आखिरकार संसद में सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज बिल अथवा परमाणु दायित्व विधेयक का संशोधित प्रारूप पारित हो ही गया। काफी राजनीतिक ना-नुकुर के बाद सरकार ने मुख्य विपक्षी दल भाजपा को विश्वास में लेकर इसे पारित करा लिया। जानकारों की रायशुमारी तो यही रही कि इस विधेयक का मसौदा खराब ही नहीं था बल्कि सरकार ने इसे ठीक से पेश भी नहीं किया था। मसौदा तैयार करने के लिए जिन अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने अगर अपना काम बेहतर ढंग से किया होता और कांग्रेस पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी से पहले ही सलाह मशविरा कर लिया होता तो बाद में बदलाव किए गए , उनमें से कई को मूल मसौदे में ही शामिल कर लिया गया होता। अब सरकार एकमात्र यही दावा कर सकती है कि उसने मसौदा तैयार ही ऐसा किया था कि विपक्ष उसमें सुधार करने के बाद समर्थन घोषित कर सके। दरअसल, कुछ समय से लगातार चर्चा में रहे परमाणु दायित्व बिल को कुछ संशोधनों के साथ लोकसभा में पारित कर दिया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने लोकसभा के पटल पर परमाणु दायित्व बिल का मसौदा रखा। सरकार की ओर से इसमें अठारह संशोधन लाए गए, जिन्हें सदन ने मंजूरी दे दी। विधेयक में यह व्यवस्था है कि दुर्घटना की स्थिति में संचालक को प्रभावित लोंगों को 1500 करोड़ रूपए तक का मुआवजा देना होगा। इसमें परमाणु उपकरण आपूर्तिकर्ता को घटिया माल या सेवा देने के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रावधान किया गया है। काबिलेगौर है कि परमाणु दायित्व विधेयक में ताजा संशोधन के तहत किए गए प्रावधानों को किसी दुर्घटना की स्थिति में ऑपरेटर की जवाबदेही कम करने वाला बताया जा रहा है। केबिनेट ने बिल में उस प्रस्ताव को भी शामिल किया था जिसके अंतर्गत रिएक्टर ऑपरेटर क्षतिपूर्ति का दावा तभी कर सकता है जब हादसे को जानबूझकर अंजाम दिया गया हो। बिल के क्लॉज 17 मे संशोधन के मुताबिक परमाणु रिएक्टर में हादसे की क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी न्यूक्लियर ऑपरेटर की होगी और क्षतिपूर्ति का भुगतान नियम 6 के अनुसार ही किया जाएगा। क्षतिपूर्ति भुगतान का अधिकार तीन उपबंधों पर निर्भर होगा। हालांकि अपने स्तर पर सरकार ने परमाणु दायित्व विधेयक में किए गए संशोधन को उचित ठहराने की कोशिश की, जिनकी वजह से सरकार को आलोचना सहनी पड़ी है। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि सरकार ने विधेयक में बदलावों के लिए अपने दिमाग खुले रखे और किसी भी ठोस सुझाव को स्वीकार करने के लिए तैयार रहेगी। इसी संदर्भ में चव्हाण ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली से भी मुलाकात की थी। तब चव्हाण ने कहा था, ''मैं बदलावों को स्वीकार करने को तैयार हूं।ÓÓ उन्होंने कहा कि हम, मूल विधेयक, संसदीय स्थायी समिति द्वारा दिए गए सुझाव या कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए सुधार या किसी उपयुक्त सुधार के बारे में चर्चा करने को तैयार हैं। सरकार अनुच्छेद 17 में किसी भी सुधार के लिए वार्ता करने को तैयार है। दरअसल, अनुच्छेद 17 (बी) का विवादास्पद संशोधन इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी परमाणु संयंत्र का परिचालक हर्जाने की मांग तभी कर सकता है, जब आपूर्तिकर्ता या उसके किसी कर्मचारी के कारण इरादतन दुर्घटना हुई हो। विधेयक में आपूर्तिकर्ता के दायित्व वाले अनुच्छेद में बदलावों को लेकर नाराज भाजपा और वाम दलों ने सरकार के 'इरादतनÓ शब्द पर अंदेशा जताया और सप्ताह के अंत में संसद में विचार के लिए रखे जाने पर विधेयक का विरोध करने की धमकी भी दी थी। गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि वाम दलों का कहना था कि दो उपबंधों के बीच शब्द 'एंडÓ का जि़क्र होने से हादसा होने की स्थिति में परमाणु उपकरण के विदेशी आपूर्तिकर्ताओं का दायित्व कुछ कम हो जाता है। वहीं दूसरा विवाद मुआवज़े की