Sunday, February 14, 2010

मियां यह मोहब्बत है या कोई कारखाना

किसी विषय पर लिखने के पहले उसकी परिभाषा देने का रिवाज है। हम लिखने जा रहे हैं -प्यार पर। कुछ लोग कहते हैं-प्यार एक सुखद अहसास है। पर यह ठीक नहीं है। प्यार के ब्रांड अम्बेडर लैला मजनू ,शीरी -फरहाद मर गये रोते-रोते। यह सुखद अहसास कैसे हो सकता है? सच यह है कि जब आदमी के पास कुछ करने को नहीं होता तो प्यार करने लगता है। इसका उल्टा भी सही है-जब आदमी प्यार करने लगता है तो कुछ और करने लायक नहीं रहता। प्यार एक आग है। इस आग का त्रिभुज तीन भुजाओं से मुकम्मल होता है। जलने के लिये पदार्थ (प्रेमीजीव), जलने के लिये न्यूनतम तापमान(उमर,अहमकपना) तथा आक्सीजन(वातावरण,मौका,साथ) किसी भी एक तत्व के हट जाने पर यह आग बुझ जाती है। धुआं सुलगता रहता है। कुछ लोग इस पवित्र ‘प्रेमयज्ञधूम’ को ताजिंदगी सहेज के रखते हैं । बहुतों को धुआं उठते ही खांसी आने लगती है जिससे बचने के लिये वे दूसरी आग जलाने के प्रयास करते हैं।

सच तो यह भी है की प्र और एम का युग्म रूप प्रेम कहलाता है। प्र को प्रकारात्मक और एम को पालन करता भी माना जाता है। "ऐं" शब्द दुर्गा सप्तशती के अनुसार पालन करने वाले के रूप में माना जाता है। निस्वार्थ भाव से चाहत भी प्रेम की परिभाषा में सम्मिलित है। एक कहावत में प्रेम शब्द की परिभाषा बताई गयी है,-"प्रेम प्रेम सब कोई कहे,प्रेम ना जाने कोय,ढाई अक्षर प्रेम को पढे से पंडित होय"। ज्योतिष के अनुसार प्रेम का कारक सूर्य है,सूर्य से दर्शन और शनि से परसन की भावना बनती है,सूर्य से रूप का मन के उदय होना,और सूर्य से आत्मा का जुड जाना,प्रेम में सहायक होता है। निश्चल प्रेम का कारक चन्द्रमा भी है,जिसे ज्योतिष में माता के रूप में माना जाता है। भौतिक प्रेम का कारक शुक्र भी है,जिसे संसार की भौतिक सम्पदा और पति के लिये पत्नी के रूप में जाना जाता है। बुध विद्या का कारक है,और विद्या से प्रेम करने के द्वारा बुद्धि का विकास सम्बभव है।

किसी का साथ अच्छा लगना और किसी के बिना जीवन की कल्पना न कर पाना दो अलग बातें है। हमारी आंख से आजतक इस बात के लिये एक भी आसूं नहीं निकला कि हाय अबके बिछुड़े जाने कब मिलें। किताबों में फूल और खत नहीं रखते थे कभी काहे से कि जिंदगी भर जूनियर इम्तहान होते ही किताबें अपनी बपौती समझ के ले जाते रहे।

इससे हटकर आज के संधर्भ में बात करे तो क्या प्रेम का परिणाम संभोग है या कि प्रेम भी गहरे में कहीं कामेच्छा ही तो नहीं? फ्रायड की मानें तो प्रेम भी सेक्स का ही एक रूप है। फिर सच्चे प्रेम की बात करने वाले नाराज हो जाएँगे। वे कहते हैं कि प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है। तब फिर 'मिलन' का अर्थ क्या? शरीर का शरीर से मिलन या आत्मा का आत्मा से मिलन में क्या फर्क है? प्रेमशास्त्री कहते हैं कि देह की सुंदरता के जाल में फँसने वाले कभी सच्चा प्रेम नहीं कर सकते। कामशास्त्र मानता है कि शरीर और मन दो अलग-अलग सत्ता नहीं हैं बल्कि एक ही सत्ता के दो रूप हैं। तब क्या संभोग और प्रेम भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? धर्मशास्त्र और मनोविज्ञान कहता है कि काम एक ऊर्जा है। इस ऊर्जा का प्रारंभिक रूप गहरे में कामेच्छा ही रहता है। इस ऊर्जा को आप जैसा रुख देना चाहें दे सकते हैं। यह आपके ज्ञान पर निर्भर करता है। परिपक्व लोग इस ऊर्जा को प्रेम या सृजन में बदल देते हैं।

दर्शन कहता है कि कोई आत्मा इस संसार में इसलिए आई है कि उसे स्वयं को दिखाना है और कुछ देखना है। पाँचों इंद्रियाँ इसलिए हैं कि इससे आनंद की अनुभूति की जाए। प्रत्येक आत्मा को आनंद की तलाश है। आनंद चाहे प्रेम में मिले या संभोग में। आनंद के लिए ही सभी जी रहे हैं। सभी लोग सुख से बढ़कर कुछ ऐसा सुख चाहते हैं जो शाश्वत हो। क्षणिक आनंद में रमने वाले लोग भी अनजाने में शाश्वत की तलाश में ही तो जुटे हुए हैं। आखिर प्रेम क्या है?यही तो माथापच्ची का सवाल है। क्या यह मान लें कि प्रेम का मूल संभोग है या कि नहीं। सभी की इच्छा होती है कि कोई हमें प्रेम करे। यह कम ही इच्छा होती है कि हम किसी से प्रेम करें। वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रेम आपके दिमाग की उपज है। अर्थात प्रेम या संभोग की भावनाएँ दिमाग में ही तो उपजती है। दिमाग को जैसा ढाला जाएगा वह वैसा ढल जाएगा।आत्मीयता ही प्रेम है :विद्वान लोग कहते हैं कि दो मित्रों का एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता हो जाना ही प्रेम है। एक-दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकारना जिस रूप में वह हैं। दोनों यदि एक-दूसरे के प्रति सजग हैं और अपने साथी का ध्यान रखते हैं तो धीरे-धीरे प्रेम विकसित होने लगेगा।

3 Comments:

Anonymous said...

bhai subhash ji mohabbat ki baat mat kijiye.kuchh nai baat kijiye.yeh sab karkhane hi ho gaye hain

Anonymous said...

PYAR KO SAMARPIT
Ek kone se shuru hota hai pyar
Doosre kone taq chala jata hai
Doosre se teesre chhor taq
Is tarah pyar rachta hai ek naya sansar............
Pyar ki koi deewar nahi hoti
kisi deewar ke chalte
pyar pyar nahi ho saqti
Ye to ek ahsas hai
pata nahi tumhe
us ahsas ka ahsas hai ki nahi
jiski baten do pahiye ki pichhli seat per baith ker kiye karti thi.........

Anonymous said...

CHURAYA GAYA HUBAHU KAI JAGAH SE...JARI RAKHO

नीलम