Saturday, January 9, 2010

सभ्यता की पोल

सहमी हुई सुबह
सूरज की रोशनी से
भयाक्रांत थी
कौन जाने किस पल
एक धमाका हो
जो कई जिस्मानी साबूत के साथ
प्रगतिशील सभ्यता की पोल खोल दे
और चांद पर चढऩेवाले
इनसानी मंसूबों को
अंदर तक नंगा कर दे।

1 Comment:

Rahul srivastava said...

itni aachi kawita like leti to pahle kyu nahi likhti thi.

नीलम