राशि को लेकर भी था। पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम 500 करोड़ रुपयों का मुआवज़ा देने का प्रावधान था लेकिन भाजपा की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके 1500 करोड़ रुपए करने को मंज़ूरी दे दी। सरकार की ओर से भरोसा दिलाते हुए कहा गया कि वह समय समय पर इस राशि की समीक्षा करेगी और इस तरह से मुआवज़े की कोई अधिकतम सीमा स्थाई रुप से तय नहीं होगी। काबिलेगौर है कि भारत और अमरीका के बीच हुए असैन्य परमाणु समझौते को लागू करने के लिए इस विधेयक का पारित होना ज़रूरी था। इस विधेयक में किसी परमाणु दुर्घटना की स्थति में मुआवज़ा देने का प्रावधान है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता वासुदेव आचार्या और रामचंद्र डोम, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गुरुदास दासगुप्ता और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा ने इस विधेयक का विरोध किया था। उनका कहना था कि ये विधेयक से संविधान के अनुच्छेद 21 का उलंघन होगा, जिसके तहत जीने के अधिकार जैसे मौलिक अधिकार आते हैं। साथ ही इस विधेयक से पीडि़तों को मुआवज़े की राशि बढ़ाने के लिए अदालत जाने के अधिकार से भी वंचित होना पड़ेगा। भाजपा के वरिष्ठ सांसद यशवंत सिंहा ने तो यहां तक आरोप लगाया था कि सरकार ये विधेयक अमरीका के दवाब में पास कर रही है। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इसी वर्ष के मार्च महीने में जब इस विधेयक को पेश करने की कोशिश की गई थी तब समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने इसका विरोध किया था, लेकिन इस बार ये दोनों सरकार के साथ दिखाई दिए। अलबत्ता, इस समूचे प्रकरण में विधेयक के मसौदे पर हुई बहस से निश्चित तौर पर बेहतर विधेयक तैयार करने और इस पर राजनीतिक आमसहमति बनाने में मदद मिली है। वाम दलों ने तो तथ्यों पर शुतुरमुर्ग जैसी भाव-भंगिमा अख्तियार कर ली और इस मुद्दे पर मनगढंत तथ्यों को लेकर लच्छेदार भाषण दिया है। यह आरोप कि विधेयक अमेरिका को उपहार है, खरा नहीं उतरता है क्योंकि रूस, फ्रांस, कोरिया और परमाणु ऊर्जा के उपकरणों की आपूर्ति करने वाले देश भी आपूर्तिकर्ताओं को ऐसे संरक्षण की मांग कर चुके हैं और भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग ने खुद ऑपरेटर को संरक्षण की मांग की थी! वाम दलों की विकृत राय इनकी पुरानी पड़ चुकी राजनीति का हिस्सा है, लेकिन भाजपा की निकट दृष्टि और कांग्रेस पार्टी की दोनों पक्षों की हां में हां मिलाने की नीति के कारण एक अच्छी पहल बदनाम में तब्दील हो गई। जी. बालाचंद्रन सहित परमाणु नीति के कई विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि परमाणु ऊर्जा के असैनिक इस्तेमाल के लिए सितंबर 2009 में हस्ताक्षरित भारत-फ्रांस समझौते में भी कहा गया है कि हर पक्षकार को स्थापित अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के मुताबिक असैनिक परमाणु दायित्व की व्यवस्था करनी चाहिए। यह मोटे तौर पर वही है जो भारत सरकार ने किया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबद्ध संसद की स्थायी समिति के सदस्यों ने जिन संशोधनों का सुझाव दिया था, वे उसी ढर्रे पर हैं जिनकी उम्मीद विशेषज्ञों ने की थी। विधेयक के मसौदे में ऑपरेटर का दायित्व 500 करोड़ रुपये तक सीमित किया गया था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1500 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। ऑपरेटर के दायित्व की बाबत वियना संधि में ऊपरी सीमा तय नहीं की गई है और भारत पेरिस संधि पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता क्योंकि यह केवल आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी )के सदस्यों तक सीमित है। इस तरह से भारत ऑपरेटर का दायित्व किसी भी स्तर पर तय कर सकता है और परमाणु दायित्व पर अंतरराष्ट्रीय परंपरा के मुताबिक चल सकता है।
Thursday, August 26, 2010
हां-ना के बाद हो ही गया हाँ...
