Friday, January 15, 2010

ककहरे को तलाशते गडकरी

कहा तो यही जा रहा है कि भाजपा ने पांच सितारा संस्कृति से तौबा करने के साथ ही अपने हिन्दुत्व मुद्दे को प्रखर करने का निर्णय किया है। इसके लिए नए अध्यक्ष नितिन गडकरी संघ से बराबर संपर्क में हैं। नए टीम की तलाश भी जारी है। लेकिन, इसे संयोग कहें अथवा कुछ और कि पार्टी नेताओं का जमावड़ा एक बार फिर मध्यप्रदेश की औद्योगिक नगरी इंदौर के एक नामचीन होटल में हो रहा है। तो भला पंच सितारा संस्कृति से कैसे तौबा माना जाए? संभवत: यही राजनीतिक विद्रूपता है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो पिसी फूट, अविश्वास, षड्यंत्र, अनुशासनहीनता, ऊर्जाहीनता, बिखराव और कार्यकर्ताओं में घनघोर निराशा के बीच चुनाव दर चुनाव हार का सामना, वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की यही फितरत बन गई है। 52 साल की उम्र वाले लोगों को अगर युवा कहा जा सकता है तो नया अध्यक्ष युवा है। उम्र न सही, लेकिन वह अपने बयानों, तेवर और राष्ट्रीय राजनीति के अनुभव के नज़रिए से युवा मालूम पड़ते हैं। नई दिल्ली में राष्ट्रीय पदाधिकारियों की पहली बैठक में जो तेवर दिखाए उससे साफ है कि वह पार्टी की शिथिल पड़ती जा रही छवि को सुधारना चाहते हैं लेकिन उनकी राह इतनी आसान नहीं है। उनके साथ यह संबल जरूर है कि वह संघ की पसंद हैं और संघ का पूरा समर्थन उन्हें हासिल है। लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि संघ की ओर से पार्टी में पहले भी कई धुरंधर नेता भेजे जा चुके हैं जो कि इतने मजबूर कर दिए गए कि वह आज या तो राजनीति से आजिज आ चुके हैं या उन्हें पार्टी के दिग्गजों द्वारा नेपथ्य में भेजा जा चुका है।
संघ द्वारा पार्टी में भेजे गए कुछ धुरंधरों में गोविंदाचार्य प्रमुख हैं जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मुखौटा कहने की कीमत चुकानी पड़ी इसके बाद न सिर्फ उन्हें पार्टी में साइड लाइन कर दिया गया बल्कि उन्हें राजनीति से इतर अपने लिए नई राह ढूंढने पर मजबूर होना पड़ा। इसके बाद बारी आई संजय जोशी की जोकि एक अश्लील सीडी कांड में ऐसे उलझे कि राजनीति से दूर हो गये और अब पार्टी और राजनीति में दोबारा आने के लिए काफी हाथ पांव मार रहे हैं। संघ की ओर से पार्टी के महासचिव बना कर भेजे गए राम लाल की भी पार्टी के दिग्गजों ने चलने नहीं दी। इस प्रकार गडकरी को भी पूर्व के उदाहरणों को देखते हुए सावधानी से आगे बढऩा होगा। सिर्फ संघ का सिर पर हाथ होने से कुछ नहीं होने वाला। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में बने और जमे रहने के लिए खुद का राजनीतिक रूप से कुशल होना भी जरूरी है।
काबिलेगौर है कि नए अध्यक्ष की ओर से कहा गया है कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और परिषद की बैठक भी इस बार किसी पांच या सात सितारा होटल में नहीं होकर साधारण तरीके से होगी। पार्टी के तमाम दिग्गज बैठक के दौरान तंबुओं में ठहरेंगे। पार्टी में ऐसा पहले भी होता था लेकिन तथाकथित महाजन संस्कृति के दौरान पार्टी की बैठकें पांच सितारा होटलों में होने लगी थीं। लोगों को सर्वाधिक आश्चर्य तब हुआ था जब 2004 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा ने बात तो मूल जड़ों की ओर लौटने की कि लेकिन इस पर विचार के लिए बैठक सात सितारा होटल में बुलाई। संघ भाजपा को इस पांच सितारा संस्कृति से दूर करना चाहता है और शुरुआत गडकरी ने कर दी है लेकिन वह इसे आगे भी कायम रख पाएंगे या नहीं यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
