्हें बदनाम कर हटाया जा सके। भंवरी ने मदेरणा और बिश्नोई दोनों के साथ अश्लील सीडी तैयार की और दोनों को ब्लैकमेल करती रहीं। 1 सितंबर 2011 में भंवरी लापता हो गई। 2 दिसंबर को मदेरणा कैबिनेट से बाहर हुए और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। भंवरी देवी का अपहरण हुआ है, वह बंधक है या फिर उसकी हत्या कर उसे जला दिया गया है, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है, लेकिन इस मामले ने फिर एक बार कांग्रेसी नेताओं की इज्जत उतार कर जरूर रख दी है।
एमडीएलआर की पूर्व एयर होस्टेस गीतिका शर्मा ने 4 अगस्त की देर रात अशोक विहार फेज-3 स्थित अपने फ्लैट में पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी। उनका शव रविवार सुबह उनके परिजनों ने पंखे से उतारा। 2 पेज के सूइसाइड नोट में गीतिका ने हरियाणा के पूर्व मंत्री गोपाल कांडा और उसी कंपनी की मैनेजर अरुणा चड्ढा पर मानसिक प्रताडऩा का आरोप लगाया था। पुलिस ने दोनों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया। सूइसाइड नोट के सार्वजनिक होने के कुछ ही घंटों बाद कांडा ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि यह उनके खिलाफ कोई राजनैतिक षड्यंत्र का हिस्सा है जबकि गीतिका ने सुसाइड नोट में लिखा है कि कांडा उसका पायाद उठाना चाहते थे।
अनुराधा बाली यानी फिजा की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। फिजा 2008 में उस समय सुर्खियों में आई थीं जब उन्होंने हरियाणा के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री चंद्रमोहन से शादी की थी। दिसंबर 2008 में जब पूरा देश मुंबई के आतंकवादी हमलों से जूझ रहा था ऐसे में हरियाणा की जमीं पर कुछ नया और अनोखा ही पक रहा था। जन्म से हिन्दू चंदर मोहन और अनुराधा ने देश के 2.3 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं पर चोट करते हुए यह घोषणा की कि उन्होंने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया है और चांद मोहम्मद और फिजा बन एक दूसरे के साथ निकाह पढ़ लिया है। 43 साल के इस अधेड़ ने इस्लाम कबूलकर दूसरा विवाह रचा लिया क्योंकि उसकी पहली पत्नी जिंदा है उससे उन्हें दो बच्चे भी हैं। पर चंदर उर्फ चांद ने जितने जोर-शोर से अपने निकाह का ऐलान किया था उतनी ही तेजी से वह इससे दूर भी हो गए। इसका कारण था कि उनके पिता ने उनसे सारे अधिकार छीन लिए थे।
चंदर के प्यार में अपनी नौकरी तक दांव पर लगाने वाली फिजा फिर से सुश्री बाली बन अपनी मां के साथ बेरोजगारी में दिन बिताने लगी। उसपर कर्ज बढ़ते जा रहे थे और प्यार की नाकामी का गम भी। इस गम को मिटाने के लिए वह शराब पीने लगी और लोगों से बात बेबात झगडऩे भी लगी। जितना खूबसूरत इस कहानी का आगाज था उतना ही दर्दनाक फिजा यानी अनुराधा का अंत है। अपने 41वें जन्मदिन के 10 दिन बाद 6 अगस्त 2012 को फिजा मरी हुई पाई गईं। उनका शव उनकी मौत के तीसरे दिन बरामद हुआ। उनका खूबसूरत शरीर सड़ चुका था और उसमें कीड़े रेंग रहे थे। शुरूआती जांच के बाद पुलिस ने कहा कि अनुराधा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। पुलिस की यह बात सच मानी जा सकती थी क्योंकि अनुराधा पहले भी आत्महत्या करने की कोशिश कर चुकी है। वह जीवन से निराश भी थी पर फांसी लगाने का बाद उसका शव बिस्तर पर कैसे आया, उसके घर में ढेर सारी शराब की बोतले क्या कर रही थीं और क्यों चद्रमोहन उसका जिक्र तक नहींकरना चाहते जैसे सवाल उसकी मौत को संदिग्ध बनाते हैं।
अपनी भूख शांत करने के बाद हमारे देश के पॉलिटिशियंस ने अपनी इन तथाकथित ‘प्रेमिकाओं’ को ही ठिकाने लगा दिया। उसका न तो इन्हें कभी कोई पछतावा रहा और न ही इनके परविार के सदस्यों को। आज भी इस तरह के गुनाह करने वालों को कोई मुक्कमल सजा नहींमिली है। इनके केस अदालत दर अदालत चल रहे हैं और ये बेशर्मकी तरह जी रहे हैं। इन्हें तो कभी शर्म आएगी नहीं, लेकिन हम जैसे लोगों को भी इनके कारनामे सामने आने के बावजूद शर्म नहीं आती और जब यह वोट की भीख मांगते हुए हमारी चौखट पर आते हैं तो समाज-नैतिकता के नाम पर दुहाई देने वाले हम लोग ही इन्हें चुनकर सत्ता में भेज देते हैं। जब तक लड़कियां अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शार्टकट अपनाती रहेंगी और सियासतदां अपने शरीर की भूख मिटाने के लिए ऐसी महिलाओं और लड़कियों को अपना शिकार बनाते रहेंगे तब तक इस तरह की घटनाएं घटती रहेंगी और सियासत शर्मसार होती रहेगी।
2 Comments:
संवेदनापूर्ण, गहराई से विवेचन। आलेख पठनीय है।
काफी सराहनीय लेख है और इससे हमारे समाज को सीखना चाहिए।
Post a Comment