Posted by सुभाष चन्द्र at 5:08 PM 0 comments
Labels: परमाणु दायित्व विधेयक
Monday, August 23, 2010
Tuesday, August 10, 2010
नज़र मछली की आंख पर
राष्ट्रमंडल खेलों में हुे घोटालों और अधूरी तैयारियों को लेकर चर्चा का बाज़ार काफी समय से गर्मा रहा है पर इस बीच मीडिया और आम लोग उन खिलाडिय़ो को भूल ही गए जिनके कंधों पर पदक लाने की जिम्मेदारी है। खेल अब मात्र कुछ दिनों ही दूर हैं। ऐसे में जानते है उन खिलाडिय़ों और खेलों की तैयारियों की पड़ताल जिनके पदक लाने की संभावना प्रबल है। अब वह दिन लद गए जब भारतीय खिलाडिय़ों के लिए खेल में अच्छे प्रदर्शन का उद्देश्य मात्र रेलवे, सेना, बैंक या किसी अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी पाना ही था। पिछले एक दशक में खिलाडिय़ों की इस मानसिकता में जबरदस्त बदलाव आया है। आज उनके लिए खेल नौकरी पाने का सबब कम और देश के लिए पदक जीतने का सबब ज्यादा बन गया है। अभिनव बिन्द्रा, सुशील कुमार और विजेन्दर सिंह को पिछले ओलंपिक में मिली सफलता के चलते इस बार खिलाडिय़ों में दोगुना उत्साह है और यह उत्साह उनकी तैयारी में भी दिखता है। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के तहत 18 खेलों के 1126 खिलाडिय़ों को देश विदेश के 192 कोच प्रशिक्षण दे रहे है। इस शिविर में राष्ट्रमंडल खेलों की सभी स्पर्धाओं में पदक जीतने की उम्मीद वाले संभावित खिलाडिय़ों की देश और विदेश में ट्रेनिंग का पूरा खर्च सरकार उठा रही है। किन खेलों के खिलाड़ी पदक ला सकते हैं आइये डालते हैं नज़र पदक जीतने की संभावनाओं पर- शूटिंग इस खेल में भारत ने पिछले कुछ सालों में जो कमाल किया है उसी की बदौलत यह खेल पदक बटोरने में मददगार हो सकता है। कोच मार्सेलो ड्रादी, जंग शाह और सनी थॉमस की निगरानी में निशानेबाज कठिन मेहनत कर रहे हैं। खिलाडिय़ों का यह कड़ा अभ्यास और मेहनत इस खेल के जरिए कम से कम 27 पदक लाने के लिए है। अभिनव बिंद्रा, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, समरेश जंग, गगन नारंग, रोजंन सोढ़ी, अंजलि भागवत जैसे अनुभवी खिलाडिय़ों के अलावा कई नए खिलाड़ी भी हैं जिनसे पदक की उम्मीद की जा रही है। कुश्ती पिछले ओलंपिक में विजेन्दर सिंह और सुशील कुमार ने रजत और कांस्य पदक जीतकर इस खेल में पदक जीतने की उम्मीदों को बढ़ा दिया है। इस खेल के लिए पिछले साल के राष्ट्रीय चैंपियनशिप से शीर्ष चार महिला और पुरुष पहलवानों को चुना गया है जिनका प्रशिक्षण शिविर एनआईएस, पटियाला और भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र सोनीपत में आयोजित किया गया है जहां पुरुषों को जगमिंदर और हरगोविंद तथा महिलाओं को पीआर सोंधी प्रशिक्षण दे रहे हैं। वैसे तो राष्ट्रमंडल खेलों में कुश्ती की अधिकांश कैटेगरी में भारत एक प्रबल दावेदार है पर कनाडा और नाइजीरिया के खिलाड़ी कुछ वजन श्रेणियों में भारत को चुनौती दे सकते हैं। इस बार इस खेल के जरिये भारत की झोली में 10 पदक आने की संभावना है। टेबल टेनिस टेबल टेनिस में भारत को मजबूत बनाने के लिए पुणे, पटियाला और अजमेर में नियमित रूप से शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। इटली के मास्मिसो कस्टेनटिनी और साई के कोच भवानी मुखर्जी भारतीय टीम को कोचिंग