Friday, March 26, 2010

दिलीप का रहमान बनना पिता को अकस्मात खोने के गम और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ ने दिलीप के मन से भगवान के लिए श्रद्धा और विश्वास को लगभग खत्म ही कर दिया । उन्हें न तो धर्म पर भरोसा था और न ही पूजा-पाठ में। इसका कारण थी वह मनौतियां जो पूरे परिवार ने उनके पिता की बीमारी के ठीक होने के लिए मानी थीं। उस समय उनका पूरा परिवार कई मंदिरों में भटकता रहा। लेकिन यह सारी मनौतियां असफल साबित हुईं और रहस्यमयी बीमारी ने उनके पिता को हमेशा-हमेशा के लिए उनसे छीन लिया। इन्हीं बातों ने दिलीप के बाल मन से भगवान के प्रति श्रद्धा को निकाल पेंक्का। 1988 में रहमान की एक बहन फिर से उसी बीमारी की चपेट में आ गयी जिसके चलते रहमान ने अपने पिता को खोया था। तब पूरा परिवार एक मुस्लिम पीर कादरी के पास गया और उसकी दुआओं से रहमान की बहन ठीक हो गयी। यही वह पल था जब यह पूरा परिवार हिंदू से मुस्लिम बन गया और तभी अब्दुल रहमान का जन्म हुआ। अब्दुल रहमान बनाम अल्लाह रक्खा रहमान रहमान के माता-पिता दोनों ही ज्योतिष पर काफी भरोसा करते थे। यही कारण था कि धर्म परिवर्तन करने के बाद भी उनकी मां नहीं चाहती थीं कि रहमान के नाम का पहला अक्षर एा बदला जाए। इसीलिए वह चेन्नई के एक ज्योतिषी उलगंथन के पास गयीं ताकि वह उन्हें दिलीप का मुस्लिम नाम चुनने में मदद करें। ज्योतिषी ने नाम सुझाया अब्दुल रहमान और यह भी कहा कि अगर यह लडक़ा ए और आर शब्द को अपने नाम के साथ जोड़े रखेगा तो दुनिया में काफी नाम कमाएगा। साथ ही उन्होंने एआर रहमाना नाम का भी सुझाव दिया। यह 1992 की बात है, जब रहमान ने मणिरत्नम की पहली फिल्म रोजा साइन की थी। रहमान की मां ने मणि से कहा कि अब रहमान की जगह उनका नाम एआर रहमान ही इस्तेमाल किया जाए और इसी के साथ जन्म हुआ एआर रहमान का। रहमान को अब्दुल रहमान से अल्लाह रक्खा बनाया संगीत निर्देशक नौशाद अली ने और तब से लेकर अब तक दुनिया ए.शेखर दिलीप कुमार को अल्लाह रक्खा रहमान के नाम से जानती है। मजबूत नींव पर खड़ी इमारत पिता की मौत ने रहमान के परिवार को विचलित तो किया लेकिन फिर भी उनकी मां करीना बेगम यानी कस्तूरी शेखर ने उनकी संगीत साधना को रुकने नहीं दिया। 11वीं तक की शिक्षा लेने के बाद रहमान ने आगे पढ़ाई तो नहीं की लेकिन उस संगीत साधना में रम गए जिससे उनकी आत्मा तृप्त होती थी। संगीत के मामले में रहमान की किस्मत ने हर कदम पर उनका साथ दिया। शायद यह उनका सौभाग्य ही था कि उनके शुरुआती सफर में ही उन्हें कई जाने-माने और उत्कृष्ट संगीतकारों का सानिध्य मिला। पियानो सीखने से शुरू हुआ उनका संगीतमयी सफर भारतीय शास्त्रीय संगीत, कर्नाटक संगीत, हिंदुस्तानी संगीत से होता हुआ पाश्चात्य संगीत तक पहुंचा। उनकी संगीत कला को साधने में मदद की दक्षिणामूर्ति, एन. गोपालकृष्णनन और कृष्णा नायर ने। वहीं पाश्चात्य संगीत का ज्ञान उन्होंने जैकब जॉन से लिया। इसके अलावा लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की संगीत अकादमी से मिली स्कॉलरशिप का भी रहमान ने पूरा-पूरा फायदा उठाया और पाश्चात्य संगीत की हर बारीकी को गहराई से परखा और उसे आत्मसात भी किया। यह उनकी वर्षों की तपस्या और संगीत साधना का ही फल है कि आज उनकी उंगलियों पर पारंपरिक भारतीय धुने, सूफियाना संगीत और पाश्चात्य संगीत जैसे रेगे, हिपपॉप और जाज एक साथ थिरकते हैं। संगीत के भूखे तमाम शैलियों को सीखने के बाद भी रहमान की संगीत को और गहराई से जानने की भूख कम नहीं हुई है। शायद यही कारण है कि वह 1997 में सूफी कव्वाली सीखने सरहद पार पाकिस्तान भी चले गए। नुसरत फतेह अली खान को अपना गुरु बना रहमान ने कव्वाली के तमाम गुर सीखे। इसके अलावा गजल में महारत हासिल करने के लिए उन्होंने हरिहरण का सहारा लिया। 1998 में गुलाम मुर्तजा खान व गुलाम मुस्तफा खान ने उन्हें हिंदुस्तानी ख्याल की बारीकियां सिखाई। संगीत की इन अमूल्य धरोहरों के ज्ञाता रहमान को संगीत का वह सागर कहना ज्यादा लाजमी होगा जो विश्वभर की संगीतविद्या की मिलन स्थली है। रहमान स्वयं तो संगीत की हर विधा में पांरगत होना चाहते ही हैं साथ ही उन्हें इस बात की चिंता है कि कैसे इस संगीत को जीवित रखा जाए। इसीलिए उन्होंने मोईनुद्दीन चिश्ती संगीत अकादमी की स्थापना की। इस संस्थान में भारतीय संगीत के साथ-साथ पाश्चात्य संगीत की बारीकियां भी सिखायी जाती हैं। इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद संगीत-सागर बन चुके इस संगीत साधक की न तो संगीत को और ज्यादा जानने की भूख कम हुयी है और न ही अपने ज्ञान को लेकर उनमें तनिक भी घमंड आया है।

2 Comments:

सुभाष चन्द्र said...

achhhi jankari dei rahe hain............................... yo hi jankari batani chhahiye............

Anonymous said...

neelam humne aapka lekh padha. rahman k bare me achchhi jankari hai.Waise bhi filmon per aapka lekhan umda hai.maine aapke lekh me rahman k ishwar se naraj hone ki baat padhi.Bhagwan hi to hai jo sab kuchh deta hai aur sab kuchhh chheen bhi leta hai.Use dosh nahi dena chahiye.
anyway lekh achchha hai. badhai

नीलम