अब सभी निगाहें गडकरी की घोषित होने वाली पदाधिकारियों की टीम की ओर हैं। माना जा रहा है कि अगले माह यह टीम घोषित हो जाएगी। पार्टी में इस समय अधिकांश नेता गडकरी से वरिष्ठ हैं। इनमें से कुछ तो इतने वरिष्ठ हैं कि वह गडकरी की टीम में नहीं आना चाहेंगे लेकिन कुछ को इस पर आपत्ति नहीं होगी क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। पार्टी सूत्रों की मानें तो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारीकर और पार्टी के मुस्लिम सांसद शाहनवाज हुसैन को महासचिव बनाया जा सकता है जबकि रविशंकर प्रसाद को बिहार भाजपा अध्यक्ष या पार्टी उपाध्यक्ष पद पर रखा जा सकता है। मुख्तार अब्बास नकवी का उपाध्यक्ष पद बने रहने के आसार हैं। चर्चा तो यह भी है कि मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और बिहार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राधामोहन सिंह को भी दिल्ली लाया जा सकता है। साथ ही राष्टï्रीय सचिव की भूमिका निभा रहे प्रभात झा को मध्यप्रदेश भेजकर संगठन में मजबूती लाने का काम दिया जा सकता है। इसके अलावा दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ। हर्षवर्धन का भी पार्टी उपाध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है। विजय गोयल अपना महासचिव पद बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं यदि वह यह पद नहीं बचा पाए तो दिल्ली में अध्यक्ष पद पर उनका आना तय माना जा रहा है। राजीव प्रताप रूडी और प्रकाश जावडेकर पहले की तरह प्रवक्ता बने रहे सकते हैं जबकि किरीट सौमेया को पार्टी का सचिव बनाया जा सकता है। गडकरी की नई टीम में संभवत: सबसे चैंकाने वाला नाम वरुण गांधी का हो सकता है। उन्हें संघ की रणनीति के मुताबिक, पार्टी की युवा शाखा का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। संघ चाहता हैै कि कांग्रेस के युवा चेहरे राहुल गांधी को टक्कर देने के लिए पार्टी के युवा इकाई अध्यक्ष पद पर वरुण को लाया जाए जिससे उन्हें घेरने में आसानी हो। इसके अलावा वरुण का नाम भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के लिए भी चल रहा है । यदि वरुण उत्तर प्रदेश भेजे गए तो पार्टी की युवा शाखा के अध्यक्ष का पद पार्टी सांसद और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर को यह पद दिया जा सकता है। इसके अलावा राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम भी केंद्रीय संगठन के लिए चल रहा है। पार्टी के कुछ पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता भी अपने-अपने सिपहसालारों को पार्टी के नए बनने वाले संगठन में फिट करवाने के प्रयास में लगे हुए हैं जिससे गडकरी पर नियंत्रण बनाए रखा जा सके। इसके अलावा कुछ ने अपने ही स्तर पर प्रयास शुरू कर दिए हैं जिनमें महासचिव विनय कटियार प्रमुख हैं। उन्होंने कहा है कि वर्तमान राजनीतिक दौर में संन्यास ही बेहतर है। उन्होंने यह शिगूफा इसलिए छोड़ा है ताकि नई टीम में उनकी जगह पक्की हो सके।
भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में आजकल हलचल है। नितिन गडकरी की टीम में कौन-कौन लोग होंगे? किन-किन लोगों को दरकिनार किया जाएगा? नए अध्यक्ष के रास्ते कौन कांटे बिछाएगा? कुछ कहते हैं कि गडकरी में दम है और कुछ लोगों को लगता है कि अरुण जेटली और सुषमा स्वराज के मुक़ाबले गडकरी का क़द काफ़ी छोटा है। बहरहाल, भाजपा में नई टीम के गठन की जद्दोजहद चल रही है। फरवरी के पहले और दूसरे सप्ताह में यह पता चल पाएगा कि भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष की टीम में कौन-कौन शामिल हैं। स्वयं पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि पार्टी की नयी कार्यकारिणी का गठन फरवरी तक कर दिया जाएगा। पार्टी के कार्यकारिणी की नियुक्ति पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन के पूर्व हो जायेगी1 सम्मेलन संभवत: फरवरी के अंतिम सप्ताह में हो सकती है। सच तो यही है कि नई टीम तो राष्ट्रीय परिषद के अनुमोदन के बाद गठित होगी। कहा जा रहा है कि फरवरी में वेलेंटाइन डे से पहले आठ, नौ, दस तारीख को अध्यक्ष का चुनाव। फिर 17 को इंदौर में एकदिनी वर्किंग कमेटी और 18-19 को परिषद की मीटिंग। उसके बाद जब गडकरी नई टीम बनाएंगे। तो उसमें अपनी छाप तो छोड़ेंगे ही।

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नीलम