दे रहे हैं। इस खेल में भारतीय खिलाडिय़ों को सबसे बड़ी चुनौती चाइना मूल के खिलाड़ी दे सकते हैं। ïवैसे संभव है कि इस बार चीन राष्ट्रमंडल खेलों को हिस्सा न हो पर चीनी मूल के खिलाड़ी सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और स्कॉटलैंड जैसी टीमों के लिए खेलकर भारत के लिए चुनौती बन सकते हैं। अचंता शरत कमल और शुभाजीत साहा सहित कई महिला खिलाडिय़ों के बूते कोच और खिलाडिय़ों को उम्मीद है कि इस खेल से भारत 4 या 5 पदक मिल सकते हैं।टेनिसभले ही सानिया मिर्जा ने पाकिस्तानी दुल्हन बनने का फैसला कर लिया हो और भले ही उनकी रैकिंग पिछले काफी समय से लगातर गिर रही है मगर फिर भी उनके पदक जीतने की उम्मीद भारत को अब भी है। कोच जयदीप मुखर्जी, नंदन बल, एनरिको पिपर्नो, अरुण कुमार सिंह और नितिन कीर्तने की निगरानी में सानिया मिर्जा, लिएंडर पेस और महेश भूपति के अलावा सोमदेव और युकी भांबरी जैसे युवा टेनिस सितारों की पदक जीतने उम्मीद है। नए खिलाडिय़ों का जोश और पुराने खिलाडिय़ों के अनुभव से भारत इस खेल में 5 पदक लाने की उम्मीद है। हॉकी हालांकि पिछले कुछ समय से पुरुष हॉकी में भारत का दबदबा कुछ कम हुआ है मगर भारत की महिला हॉकी टीम काफी स्ट्रॉग है जिसके पदक जीतने की प्रबल संभावना है। साथ ही पुरुष टीम के भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। इसके लिए कोच जोस ब्रासा खिलाडिय़ों पर काफी मेहनत कर रहे हैं। दूसरी ओर महिला टीम भी कोच एमके कौशिक की निगरानी में जमकर अभ्यास कर रही है। इस खेल से भारत को कम से कम दो पदक लाने की उम्मीद है। एथलेटिक्स कोलकाता, बंगलौर और पटियाला में भारतीय खेल प्राधिकरण भारतीय एथलीटों को जमकर मेहनत करवा रहा हैं। हालांकि इस खेल में पदक के लिए भारत कभी भी बड़ दावेदार नहीं रहा है मगर फिर भी मेजबान होने के नाते इस बार इस खेल के भाग्य में एक बड़े बदलाव के लिए उम्मीद की जा रही है । डिस्कस थ्रो, शॉट पुट, रिले रेस और ट्रिपल जंप के जरिये भारत को 6 से 8 पदक मिलने की उम्मीद है। बैडमिंटन भारतीय बैडमिंटन टीम के राष्ट्रीय कोच गोपी चंद को आशा है कि इस खेल के जरिए उनके खिलाड़ी भारत की झोली में कम से कम तीन पदल ला सकते हैं। इसके लिए खिलाडिय़ों को गोपीचंद और हदी इडरिस अंतरराष्ट्रीय स्तर की कोंचिग दे रहे हैं ताकि भारतीय खिलाड़ी किसी भी मायने में किसी से कमतर साबित न हों। कोच को उम्मीद है कि सायना नेहवाल तो महिला एकल में स्वर्ण जीतेगी ही साथ ही ज्वाला गुटा और वी दीजू के भी डबल्स में पदक लाने की प्रबल संभावना है। भारोत्तोलन भारतीय भारोत्तोलन संघ और इसके खिलाड़ी हमेशा ही विवादों में रहते हैं। कभी घोटालों को लेकर तो कभी डोपिंग के कलंक तले दबे इस खेल के खिलाड़ी एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाएंगे। डोपिंग का डंक इस खेल पर इस कदर हावी है कि इसके खिलाडिय़ों से पदक की उम्मीद कम और डोपिंग टेस्ट में पाक साफ साबित होने उम्मीद ज्यादा की जाती है। भारोत्तोलन के राष्ट्रीय कोच हरनाम सिंह को वी एस राव, रवि कुमार, गीता रानी और युमनाम चानू के पदक जीतने की उम्मीद है। तैराकी नामी कोच प्रदीप कुमार और विदेशी देशों में उपलब्ध सुविधाओं के मिलने से तैरीकी के खिलाड़ी इस बार काफी जोश के साथ मैदान में