Thursday, January 28, 2010

पहले महंगाई, अब मौसम मार गई

देश की जनता पहले से ही महंगाई की मार से त्रस्त थी। अब प्रकृति की मार से उसका जीना मुहाल हो गया है। चारों तरफ अस्त-व्यस्तता। विशेषकर उत्तर भारत में। आम जनता को दैनिक क्रियाकलापों में परेशानी तो सरकार को रेल और हवाई यातायात को लेकर करोड़ो का नुकसान उठाना पड़ रहा है। आम आदमी यह सोचकर दुबला हुआ जा रहा है कि आने वाले समय में इस आर्थिक हानि की भरपाई भी तो उसी से होगी।
बहरहाल, पूरे उत्तर भारत में घने कोहरे और ठंड का कोहराम जारी है। राजधानी दिल्ली और एनसीआर घने कोहरे की चादर में लिपटा है। दिल्ली और नोएडा में विजिबिलिटी शून्य है। कोहरे का सबसे ज्यादा असर यातायात पर पड़ा है। सड़क, रेल और हवाई यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है। इस कारण यात्रियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कोहरे की वजह से कई रेलगाडिय़ां रद्द कर दी गयी हैं, तो कई घंटों देरी से चल रही हैं। कोहरे के कहर से हवाई यातायात भी प्रभावित है। दिल्ली और एनसीआर में विजिबिलिटी शून्य होने के कारण सड़कों पर गाडिय़ों की रफ्तार भी धीमी है। मौसम विभाग के मुताबिक 2003 के बाद पहली बार इस तरह का घना कोहरा पड़ रहा है। मौसम विभाग ने साफ कर दिया है कि अगले कुछ दिनों तक कोहरे से निजात मिलने की संभावना कम ही है। कोहरे की सबसे ज्यादा मार रेल यातायात पर पड़ रही है। अब तक रेलवे को करीब 65 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है। हवाई यात्रा का नुकसान अलग है।
इतना ही नहीं, कोहरे का लंबा खिंचता दौर फल और सब्जियों की फसल पर बुरा असर डाल रहा है। इसने गेहूं की पत्ती का रंग भी बदल दिया है लेकिन जानकारों का मानना है कि इसको लेकर चिंता की कोई बात नहीं है और यह तात्कालिक प्रभाव है जो मौसम में सुधार होते ही सही हो जाएगा। देश का उत्तरी इलाका इन दिनों कोहरे की चपेट में है। कई उत्तरी राज्यों से मिली जानकारी के मुताबिक कोहरे की सफेद चादर फल, सब्जियों और फूलों की फसल पर जरबदस्त मार करती दिख रही है। खासतौर से नर्सरियों पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ती नजर आ रही है। अगर मौसम में जल्द ही सुधार नहीं होता तो फल और सब्जियों की पैदावार पर बेहद बुरा असर पड़ सकता है।
गंगा के मैदानी इलाके में सबसे ज्यादा कोहरा छाया हुआ है और यहां से खबर आ रही है कि गेहूं की खड़ी फसल में गेहूं की पत्ती का ऊपरी हिस्सा पीला पड़ गया है। बहरहाल लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ। एम एस गिल का कहना है कि इसे लेकर बेवजह घबराने की जरूरत नहीं है। विश्वविद्यालय के प्लांट क्लिनिक में इस पत्ती का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आई है कि यह केवल मौसम का प्रभाव है और किसी तरह की बीमार नहीं है। दरअसल कई किसान इसे या तो कोई बीमार मान रहे थे या फिर किसी तरह के पोषण की कमी। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि इसको देखते हुए किसी तरह के अनावश्यक स्प्रे, कीटनाशक या फिर पोषक तत्व देने की जरूरत नहीं है। गेहूं की पीबीडब्ल्यू-343 किस्म में इसका सबसे ज्यादा असर देखने को मिल रहा है। पंजाब में बड़े पैमाने पर यह किस्म उगाई जाती है जो देश का प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य भी है। वैसे ठंडा मौसम गेहूं की फसल के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस साल रबी की फसल में गेहूं का रकबा पिछले साल के मुकाबले एक लाख हेक्टेयर बढ़ा है। खासतौर से बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड में ज्यादा गेहूं बोया गया है। इन दिनों दालों की कीमतें आसमान छू रही हैं और रबी में फसलों की बुआई भी इस बात पर मुहर लगाती दिख रही है। इस साल चना, उड़द और मूंग जैसी दालों की बुआई काफी बड़े पैमाने पर की गई है। हालांकि तिलहनों का रकबा सिकुड़ा है। विशेषकर सरसों और सूरजमुखी कम जमीन पर बोया गया है। केवल मूंगफली का रकबा बढ़ा है। रबी की फसल में तिलहनों की बुआई का काम पूरा हो चुका है। मोटे अनाजों में भी किसानों ने कम रुचि दिखाई है।

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नीलम