उतरेंगे। वृंदावल खांडे, संदीप सेजवाल, जे अग्निश्वर यूरोप से उच्च स्तर की कोचिंग लेकर लौटे हैं। हो सकता है भारतीय तैराकी टीम के लिए यह राष्ट्रमंडल खेल एक सुनहरा मौका साबित हो जहां वे अपनी प्रतिभा का सफल प्रदर्शन कर सकें। कोच प्रदीप कुमार को भारतीय तैराकों से चार पदक जीतने की आशा है। मुक्केबाज़ी मुक्केबाजी के लिए खिलाडिय़ों को कोच जीएस संधू प्रशिक्षित कर रहे हैं। भारतीय मुक्केबाजी महासंघ को अपने मुक्केबाजों से 3 पदक जीतने की उम्मीद है। भारतीय मुक्केबाज पटियाला में आयोजित मुक्केबाजी शिविर में प्रशिक्षण ले रहे हैं। कोच जीएस संधू खिलाडिय़ों पर जमकर मेहनत कर रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि भारत पदक के लिए इस खेल को आशा भरी नज़रों से देख रहा है। तीरंदाजी खेल मंत्रालय ने जिन तीरंदाजों का चयन किया है उन्हें कोलकाता में साई के प्रशिक्षण केन्द्र में मशहूर तीरंदाज लिम्बा राम प्रशिक्षण दे रहे हैं। फिलहाल भारतीय तीरंदाजों के नाम कोई विशेष रिकार्ड नहीं है मगर फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है। मंगल सिंह और झानू हसदा से पदक की उम्मीद की जा सकती है। स्क्वैश अब तक इस खेल में भारते ने कोई भी मेडल नहीं जीता है। बावजूद इसके इस खेल से भारत को काफी उम्मीदें हैं। भारतीय स्क्वैश टीम के संभावितों खिलाडिय़ों भारतीय स्क्वैश अकादमी, चेन्नई में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन खिलाडिय़ों को भारतीय कोच सायरस पोंचा और विदेशी कोच सुब्रमण्यम सिंगारवेलो मिलकर प्रशिक्षण दे रहे हैं। संभव है कि इस खेल में पाकिस्तान, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देश भारत को सीधी टक्कर देंगे। फिर भी युगल के दोनों पुरुषों और महिला मुकाबलों में पदक जीतने की उम्मीद है। सरकार राष्ट्रमंडल खेलों को सफल बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस बार राष्ट्रमंडल खेल भारतीयों को टीम इंडिया के रूप में एक सूत्र में काम करने की चुनौती और मौका दे रहा है। वर्ष 2000 से भारत का खेलों का ग्राफ लगातार ऊंचा उठता जा रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे और एशियाई खेलों में सातवें स्थान पर पहुंच चुका है। बावजूद इसके अभी भी हमारे कई लूप पाइंट हैं। ज्ञात रहे कि ऑस्ट्रेलिया और पड़ोसी देश पाकिस्तान में खिलाडिय़ों के लिए प्रायोजक होते हैं। पाकिस्तान में तो हर स्क्वैश और हॉकी खिलाड़ी के लिए एक-एक प्रायोजक होता है पर यह सब भारतीय खिलाडिय़ों की किस्मत में नहीं है। हमारे यहां अभी यह स्थिति नहीं बन पाई है, लेकिन अगले कुछ वर्षो में ऐसा होना चाहिए कि क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के शीर्ष खिलाडिय़ों के पास भी अपने-अपने प्रायोजक हों ताकि आगे जाकर खेलों में नया बदलाव आ पाए। तो क्या हुआ कि लगभग सवा अरब के आबादी वाला यह देश ओलम्पिक्स मे सिर्फ तीन मेडल लेकर आता हैं मगर खुशी इस बात की है कि इन पदकों ने उम्मीद जगाई है कि हम अन्य खेलों में भी पदक जीत सकते हैं और हमारे खिलाड़ी इस बार के राष्ट्रमंडल खेल में इसे संभव कर दिखाएंगे।
Wednesday, August 4, 2010
अपने-अपने जिद्द के शिकार
Posted by सुभाष चन्द्र at 12:21 PM 1 comments
Labels: भारत और पाकिस्तान